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नन्द प्रसाद यादव : दृष्टिबाधित होने के बावजूद हार नहीं माना

राकेश सन 1996 में पढ़ने के लिए राजकीय जुबिली इन्टर कॉलेज में पढ़ने गए। वहाँ उन्हें दृष्टिबाधित अध्यापक नन्द प्रसाद यादव (एम. ए., एलएल.बी.) जी से मिलना हुआ। वे राजनीतिशास्त्र-नागरिकशास्त्र के प्रवक्ता थे और हाईस्कूल तक की कक्षाओं में हिन्दी साहित्य का काव्य संकलन पढ़ाते थे। उन्हें काव्य संकलन में संकलित सभी कवियों की कविताएं याद थीं और बड़े मनोयोग से वे अपने छात्रों को पढ़ाते थे।

भारत में विकलांगता को लेकर एक दयनीय मानसिकता है। स्वयं अधिकतर विकलांग अपने को सामाजिक दया का पात्र बना देते हैं। न जाने कितने विकलांग भिखारियों को हम रोज देखते हैं। बल्कि विकलांगता भिखारियों की योग्यता बन जाती है। प्रायः किसी हट्टे-कट्टे भिखारी को देखकर मन में गुस्सा आता है जबकि विकलांग भिखारी स्वतः हमारी दया के पात्र हो जाते हैं। लेकिन इस दुनिया में लाखों ऐसे लोग हैं जो अपनी शारीरिक अक्षमता के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सफलता के झंडे गाड़े हैं। इन्हीं में से एक हैं नन्द प्रसाद यादव जिनकी ज़िंदगी की कहानी न केवल कठिन संघर्षों और जुझारूपन से बांधती है बल्कि अकादमिक जगत में उनकी उपलब्धियां बहुत शानदार हैं।

देवरिया जिले के बरियारपुर क्षेत्र के बसनहवा टोला में 28 मई 1957 को जन्मे नन्द प्रसाद यादव एक सामान्य बच्चे की की तरह पैदा हुये थे। जब वह तीन चार साल के हुये तब उन्हें चेचक निकली और आँखों की रौशनी छिन गई। गरीब किसान परिवार में इलाज की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई और उनकी ज़िंदगी अंधेरे में डूब गई।

नन्द प्रसाद में पढ़ाई के प्रति गहरी ललक थी लेकिन उस समय ऐसे बच्चों के पढ़ने की कोई सामान्य व्यवस्था नहीं थी। न ही लोग ऐसी किसी व्यवस्था के बारे में ज्यादा जानते थे। पता लगने पर वह भाटपार रानी स्थित मदन मोहन मालवीय शिक्षा संस्थान गए के प्रधानाचार्य केशव चन्द्र मिश्र दाखिला देने की गुजारिश की। वहाँ उस समय कोई ऐसा अध्यापक नहीं था लेकिन नन्द प्रसाद ने अपनी इच्छा शक्ति के बूते इस बाधा को भी पार किया। वे सुनकर अपना पाठ याद कर लेते और फिर ब्रेल लिपि में अपने नोट्स बना लेते। वहाँ से उन्होंने माध्यमिक स्तर तक पढ़ाई की।

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नंद प्रसाद यादव

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एक दृष्टिबाधित युवा विद्यार्थी की लगन और मेहनत देखकर अनेक लोग दांतों तले उंगली दबाते तो बहुत से लोग हँसते भी लेकिन धीरे-धीरे लोग उनको स्नेह सम्मान देने लगे। उन्होंने कड़ी मेहनत से एम ए और एल एल बी की परीक्षा पास की और इस प्रकार अपने भविष्य की राह प्रशस्त की।

1981 का वर्ष उनके लिए विशिष्ट साबित हुआ जब अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाया गया। इसी वर्ष उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री रहने के दौरान विश्वनाथ प्रताप सिंह जी ने स्नातक और परास्नातक परीक्षा पास अध्यापक के पद पर नियुक्ति पाने के योग्य दृष्टिबाधित विद्यार्थियों को स्कूलों और कालेजों में नियुक्त करने का निर्णय लिया। जिलाधिकारी कार्यालयों और अन्य सरकारी कार्यालयों में विभिन्न पदों के साथ ही कुर्सी बुनने के काम इत्यादि के लिए कुशल लोगों की नियुक्तियाँ की गईं। नन्द जी विश्वनाथ प्रताप जी के व्यक्तित्व की तारीफ करते हुए उन्हें बड़े सम्मान से याद करते हैं।

नन्द प्रसाद यादव बताते हैं कि उन लोगों का भाषण और प्रस्तुतीकरण देखने के बाद विश्वनाथ प्रताप जी उन लोगों को नौकरी देने का निर्णय यह कहकर लिया कि तमाम लोग सरकारी नौकरी मिलने के बाद भी कार्यालय नहीं जाते, स्कूलों में जाकर अध्यापन नहीं करते लेकिन हमारे दृष्टि बाधित अध्यापक कक्षाओं में जाकर प्रतिदिन अध्यापन जरूर करेंगे। यह भरोसा और निर्णय  कोई दूरदर्शी व्यक्ति ही कर सकता है। उनके इस निर्णय से हजारों लोगों के जीवन में उजाला भर गया और वे सम्मानजनक जीवन जी सके। वी पी सिंह जी ने मण्डल कमीशन की सिफारिशों को लागू करके पिछड़े वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देकर सामाजिक न्याय की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण काम किया जिससे यह साबित होता है कि वे एक दूरदृष्टि सम्पन्न और सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने वाले राजनेता थे।

जब मैं गोरखपुर में पढ़ता था तब नित्यप्रति उनको देखता था कि वह सुबह चार उठकर रामचरित मानस का पाठ करते थे जो कि उन्हे कंठस्थ थी। वे दृष्टिबाधित इन्टर कालेज लालदिग्गी गोरखपुर के प्रधानाचार्य रहे और बाद में अपनी सेवानिवृत्ति के पहले सन 2020 से 2023 तक राजकीय जुबिली इंटर कालेज के प्रधानाचार्य भी रहे। राज्य पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित नन्द जी एक ओजस्वी वक्ता भी हैं। उन्हें कालेज के अलावा अन्य कार्यक्रमों में भी अपना वक्तव्य रखने के लिए बुलाया जाता है । अंधे लोगों के संगठनों और आंदोलनों में वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और अधिकारियों से मिलकर उनकी समस्याओं को दूर कराने के काम भी बड़ी जिम्मेदारी के भाव से करते हैं।

दृष्टिबाधित इन्टर कालेज गोरखपुर के प्रधानाचार्य पद पर रहते हुए उन्होंने वहाँ की तमाम अव्यवस्थाओं को दूर कराकर पठन-पाठन का माहौल स्थापित किया। वहाँ के बच्चे सुबह-सुबह ताड़ी पीने पहुँच जाते थे उनको समझा बुझाकर, दंडित करके सुधारने का काम किया। हॉस्टल, मेस सब जगह अव्यवस्थाएं थीं और जो लोग उनसे लाभ उठा रहे थे वे नन्द जी की राह में बाधाएं डाल रहे थे। नन्द जी ऐसे लोगों के सामने झुकने वाले नहीं थे। वे अपने साथ रिश्ते के दो मजबूत बंदूकधारी लेकर चलते और मजबूत इच्छाशक्ति से दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के हित में कार्य करते।

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मुझे उनके साथ लगातार 5 सालों तक (1996-2001) तक दृष्टिबाधित इंटर कालेज परिसर स्थित वर्कशाप में 4 जनवरी को लुई ब्रेल का जन्मदिन और 6 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि मनाने का अवसर मिला। विदयार्थियों का समूह सामूहिक गायन और वादन करके स्वरचित गाने और कविताएं सुनाते और लुई ब्रेल को सम्मान सहित याद करते। उस समय तक मैंने हेलेन केलर का नाम नहीं सुना था। लेकिन बाद में तो उन लोगों के बारे में इतना जान गया जैसे मैं उन लोगों को साक्षात देखा हो।

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सन 2006 में जेएनयू कैंपस जाकर कावेरी हॉस्टल में रहने के दौरान सभी तरह के विकलांग सहपाठियों के साथ मुझको रहने का मौका मिला। वहाँ के सेंट्रल लाइब्रेरी में हेलेन केलर यूनिट थी जिसमें अंधे विद्यार्थियों को कम्प्यूटर और ईयर फोन से पढ़ाई करने और टाइपिंग करने और सीखने का मौका मिलता।

सेवानिवृत्ति के पहले राजकीय जुबिली इंटर कालेज गोरखपुर के प्रधानाचार्य रहते हुए नन्द प्रसाद यादव ने ग्रामीण छात्रों के लिए बने जर्जर हो चुके एकीकृत छात्रावास को आधुनिक सुविधाओं बाथरूम, पानी की सप्लाई और आरओ से सुसज्जित किया। नए हॉस्टल बनवाए और पठन-पाठन के माहौल को अपने आदर्शवादी मूल्यों और समर्पण की भावना से बेहतर बनाने का प्रशंसनीय काम किया।  नन्द जी अपने पद एवं गरिमा का ध्यान रखते हुए अच्छे कपड़े पहनते, अच्छी तरह से पॉलिश किये हुए काले जूते पहनते, अच्छी क्वालिटी के पर्फ्यूम लगाते, आँखों पर काला चश्मा, हाथ में छूकर समय जानने वाली घड़ी और चलने में सहयोग के लिए सफेद छड़ी लेकर चलते थे।

नन्द जी से जो भी मिला उनकी कभी न मिटनेवाली याद के साथ वापस गया। उनका जीवन यह बताता है कि भौतिक सीमाएं तभी तक बाधक हैं जब तक आपकी इच्छाशक्ति उसके आगे घुटने टेके रहती है लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति के आगे वे स्वतः एक ताकत बनने लगती हैं।

 

डॉ. राकेश कबीर
डॉ. राकेश कबीर
राकेश कबीर जाने-माने कवि-कथाकार और सिनेमा के गंभीर अध्येता हैं।

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