भदोही। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का भदोही जनपद यानी कालीन नगरी, जिसकी पहचान बताने की आवश्यकता नहीं है। वह इसलिए कि यह जनपद समूचे विश्व में अपनी मखमली कालीन को लेकर विख्यात है। एक लोकसभा क्षेत्र, तीन विधानसभा क्षेत्रों को समेटे हुए भदोही जनपद देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटा हुआ जनपद है। कभी यह वाराणसी जनपद का ही हिस्सा रहा है। कालांतर में भदोही जनपद राजनैतिक सुर्खियों में छाए रहने के साथ-साथ तमाम उथल-पुथल मचाने वाली खबरों में भी बना रहा है। कालीन नगरी का तमग़ा हासिल किए हुए इस जनपद की जो चकाचौंध होनी चाहिए थी वह दिखती नहीं, जनपद के कई हिस्सों की बदहाल सड़कें, कूड़े कचरे के फैले ढ़ेर, सरकारी भवनों की बदहाली, जर्जरता बरबस ही अपनी दास्तान कहने-दिखाने के लिए काफी हैं। भदोही जनपद मुख्यालय स्थित विकास भवन जहां विभिन्न महत्वपूर्ण विभागों के आफिस होने के साथ-साथ समूचे जिले के विकास का भी खाका यही से खींचा जाता है, लेकिन आश्चर्य होता है कि इसी विकास भवन के ठीक सामने बना कांशीराम आवासीय कालोनी रखरखाव के अभाव में अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाते हुए सिसकियां लेता हुआ नजर आता है। जहां प्रशासनिक खींचातानी के चलते गंदगी का दंश का झेलने को हजारों लोग मजबूर दिखाई देते हैं। जिसकी ओर न तो जनप्रतिनिधियों का ध्यान जा रहा है ना ही संबंधित विभाग की, परिणामस्वरूप चारागाह बना कांशीराम आवासीय कालोनी धीरे-धीरे जर्जरता की ओर बढ़ता जा रहा है।

नज़रें हटी नज़ारा बदल गया
कालीन नगरी भदोही के जिला मुख्यालय स्थित विकास भवन के ठीक सामने कांशीराम आवासीय भवन की बुलंद इमारत एक समय ऐसा भी रहा है कि जरा सी शिकायत पर अधिकारी यहां भागे-भागे चले आते थे, लेकिन आज इधर कोई झांकना भी नहीं चाहता है। प्राशसनिक उपेक्षा का दंश झेलते आ रहे कांशीराम आवासीय कालोनी की व्यवस्था से मानो किसी का कोई भी सरोकार नहीं है। 125 ब्लॉक और 1500 आवासीय भवन वाले इस कालोनी में चारों तरफ गंदगी का आलम नज़र आता है। कांशीराम आवास के दरों-दीवार से लेकर गलियों, सीढ़ियों, छतों और आस-पास कूड़े कचरे के लगे ढेर, कचरे से पटी हुई नाली गंदगी को बढ़ावा देते हुए स्वच्छता अभियान के दावे की हवा निकाल दे रही है। कालोनी में रहने वाले लोगों की माने तो कांशीराम आवासीय कालोनी परिसर में साफ-सफाई को लेकर ग्राम पंचायत और नगरपालिका के बीच खींचतान चल रही है। दोनों एक-दूसरे पर सफाई की जिम्मेदारी का तोहमत मढ़ पैर पीछे करते हुए आए हैं। जिसका खामियाजा यहां रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है। साफ-सफाई के अभाव में कालोनी की हालात बद से बदतर हो चली है। कालोनी में रहने वाले लोगों की माने तो पहले किसी मंत्री या बड़े साहबान के आने मात्र की सुगबुगाहट से ही कालोनी की साफ-सफाई जोरों पर होने लगती थी, लेकिन अब स्थिति यह है कि कालोनी के समीप से साहबान गुज़र जाते हैं, लेकिन झांकना तक गवारा नहीं समझते हैं। मज़े की बात है कि विकास भवन के ठीक सामने होने के बाद भी किसी भी जिम्मेदार अधिकारियों का इस ओर ध्यान नहीं जाता है।

मायावती सरकार में मिली थी सौगात, आज बने हुए हैं बदहाल
उत्तर प्रदेश में तत्कालीन मायावती के नेतृत्व वाली बसपा सरकार में गरीबों, दलितों, वंचितों जरूरतमंदों को आवास देने के उद्देश्य से 2008 में कांशीराम आवास योजना की शुरुआत की गई थी। इस योजना के तहत पूरे प्रदेश के सभी जिलों में पात्र लोगों को जो भूमि-आवास के अभाव में रह रहे थे, उन्हें आवास दिया गया था। नाम दिया गया था कांशीराम आवास। इसके लिए जोरशोर से इसका शुभारंभ भी किया गया। इस कालोनी में हजारों लोग रहते हैं। मायावती सरकार तक तो इस परिसर में खूब सफाई और व्यवस्थाओं का ध्यान रखा गया, लेकिन सरकार बदलते ही निजाम और नजरिया भी बदल गया है। धीरे-धीरे यह आवासीय परिसर उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर होता आया है। जिसका सबसे बड़ा खामियाजा यहां रहने वाले लोगों को उठाना पड़ा है जो जैसे-तैसे यहां किसी प्रकार रहने को विवश हैं।
देश में स्वच्छ भारत की ढ़ोल, यहां तो इसकी खुलती है पोल
देश में स्वच्छ भारत अभियान की धूम है स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छता के प्रखर हिमायती बताये जाते हैं, अक्सर वह अपने ‘मन की बात’ में स्वच्छता पर जोर देते हुए नजर आते हैं। करोड़ों रुपए स्वच्छता अभियान पर खर्च भी किए जा रहे हैं, लेकिन कांशीराम आवासीय कालोनी को स्वच्छता की दरकार है मानो यह परिसर स्वच्छ भारत अभियान के दायरे से बाहर है, वरना इधर भी किसी न किसी नेता अधिकारी की नजरें ज़रूर इनायत होती। मज़े की बात है कि हाथों में झाड़ू थामें फोटो बाज छपास रोग से ग्रस्त वह नेता भी इस ओर झांकने, दो-चार हाथ झांड़ू लगाने का साहस नहीं दिखाते जो अक्सर स्वच्छता के नाम पर झांड़ू लगाने से लेकर अखबारों की सुर्खियों में बने रहने के लिए लालायित रहते हैं।
भदोही के कांशीराम आवासीय कालोनी परिसर में चारों तरफ गंदगी का लगा अंबार, बजबजाती नालियां, टूटे चैंबर, कूड़े का ढेर और खंभों के बीच जर्जर तार इस कालोनी की मानों पहचान बन गए है। 15 सौ आवासों वाले इस कालोनी में कहने को तो हजारों लोग रहते हैं, लेकिन व्यवस्थाओं की बात करें तो रोना आता है। कालोनी में रहने वाले सचिन पाण्डेय का कहना है कि ‘कांशीराम आवासीय कालोनी की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही है। जिसका कोई भी पुरसाहाल नहीं है। कालोनी की साफ-सफाई व्यवस्था से लेकर कीटनाशक दवाओं के छिड़काव, लटकते जर्जर बिजली के तारों को भी बदलें जाने की गुहार लगाई गई थी, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।’ कालोनी की महिलाओं की माने तो बार-बार शिकायत करने और साफ-सफाई के साथ यहां की जर्जर व्यवस्थाओं में सुधार की गुहार के लगाने के बाद भी इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। जिसका परिणाम यह है कि यहां के लोग खुद को दोयम दर्जे का शरणार्थी महसूस करने लगे हैं।

शोपीस बना पानी टंकी
कांशीराम आवासीय कालोनी परिसर में पेयजल आपूर्ति के लिए बना विशाल टंकी शोपीस बनकर रह गया है। पानी की एक बूंद भले ही यह लोगों को न दे पाया हो, लेकिन कमजोर होने की ओर जरूर बढ़ चला है। पानी टंकी शुरू होने के पहले ही उसके डैमेज होने की शिकायत मिलने लगी थी, लेकिन इस ध्यान देने व निरीक्षण किए जाने की बजाए इसे जस का तस छोड़ दिया गया और इसे आज तक दुरुस्त नहीं कराया जा सका है। इस पानी टंकी से अब तक एक बूंद भी पानी आवासीय परिसर के लोगों को नहीं मिल पाया है।

चंदा जुटाकर होती है मरम्मत
कांशीराम आवास का जब आबंटन हुआ तो उसमें नगरीय और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लोगों को आवास आबंटित किए जाने के कारण यहाँ ग्रामीण और नगरीय दोनों क्षेत्रों के लोग रहते हैं। ग्राम पंचायत प्रशासन का कहना है कि सबसे अधिक लोग नगरीय क्षेत्रों के यहां बसे हैं तो वहीं दूसरी तरफ नगर निकायों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के लोग यहां अधिक बसे हुए हैं। जिसके कारण कोई भी यहां के सफाई का जिम्मा उठाने को तैयार नहीं होता। सभी एक दूसरे के ऊपर जिम्मेदारी का भार सौंप पल्ला झाड़ते हुए नज़र आते हैं। परिणाम स्वरूप कालोनी में रहने वाले लोग ही समय-समय चंदा लगाकर कालोनी की साफ-सफाई कराते हैं। कालोनी के कमरों की रंगाई पुताई न होने से दूर से ही यह खंडहर जैसा दिखाई देता है। कालोनी में रहने वाले इम्तियाज अली ‘गांव के लोग’ को बताते हैं कि कालोनी परिसर में जगह-जगह कूड़े कचरे का लगा ढेर गंदगी को बढ़ावा देने के साथ ही बीमारियों को भी बढ़ावा दे रहा है। कूड़े कचरे का निस्तारण नहीं होने से बीमारी फैलने की आशंका बनी रहती है।
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