किस षड्यंत्र से बाबा साहब के महत्वपूर्ण कामों को आज तक छिपाया जा रहा है?

गाँव के लोग

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अभी कुछ दिन पहले पैगाम PAGAM (Phule Ambedkari Gauravshali Muhim) बिक्रोली मुम्बई की एक सभा में फुले जी और बाबा साहेब की मूर्ति स्टेज से गायब, (पहले के प्रोग्रामों में लगाए जाते रहे हैं), बैनर से ‘शिक्षित करो, संगठित रहो, संघर्ष करो’,और ‘जय भीम’ भी गायब था। भाषण के माध्यम से मेरे द्वारा प्रश्न उठाने पर, कार्यक्रम के अध्यक्ष वाघ जी का अध्यक्षीय भाषण में जवाब था कि, ‘हम लोग अब मूर्ति पूजा के खिलाफ हैं।’ अभी भी 18-19 दिसंबर की पैगाम की अंबेडकर भवन न्यू दिल्ली की सभा में भी यही पैटर्न अपनाया गया है। दिनांक 28-29 अगस्त को नागपुर के ओबीसी चिन्तन बैठक में, हमारे एक सवाल के जवाब में, आयोजक ने खुद स्वीकार किया कि, ओबीसी संगठनों में महापुरुषों को लेकर इतना ज्यादा विवाद है कि, हमने अपने बैनर पर किसी महापुरुष को जगह नहीं दिया है। दूसरी तरफ, ‘बोल पच्चासी, मूलनिवासी, ब्राह्मण विदेशी’ विचारधारा पर चलकर, ‘संविधान और आंबेडकरवाद’ की ही धज्जियां उड़ाई जा रही है। इससे ब्राह्मणवाद और मजबूत होता दिखाई दे रहा है, भले ही अपने आप को आसमान में उड़ते देख रहे हैं, लेकिन हकीकत में धरातल पर सामाजिक और राजनीतिक रूप से ब्राह्मणवाद को सीधी टक्कर देते हुए, कहीं भी, कोई नहीं दिखाई दे रहा हैं।

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