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Loksabha chunav : क्या अरविंद राजभर का भाजपा कार्यकर्ताओं से घुटनों के बल बैठकर माफ़ी मांगना पिछड़ों के हित में है?

आम जनता के प्रतिनिधि अपनी गलतियों के लिए भले ही जनता से कभी माफी नहीं मांगे लेकिन कीचड़ की राजनीति में शामिल होने के लिए किस हद तक झुककर सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हैं, इसका एक नमूना अभी हाल में ही सामने आया, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के उप-मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक पिछड़े समाज के चर्चित नेता ओमप्रकाश राजभर के बेटे डॉ. अरविंद राजभर को घुटनों के बल बैठाकर माफ़ी मंगवा रहे हैं ताकि भाजपा की तरफ से टिकट पक्का हो जाये।

अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़ों का आत्मसम्मान, आत्मविश्वास एवं स्वाभिमान कुचलने वाली एक घटना घटित हुई। यह घटना  लोकसभा चुनाव 2024 के लिए महत्त्वपूर्ण इसलिए है कि केंद्र सरकार एक तरफ देश की आजादी के 75 वर्ष पूरा करने की खुशी में आजादी का अमृत महोत्सव मना रही है, वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश सरकार के उप-मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक पिछड़े समाज के चर्चित नेता ओमप्रकाश राजभर के बेटे डॉ. अरविंद राजभर को घुटनों के बल बैठाकर माफ़ी मंगवा रहे हैं। यह माफ़ी भाजपा के नेता इसलिए मँगवा रहे हैं कि विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान ओमप्रकाश राजभर बीजेपी को लेकर काफी तल्ख़ तेवर अपनाए थे।

जगजाहिर है कि ओमप्रकाश राजभर भाजपा सरकार की दमनकारी नीतियों की आलोचना कड़े-से-कड़े शब्दों में करते थे। यह तथ्य भाजपा के साधारण कार्यकर्ता से लेकर उनके बड़े नेता तक सभी जानते हैं। इसके बावजूद भी ओमप्रकाश राजभर को भाजपा एनडीए गठबंधन में शामिल करती है तो गलती किसकी है? क्या भाजपा की इस गलती पर ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर का माफ़ी मांगना उचित है? क्या राजभर समाज आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान के बगैर मनुवाद का मुकाबला मनुवादियों के चरणों में घुटनों के बल बैठकर कर सकता है?

 ओमप्रकाश राजभर अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत बहुजन समाज पार्टी से किये थे। वे वाराणसी में बसपा के जिला अध्यक्ष थे। वे कोलअसला विधानसभा क्षेत्र से बसपा उम्मीदवार के रूप में दो बार 1991 और 1996 में चुनाव लड़े और दोनों बार तीसरे स्थान पर रहे। जब 2002 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर बसपा से पुनः टिकट हासिल करने में कामयाब नहीं हुए तब उन्होंने 27 अक्तूबर 2002 को सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) का गठन किया और इसके अध्यक्ष बन गए।

ओमप्रकाश राजभर और उनकी पार्टी को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2002, 2007 एवं 2012 में कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई। वे 2017 के विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़े और गाजीपुर की जहूराबाद सीट से पहली बार विधायक बने। 2017 में सुभासपा, भाजपा और अपना दल सोनेलाल) के साथ एनडीएगठबंधन में शामिल होकर आठ सीटों पर चुनाव लड़ी और चार पर जीत हासिल की जबकि वह 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के साथ महागठबंधन में शामिल होकर 18 सीटों पर चुनाव लड़ी और आठ पर जीत हासिल की। अतः स्पष्ट है कि समाजवादी पार्टी ने ओमप्रकाश राजभर और उनके परिवार को जो सम्मान दिया था वह सम्मान न भाजपा से न पहले मिला न अब। बल्कि इसके उलट वह उनका अपमान करते हुए उन्हें उनकी हैसियत बता रही है।

उत्तर प्रदेश में भर-राजभर जाति अन्य पिछड़ा वर्ग में आती है। भर-राजभर जाति के युवा अन्य पिछड़ा वर्ग का जाति प्रमाण पत्र बनवाते हैं। वे इसी ओबीसी प्रमाण पत्र के सहारे विश्वविद्यालयों में एडमिशन, छात्रवृत्ति एवं सरकारी नौकरियों में आवेदन करते हैं। उत्तर प्रदेश में भर-राजभर जाति विशेष रूप से महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आज़मगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र, संत कबीरनगर, कुशीनगर, चंदौली और भदोही जिलों में निवास करती है। उत्तर प्रदेश में भर-राजभर जाति की आबादी कितनी है?

जब तक उत्तर प्रदेश में जातिवार जनगणना के आँकड़े सामने नहीं आ जाते तब तक इस सवाल का मुकम्मल जवाब नहीं दिया जा सकता है। इसीलिए ओमप्रकाश राजभर समेत अधिकांश गैर सवर्ण नेता बार-बार यह माँग करते हैं कि सरकार जातिवार जनगणना करवाकर आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी तय करे ताकि कोई राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं भाजपा के बहकावे में आकर यह कहता न फिरे कि फला जाति दूसरे जाति का हिस्सा खा रही है। बिना जातिवार जनगणना के किसी पिछड़ी जाति को उसका अपना ही वाजिब हिस्सा नहीं मिल रहा है तो भला वह दूसरी जाति का हिस्सा कैसे खा सकती है?

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं, जिनमें 63 जनरल या सामान्य सीट हैं और शेष 17 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। सामान्य तौर पर यूपी में मुसलमानों को मिलाकर पिछड़ों की आबादी 60-65% बतायी जाती है। मान्यवर कांशीराम अपने भाषणों में पिछड़े, दलित और मुसलमान को मिलाकर बहुजनों की जनसंख्या को 85% बताते थे जो बिहार की नीतीश-तेजस्वी सरकार में कराई गई जातिवार जनगणना में सच साबित होती है। यदि यूपी में बहुजनों की आबादी 85% है तो क्या वहाँ से बहुजन समाज के 85% सांसद लोकसभा के लिए चुने जाते हैं? यह एक बड़ा सवाल है, जिस पर बहुजन समाज के हरेक नागरिक को विचार करना चाहिए।

सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर अपनी बात बेबाकी से रखने के लिए जाने जाते हैं। वे पिछड़े,अतिपिछडे, मुस्लिम और दलित समाज से जुड़े मुद्दे प्रबलता से उठाते रहे हैं और अपने भाषणों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, महँगाई, गरीबी और खेती-किसानी का जिक्र प्रमुखता से करते रहे हैं। लेकिन जैसे ही वे भाजपा के एनडीए गठबंधन में मंत्री पद एवं लोकसभा की एक पा जाते हैं तुरन्त इन प्रमुख मुद्दों की तिलांजलि दे देते हैं।

भाजपा सरकार ने ओमप्रकाश राजभर को पिछड़ों,अतिपिछड़ों, दलितों एवं मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर चुप्पी रखने के लिए पंचायती राज एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जिम्मेदारी प्रदान की है। वे 5 मार्च 2024 को मंत्री पद की शपथ लिए जबकि उन्हें 12 मार्च 2024 को विभाग आवंटित किया गया। ओमप्रकाश राजभर मंत्री बनने से पहले उत्तर प्रदेश विधान सभा सदन में 69000 शिक्षक भर्ती में पिछड़े एवं दलितों की हकमारी का जिक्र करते हुए कहते हैं कि ‘भाजपा ने 69000 शिक्षक भर्ती में 14000 पिछड़ों एवं दलितों का हिस्सा लूट लिया है। यह मैं डंके की चोट पर कहता हूँ।’ लेकिन भाजपा के एनडीए गठबंधन में शामिल होने के बाद ओमप्रकाश राजभर 69000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण घोटाले से जुड़े सवाल पर 6800 चयनित अभ्यर्थियों को इंगित करते हुए कहते हैं कि ‘वे लात मारने के लायक थे।’ जाहिर है कि ये 6800 चयनित अभ्यर्थी भाजपा सरकार से नियुक्ति पत्र की माँग कर रहे थे, जिन पर ओमप्रकाश राजभर अशोभनीय एवं अपमानजनक टिप्पणी करते हैं। ओमप्रकाश राजभर के इसी रवैये के कारण भाजपा ने उन्हें मंत्री पद दे दिया और उनके बेटे डॉ. अरविंद राजभर को घोसी लोकसभा सीट से एनडीए गठबंधन का उम्मीदवार बनाया है।

ज्ञानप्रकाश यादव
ज्ञानप्रकाश यादव
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं और सम-सामयिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं।

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