राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय जनता पार्टी का मुख्य वैचारिक संगठन है। वह भाजपा के लिए जमीन पर माहौल बनाने का कार्य करता है। सितम्बर 2013 से अब तक आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद् एवं भाजपा के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का अहीर/यादव जाति के खिलाफ नफरत फ़ैलाने का कार्य जारी है। जबकि 2012-2017 तक समाजवादी पार्टी की सरकार में सर्वाधिक मलाई खाने वाले एवं बाद में संघ-परिवार और भाजपा में शामिल होने वाले ब्राह्मण जाति के ही नेता रहे हैं। यह सार्वभौमिक सत्य है कि सत्ता किसी की भी रहे लेकिन उसकी सर्वाधिक मलाई खाने का सर्वाधिक अधिकार ब्राह्मण जाति के पास ही है।
लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश और बिहार में यादव जाति को मुख्य विलेन बनाया था, जिसका खामियाजा देश के विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में गरीब यादवों को भुगतना पड़ रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 7 पद अनारक्षित और 5 पद अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित थे, अनारक्षित पदों पर क्रीमीलेयर यादव एवं अन्य पिछड़ी जातियाँ के क्रीमीलेयर अभ्यर्थी प्रतिभागी थे, जिनमें से किसी एक का भी चयन साक्षात्कार समिति के सवर्ण प्रोफेसरों ने नहीं किया जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग के 5 पदों के लिए कुल 27 अभ्यर्थियों ने साक्षात्कार दिया था, जिनमें 15 का सरनेम यादव था लेकिन इनमें से किसी एक भी अभ्यर्थी का चयन न करके तीन गिरि, गोसाईं ब्राह्मण चयनित कर लिए गये. उत्तर प्रदेश के गिरि, गोसाईं ब्राह्मण ओबीसी सूची में शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समाजवादी पार्टी, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव की आलोचना चुनावी जनसभाओं में किस भाषा में किया था, यह किसी से छिपा नहीं है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाषा की मर्यादा ही खो दिए थे। अब यही दोनों नेता और भाजपा एवं आरएसएस के समस्त कार्यकर्त्ता मुलायम सिंह यादव के दामाद और धर्मेन्द्र यादव के सगे बहनोई अनुजेश यादव का प्रचार किस मुँह से करेंगे?
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इससे पहले भी भारतीय जनता पार्टी मुलायम सिंह यादव के परिवारवाद को आगे बढ़ाने का काम अपर्णा यादव को अपनी पार्टी में शामिल कर कर चुकी है। अपर्णा यादव मुलायम सिंह की बहू हैं। जबकि भाजपा को परिवारवाद की आलोचना करने में महारत हासिल है। वह जिस पार्टी या परिवार की आलोचना करती है उसी को अपनी पार्टी में शामिल करआगे भी बढाती है। वह गरीब एवं आमजन को आगे नहीं बढ़ाती है। इसका सबसे सही उदाहरण करहल विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़ रहे अनुजेश यादव हैं।
इससे आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी की मंशा को समझा जा सकता है। उसकी मंशा है कि जो लोग किसी भी जाति में धन-दौलत एवं सोहरत में ताकतवर हैं, उनसे समझौता करके खुद आगे बढ़ना और उन्हें भी बढ़ाना जबकि गरीबों को लगातार कुचलते रहना। इसी मंशा के तहत भाजपा सरकार उत्तर प्रदेश में लगभग 27000 प्राथमिक विद्यालय बंद करने जा रही है। इन विद्यालयों में कितने अरबपतियों के बच्चे पढ़ते हैं?
यह भाजपा सरकार के शिक्षा विरोधी रवैये का परिणाम ही है. एक तरफ वह अमीर परिवार के बच्चों के लिए शिक्षा ऋण का बंदोबस्त करती है तो दूसरी तरफ गरीब बच्चों के लिए खुले लगभग 51000 हजार सरकारी विद्यालय भी बंद करती है। न गरीब पढ़ेंगे, न आगे बढ़ेंगे और न ही वे कभी देश के नीति-निर्माता बनेंगे. इस तरह भाजपा गरीबों को रसातल में धकेलने का कार्य कर रही है।
भाजपा का आरक्षण विरोध किसी से छिपा नहीं है। 69000 शिक्षक भर्ती में उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने कहा था कि एक महीने के भीतर 69000 शिक्षकों की नई सूची बनायी जाये, क्योंकि इसमें ओबीसी आरक्षण घोटाला किया गया है। लेकिन भाजपा सरकार ने दो महीने से अधिक बीत जाने पर भी सूची नहीं बनाई है। वह लगभग 30000 कम मेरिटवाले सवर्णों को बाहर नहीं करना चाह रही है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आरएसएस और भाजपा जन्मजात सवर्ण हितैषी संगठन एवं पार्टी हैं।
अभी हाल ही में भाजपा सरकार ने यूपी के 16 राजकीय पॉलीटेक्निक कॉलेज और 31 राजकीय प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) का संचालन करने की जिम्मेदारी पीपीपी मॉडल के तहत निजी संस्थानों को दे दी है।अब ये प्राइवेट संस्थान इन 47 सरकारी संस्थानों से मनमानी फीस वसूलेंगे और गरीब परिवार के बच्चों का इन संस्थानों में पढ़ना मुश्किल होगा. इसीलिए भाजपा गरीबों की सबसे बड़ी दुश्मन कही जाती है।
यूपी की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का मतदान पहले 13 नवंबर को था लेकिन बीजेपी नेता कपिल देव अग्रवाल की सिफारिश पर चुनाव आयोग ने आगे बढ़ाकर 20 नवंबर 2024 को कर दिया है। इनमें मैनपुरी की करहल, अम्बेडकरनगर की कटेहरी, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, अलीगढ़ की खैर, इलाहाबाद की फूलपुर, कानपुर की सीसामऊ, मिर्जापुर की मंझवा, मुरादाबाद की कुंदरकी और गाजियाबाद की सीट है।
उत्तर प्रदेश की सबसे मजबूत विपक्षी पार्टी सपा ने आरोप लगाया है कि भाजपा ने हार के डर से पहले मिल्कीपुर विधानसभा का उपचुनाव टाल दिया और अब उसने चुनाव की तारीख को भी आगे बढ़ा दिया है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव का कहना है कि ‘यूपी में महा-बेरोजगारी की वजह से जो लोग पूरे देश में काम की तलाश और रोजगार के लिए जाते हैं, वो दीवाली और छठ की छुट्टी लेकर उत्तर प्रदेश आये हुए हैं और उपचुनाव में भाजपा को हराने के लिए वोट डालने वाले थे। जैसे ही भाजपा को इसकी भनक लगी, उसने उपचुनाव को आगे खिसका दिया, जिससे लोगों की छुट्टी ख़त्म हो जाए और वो बिना वोट डाले ही वापस चले जाएं।‘
मेरा मानना है कि भाजपा ने अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट का उपचुनाव रणनीति के साथ टाला है। अभी उसके नेता झारखण्ड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं। वह अभी भी अयोध्या लोकसभा सीट की हार भुला नहीं पाई है। कारण यह है कि राम मंदिर का पुरोहिती एजेंडा बेरोजगारी और शिक्षा की बदहाली जैसे अनगिनत स्थानीय मुद्दों के आगे दम तोड़ दिया है। जब बाद में अकेले अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होगा तब वह इस पर पूरी ताकत झोंक देगी। विपक्ष को उसकी इस साजिश का जवाब तलाशना होगा।