Wednesday, July 23, 2025
Wednesday, July 23, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमग्राउंड रिपोर्टलोकसभा चुनाव : झारखंड में आदिवासियों की सुरक्षित सीटों पर भाजपा की...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

लोकसभा चुनाव : झारखंड में आदिवासियों की सुरक्षित सीटों पर भाजपा की राह कांटे भरी क्यों है?

लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी झारखंड में सभी 14 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए जोर लगा रही है लेकिन आदिवासी सीटों पर क्या भाजपा जीत दर्ज करने में सफल हो सकती है?

लोकसभा चुनाव की तैयारियों में बहुत पहले से जुटी बीजेपी की झारखंड में आदिवासियों के लिए सुरक्षित सीटों पर राह कांटे भरी क्यों है? क्या हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और इस्तीफा के बाद भी उसके लिए मैदान खुला नहीं है? क्या जेएमएम कैडर और आदिवासियों की गोलबंदी बीजेपी को परेशान कर रही है? क्या यह गोलबंदी उन सामान्य (अनारक्षित) सीटों पर भी, जहां आदिवासी वोटरों का समीकरण असर डालता है, वहां बीजेपी के लिए मुकाबला कड़ा हो सकता है। ये सवाल अभी से झारखंड की चुनावी सियासत को मथने लगे हैं।

हालांकि, 2019 के चुनाव में बीजेपी ने बड़ी जीत के साथ अकेले 51 प्रतिशत वोट शेयर दर्ज किये थे, उससे पार्टी के रणनीतिकारों की उम्मीदें कायम हैं। जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का वोट शेयर 27 प्रतिशत ही था। साथ ही 2019 की तरह ही इस बार भी बीजेपी को बड़ा भरोसा है कि नरेंद्र मोदी के प्रभाव का उसे सीधा लाभ मिलेगा। इधर सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा हर हाल में इस बार बीजेपी को पीछे धकेलने की कवायद में जुटा है और उसकी सीधी नजर आदिवासियों के लिए सुरक्षित सीटों पर है।

झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में से आदिवासियों के लिए पांच- खूंटी, लोहरदगा, पश्चिम सिंहभूम, राजमहल और दुमका की सीट सुरक्षित है। उधर अनुसूचित जाति के लिए एक पलामू की सीट सुरक्षित है। 2019 के चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी। झामुमो एक सीट- राजमहल और कांग्रेस भी सिर्फ एक सीट- पश्चिम सिंहभूम जीत सकी थी।

पश्चिम सिंहभूम से कांग्रेस की सांसद गीता कोड़ा हाल ही में बीजेपी में शामिल हो गई हैं। बीजेपी ने पश्चिम सिंहभूम से उन्हें अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है। जाहिर है कांग्रेस को झटका लगा है। इन सबके बीच जेएमएम- कांग्रेस की उम्मीदें इस समीकरण पर भी टिकी है कि 2019 में ही लोकसभा चुनाव के कुछ महीनों बाद हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए सुरक्षित 28 में से 26 सीटें उसने जीत ली थी और उसके सत्ता पर काबिज होने में यह आंकड़ा बेहद महत्वपूर्ण था।

विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद से

जाहिर तौर पर विधानसभा चुनाव में आदिवासियों की सुरक्षित सीटों पर बीजेपी की बड़ी हार उसे अब तक खटकती रही है। लिहाजा लोकसभा चुनाव में पार्टी के रणनीतिकारों की इस ओर पैनी नजर है। बीजेपी को यह बखूबी पता है कि जेएमएम को आदिवासियों की सुरक्षित सीटों पर आगे बढ़ने से रोका जाना जरूरी है। इसी मकसद से पिछले साल छह जनवरी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम सिंहभूम में आयोजित बीजेपी की विजय संकल्प रैली में चुनावी शंखनाद किया था।

11 मार्च को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय दुमका में बैठक करते

इसके बाद से झारखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी समेत अन्य बड़े नेताओं का संसदीय क्षेत्रों का दौरा, बैठक, सभा, लगातार जारी है। चुनाव नजदीक आने के बाद टास्क पूरे करने के लिए यह सिलसिला और तेज हुआ है। मोदी सरकार के दस साल के कार्यों को बताने के लिए केंद्रीय मंत्रियों का दौरा भी शुरू है। हेमंत सरकार पर लगते कथित आरोपों को भी उछाला जा रहा है।

पंद्रह दिनों के दौरान बाबूलाल मरांडी ने पश्चिम सिंहभूम, राजमहल समेत आधे दर्जन संसदीय क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं के साथ चुनावी रणनीति के तहत बैठकें कर चुके हैं। 11 मार्च को छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय ने दुमका में नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ मंत्रणा की थी। इससे पहले दो मार्च को धनबाद में पीएम मोदी ने बीजेपी की रैली की थी। इसमें संताल परगना के भी नेता पहुंचे थे। चुनावी मोर्चाबंदी को लेकर आने वाले दिनों में बीजेपी की गतिविधियां और तेज होने वाली हैं।

बीजेपी के उम्मीदवार और आंकड़े पर नजरें 

बीजेपी ने फिलहाल 11 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। दो पर उम्मीदवारों का नाम तय करना बाकी है। गिरिडीह की सीट उसके घटक आजसू पार्टी के खाते में जा रही है। इस बार बीजेपी ने हजारीबाग से अपने सांसद और पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री जयंत सिन्हा और लोहरदगा से सांसद तथा पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री सुदर्शन भगत का टिकट काट दिया है।

लोहरदगा की सीट पर सुदर्शन भगत मामूली वोटों के अंतर से जीतते रहे हैं। 2019 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार को 10,263 वोटों के अंतर से हराया था। इस बार बीजेपी ने यहां चेहरा बदलते हुए सिसई के पूर्व विधायक और राज्य सभा के सांसद रहे समीर उरांव को मैदान में उतारा है। वे पार्टी की अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। उधर पार्टी छोड़ चुके ताला मरांडी को वापस कराते हुए राजमहल से उम्मीदवार बनाया गया है।

bjp geeta koda
पांच मार्च को सिंहभूम में गीता कोड़ा के साथ बूथ स्तरीय गीता बैठक करते बाबूलाल मरांडी

खूंटी से पार्टी ने केंद्र सरकार में जनजातीय मामलों और कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा को उम्मीदवार बनाया है। अर्जुन मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। 2019 के चुनाव में अर्जुन मुंडा ने कांग्रेस के उम्मीदवार कालीचरण मुंडा को महज 1445 वोटों से हराया था। जाहिर तौर पर खूंटी सीट पर सबकी नजर लगी है।

पिछले महीने भारत जोड़ो न्याय यात्रा लेकर राहुल गांधी खूंटी और लोहरदगा संसदीय क्षेत्र से भी गुजरे थे। तब उन्होंने आदिवासियोंके साथ संवाद किया और उनकी समस्याएं सुनी थी। साथ ही भरोसा दिलाया था कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई, तो भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन को वापस लेने, पेसा कानून लागू करने समेत कई मुद्दे पर वादे किये थे। अब कांग्रेस ने इस बाबत आदिवासी संकल्प पत्र भी जारी कर दिया है।

उधर आदिवासियों के लिए ही सुरक्षित सीट दुमका पर भी सबकी निगाहें टिकी हैं। बीजेपी ने यहां से अपने सांसद सुनील सोरेन को फिर उम्मीदवार बनाया है। सुनील सोरेन ने 2019 के चुनाव में झामुमो के दिग्गज नेता शिबू सोरेन को कड़े संघर्ष में 47 हजार 590 वोटों से हराया था।

उल्लेखनीय है कि शिबू सोरेन दुमका से आठ बार चुनाव जीते हैं। अभी वे राज्य सभा के सांसद हैं। संकेत मिल रहे हैं कि स्वास्थ्य और उम्र के लिहाज से वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेगे। तब झामुमो से उम्मीदवार कौन होगा, इसका इंतजार है। हेमंत सोरेन इस सीट को लेकर गंभीर बताये जा रहे हैं। दुमका संसदीय क्षेत्र के दो विधानसभा सीटों- जामा से हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन और दुमका से हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन विधायक हैं।

पिछले महीने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के साथ झाारखंड के लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में राहुल गांधी.

क्या चाहता है जेएमएम और कहां है नजर

हालांकि, जेएमएम गठबंधन के बीच सीट शेयरिंग को लेकर अभी तक तस्वीर साफ नहीं हो सकी है। दोनों दलों के नेताओं का दावा है कि जल्दी ही सीट शेयरिंग का मामला सुलझ जायेगा।

अंदरखाने की खबर है कि जेएमएम ने राजमहल, दुमका के अलावा पश्चिम सिंहभूम और लोहरदगा की सीट पर दावेदारी कर रखी है। गीता कोड़ा के बीजेपी में जाने के बाद पश्चिम सिंहभूम सीट पर जेएमएम इस बिना पर चुनाव लड़ना चाहता है कि इस संसदीय क्षेत्र के पांच विधानसभा क्षेत्रों पर झामुमो का कब्जा है। उधर लोहरदगा की सीट कांग्रेस लगातार तीन बार से हार रही है, इस कारण से अबकी वहां जेएमएम आजमाना चाहता है।

जेएमएम के वरिष्ठ नेता और राजमहल से सांसद विजय हांसदा का कहना है कि बीजेपी को अगर नरेंद्र मोदी के प्रभाव, केंद्र सरकार के कामकाज और अपने वोट शेयर का भरोसा है, तो हमारे कैडर, समर्थकों और राज्य की जनता को भी हेमंत सोरेन सरकार के कामकाज पर भरोसा है। ओल्ड पेंशन स्कीम, अबुआ आवास योजना, गुरुजी स्टूडेंट्स क्रेडिट कार्ड, सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना, 125 यूनिट मुफ्त बिजली फूलो- झानो आशीर्वाद अभियान, सर्वजन पेंशन समेत कई योजनाओं को लागू करने की अनदेखी नहीं की जा सकती। दूसरा महत्वपूर्ण है कि आम जनमानस और खासकर आदिवासियों को यह महसूस हो रहा है कि हेमंत सोरेन के साथ गलत हुआ है।

विजय हांसदा आगे कहते हैं, हम लोग की पहली जीत तो उस वक्त हो गई है, जब हेमंत सोरेन ने बीजेपी के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया और यह संदेश दिया कि झारखंड झुकेगा नहीं। रही बात लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन का, तो इस बार जेएमएम गठबंधन का प्रदर्शन बीजेपी को जरूर परेशान करेगा।

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और इस्तीफा के बाद

बीजेपी की चुनावी तैयारियों को देखते हुए जेएमएम के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी मोर्चा खोल दिया है। 31 जनवरी की रात हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा के बाद 15 फरवरी से जेएमएम की न्याय यात्रा ने उसे एकजुट होने का मौका दे दिया है। इस यात्रा के जरिये दल के कैडर गांवों- कस्बों से लेकर शहरी इलाके में एकजुट हो रहे हैं और आदिवासियों की गोलबंदी करते देखे जा रहे हैं।

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद से आदिवासियों के कई संगठनों में भी गुस्सा है। आदिवासी समाज के अगुवा बैठकें कर रहे हैं। 13 मार्च को रांची में विभिन्न आदिवासी संगठनों से जुड़े हजारों आदिवासियों ने ढोल- नगाड़े के साथ न्याय आक्रोश मार्च निकालकर बीजेपी तथा केंद्र सरकार पर हमला बोला। केंद्रीय सरना समिति के अजय तिर्की का कहना है कि हेमंत सोरेन को साजिश के तहत गिरफ्तार किया गया है। इसका जवाब चुनाव में देंगे।

खूंटी के जरियागढ़ में हेमंत सोरेन के समर्थन में हुई एक सभा में मौजूद आदिवासी महिलाएं

उधर विभिन्न जन संगठनों की जंगलों-पठारों में अलग बैठकें चल रही हैं। आदिवासी हितों और जंगल-पहाड़ के सवाल पर नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ 30 सालों से संघर्ष कर रहे केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कहते हैं ‘हेमंत सोरेन की सरकार ने फील्ड फायरिंग रेंज पर रोक लगाकर हमारे संघर्ष का सम्मान किया है। इसलिए जन संघर्ष समिति आदिवासी हितो के सवाल पर हेमंत सोरेन का साथ देने से पीछे नहीं हटेगी।’

लोकतंत्र बचाओ अभियान से जुड़े आदिवासी प्रतिनिधि सीट शेयरिंग और उम्मीदवारी तय करने में समीकरणों पर ध्यान दिलाने के लिए जेएमएम- कांग्रेस के नेताओं को लगातार मांगपत्र सौंप रहे हैं।

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रजत कुमार गुप्ता कहते हैं, हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। राज्य का आदिवासी समुदाय अब पूर्व के जैसा नहीं रहा है। उनमें शैक्षणिक, सामाजिक जागृति बढ़ी है और वे इस पूरे मामले के कानूनी पहलू को समझकर ही इसे साजिश मान रहे हैं। शहरी इलाकों में इसका पता नहीं चलता और आम आदिवासी अब गैर आदिवासियों के बीच खुलकर अपनी बात नहीं रखता। गांव देहात में भरोसेमंद लोगों के बीच यह समुदाय यह बार-बार कह रहा है कि हेमंत सोरेन को फंसाया गया है। इसलिए झारखंड की एसटी कोटा की लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत आसान नहीं होगी। वैसे यह भी निर्भर है कि बीजेपी उम्मीदवारों के मुकाबले जेएमएम और कांग्रेस से कौन मैदान में होता है।

कल्पना सोरेन का सामने आना

इस बीच चार मार्च को हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने गिरिडीह में जेएमएम की एक सभा में शिरकत करते हुए चुनावी कमान संभाल ली है। गिरिडीह की सभा में उन्होंने सवाल भी खड़े किये, ‘क्या झारखंड के लिए एक लाख 36 हजार करोड़ के बकाये की मांग केंद्र से करना उनका अपराध है? क्या सरना धर्म कोड, ओबीसी आरक्षण समेत अन्य प्रमुख विधेयकों और प्रस्तावों को पारित करना अपराध था? क्या राज्य में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी सरकार को गिराने की साजिशें नहीं रची जा रहीं थीं?’

गिरिडीह की सभा के बाद कल्पना सोरेन ने राजमहल संसदीय क्षेत्र में कई  बड़ी सभाएं कर बीजेपी को निशाने पर लिया है। वे भी इस बात पर जोर देती रही हैं कि झारखंड और झारखंडी झुकेगा नहीं। इसके साथ ही जेएमएम के दो मजबूत पाए- शिबू सोरेन के नाम और दल के सिंबल तीर-कमान को सामने रखते हुए खुद को सभा और लोगों के बीच जिस तरह पेश कर करते हुए भाषण में बीजेपी पर निशाने साध रही हैं, उसके भी राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।

राजमहल संसदीय क्षेत्र में कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच कल्पना सोरेन

हालांकि बीजेपी नेता समीर उरांव जेएमएम के किसी आंदोलन, गोलबंदी का प्रभाव पड़ने अथवा किसी उलटफेर की संभावना से इत्तेफाक नहीं रखते। बकौल समीर उरांव, ‘एक लाइन में कहना चाहता हूं कि दशकों तक देश में कांग्रेस ने शासन किया, लेकिन आदिवासियों का शोषण ही किया। इसी तरह झारखंड में जेएमएम ने आदिवासियों के नाम पर राजनीति की, सत्ता में आये और अपना हित साधा। हेमंत सोरेन गलत कर रहे थे, तो केंद्रीय एजेंसी ने कार्रवाई की है। जबकि केंद्र की सरकार ने आदिवासियों और पीवीटीजी(विशेष पिछड़ी जनजाति समूह) के लिए बहुत कुछ किया है। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जो बिरसा मुंडा की जन्म स्थली उलिहातू गये। इसलिए आदिवासी सभी पहलू को समझते हुए राजनीतिक परिस्थितियों को कैलकुलेट कर रहा है।‘

नीरज सिन्हा
नीरज सिन्हा
लेखक झारखंड में वरिष्ठ और स्वतंत्र पत्रकार हैं तथा रांची में रहते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment