लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी झारखंड में सभी 14 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए जोर लगा रही है लेकिन आदिवासी सीटों पर क्या भाजपा जीत दर्ज करने में सफल हो सकती है?
आज समूचे देश में कृषि-क्षेत्र में 72 प्रतिशत से ज़्यादा लड़कियाँ और महिलाएँ दिन-रात पसीना बहा रही हैं। मगर उनका अस्तित्व आज भी उनके पति के अस्तित्व पर निर्भर करता है। फिर भी इन औरतों ने परिस्थितियों से जूझना बंद नहीं किया है। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के बाद उनकी पत्नियाँ किस तरह उनका कर्ज उतारकर जीवन जी रही हैं, पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट
आत्महत्या करने वाले अधिकतर किसान ओबीसी जातियों के हैं। मगर उनकी आत्महत्या का मुद्दा जब कहीं भी उन जातिगत राजनीतिक संगठनों के एजेंडे में शामिल नहीं है, तब ये आत्महत्याग्रस्त किसान महिलाएँ तो उस आंदोलन में अदृश्य ही हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार की विदर्भ से ग्राउंड रिपोर्ट
महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र का नाम किसानों की आत्महत्या के मामले में अक्सर सुनाई देता रहा है। लेखिका डॉ लता प्रतिभा मधुकर ने विदर्भ के यवतमाल और वर्धा जिले के मृतक किसानों की पत्नियों से मिलकर उनके संघर्ष और जीजीविषा को नजदीक से देखा। ये आत्महत्या न कर ज़िंदगी से क्यो और कैसे लड़ती हैं? पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट का भाग एक-
उलगुलान के महानायक बिरसा मुंडा करोड़ों आदिवासियों के लिए गौरव और गुमान के प्रतीक हैं। साथ ही उनका बलिदान आदिवासियों के सपनों की बुनियाद के साथ सियासत की धुरी भी है। लेकिन बिरसा की धरती पर ही उनके अनुयायी ‘बिरसाइत’ परिवारों की जिंदगी मुश्किलों में गुजर रही। विकास का पहिया इनके गांवों में पहुंचने से पहले क्यों ठहर जाता है, पड़ताल करती एक रिपोर्ट..
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी झारखंड में सभी 14 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए जोर लगा रही है लेकिन आदिवासी सीटों पर क्या भाजपा जीत दर्ज करने में सफल हो सकती है?
आज समूचे देश में कृषि-क्षेत्र में 72 प्रतिशत से ज़्यादा लड़कियाँ और महिलाएँ दिन-रात पसीना बहा रही हैं। मगर उनका अस्तित्व आज भी उनके पति के अस्तित्व पर निर्भर करता है। फिर भी इन औरतों ने परिस्थितियों से जूझना बंद नहीं किया है। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के बाद उनकी पत्नियाँ किस तरह उनका कर्ज उतारकर जीवन जी रही हैं, पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट
आत्महत्या करने वाले अधिकतर किसान ओबीसी जातियों के हैं। मगर उनकी आत्महत्या का मुद्दा जब कहीं भी उन जातिगत राजनीतिक संगठनों के एजेंडे में शामिल नहीं है, तब ये आत्महत्याग्रस्त किसान महिलाएँ तो उस आंदोलन में अदृश्य ही हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार की विदर्भ से ग्राउंड रिपोर्ट
महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र का नाम किसानों की आत्महत्या के मामले में अक्सर सुनाई देता रहा है। लेखिका डॉ लता प्रतिभा मधुकर ने विदर्भ के यवतमाल और वर्धा जिले के मृतक किसानों की पत्नियों से मिलकर उनके संघर्ष और जीजीविषा को नजदीक से देखा। ये आत्महत्या न कर ज़िंदगी से क्यो और कैसे लड़ती हैं? पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट का भाग एक-
उलगुलान के महानायक बिरसा मुंडा करोड़ों आदिवासियों के लिए गौरव और गुमान के प्रतीक हैं। साथ ही उनका बलिदान आदिवासियों के सपनों की बुनियाद के साथ सियासत की धुरी भी है। लेकिन बिरसा की धरती पर ही उनके अनुयायी ‘बिरसाइत’ परिवारों की जिंदगी मुश्किलों में गुजर रही। विकास का पहिया इनके गांवों में पहुंचने से पहले क्यों ठहर जाता है, पड़ताल करती एक रिपोर्ट..
कनहर सिंचाई परियोजना के विस्थापितों की हृदय विदारक सचाइयों को देखकर लगता है जैसे ये लोग पचास साल लंबे किसी ऑपेरा के पात्र हैं जो करुणा, विषाद, हास्य, उम्मीद और हताशा के बीच जीने के अभिशाप को चित्रित कर रहे हैं और अभी आगे यह कितना लंबा खिंचेगा इसका कोई संकेत नहीं है।