भारतीय गाँव शोषण के वीभत्स केंद्र हैं, जहाँ दलितों की स्थितियां दो दशक पहले तक भी बेहद क्रूर रही हैं। ये कितनी बड़ी विडम्बना है कि एक माँ को दूसरों के यहाँ जी-तोड़ मेहनत करने के पश्चात् भी अपने बच्चों का पेट भरने के लिये खाने की वस्तुओं की चोरी करनी पड़े। पढाई के टोटके कविता में कवि बेहद मासूमियत के साथ अपनी पारिवारिक दरिद्रता को दर्शा जाता है- घर पर भूखे पेट स्कूल जाने की महिमा बताई जाती/ कुछ खाने को मांगते तो डांटा जाता/ जब सूबा सुबाई पेट में रोट्टी ठूंस लोगे तो दिमाग में क्या गोबर भरेगा?
ये कवि के बाल मन में अंकित वे दृश्य हैं, जिन्हें स्मृति से मिटा पाना कवि के लिए सरल नहीं रहा। कवि अमित के बचपन की इन स्मृतियों में रिश्तों के प्रति एक सहज निश्छलता है। यहाँ माँ -पिता भाई -बहन ,चाचा, ताऊ और ननिहाल के सभी रिश्तों का व्यवहारिक वर्णन है, जो कवि की संवेदनशीलता और बालक अमित की अभाव जनित विवशता को दर्शाता है। 'ख़ामोशी' कविता में 'पिता' का जिक्र करते हुए कवि कहता हैं- हमने पापा से बहुत ज्यादा बात नहीं की/
