पटना, कलकत्ता, दिल्ली में रहने के बावजूद डॉ. सिंह का सबसे गहरा लगाव झारखंड ओर वहां के आदिवासियों से रहा, खासकर मुंडाओं से। यह उनके जीवन का पहला प्रेम था जिसे वे आजीवन छोड़ नहीं पाए। कम लोग जानते हैं कि डॉ. सिंह को मुंडारी भाषा बहुत अच्छी तरह आती थी। मुंडारी में उनकी दो रचनाएं मिलती हैं जो वास्तव में मुंडारी में दिए गए उनके भाषणों का लिपिबद्ध रूप है।
फुले के मुताबिक देश में मुस्लिम विरोधी भावनायें फैलाने में भी इन्हीं का हाथ था। इन ब्राह्मण संतों ने ‘अपने उन ग्रंथों के द्वारा किसानों के मन इतने गुमराह कर दिये कि वे कुरान और मुहम्मदी लोगों को नीच मानने लगे हैं, उनसे नफरत करने लगे हैं।

फुले ने वरकारी के ब्राह्मण संतों द्वारा दलित शूद्रों को सिर्फ धर्म और भक्ति के क्षेत्र में स्थान देने (और बाकी समाज में वर्णाश्रमधर्म को जारी रखने) के प्रयत्न को इसके ऐतिहासिक संदर्भ में देखा तो उन्हें लगा कि इस उदारता के पीछे एक कारण इस्लाम है। फुले ने भागवतधर्म के आंदोलन में मुस्लिम विरोध को छुपा हुआ देखा और दलित शूद्रों के प्रति ब्राह्मण संतों की उदारता को उनकी धूर्तता बतलाया। इस ऐतिहासिक संदर्भ का जिक्र करते हुए उन्होंने पूछा कि जब देश में मुसलमान आये और इस्लाम फैलने लगा, सिर्फ तभी इन ब्राह्मण साधुओं को दलित शूद्रों की याद क्यों आयी? उससे पहले कभी क्यों नहीं आयी?

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।