Tuesday, May 13, 2025
Tuesday, May 13, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविचारअमरदेसवा में बेखौफ आंखें ( डायरी जुलाई, 2021)  

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

अमरदेसवा में बेखौफ आंखें ( डायरी जुलाई, 2021)  

पत्रकार के रूप में मेरे प्रारंभिक दिन कमाल के थे। तब हर खबर से रोमांच होता था। खासकर उन खबरों से जिनमें मेरा नाम होता था। हालांकि तब मेहनत बहुत करनी होती थी। एक बाईलाइन खबर के लिए कभी-कभी तो दो-दो महीने तक लगा रहता था। एक बेहतर शिकारी के जैसे इंतजार करता। कई बार निराशा […]

पत्रकार के रूप में मेरे प्रारंभिक दिन कमाल के थे। तब हर खबर से रोमांच होता था। खासकर उन खबरों से जिनमें मेरा नाम होता था। हालांकि तब मेहनत बहुत करनी होती थी। एक बाईलाइन खबर के लिए कभी-कभी तो दो-दो महीने तक लगा रहता था। एक बेहतर शिकारी के जैसे इंतजार करता। कई बार निराशा भी हाथ लगती लेकिन मन को सुकून तो मिलता ही था। उन दिनों यह भ्रम भी होता था कि पत्रकारिता के जरिए क्रांति लायी जा सकती है। समाज को झकझोरा जा सकता है। नेताओं और अधिकारियों पर दबाव बनाया जा सकता है। मेरे इस भ्रम के पीछे बड़ी वजह यह भी थी कि मैं मूल रूप से पालिटिकल जर्नलिस्ट था। नेताओं से अच्छे संबंध रहे। कई बार कुछ खास की स्थिति में उनके सहयोग से सूचनाएं हासिल करता और फिर खबरें लिखता था। परंतु एक सत्य यह भी कि कोई भी राजनेता बिना अपने मुनाफे का आकलन किए बगैर सूचनाएं नहीं देता था।

लेकिन मन को गुमान तो था ही। यह बात शायद 2010 की है। उन दिनों पटना की एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता ने सूचना दी। सूचना के मुताबिक पटना में कुम्हरार  के पास नेत्रहीन बच्चियों का आवासीय विद्यालय है और वहां बच्चियों के साथ गलत किया जा रहा है। इतनी सूचना अपर्याप्त थी। लेकिन स्रोत के रूप में उक्त महिला सामाजिक कार्यकर्ता ने बस इतनी ही जानकारी दी। बहुत कहने पर उन्होंने कहा कि वहां से बच्चियों को हर वीकेंड गाड़ियों में ले जाया जाता है और फिर उन्हें देर रात छात्रावास में लाया जाता है।

[bs-quote quote=”मुझे यह भ्रम भी होता था कि पत्रकारिता के जरिए क्रांति लायी जा सकती है। समाज को झकझोरा जा सकता है। नेताओं और अधिकारियों पर दबाव बनाया जा सकता है। मेरे इस भ्रम के पीछे बड़ी वजह यह भी थी कि मैं मूल रूप से पालिटिकल जर्नलिस्ट था।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

खबर बहुत बड़ी थी। संपादक महोदय से इस बात की चर्चा करने का मतलब था डांट खाना। वह हमेशा कहते थे कि ऐसी खबरें मत करो, जिसमें सफलता की संभावना बहुत मामूली हो। फिर विवाद में क्यों रहना। दरअसल, उनके पास सारी सूचनाएं पहले से होती थीं और निश्चित तौर पर मेरी परवाह करते थे। लेकिन उन दिनों कुछ कर गुजरने का जोश रहता था। सूचनाओं के संबंध में प्रमाण हासिल करने में करीब तीन महीने का समय लगा। इसके लिए मैंने उस विद्यालय में पहले खुद को शिक्षक के रूप में जोड़ा। उन दिनों बच्चियां डरी रहती थीं। लेकिन कुछ बोलती नहीं थीं। फिर एक महिला पत्रकार साथी की मदद ली। वह टाइम्स ऑफ इंडिया से संबद्ध थीं। यह तरीका काम आया। कुछ बच्चियों ने कुछ जानकारियां दीं।

मेरे द्वारा खोजबीन की जानकारी तब विद्यालय के संचालकों को मिल गयी। मुझे विद्यालय आने से मना कर दिया गया। लेकिन तबतक लिखने लायक बहुत कुछ था। मैं चाहता भी था कि लिखूं। परंतु, मैंने इस संबंध में पटना में एक महिला डीएसपी को इस बाबत सूचना दी। उन्होंने संभवत: कुछ किया और फिर सूचना मिली कि बच्चियां अब वहां सेफ हैं। फिर मैंने कुछ लिखने का विचार त्याग दिया। इसके पीछे कारण यह रहा कि मैं यह जान चुका था कि यदि कुछ लिखा तो निश्चित तौर पर विद्यालय को बंद कर दिया जाएगा। नेत्रहीन बच्चियों के लिए यह पूरे मगध इलाके में एकमात्र विद्यालय है। इस विद्यालय में छपरा, सीवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, दरभंगा आदि जिलों की छात्राएं भी पढ़ती हैं। यदि यह बंद हो गया तो बच्चियों के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगीं।

[bs-quote quote=”केंद्र में केंद्रीय बाल एवं महिला विकास मंत्री स्मृति ईरानी के द्वारा कल संसद में दिया गया एक जवाब है। उन्होंने बताया है कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों व दफ्तरों से कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित 391 शिकायतें उनके मंत्रालय को मिलीं। इनमें 36 मामले स्वयं उनके मंत्रालय से संबंधित हैं। .” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

मेरा काम हो गया था। मैं इस बात से संतुष्ट था कि बच्चियां अब सेफ हैं और संचालकों ने उस वार्डन को निलंबित कर दिया है जो बुरे काम में संलिप्त थी। बाद के वर्षों में मैं कई बार उस विद्यालय में गया। एक बार तो अपना जन्मदिन भी उन बच्चियों के साथ मनाया। मेरी पत्नी भी उस दिन बहुत खुश थीं। बच्चियों ने उन्हें खूब मान-सम्मान दिया था।

एक और घटना का स्मरण हो रहा है। तब हाजीपुर के पास राज्य सरकार द्वारा संचालित कस्तूरबा गांधी छात्रावास में एक दलित बच्ची की लाश मिली थी। मामला बेहद खास था। संपादक महोदय ने एसाइनमेंट दिया था। इसकी वजह शायद यह रही कि स्थानीय पत्रकार खबर के साथ इंसाफ नहीं कर रहे थे। जिला प्रशासन की ओर से कह दिया गया था कि छात्रा ने खुदकुशी की। लेकिन मेरी जेहन में सवाल यह था कि उसकी लाश परिसर मे कैसे पहुंची। यदि उसने छत से छलांग लगाकर खुदकुशी की होती तो यह मुमकिन था। लेकिन उसने तो जहर खाकर खुदकुशी की थी। तो क्या छात्रा ने परिसर में जाकर जहर खाकर जान दी?

[bs-quote quote=”कल ही सोशल मीडिया पर गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत का बयान चर्चा में है। गोवा में दो लड़कियों के साथ बलात्कार के मामले में मुख्यमंत्री ने कहा है कि घटना के लिए लड़कियों के माता-पिता जिम्मेदार हैं। उन्हें अपने बच्चों को देर रात तक घूमने की इजाजत नहीं देनी चाहिए।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

घटना के पांच दिनाें के बाद मुझे एसाइनमेंट मिला था और जब मैं पहुंचा तब हॉस्टल में छात्राएं नहीं थीं। सभी अपने-अपने घर चली गयी थीं। वे डर गयी थीं। हॉस्टल में तब केवल वहां के कर्मचारी थे और पुलिस के लोग। यह मेरे लिए सवाल ही रहा कि छात्रा ने खुदकुशी की या फिर उसकी हत्या कर दी गयी। लेकिन उस दिन हॉस्टल की इंचार्ज (महिला) ने जो कहा, वह बेहद निंदनीय था। उनका कहना था कि आजकल दलित छात्राएं आती तो गरीब परिवारों से हैं, लेकिन सभी के पास मोबाइल फोन होता है।

मैंने इसी को खबर के शीर्षक में रखा। फिर दो दिनों के बाद उस इंचार्ज ने मुझे लगभग धमकाने के अंदाज में कहा कि मेरी खबर के बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया है। उनके हिसाब से मैंने कुछ गलत लिखा था।

खैर, पत्रकारिता में यह सब चलता रहता है। उपर की दो घटनाओं को याद करने के पीछे एक कारण है। कारण के केंद्र में केंद्रीय बाल एवं महिला विकास मंत्री स्मृति ईरानी के द्वारा कल संसद में दिया गया एक जवाब है। उन्होंने बताया है कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों व दफ्तरों से कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित 391 शिकायतें उनके मंत्रालय को मिलीं। इनमें 36 मामले स्वयं उनके मंत्रालय से संबंधित हैं।

[bs-quote quote=”आज मेरी पत्नी रीतू का जन्मदिन है। छह साल पहले उसने मुझसे एक सवाल किया था- तुम बार-बार कबीर के ‘अमरदेसवा’ की बात करते हो। इस ‘अमरदेसवा’ में तुम हम महिलाओं के लिए क्या देखते हो? मेरा जवाब तब भी यही था और आज भी है – मुझे ‘अमरदेसवा’ में तुम्हारी बेखौफ आंखें दिखती हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

स्मृति ईरानी के मुताबिक उनके मंत्रालय की ओर से कार्यस्थलों पर ‘शी बॉक्स’ लगाया गया है। यह बिल्कुल ऐसा है जहां महिलाएं अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की जानकारी दे सकती हैं।

हालांकि अपने जवाब में स्मृति ईरानी ने यह जानकारी नहीं दी है कि प्राप्त शिकायतों के आलोक में क्या कार्रवाईयां की गयीं। कितने मामले सही पाए गए और कितनों को सजा दी गयी। यदि सजा दी गयी तो उसका स्वरूप क्या था।

कल ही सोशल मीडिया पर गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत का बयान चर्चा में है। गोवा में दो लड़कियों के साथ बलात्कार के मामले में मुख्यमंत्री ने कहा है कि घटना के लिए लड़कियों के माता-पिता जिम्मेदार हैं। उन्हें अपने बच्चों को देर रात तक घूमने की इजाजत नहीं देनी चाहिए।

मैं गोवा के मुख्यमंत्री और उपर वर्णित छात्रावास की इंचार्ज के बयानों में समानता देख रहा हूं। लेकिन सवाल यह है कि इसका समाधान क्या है?

आज मेरी पत्नी रीतू का जन्मदिन है। छह साल पहले उसने मुझसे एक सवाल किया था- तुम बार-बार कबीर के ‘अमरदेसवा’ की बात करते हो। इस ‘अमरदेसवा’ में तुम हम महिलाओं के लिए क्या देखते हो? मेरा जवाब तब भी यही था और आज भी है – मुझे ‘अमरदेसवा’ में तुम्हारी बेखौफ आंखें दिखती हैं।

नवल लिशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment