वाराणसी। जिला मुख्यालय से लगभग 8 से 10 किमी दूर धूल-धूसरित सड़कों पर चलकर डेढ़ घंटे की यात्रा के बाद मैं सीधे करसड़ा गाँव की चंद्रावती के घर पहुंचा, जिसकी सात बेटियों में से चौथे नंबर की बेटी खुशबू की मौत दो महीने पहले ही हुई है। बेटी की मौत की बावत चंद्रावती का कहना है कि ‘हमरे बिटिया खुशबू क मउत आज से ठीक दू महिन्ना पहिले भइल। जवन कुछ भी खाय ओके कुछ न पचय। जब डॉक्टर के देखाए त डॉक्टर साहब बताएन की खुशबू के लीवर अउर आंत में सूजन हव। यह सूजन कइसे आइल ना मालूम। फिर हमरे बिटिया के खून भी बनब बंद हो गइल। खाना भी न पचय। चितईपुर चौराहे के पास रॉयल हास्पिटल में चार बार ले के हम अपने बिटिया के भर्ती रहली । लेकिन हमार बच्ची उहाँ ठीक ना भइलिन। ओकरे बाद टेंगरा मोड़ के पास एक हास्पिटल (हास्पिटल का नाम नहीं याद आने पर) में हम अपने बिटिया के ले गइली। उहाँ भी डॉक्टर साहब खूब जांच करऊलन। एतना रुपया पइसा लगल, लेकिन जान ना बचल हमरे बिटिया के। हम अपने बिटिया के खातिर कर्जा कढ़ली। एक ठे भइंस(भैंस) बेच देहली। सूत पर एक लाख रुपिया उधार लेहली, सोचली की चला बहुत रूपिया-पइसा आई-जाई अगर हमार बाल बच्चा ठीक रइहन।
(मेरी बेटी खुशबू की मौत आज से ठीक दो महीने पहले हुई। वह कुछ भी खाती थी तो उसे पचता नहीं था। डॉक्टर साहब ने बताया की खुशबू के लीवर और आंत में सूजन है। यह सूजन किस वजह से है नहीं मालूम। इसके बाद मेरी बेटी को खून भी बनना बंद हो गया। खाना भी नहीं पचता था। चितईपुर चौराहे के पास रायल हास्पिटल में चार बार मैं अपनी बेटी को लेकर भर्ती रही, लेकिन मेरी बेटी वहाँ ठीक नहीं हुई। उसके बाद टेंगरा मोड़ के पास एक हास्पिटल (हास्पिटल का नाम नहीं याद आने पर) में मैं अपनी बेटी को ले गयी। वहाँ भी डॉक्टर साहब ने खूब जांच कराई। इतना रुपया पैसा लगा लेकिन मेरी बेटी की जान नहीं बची। अपनी बेटी के इलाज के लिए मैंने कर्ज लिया। एक भैंस बेच दी। सूत पर एक लाख रुपया भी लिया, मैंने सोचा मेरे बाल-बच्चे ठीक रहेंगे तो बहुत रुपया-पैसा आएगा और जाएगा।)
बात खत्म होते-होते चंद्रावती की आँखों से आँसू निकल पड़े। वह रुधे गले से बोली ‘बिटिया हाथ से निकल गइल अउर कर्जदार भी बना देहलेस। कम से कम जान बच गइल होत त दिल के सुकून रहत की चला रुपया-पइसा जवन भी लगल कम से कम बिटिया त ठीक हो गइल न।’
(बेटी भी हाथ से निकल गयी और कर्जदार भी बना गयी। कम से कम जान बच गयी होती तो दिल को यह तो सुकून होता की चलो रुपया पैसा जो भी लगा कम से कम बेटी आंखों के सामने तो है।)
[bs-quote quote=”एक तरफ जहां करसड़ा प्लांट से उठने वाली बदबू और कूड़े के ढेर से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से चिंतित हैं तो वहीं इसी गाँव के दूसरे छोर पर घर में ही दुकान चलाने वाले प्रमोद कुमार सिंह की निकट भविष्य में आने वाली कठिनाइयां, जो कि कूड़े के ढेर से निकली बदबू के कारण बेटी के हाथ पीले करने में हो सकती हैं,को जोड़कर चिंतित दिखे।” style=”style-13″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
बेटी की मौत के बाद से ही चंद्रावती चिंतित हैं। अपनी चिंता का कारण बताते हुए आगे कहती हैं ‘एक त हमरे आदमी के मुहें क कैंसर हो जयल बा। ऊपर से जवन ईंट, गारा, बालू क काम कइले से जवन मजदूरी मिलत बाय ओसे हम आपन परिवार चलाइब की दवा-दारू में खर्च करब? इहाँ क ई कूड़ा घर सबसे बड़ी बीमारी क घर हव। दिन भर कूड़ा क महक आवल करय ल। एकरे बारे में सोच के जइसे जियरा पागल हो जाला की कब एसे मुक्ति मिली। हमके त लगय ला की हमरे खुशबू क मउत एही कूड़ा घर अऊर ओकरे प्रदूषण से भल हव।
(एक तो मेरे पति को मुंह में कैंसर हो गया है। उस पर से जो ये ईंट, गारा, बालू करके जो थोड़ी कमाई करते हैं, उससे हम अपना घर-परिवार चलाएं की दवा-दारू में खर्च करें। यहाँ का यह कूड़ा घर सबसे बड़ी बीमारी का घर है। दिन भर कूड़े की महक आती है। इस कूड़ा घर के बारे में सोचकर दिमाग खराब हो जाता है कि इससे मुक्ति कब मिलेगी। मुझे तो लगता है कि मेरी बेटी कि मौत इसी कूड़े के घर और उससे निकलने वाले प्रदूषण से हुई है।)
चंद्रावती आगे अपनी चिंताओं के बारे में बताती हैं कि उनकी सात बेटियाँ हैं, अगर वे भी इसी प्रकार से बीमार होती रहीं तो वे उनके लिए कुछ भी नहीं कर पाएँगी, क्योंकि घर कि माली हालत खराब है। खेती-बारी भी उतनी नहीं है कि खेती करके अच्छी कमाई की जाय। चंद्रावती का घर करसड़ा कूड़ा प्लांट से महज 5 सौ से 6 सौ मीटर के अंदर ही है।
ज्ञात हो की करसड़ा प्लांट की नींव बसपा के कार्यकाल 2008 में 48.67 करोड़ रुपए से रखी गयी। मंजूरी मिलने के बाद 48.67 करोड़ रुपये की परियोजना चार साल से अधिक समय तक लटकी रही। उसके बाद धीरे-धीरे इसका काम चलन शुरू हुआ। 30 जुलाई 2016 को यह प्लांट चालू हुआ। प्लांट की स्थापना का मुख्य उद्देश्य वाराणसी नगर निगम के दायरे में आने वाले कूड़ा-कचरा को यहाँ लाकर रिसाइकिल करना और उससे खाद बनाना था। उसी प्रकार से सूखे कचरे को रिसाइकिल करके सड़क बनाने या फिर किसी दूसरे काम में उसका इस्तेमाल करने की योजना थी। यही नहीं प्लांट के पास ही अलग परिसर में कूड़े से ही बिजली बनाने की भी योजना पर काम चला। लेकिन वर्तमान में जो भी प्लांट लगे हैं उसमें प्रति यूनिट बिजली उत्पादन में 10 रुपये से अधिक खर्च होते हैं। इस व्यय मद को प्रति यूनिट छह रुपये से कम करने की कोशिश का काफी प्रयास भी हुआ, लेकिन अंत में बिजली उत्पादन के मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
करसड़ा में कूड़े का निस्तारण न होने और प्लांट के न चलने से धीरे-धीरे कूड़ा पहाड़ की शक्ल लेता जा रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक 6 सौ मीट्रिक टन कचरा प्रतिदिन करसड़ा लाया जाता है। वाराणसी नगर निगम क्षेत्र में कुल 43 कचरा घर बनाए गए हैं जिसमें से 29 स्थायी और 14 अस्थायी। 90 डंपर कचरे का रोजाना उठान होता है, जबकि 30 डंपर कचरा रोजाना शहर से नहीं उठ पाता है। अभी करसड़ा सालिड वेस्ट मैनेजमेंट की क्षमता को और अधिक बढ़ाने की वाराणसी जिला प्रशासन कर रहा है।
कूड़ा का निस्तारण न होने से करसड़ा गाँव के अलावा गोसाईंपुर, चारगाँव और बेटावर की लगभग 10 हजार की आबादी कूड़े से निकलने वाली दुर्गंध और प्रभाव से परेशान है। करसड़ा निवासी 80 वर्षीय दुर्जन पाल कहते हैं ‘प्लांट की महक तो हमेशा आती रहती है लेकिन जब पुरुवा हवा चलती है तो जीना दूभर हो जाता है। मन करता है कि यहाँ से भाग जाऊँ लेकिन घर- परिवार, बाल-बच्चों को छोडकर कहाँ जाऊँ।’ वे आगे बताते हैं कि ‘जब से यह प्लांट लगा तब से धीरे–धीरे आस- पास के कई गाँव के लोग मच्छरों और मक्खियों से परेशान हैं। खाने बैठिए तो चारों तरफ से सब घेर लेती हैं।
तो आप लोगों ने इसकी शिकायत अभी तक क्यों नहीं की ? सवाल के जवाब में दुर्जन पाल कहते हैं ‘कहीं कोई सुनवाई नहीं है। अभी योगी जी आए थे तो यहाँ खूब छिङकाव हुआ। यही होता है जब कोई आने वाला होता है तो अधिकारी खूब साफ-सफाई करवाते हैं, उसके बाद फिर वही पुरानी स्थिति हो जाती है।’ वे आगे बताते हैं ‘थोड़ी दिन पहले मोदी जी आए थे और अपने लोगों से मिल कर चले गए । वे हम जैसे गरीब लोगों की बात ही नहीं सुनते। वे आते हैं और मंच पर भाषण देकर पता नहीं किन गरीब लोगों से मिल लेते है और चले जाते हैं। अगर वे मुझसे मिलते तो मैं उन्हें दिखाता की किस प्रकार के माहौल में हम जी रहे हैं । इस कूड़ा के कारण तमाम प्रकार की बीमारियाँ फैल रही हैं। रोज कोई -न -कोई किसी- न- किसी बीमारी से परेशान रहता है। अभी कुछ दिन पहले हमारी बहू को डेंगू हुआ था। अब जाकर ठीक हुई है। यही समझ लीजिए की आस-पास के गाँव के लोग हमेशा किसी स्वास्थ्य कारणों से परेशान हैं।’
दुर्जन पाल के यहाँ से उठकर ज्यों ही मैं आगे सड़क पर पान की दुकान पर पहुंचा और प्लांट के बारे में जानकारी लेनी चाही तो वहाँ उपस्थित लोगों में से गिरिजेश यादव (करसड़ा गाँव के) बोले आप क्या पूछना चाहते हैं पूछिए मैं आपको बताऊंगा। इस प्लांट के यहाँ होने से किस प्रकार की दिक्कतें आप लोगों को हो रही है ? सवाल के जवाब में गिरिजेश बताते हैं ‘जब से यहाँ कूड़ा डंप होना शुरू हुआ है तभी से प्लांट के आस-पास के 5-6 किलोमीटर की दूरी के जितने गाँव के लोग हैं सब परेशान हैं। हर समय घर में कोई-ना-कोई किसी- न- किसी स्वस्थ्य संबंधी समस्या से परेशान है। डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड, लीवर, किडनी, आँख में जलन और एलर्जी की समस्या से परेशान है। खुद मेरे घर में दोनों बेटों को टाइफाइड हो गया था। एक तो ठीक हो गया लेकिन अभी एक की दवा चल रही है। मेरी छोटी बहू को भी डेंगू हो गया है। अभी उसका भी इलाज चल रहा है। मैं तो डंके की चोट पर कहता हूँ आस-पास के गाँव के पानी की जांच करवा लीजिए अगर पानी में दिक्कत न निकल जाय तो मेरा नाम बदल दीजिएगा।’ गिरिजेश दावा करते हैं कि ‘यहाँ का पानी प्लांट के प्रभाव से धीरे-धीरे प्रदूषित हो चुका है। लोग वही पानी पीकर बीमार हो रहे हैं। लोगों को पता ही नहीं है कि उन्हें किस वजह से ये स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें आ रही हैं। किसी के किडनी में सूजन है तो किसी के लीवर में। कोई बोलने के लिए तैयार भी नहीं है। कोई समस्या हुई तो झोलाछाप डॉक्टरों से दो टिकिया दवा ले ले रहे हैं और फिर कुछ दिनों के बाद दिक्कत हुई तो फिर वही काम करते हैं। आगे अगर यही स्थिति रही तो बीमारी और बड़े रूप में सामने आएगी, तब जाकर इन लोगों कि आँख पर बंधी पट्टी खुलेगी और तब-तक ये अपना बहुत कुछ खो चुके होंगे। अगर ये कूड़ा प्लांट यहाँ से जल्दी नहीं हटा तो इसकी वजह से आप जान लीजिए आस-पास के चार से पाँच किलोमीटर की रेंज में रहने वाले लोगों को स्वास्थ्य संबंधी भीषण त्रासदी का सामना करना पड़ सकता है।’
एक तरफ जहां करसड़ा प्लांट से उठने वाली बदबू और कूड़े की ढेर से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से आस-पास के लोग चिंतित हैं तो वहीं इसी गाँव के दूसरे छोर पर घर में ही दुकान चलाने वाले प्रमोद कुमार सिंह की निकट भविष्य में आने वाली कठिनाइयां, जो कि कूड़े के ढेर से निकली बदबू के कारण बेटी के हाथ पीले करने में हो सकती हैं,को जोड़कर चिंतित दिखे। प्रमोद कहते हैं ‘ यहाँ पर इसी प्रकार से कूड़ा डंप होता रहा तो आने वाले समय में हमारे यहाँ के बच्चों से कौन शादी करेगा। धीरे-धीरे यह एरिया प्रदूषण के लिए बदनाम होता जा रहा है। आए दिन लोग स्वाथ्य कारणों से परेशान हैं। अभी तो हमारे बच्चे छोटे हैं, लेकिन जब तक ये बड़े होंगे तब- तक कूड़ा घर विकराल रूप ले लेगा, इस बीच यदि सरकार ने कूड़े का कुछ इंतजाम नहीं किया तो बाहर से आने वाले लोग हमारे बच्चों को बीमारी का घर मान शादी से मुकर जाएंगे। यही नहीं मुझे तो डर है की आने वाले समय में इस एरिया की जमीन अगर कोई किसान बेचकर जाना चाहेगा तो उसका उचित मूल्य भी उसे नहीं मिलेगा। यहाँ की प्रदूषित जलवायु में कौन जमीन खरीदेगा और जो खरीदेगा वह औने-पौने दाम पर ही जमीन को खरीदेगा। क्योंकि उस व्यक्ति को यह मालूम होगा की कूड़ा प्लांट की वजह से यहाँ का जलवायु सेहत की दृष्टि से ठीक नहीं है। यहाँ पर समस्याएँ दिन-ब-दिन बद से बदतर होती जा रही हैं। जब कभी भारी बारिश होती है तो प्लांट से निकला पानी चारों तरफ फैल जाता है, कुछ पानी जमीन सोख लेती है, बाकी पानी नालों के रास्ते गंगा में चला जाता है।’
इस प्रकार से कहा जा सकता है कि करसड़ा प्लांट से निकलने वाला लीचेट काफी मात्रा में जमीन के अंदर चला जाता है जो स्वास्थ्य संबंधी भयंकर बीमारियों को बढ़ाएगा।
इसके बाद प्रमोद सिंह जिज्ञासा भरी नजरों से पूछते हैं ये बताइये कि यह प्लांट बंद होगा या चलता रहेगा ? ‘पता नहीं, कुछ कह नहीं सकता।’ मेरे जवाब पर वे थोड़ा उदास दिखे। इसके बाद प्रमोद कुमार सिंह सड़क की तरफ से आ रहे बड़े लड़कों को,जो की निकट ही राज्य के इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़कर लौट रहे थे, से सवाल दाग दिया ‘बच्चों ये बताइए आप लोगों को कूड़े की महक से परेशानी है की नहीं?
3-4 की संख्या में उपस्थित लड़कों ने एक स्वर में कहा ‘अरे क्या बताऊ बहुत महकता है। हम लोग तो परेशान हो जाते हैं इस महक से।’
प्रमोद की दुकान से निकलकर मैं सीधे गोसाईंपुर दलित बस्ती में पहुंचा। गोसाईंपुर दलित बस्ती से प्लांट की दूरी 7- 8 सौ मीटर है। बस्ती प्लांट के पूर्वी दिशा में स्थित है। कूड़ा घर से होने वाली दिक्कतों के बारे में बताती हुई चंद्रावती देवी कहती है ‘ कूड़ा घर से हम लोगों के घर की दूरी नजदीक होने के कारण हमेशा महक आती रहती है। खाना–पीना सब दुश्वार हो गया है। कूड़े की महक से आए दिन कोई-ना-कोई बीमार ही रहता है। अभी देखिए इनके बेटे (सामने एक महिला और उसके बेटे की ओर इशारा करते हुए) को डेंगू हुआ है। अभी दवा चल रही है। सुई भी लग रही है। मेहमान आते हैं और जब पूछते हैं कि क्या महक रहा है तो हमें बड़ी लज्जा आती है कि क्या बताया जाय कि क्या महक रहा है। शाम होते ही मक्खियाँ परेशान करने लगती हैं।
खाने-पीने की चीजों पर भनभनाती हैं। उसी में गिर जाती हैं, जिससे फिर खाने-पीने का मन ही नहीं करता है। हम लोग गरीब- गुरबे लोग ठहरे इसीलिए सरकार ने भी सोचा की मरे तो मरे मेरी बला से। अपने पीछे देखिये यही वो नाला है, जिसमें उस कूड़ा घर का गंदा और जहरीला पानी बहते हुए गंगा में जाता है। अभी इसका पानी कितना विषैला है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक साल पहले इस नाले का पानी पीकर इस बस्ती के कई लोगों की बकरियाँ मर गई थीं। तब से अब लोग सचेत हो गए हैं और अपने पशुओं को नाले की तरफ जाने ही नहीं देते। उस नाले में हमेशा मरी मछलियाँ पानी में उतराई अवस्था में देखने को मिल जाती हैं।
वहीं पास में ही बैठी एक 85 वर्षीय महिला रामपती देवी प्लांट और उससे निकली हवा के कुप्रभाव की बाबत कहती हैं ‘ इसकी महक से आस-पास के कई गाँव के लोग परेशान ही नहीं हैं बल्कि तमाम प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त होकर सरकार को कोसते हैं। सरकार दवाओं का छिड़काव क्यों नहीं करवा रहीं है, जिससे की महक ज्यादा ना फैले। मैं तो आज भी उस दिन को कोसती हूँ, जिस दिन इस जमीन को सरकार ने लेने की स्वीकृति दी। हालांकि हम लोग हशिया, खुरपी लेकर सड़क पर कई दिनों तक विरोध भी किए लेकिन सरकार के आगे किसकी चलती है।’
बहरहाल, जो भी हो ‘कूड़े का ढेर और उसके दुष्प्रभाव’ जैसे अनेक विषयों पर हुए वैज्ञानिक अध्ययनों से इस बात का खुलासा हुआ है कि इसके आस-पास रहने वाले लोगों को तमाम प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां घेरे रहती हैं। क्षेत्र के आस-पास रहने वाले लोगों को सर्दी, जुकाम, बुखार, लिवर और किडनी से संबन्धित परेशानियाँ हो सकती हैं। लेकिन इन बीमारियों को सरकार की थोड़ी सी जागरूकता से कम भी किया जा सकता है। जैसे रिसाइकिल करके कूड़े को कम करना, समय-समय पर कूड़ा डम्पिंग क्षेत्रों में दवाओं का नियमित छिड़काव आदि। लेकिन यहाँ तो ना कूड़े का निस्तारण (रिसाइकिल) हो रहा है और ना ही आप-पास के गावों में दवाओं का नियमित छिड़काव।
करसड़ा के बचानू जिनका घर प्लांट से मात्र 100 मीटर की दूरी पर है, वे कहते हैं ‘यहाँ पर हर प्रकार का कूड़ा करकट लाया जाता है, जिसमें हास्पिटल का कचरा, मरे हुए पशु, सब आता है, जिसके कारण बहुत ही दुर्गंध होता है। लेकिन गाँव में दुर्गंध को कम करने और बीमारी को फैलने से रोकने का प्रशासन द्वारा कोई इंतजाम नहीं किया जा रहा है, क्या किया जाय समझ में नहीं आ रहा है। सरकार और जिला प्रशासन यहाँ के लोगों के जीवन से खेल रहा है। यह सरकार और जिला प्रशासन दोनों को भरी पड़ सकता है।’
इस संवेदनशील मामले की बाबत नगर आयुक्त शिपू गिरि से जब बात करने की कोशिश की गयी तो उन्होंने नगर स्वस्थ्य अधिकारी एनपी सिंह से बात करने के लिए कहा और जब एनपी सिंह से बात करने के लिए मैंने फोन किया तो उनका नंबर उनके चपरासी के पास था। इसके बाद बार-बार फोन करने के बावजूद उनका फोन नहीं उठा।
जो भी हो, करसड़ा में लगातार कूड़े के डंप से बनते पहाड़ से आस-पास के लोगों का न सिर्फ सांस लेना दुश्वार हो गया है बल्कि स्थानीय लोग डेंगू, मलेरिया , टाइफाइड के अलावा कई अन्य प्रकार की बीमारियों की चपेट मे भी आते जा रहे हैं। दुखद यह है कि उनकी ज़िंदगी में यह कूड़ा-कचरा कितना दर्द घोल चुका है और अभी कितना और दर्द घोलेगा इसका अंदाजा उन्हें खुद भी नहीं है।
राहुल यादव गाँव के लोग डॉट कॉम के उप-संपादक हैं।