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ग्राउंड रिपोर्ट

शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत विद्यालय में दाखिला देने की मांग

निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 12(1)(ग) के तहत दुर्बल वर्ग एवं अलाभित समूह से दाखिला प्राप्त बच्चों को पिछली उत्तर प्रदेश सरकार ने रु. 450 प्रति बच्चा प्रति माह शुल्क प्रतिपूर्ति के अलावा प्रत्येक वर्ष किताबों व पोशाक के लिए रु. 5,000 देना शुरू किया था, जो योगी आदित्यनाथ सरकार […]

निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 12(1)(ग) के तहत दुर्बल वर्ग एवं अलाभित समूह से दाखिला प्राप्त बच्चों को पिछली उत्तर प्रदेश सरकार ने रु. 450 प्रति बच्चा प्रति माह शुल्क प्रतिपूर्ति के अलावा प्रत्येक वर्ष किताबों व पोशाक के लिए रु. 5,000 देना शुरू किया था, जो योगी आदित्यनाथ सरकार ने आते ही बंद कर दिया। दूसरी तरफ सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को इसी उद्देश्य के लिए रु. 1,200 सालाना देना शुरू किया है। हम पूछना चाहते हैं कि आखिर यह भेदभाव क्यों? जो बच्चे निजी विद्यालयों में उपरोक्त अधिनियम के तहत दाखिला प्राप्त कर रहे हैं वे गरीब व वंचित तबकों से हैं। उन्हें भी सरकारी विद्यालयों की तरह किताबों व पोशाक की मदद क्यों नहीं मिलनी चाहिए? ये मांगे  सोशलिस्ट अभिभावक सभा के संदीप पाण्डेय, मोहम्मद आसिफ सिद्दीकी और घरेलू महिला कामगार यूनियन के मीनू सूर, मोना सूर द्वारा की गयी हैं।

उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि जब बच्चे बिना विद्यालय की पोशाक या किताबों के कक्षा में जाते हैं तो शिक्षक उन्हें अपमानित करते हैं। बार-बार अपमानित करने पर कई अभिभावक अपने बच्चों को निकाल कर किसी सरकारी विद्यालय या सस्ते निजी विद्यालय में दाखिला दिला देते हैं। इससे निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) का प्रयोजन ही विफल हो जाता है। सरकार ने कानून तो जरूर बना दिया है लेकिन हकीकत यह है कि खासकर महंगे निजी विद्यालय गरीब एवं वंचित तबकों के बच्चों को दाखिला देना नहीं चाहते। इसमें से कुछ निजी विद्यालय इतने प्रभावशाली हैं कि वे खुलेआम शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत बच्चों को दाखिला देने से मना कर कानून की धज्जियां उड़ाते हैं और अधिकारी कुछ नहीं कर पाते। इस तरह निजी विद्यालयों की मनमानी और सरकारी अधिकारियों की निष्क्रियता का खामियाजा गरीब एवं वंचित तबकों के बच्चों को भुगतना पड़ता है एवं उनकी शिक्षा प्रभावित होती है। उन्होंने अपनी मांग में आगे कहा कि सभी निजी विद्यालयों में कम से कम 25 प्रतिशत गरीब एवं वंचित तबकों के बच्चों के लिए जो आरक्षित स्थान हैं, उन्हें भरा जाए। लॉटरी की व्यवस्था खत्म कर, जो भी बच्चा आवेदन भरे, उसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत किसी न किसी विद्यालय में दाखिला दिया जाए। यही नहीं, जो निजी विद्यालय शिक्षा के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन करें, उसका सरकारीकरण कर लिया जाए।साथ ही प्रत्येक बच्चे को जिसका दाखिला शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत हो, उसे प्रति वर्ष रु. 5,000 रूपया किताब व पोशाक के लिए पहले की तरह दिया जाय।

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