Thursday, April 25, 2024
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अकेले ही बीना सिंह ने रौशन किया सैकड़ों का जीवन

मैं संयुक्त परिवार में हूं और सभी लोग बहुत सपोर्ट करते हैं। परिवार को लेके चलना बहुत बड़ी तपस्या है, लेकिन अब मुझे परिवार के साथ- साथ इन कार्यों को करने में बहुत अच्छा लगता है। मैं बहुत व्यस्त रहती हूं।  सुबह पढ़ाना, फिर ब्यूटीशियन का कोर्स सिखाना,  डीएलडब्ल्यू में एक पार्लर है शाम को वहां जाती हूं। वहां से कमाई करके एनजीओं में लगाती हूं। डीएलडब्ल्यू मार्केट में व्यापार मंडल का समूह बना हुआ है। उन लोगों ने मेरे कार्यों को देखते हुए मुझे व्यापार मंडल प्रकोष्ठ का अध्यक्ष बनाया है।

एक दिन मेरे ऑफिस में सामाजिक उत्थान में सहयोगी विशेष जनों की चर्चा चल रही थी, उसी दौरान मेरे कलिग ने बीना सिंह के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि बीना सिंह आइडियल वुमेन वेलफेयर सोसायटी नामक संस्था चलाती हैं जिसमें वृद्ध महिलाओं को शिक्षित करने का कार्य करती हैं। सुनते ही मेरे मन में सवाल आया कि क्या वृद्ध महिलाओं की शिक्षा जैसा भी कुछ होता है? क्योंकि गांवों में कभी देखा नहीं वृद्ध महिलाओं को पढ़ते हुए और उम्र के इस पड़ाव पर पढ़ने के बारे में सोचना भी उपहास जैसा मालूम पड़ता है। इन सवालों और जवाब के लिए मैंने बीना सिंह से मिलना तय किया। उनसे बात करके मैंने उनसे समय लेना चाहा तो दो दिन प्रोग्राम में व्यस्त होने के कारण उन्होंने मुझे सोमवार का समय दिया। मैंने फटाफट अपना काम खत्म किया और सोमवार सुबह 11:40 बजे उनके बताए स्थान पर उनसे मिलने पहुंच गयी। भुल्लनपुर पीएसी गेट के ठीक बगल में उनका स्थायी निवास है और कुछ दूर चलने पर एक लॉन हैं जहां पर वह शिक्षण का कार्य करती हैं। वहां पहुंचने के लिए मुझे थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन वहां पहुंचने के बाद मुझे जो खुशी मिली उसके आगे उसका कोई मोल नहीं।

बच्चों को सम्मानित करती बीना सिंह

जैसे ही मैं लॉन में पहुंची तो वहां एक लंबा कमरा था जिसकी छत कर्कट की थी और सामने की दीवार पर आइडियल वुमेन वेलफेयर सोसायटी नामक पोस्टर लगा हुआ था, जिसमें कई कार्यक्रमों की फोटो लगी हुई थी। मैने उसकी एक तस्वीर ली और अन्दर कमरे में प्रवेश किया। जैसे ही मैं अंदर गई वैसे ही सभी महिलाओं ने खड़े होकर जोरदार स्वर में मेरा अभिवादन और स्वागत किया। मेरे लिए यह थोड़ा नया था क्योंकि आज तक मैंने सिर्फ बड़ों को सम्मान दिया था उनसे लिया नहीं था। वहां बिजली का थोड़ा अभाव था जिसके कारण लगभग सभी लोगों के हाथों में पंखी(हवा लेने वाली) नजर आ रही थी। सभी को बैठने का इशारा करते हुए बीना सिंह ने कहा कि ‘ई मैडम जी देख आयल हईं कि तोहन लोग केतना पढ़लू’, तभी एक वृद्ध महिला, जिसकी उम्र लगभग 75-80 वर्ष रही होगी। उन्होंने तपाक से कहा ‘तनी हमार कपिया देखा हम। कइसन लिखले हई’! उनकी इस बात से मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं बच्चों के बीच में आ गयी हूं। मैंने उनकी कॉपी देखी उन्होंने उस पर अपना नाम, जो कि शांति है, कई बार लिखा हुआ था(शांति शाति शांति…..)। मैंने उनका उत्साह बढ़ाया ‘बहुत बढ़िया’।

इसके बाद आगे के कतार में बैठी लगभग सभी महिलाएं एक-एक कर मेरे आगे कॉपी बढ़ाने लगीं। मैंने भी उनकी कॉपी देखकर उनका उत्साहवर्धन किया। उन कॉपियों में किसी ने स्वर(अ आ इ ई…)तो किसी ने व्यंजन(क ख ग घ….) लिखा था। इसके बाद बीना जी ने सभी लोगों को ब्लैकबोर्ड पर लिखे स्वर के बारे में बताते हुए कहा कि इससे ही हिन्दी के सभी शब्द बनते हैं इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है यह पढ़ना। फिर उन्होंने पढ़ाना शुरू किया और मैंने इस सुनहरे पल को अपने कैमरे में कैद करना। वे पढ़ाती फिर सभी महिलाएं उनके पीछे उसे दुहरातीं। क से कबूतर, ख से खरगोश, ग से गमला, घ से घड़ी, ड. माने खाली। अम्मा बजाओ ताली (सभी महिलाएँ दुहराते हुए कहतीं ड. माने खाली अम्मा…)। च से चरखा, छ से छड़ी, ज से जहाज, झ से झरना, ञ माने खाली अम्मा बजाओ ताली (सभी महिलाएँ दुहराते हुए कहतीं – ञ माने खाली…)। ट से टमाटर, ठ से ठठेरा, ड से डलिया, ढ से ढक्कन, ण माने खाली अम्मा बजाओ ताली(सभी महिलाएँ दुहराते हुए कहतीं ण माने खाली…)। त से तलवार, थ से थन, द से दवाद, ध से धनुष, न से नल, प से पतंग, फ से फरसा, ब से बकरी, भ से भट्टी, म से मछली, य से यज्ञ, र से रथ, ल से लड़की, व से वकील श से शरीफा, ष से षटकोण, स से सरौता, ह से हल, क्ष से क्षत्रिय, त्र से त्रिशूल, ज्ञ से ज्ञानी। ज्ञानी हमलोग बनेंगे पूरी पढ़ाई करेंगे। कुल मिलाकर यह एक मज़ेदार सीन था।

महिलाओं योग मुद्रा सिखाती बीना सिंह

इसके बाद बीना जी ने कहा कि आप लोगों में से कौन पढ़ाएगा तो सामने की लाइन में बैठी एक महिला उठीं और पढ़ाने लगीं, और सभी महिलाएं फिर उसी क्रम को दुहराने लगीं। क से कबूतर...। इसके बाद बीना जी ने सभी की उपस्थिति (Attendance) ली और कहा कि सभी लोग अपने नाम के हस्ताक्षर करें और जो नहीं कर सकते हैं वे ना करें। अंगूठा किसी को नहीं लगाना है। इसी बीच मैंने महिलाओं से बात करना शुरू किया। मैंने पूछा आप लोगों के यहां आने पर आपके घर में कोई कुछ कहता तो नहीं कि कहां जा रही हो? क्या जरूरत है पढ़ने की? तो महिलाओं ने कहा ‘नाहीं। आउर खाली हफ्ता में दू दिन आवेके रहेला गुरुवार सोमवार दोपहर में’।मैंने फिर पूछा आप लोगों को पढ़ना कैसा लगता है तो महिलाओं ने जवाब दिया ‘अच्छा लगला आउर पढ़ लिख लेवल जाई त हमहन बदे अच्छा बा कि अंगूठा ना लगावके होई। बैंके में केहू जबरदस्ती हमहन से अंगूठा त ना न लगवाई।’ तभी बीना सिंह ने कहा कि देखिए पढ़ना-लिखना बहुत जरूरी है कभी-कभी न पढ़ा-लिखा व्यक्ति उपहास का पात्र बन जाता है। इसके बाद उन्होंने एक कहानी सुनाया।

‘एक गांव में एक पंडित रहते थे, पूजा-पाठ कराते थे। एक दिन गांव की सभी महिलाएं पंडिताइन(पंडित की पत्नी) के पास पहुंची (क्योंकि महिलाओं को लगता था कि पंडिताइन भी ज्ञानी हैं) और उनसे गांव में पूजा कराने की बात रखी। पंडिताइन ने कहा कि हम पंडित से पूछ करके बताएंगे। फिर पंडिताइन ने पंडित से कहा कि गांव की सभी महिलाएं पूजा कराना चाहती है तो पंडित ने कहा ठीक तो है कम से कम इसी बहाने कुछ हमारा भी फायदा होगा। लेकिन पंडिताइन तो चिंतित थीं कि हमको तो कुछ आता नहीं है हम कैसे पूजा करा पाएंगे तो पंडित जी ने कहा इतना नहीं सोचो जैसा- जैसा हम कहें वैसा- वैसा करते जाना। पंडिताइन बिलकुल खुश कि हम तो पूजा कराएंगे। एक तिथि रखी गई और पूजा की तैयारी शुरू कर दी गई। पूजा के लिए सुनिश्चित स्थान पर लिपाई–पुताई, चौक पुराई हुई। गांव की सभी महिलाएं इकट्ठा होकर सभी यथा स्थान बैठ गईं। उसमें कुछ महिलाएं चौक पुरे वाले स्थान पर बैठने लगी तभी पंडित जी ने कहा कि अरे वहां ना बैठिए। वहां सिर्फ पूजा कराने वाले बैठेंगे। सभी लोग बैठ गए पूजा शुरू हुई। पंडित जी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया। कुछ देर बाद पंडित जी ने पंडिताइन को इशारा किया कि अब मैं जो भी कहूं उसे दोहराना है। पंडित जी कुछ मंत्र बोले ऊँ भद्रम…..पंडिताइऩ ने उसे दोहराया। फिर पंडित ने कहा कि वहां पर एक का सिक्का चढ़ाइए तो पंडिताइन ने उसे दोहराते हुए कहा कि वहां पर एक का सिक्का चढ़ाइए। तो फिर पंडित जी ने कहा अरे जो सिक्का दिए थे चढ़ाने के लिए उसे चढ़ाइए, तो पंड़िताइन ने कहा कि अरे जो सिक्का दिए थे चढ़ाने के लिए उसे चढ़ाइए। फिर क्या, पंडित जी को गुस्सा आ गया। उन्होंने ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा कि अरे मूर्ख जो सिक्का दिए थे उसे चढ़ाने को कह रहें हैं। पंडिताइन को लगा कि यह पूजा का हिस्सा है उन्होंने भी चिल्लाते हुए कहा कि अरे मूर्ख जो सिक्का दिए थे उसे चढ़ाने को कह रहें हैं। पंडित जी और गरम हो गए पंडिताइन के इस व्यवहार से। फिर क्या पंडिताइन को एक झापड़ मार दिए और सारे गांववाले बेचारे बिल्कुल हाथ जोड़के पूजा सुन रहें हैं। उनलोगों को लग रहा है पूजा ऐसे ही होती है। फिर पंडिताइन भी आव देखीं ना ताव उठीं और वे भी एक झापड़ मार दीं। फिर शुरू हुआ घमासान युद्ध पति-पत्नी के बीच में। मार-पीट के बीच पंडित का एक पैर लिपाई-पुताई के स्थान से बाहर निकल गया। गांव की एक महिला उठी और बोली की ‘पंडित जी जवन करे के ह गोला के अंदर करा बाहर काहें आवत हउवS। कहानी के अंत से लोगों के चेहरे खिलखिला उठे। इसी के साथ बीना सिंह ने छुट्टी की घोषणा की। हम वहां से बीना सिंह घर की तरफ निकले। उनके घर की स्थिति ठीक- ठाक थी। उनके घर के आगे एक बड़ी-सी बाड़ी थी जिसमें 12-15 गायें बंधी हुई थीं। उनकी देखभाल उनके पति चन्द्र शेखर सिंह करते हैं। बीना सिंह के ऑफिस में बैठकर मैंने ढेर सारी बातें की।

कार्यक्रम के दौरान सम्मान प्राप्त करती बीना सिंह

बीना जी ने बैठते ही पूछा कैसा लगा आपको? तो मैंने कहा अच्छा लगा। उन्होंने कहा केवल पढ़ाने से लोग बोर हो जाते हैं उनको हंसाकर कविता और कहानी सुना करके के ही पढ़ाते हैं। सभी महिलाएं अपनी उपस्थिति को लेकर बहुत ध्यान देती क्योंकि जो भी सबसे अच्छा पढ़ रहा हैं मेहनत कर रहा है सीख रहा है, उसके प्रोत्साहन के लिए मैं गिफ्ट देती हूं। गिफ्ट में उन्हें ऐसी चीजें जो उनके इस्तेमाल की होती हैं जैसे-निरमा, कटोरी, टिफिन आदि देती हूं। उतने में ही वे बहुत खुश होती हैं। हालांकि अभी मैं पूरे गांव तक नहीं पहुंच पायी हूं लेकिन अपने आस-पास के बच्चों, बूढ़ी महिलाओं, बहुओं को पढ़ाने और लड़कियों को सिलाई, कढ़ाई, ब्यूटीशियन कोर्स कराने का कार्य कर रहीं हूं। इस तरह से मैं तीनो जनरेशन के लिए कार्य कर रहीं हूं। और मुझे लगता है कि गांव बदलने में ज्यादा देर नहीं लगेगा। क्योंकि जब सभी एक ही भाषा बोलेंगे तो आदमी आपने आप ही बदलने लगेगा।

मैंने पूछा कि आपने इसकी शुरुआत कैसे की? इसके जवाब में बीना जी कहती हैं कि मेरा मायका चुनार में है। उस दौरान 1995-96 में देश में प्रौढ़ शिक्षा का अभियान शुरू हुआ। इसमें गांव-गांव में बूढ़ी महिलाओं के पढ़ाया जा रहा था। इसमें  मेरी भाभी पढ़ाती थीं। मैं उस समय 6-7वीं की कक्षा में रही होऊँगी। उनके साथ मैं भी पढ़ाती थी। मुझे सिलाई-कढ़ाई, वेस्ट मैटेरियल से चीजें बनाना, नेलपेंट, मेहंदी आता था। मैंने ये सभी अपनी भाभी से सीखी थी।मैं सबकुछ मैं पारगंत थी। लेकिन जब मैं ससुराल आयी तो मुझे खाना बनाने नहीं आता था। अब सास की शिकायतें शुरू हो गईं। सभी कलाओं में पारगंत होने के बाद भी मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मुझे कुछ नहीं आता। उस समय मेरे पति ने मेरा बहुत सहयोग किया। उन्होंने मुझे खाना बनाना सिखाया। उन दिनों जब मैं खिड़की से देखती थी, तो छोटी- छोटी लड़कियाँ कूड़ा बीनती और बकरी चराती नजर आतीं। तो मुझे लगा कि इन लोगों को कुछ बता दिया जाए तो ये भी कुछ सीख लेंगी। और मुझे उस समय टाइमपास करना था। तो मैंने उन लोगों से बात करने की कोशिश की। मैंने उनसे पूछा कि तुम लोग पढ़ती क्यों नहीं हो तो कहा कि पढ़ेंगे तो बकरी कौन चराएगा? घरवाले बोलते हैं कि बकरी चराओं। तो फिर मैंने कहा कि तुम लोगों को हम पढाएं तो। उन्होंने कहा कि पैसा तो नहीं लेंगी ना। मैंने कहा कि नहीं लूंगी।

फिर 2010 में मैंने 3 लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। उसके बाद एक दिन एक लड़की की बहन आयी। वह फटा कपड़ा पहने थी। मैंने कहा कि तुम इतनी बड़ी हो गयी हो और फटा कपड़ा पहनी हो। वह बोली सिलाई नहीं आती। मैंने उसे सिलाई सिखाना शुरू किया। वह लड़की एक घर में बर्तन माँजने जाती थी। हमारे यहां सिलाई सीखने की वजह से कभी- कभी लेट पहुंचती थी। घर की मालकिन ने पूछा कि क्यों लेट आयी तो उसने बताया कि ‘एक जने हईं ऊ सिलाई सिखावलीन। एही से लेट हो जाला’। तो वह बोली की फिर हमारी भी लड़की को सिखाएं। वह आयीं मेरे पास। बोलीं कि आप मेरे भी लड़की को सिलाई सिखा दीजिए और फीस ले लीजिए। तो उनकी बेटी मेरे यहां 100 रुपये में फिर सिलाई सीखने लगी। फिर मुझे फिर लगने लगा कि जो देने में सक्षम हैं उनसे मैं फीस लेकर अच्छी कमाई भी कर सकती हूं। 2010 में मैंने 7 लड़कियों को सिलाई सिखाना शुरू किया। जब सास को समझाया कि पैसा मिल रहा है तो वे खुश हो गयीं। वहां से जो मेरी शुरुआत हुई फिर मैं रुकी ही नहीं। 2013 में मैं ब्यूटी पार्लर का कोर्स कराने लगी। एक दिन मुझे एक सज्जन ने पूछा कि आप सिखाती तो हैं लेकिन  सर्टिफिकेट भी देती हैं क्या?  मैंने कहा मैं तो नहीं देती।  उन्होंने मुझे सलाह दी कि आप इसका रजिस्ट्रेशन करा लीजिए। मैंने कहा कि आप ही करा दीजिए। फिर मैंने दो-ढाई हजार रूपए में रजिस्ट्रेशन कराया। उनकी मदद से फिर आइडियल वुमेन वेलफेयर सोसाइटी संस्था तैयार हुई। रजिस्ट्रेशन के बाद जो पेपर आया वह अंदर रख दिया गया। अब यहां मेरी बेवकूफी देखिए कि मैं लोगों को पढ़ाती हूं कि लोग जागरूक हों और मुझे उस वक्त यही नहीं पता था कि मेरी संस्था का नाम क्या है। रजिस्ट्रेशन के दौरान मैंने यहां से लिख के दिया था आदर्श महिला विकास समिति और वह वहां जाके हो गया आइडियल वुमेन वेलफेयर सोसाइटी। यहां बैनर भी बन गया आदर्श महिला विकास समिति के नाम से। दो सालों तक मैंने इसी बैनर तले अपनी संस्था चलाई। फिर जब मैं अकाउंट खुलवाने गयी तो मुझे पता चला कि मेरी संस्था का नाम आइडियल वुमेन वेलफेयर सोसाइटी है।

संस्था के कार्यकर्ताओं के साथ बीना सिंह

हमारी बातचीत के बीच गांव की महिला सुनीता का आगमन हुआ, जिनका परिचय बीना जी ने अपनी सहायिका के रूप में कराया। बीना जी आगे कहती हैं कि जिन लड़कियों को मैंने सिलाई सिखाया वे शादी करके अपने घर चली गईं। परिस्थितियों से रूबरू हुईं तो उन्होंने हमें फोन किया कि क्या हमलोग इस तरह का कुछ सिखा सकते हैं। हमने कहा कि सिखाओ तो उन्होंने कहा कि एक बार आप यहाँ आइए तो सबका हौंसला बढ़ेगा। मैं गयी उनके शुभारंभ के लिए। फिर उन्होंने सिलाई सिखाना शुरू किया। यहां से उनकी कमाई शुरू हो गयी उसके बाद मैंने ब्यूटीशियन क्लास लेना शुरू किया। अब यहां से मेरी शाखाएं प्रारम्भ हो गयीं। वर्तमान समय में मेरी कम से कम 45 शाखाएं हैं। वह भी 5-6 गावं में। और यहां से सर्टिफिकेट मैं प्रोवाइड कराती हूं। मैंने यह देखा कि सिलाई-कढ़ाई-ब्यूटी कोर्स वे लड़कियां सीख रहीं हैं जो पढ़ी नहीं हैं। तो ऐसा दौर ही क्यों आने दें कि पढ़ी नहीं हैं। मेरे घर के एक लोग चुनाव में खड़े थे। उस दौरान मैंने गांव में घूमना शुरू किया। महिलाओं में गयी तो गांव के यही औरते जो आज हमसे पढ़ रही हैं उनका कहना ऐसा था कि साड़ी चाही तब वोट देब। मैंने देखा कि छोटे-छोटे बच्चे ऐसे ही घूम रहें हैं। तब मैंने कहा कि आप अपने बच्चों को भेजिए। हम फ्री में पढ़ाएंगे। आदमी लोगों का कहना था कि कहां जइहन पढ़के? हालांकि बच्चे धीरे-धीरे आने लगे। मैं शुरू में उनको बुलाने के लिए कक्षा में कभी चॉकलेट, बिस्किट, टॉफी बांटती थी। मैं सोचती थी की बच्चे पहले आना तो सीखें। ऐसे ही हमारे बच्चों की संख्या बढ़ती गयी। आज यह संख्या हजारों में पहुंच गयी है। हमारे स्कूल में महिलाओं की संख्या लगभग 60 है।

उन्होंने कहा चलिए मैं रास्ते में आपसे आगे की चर्चा करूंगी।

अभी वे आगे कुछ कहने ही जा रहीं थी तभी उनको पीएसी कैंपस से फोन आया, जहां कुछ बच्चियां उनका इंतजार कर रही थीं। उनके फोन रखते ही मैंने पूछा कि क्या आपको कहीं से आर्थिक सहायता मिलती है तो उन्होंने कहा कि कहीं से एक रुपया नहीं अभी तक मिला है। अभी तक आर्थिक सहायता की बात करूं तो एक ईशा वाही जी हैं वो हमें समय पड़ने पर आर्थिक सहायता देती हैं। अभी स्कूल की एक लड़की की हमने शादी की तो सारा खर्च हमने ही उठाया, जिसमें ईशा जी ने आठ हजार रुपये कि सहायता की। और जब संस्था का कोई कार्यक्रम होता तो जो हमारे जो 45 ब्रांच हैं हम सभी चंदा के माध्यम से रुपए इकट्ठा करके करते हैं। और प्रोग्राम करते हैं। कार्यक्रम के माध्यम से मैंने जो पहल शुरू की थी अब वह हमारे 45 ब्रांच के लोग करते हैं। मुझे यह देख कर बहुत अच्छा लगता है कि हमारा कार्यभार को संभालने के लिए 45 बीना तैयार हो गयीं हैं।

शिक्षा के सवाल पर बीना जी ने बताया कि मैंने संस्कृत से एमए किया है। 12वीं की परिक्षा देकर के ससुराल आ गयी थी। मैंने ससुराल में रहकर स्नातक एवं परास्नातक किया। मेरी शिक्षा के सफर में मेरे पति ने मेरा बहुत साथ दिया। हालांकि वे खुद बारहवीं तक ही पढ़ पाए थे लेकिन उन्होंने मुझे पढ़ाया। पति के दोस्त हमेशा बोलते थे कि तुम पढ़ा रहे हो न सर पे चढ़ जाएगी। जो लोग ऐसा बोलते थे स्वयं आज उनकी पत्नियां और बेटियां भी हमारे यहां ब्यूटीशियन और सिलाई कोर्स करती हैं। और अब वे लोग कहते हैं कि मैं पहले से ही कहता था कि आप बहुत कुछ करेंगी। मैं अपने सपनों की बात करूं तो मैं जब भी आसमान में जहाज देखती थी तो अपने आपसे कहती थी इसमें जरूर बैठूंगी। मेरे मन में जिज्ञासा जगती थी कि आखिर अंदर होता क्या होगा और दूसरा यह मैं कि ऐसा क्या करूं कि मेरी फोटो अखबार में आए। मेरी एक दोस्त कहती की तुम किसी का मर्डर कर दो तो तुम्हारा बड़ा-बड़ा फोटो पेपर में आ जाएगा। मेरी दूसरी दोस्त ने कहा कि नहीं, अच्छा काम करके पेपर में आना चाहिए। मैं बचपन से ही बहुत चंचल थी। मैं पढ़ने में बस ठीक-ठाक ही थी लेकिन ऐसा कभी मन में नहीं था कि पढ़ाई छोड़ दूं। मेरे पिता जी पशुओं की सेवा करते थे। जैसे किसी के यहां पशु बीमार हो गए हैं। रात के 12 बज रहे और कोई आ गया बुलाने तो वे देखने चले जाते थे। माता जी रात को लेकर थोड़ा बोलती थीं लेकिन वे सुनते नहीं थे। चले जाते थे। उनसे मुझे यह सीखने को मिला कि अगर किसी का हित हो तो अपना परिश्रम उनकी सेवा में दे देना चाहिए। और पिता जी ने हमेशा यही सिखाया कि आप हमेशा दूसरों के बारे में सोचो। उनका भला करो तो भगवान हमारे बारे में खुद सोचेंगे। उन्हें देखकर हमने बहुत कुछ सीखा। मतलब आज मैं जो कुछ भी कर रहीं हूं उसकी प्रेरणा मुझे पिता जी से ही मिली है।

आगे बीना जी कहती हैं कि मैं संयुक्त परिवार में हूं और सभी लोग बहुत सपोर्ट करते हैं। परिवार को लेके चलना बहुत बड़ी तपस्या है, लेकिन अब मुझे परिवार के साथ- साथ इन कार्यों को करने में बहुत अच्छा लगता है। मैं बहुत व्यस्त रहती हूं।  सुबह पढ़ाना, फिर ब्यूटीशियन का कोर्स सिखाना,  डीएलडब्ल्यू में एक पार्लर है शाम को वहां जाती हूं। वहां से कमाई करके एनजीओं में लगाती हूं। डीएलडब्ल्यू मार्केट में व्यापार मंडल का समूह बना हुआ है। उन लोगों ने मेरे कार्यों को देखते हुए मुझे व्यापार मंडल प्रकोष्ठ का अध्यक्ष बनाया है। मुझे पैसे का लोभ नहीं, बस समाज में लोग मुझे इज्जत देते हैं और लोग मुझे जानते हैं यही मेरे लिए यही बहुत है। मेरे खानदान में अभी तक ऐसा कोई नहीं था जिसकी तस्वीर या उनके किसी काम के बारे में अखबार में निकला हो। गांव में हैं।  बहुत सूकून की जिंदगी है। मेरा शहर से ज्यादा मतलब नहीं रहता।

मैंने उनसे पूछा कि आपको महिलाओं को पढ़ाने के लिए बुलाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी होगी।  उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों को पढ़ाती थी तो उनको यहां छोड़ने जो बूढी महिलाएं आती थीं वे खड़ी होकर देखती थीं। फ्री में शिक्षा दी जा रही थी। तो फिर मैंने बात की उनसे। शुरुआत में सिर्फ दो लोग आती थीं। लेकिन सही मायने में प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत 2019 में हुई थी। उन्होंने आगे कहा कि मैं समय-समय पर बच्चों के लिए कई तरह के प्रोग्राम का आयोजन करती रहती हूं जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, शिक्षक दिवस और किसी त्यौहार पर कार्यक्रम का आयोजन करना। मैं खुद उन्हें डांस और नाटक भी सिखाती  हूं। और फिर कविता, कहानी, गीत को भी बच्चों के मनोरंजन के लिए पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए रखा है। बूढ़ी महिलाओं की कक्षा के दौरान भी गीत-संगीत की आयोजन करती रहती हूं।

मैंने पूछा क्या आपने कभी सोचा था इस तरह के कार्य करने को लेकर? उनका जवाब था कि कभी नहीं। आजकल तो मैं सुनती हूं कि लोग पहले संस्था बनाते हैं फिर उसके लिए काम करते हैं। फिर उनकी संस्था में 2-3 साल में रुपए भी आने लगते हैं। यहां रजिस्ट्रेशन कराए पांच साल हो गए लेकिन कहीं से कुछ भी नहीं मिला। मैंने तो सर्टिफिकेट के लिए संस्था का रजिस्ट्रेशन करा लिया। फिर बाद में लोगों ने कहा कि आपकी संस्था का खाता नहीं खुला है। मोदी जी बंद कर देंगे आपकी संस्था। तो फिर मैंने एक सीए के माध्यम खाता खुलवाया।

मैने पूछा अभी तक में आपको अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या लगती है? उन्होंने कहा कि अगर मैं अपने सबसे बड़ी उपलब्धि की बात करूं तो प्रौढ़ शिक्षा लगती है। क्योंकि मेरा मानना है कि बच्चे तो कहीं से भी पढ़ सकते हैं लेकिन इन्हें कौन पढ़ाएगा। मेरे कार्य को लेकर के कोई कुछ कहता है तो आज ये लोग अपने घर में मेरे लिए लड़ जाती हैं। आज किसी के पति अगर शराब पीकर आते हैं तो लोग उसका सामना करती हैं। एक दिन तो एक महिला को उसके ने पति मार दिया कि ‘बुढ़िया पढ़ने जा रही है’। तो मैने फिर मिशन शक्ति को फोन कर दिया। गाड़ी भर के कुछ लोग आए और ले गए। रात भर रख कर दूसरे दिन वापस भेज दिया। और फिर उसके बाद से अब तक ऐसी कोई घटना नही हुई। मिशन शक्ति को लोग बहुत सक्रिय हैं और वह बहुत अच्छा काम कर ही।

 हमारे यहां जो बच्चे हैं मिशन शक्ति से लेकर के इमरजेंसी एंबुलेंस तक के नंबर सभी को याद हैं। मेरी कोशिश यही होती है कि बच्चे को बेसिक जानकारी हो क्योंकि पढ़ने के लिए तो मैंने उनका दाखिला स्कूलों में करा दिया है। मैंने इसके साथ ही बच्चों को गुड टच बैड टच  भी सिखाया क्योंकि आजकल माहौल ऐसा है कि कुछ कहा नहीं जा सकता। जब मैंने बच्चों से बात करना शुरू किया तो बच्चों ने अपनी समस्याएं बतायीं। बातचीत के दौरान कई बच्चे मुझे मिले भी जो इसके शिकार थे। मैंने फिर उनको सिखाया कि आप कैसे बचोगे आपको कोई चाकलेट दे रहा है तो नहीं लेंगे और अगर कोई इस तरह की हरकत करता है तो जोर से चिल्लाएंगे, दांत काट लेंगे। अब इस मामले में बच्चे बहुच सक्रिय हैं।

संस्था के नए ब्रांच का शुभारंभ करती बीना सिंह

कोरोना के समय में भी हमारी संस्था बहुत सक्रिय रही। मेरे यहां जो महिलाएं सिलाई करती हैं उनसे मैंने मास्क बनवाया और सेनेटाइजर बनाके बांटा। मैंने खुद बनाया यहां के सभी थानों में, सब्जी बेचने वाली महिलाओं को सभी पुलिस ऑफिसर दुकानों में मैंने मास्क और सेनेटाइजर बांटे। जितनी महिलाएं थीं संस्था की सबको राशन सभी को मास्क से लेकर सेनेटाइजर बनाके बांटा। मेरे यहां दूध है तो बच्चों को दूध। आम का जूस निकाल के पिलातीं। कोरोना काल में बच्चों से लेकर सभी महिलाओं की पूरी मदद करने की कोशिश की।

मैंने पूछा कि आपका लक्ष्य क्या है? तो उनका जवाब था कि मेरा लक्ष्य है कि मेरे आस पास के सभी गांव कि महिलाएं शिक्षित हों। सिलाई कढ़ाई और उपयोगी कोर्स अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए सीखें। मैं यह चाहती हूं लड़कियां स्वावलंबी बनें। मैंने कई लड़कियों की शादी भी कराई है। गांव की महिलाएं वृद्धा पेंशन से लेकर सभी योजनाओं का लाभ उठा सकें इसका भी प्रयास करती हूं। बात-बात में प्रधान जी की बात चली तो उन्होंने कहा कि यहाँ महिला प्रधान हैं और बहुत मदद भी करती हैं। हालांकि पढ़ी-लिखी नहीं हैं तो उनके बच्चे सारा काम देखते हैं। हालांकि मेरे पास बहुत पैसे नहीं हैं  कि बहुत बड़े स्तर पर मैं कुछ कर सकूं लेकिन जितना संभव होता है मैं करती हूं। बात-बात में ही उन्होंने कहा कि मेरे फेसबुक पर मेरे कार्यक्रम की सभी जानकारियां शुरुआत से लेकर आज तक सब कुछ डेट सहित मिलेगा। उन्होंने मुझे अपना फेसबुक पेज भी दिखाया जिस पर बहुत सारे प्रोग्राम की तस्वीरें वीडियो पड़ी थीं। बच्चों के प्रोग्राम से संबंधित और महिलाओं के संबंधित प्रोग्राम और कोरोना के दौरान किए सरोकार कार्य सबकी तस्वीरें मौजूद थीं। फिर वहीं राखी बनाती हुई एक फोटो सामने आयी तो उन्होंने कहा कि मैं पिछले पांच सालों से राखी बनाकर के सरहद पर भेजती हूं।

इतनी सारी बातों के बीच समय कब खत्म हो गया पता नहीं चला। मेरा वहां से प्रस्थान का समय हो गया। मैंने बीना जी से विदा लिया और वहां से ऑफिस के लिए निकल पड़ी।

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2 COMMENTS

  1. श्रीमती बीना सिंह जी का प्रयास, लगन, संकल्प और मेहनत प्रशंसनीय ही नहीं बल्कि अनुकरणीय है। वे समाज, विशेष रूप से गरीब तबके की प्रौढ़/वृद्ध महिलाओं एवं बालिकाओं के लिए बहुत ही नेक और सार्थक कार्य कर रही हैं। उन्हें हमारी बधाई और अशेष शुभकामनाएं। साथ ही, गांव के लोग पत्रिका के प्रतिनिधि को भी उनकी सुंदर, विस्तृत और सार्थक रिपोर्टिंग के लिए बधाई और शुभकामनाएं।

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