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बजट में मोदी सरकार ने फिर से किसानों को निराश

कहां की फसल की लागत मूल्य पर डेढ़ गुना बढ़ाने का दावा पहले भी कर दिए गए हैं, यह जानते नहीं कि फसल की लागत कितनी है। पहले सीमांत तथा लघु सीमांत किसानों की श्रेणी का पता नहीं चलता, जबकि अब यह पैमाना देखना होगा कि कितनी लागत फसल में लगी है। जिसके लिए सबसे पहले तो कृषि को उद्योग का दर्जा मिलने सहित किसान आयोग का गठन होना चाहिए। स्वामीनाथन आयोग के सिफारिशो को तत्काल लागू करना चाहिए। जिससे किसानों को कृषि में लाभ मिले।

किसानों के हित में बजट के वादे और दावे तो पहले से ही किए जा रहे हैं। जिसको लागू करने का इंतजार किसान अभी तक कर रहें हैं लेकिन किसानों के हित में लिए गए पहले के फैसले अभी तक लागू नहीं हुए। बल्कि उसके ठीक उलट बिजली के बिल बढ़ा दिए गए हैं, यूरिया पर सब्सिडी हटा ली गई है, किसानों को मिलने वाला बीज, कीटनाशक और डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी हो रही है। बजट किसानों के हित में तब होता जब ट्यूबवेल का बिल कम कर दिया जाता, यूरिया केवल किसान को मिलता है, उसको सस्ता कर दिया जाता, खेती उपयुक्त वस्तुओं के दाम कम कर दिये जाते।

सांसदों की तन्खवाह तत्काल लागू कर जाती हैं, जबकि किसानों को दी जा रही सौगात के लिए 2022 तक का समय दिया गया था जिसे इस बजट में भी यानी आजतक लागू नहीं किया गया। 2018 के बजट में कहा गया था कि गांवों का विकास 2022 तक होगा। लेकिन आज-तक किसानों, गाँवों को दिए गए घोषणा में कुछ नहीं मिला। केवल घोषणा होकर रह जाती है, इस तरह किसान और गाँव का कोई भला नहीं हो सकता। लाखों की फसल बे मौसम बारिश ओलावृष्टि बाढ़ से बर्बाद हो जाती है और किसान हजार रुपये के लिए भागते फिरते हैं। बाद में पता चलता है कि बीमा नहीं मिलेगा। कहां की फसल की लागत मूल्य पर डेढ़ गुना बढ़ाने का दावा पहले भी कर दिए गए हैं, यह जानते नहीं कि फसल की लागत कितनी है। पहले सीमांत तथा लघु सीमांत किसानों की श्रेणी का पता नहीं चलता, जबकि अब यह पैमाना देखना होगा कि कितनी लागत फसल में लगी है। जिसके लिए सबसे पहले तो कृषि को उद्योग का दर्जा मिलने सहित किसान आयोग का गठन होना चाहिए। स्वामीनाथन आयोग के सिफारिशो को तत्काल लागू करना चाहिए। जिससे किसानों को कृषि में लाभ मिले।

किसानों के लिए सरकार ने नए बजट में कुछ नहीं दिया। केवल पहले के जैसे सपने दिखा दिए हैं। पहले ऊंट के मुँह में जीरे की कहावत थी लेकिन सरकार ने इस बार ऊंट के मुंह में जीरे के स्थान पर मटरे का दाना दे दिया है।

किसान कर्ज के कारण और फसल न होने पर मर रहा है और जवान सीमा पर मर रहा है। बजट समाचारों टीवी चैनलों में ही बढ़ियां है जबकि किसानों को तो पहले की तरह फिर से एक भरोसा दे दिया गया है।

बिजली का ट्यूबवैल पर बिल कम करा दें और आलू तथा अन्य सब्जी के दाम सही दिला दें बस यह बजट हो तो किसानों का कुछ भला हो नहीं तो यह तो कागजी बाते हैं।

किसान तो चुनाव से पहले बस यही सुनता है कि पांच साल में यह हो जाएगा। होता कुछ नहीं है, अगर किसानों के लिए कुछ करना है तो तत्काल लागू करों।

गाँव के लोग
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