इस देश की लचर कानून व्यवस्था और प्रशासन पर ब्राह्मणवादी, सामंतवादी और जातिवादी प्रभाव ने बहुत से निर्दोषों को अपराधी बनाकर नरक में जीने को मजबूर कर दिया है। बरसों चार्जशीट दाखिल किए या पर्याप्त सबूत बिना लोगों को जेल में सड़ा दिया जाता है। प्रायः प्रभावशाली लोगों के दबाव में मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है। बनारसी मुसहर के मामले में फंसाए गए रामप्रीत नट का मामला भी बुरी तरह उलझ गया है। इस हत्याकांड के पीछे के वास्तविक कारण न सिर्फ गुम कर दिये गए बल्कि रामप्रीत नट हत्या का अपराधी बना दिया गया है। इस मामले की सही जाँच होगी तो कई नए पहलू सामने आएंगे।
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जनपद के फाजिलनगर ब्लाक के कोइलसवा गाँव में पिछले वर्ष 24 मई की सुबह उस समय हडकंप मच गया जब गाँववालों ने दो व्यक्तियों को सड़क की दो तरफ गिरा पाया। एक व्यक्ति में थोड़ी-बहुत सांस चल रही थी जबकि दूसरे का सर धड़ से अलग कर दिया गया था और ऑंखें भी फोड़ डाली गयी थीं। पहचान करने पर पता चला कि मृतक व्यक्ति का नाम बनारसी मुसहर था और वह कोइलसवा गाँव के निवासी थे। घायल व्यक्ति की पहचान रामप्रीत नट के रूप में हुई। दोनों व्यक्ति पारिवारिक मित्र थे और शाम को बनारसी के घर से राज कुमार जायसवाल के खेत की ओर गए थे जहाँ वह सीरमाई करते थे। सीरमाई एक प्रकार का कॉन्ट्रैक्ट लेबर है। बनारसी रात को 10 एकड़ की उस जमीन की देखभाल करते थे और उसे कृषि योग्य बना चुके थे। इसके एवज में उन्हें एक एकड़ जमीन पर ‘अपने’ लिए खेती करने की अनुमति दी गयी थी।
सुबह करीब आठ बजे गाँव के प्रधान केशव यादव ने तुरंत पुलिस बुलाया और शव का पंचनामा करवाकर पुलिस उसे पोस्टमॉर्टेम के लिए ले गयी। रामप्रीत नट बुरी तरह से घायल थे इसलिए उन्हें गोरखपुर मेडिकल कालेज में भर्ती करवा दिया गया। बाद में पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही शुरू कर दी और तुरंत ही इस नतीजे पर पहुँच गयी कि रामप्रीत और बनारसी ने शाम को ताड़ी पी और किसी बात पर उनके बीच कहा-सुनी हुई जिसके चलते उनमें भयंकर हाथापाई हुई । इस प्रक्रिया में बनारसी मारे गए और रामप्रीत घायल हो गए। रामप्रीत का इलाज बहुत दिनों तक चला। उसके दिमाग पर गंभीर चोट है।
कोइलसवा गाँव के मुसहर बस्ती के लोगों ने मुझे बताया कि बनारसी की हत्या के खिलाफ ज्ञापन देने कोरोना के समय करीब 10 जीप भर कर गाँव के लोग जिला मुख्यालय में जा रहे थे कि पुलिस ने उन्हें रोक दिया और फिर हमारा मांगपत्र पत्रपेटिका में डलवाकर उन्हें वापस भेज दिया। गाँव के गरज मंडल का कहना था कि पुलिस ने उनका साथ नहीं दिया और वह ग्राम प्रधान केशव यादव के कहे अनुसार ही काम कर रही थी। गाँव की ही कुंती देवी ने कहा कि मीडिया ने भी गलत खबरों को प्रचारित करके निर्दोष को जेल भेज दिया और असली गुनाहगारो को बचा रही है।
बनारसी मुसहर की पत्नी राजमती देवी कहती हैं रामप्रीत नट उनका पति के दोस्त थे और दोनों एक साथ ही घर से निकले थे। वह अपने परिवार के साथ ही इसी गाँव में रहते थे। आखिर वो ऐसा क्यों करेंगे? बनारसी के पुत्र कहते है कि उनके पिता रामप्रीत से ज्यादा हट्टे-कट्टे थे और यदि दोनों में कोई लड़ाई होती तो उनके पिता आराम से रामप्रीत को पीट सकते थे। उनका यह भी कहना था कि यदि दोनों ने ताड़ी पीकर आपस में लड़ाई की होती तो स्कूल के पास सड़क पर आकर ये काम नहीं करते क्योंकि वह कार्य उस स्थान पर भी हो सकता था जहाँ बनारसी मुसहर सीरमाई करते थे।
राजमती देवी का कहना है कि उनके पति ने लगभग सात साल राशन की दुकान ( कोटे की दुकान ) चलाई जिससे यहाँ के बड़े लोग बहुत नाराज रहते थे। गाँव के वर्तमान प्रधान केशव यादव ने उनके कोटे की दुकान के खिलाफ अभियान चलाया और अंत में अपने जमीन गिरवी रख कर भी बनारसी ने लड़ाई लड़ी लेकिन वह हार गए। अब वो दुकान एक यादव बिरादरी के व्यक्ति के पास है। मुसहर व्यक्ति का कोटे की दुकान रखना बड़ी जातियों को स्वीकार्य नहीं था। बनारसी मुसहर बहुत खुद्दार थे और केस हारने के बाद उन्होंने फिर से गाँव के ही राज कुमार जायसवाल के यहाँ सीरमाई पर खेत लिया। वह 10 एकड़ के उनके प्लाट की देख-रेख करते और एक एकड़ पर खेती कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते।
श्रीमती राजमती देवी कहती है के उन्हें बेहद अफ़सोस है कि राजकुमार जायसवाल ने उनके पति की हत्या के बाद से उनके परिवार से बात तक नहीं की। आज वे सभी उस जमीन तक नहीं जा सकते जो बनारसी मुसहर ने बड़ी मेहनत से कृषि योग्य बनाई और उनके बोये हुए पौधे और पेड़ बन चुके है। भारतीय वर्णवादी जातिवादी व्यवस्था का इससे बड़ा नमूना क्या हो सकता है कि जिसकी जमीन को हरा किया वही समय आने पर चुप है और अपने यहाँ काम कर रहे व्यक्ति के परिवार को किसी भी प्रकार की मदद करने से इनकार कर दिया ?
रामप्रीत नट की पत्नी कमलावती बीमार है। उसकी एक किडनी निकाल दी गयी है क्योंकि वह ख़राब हो चुकी थी। उसके परिवार में छोटे बच्चे हैं। रामप्रीत के परिवार में अधिकांश लोग मूक बधिर हैं और उनके पिता भीख मांगकर ही अपनी पुत्रवधू और बच्चों को पाल रहे है। मूलतः वह बिहार के गोपालगंज जिले के कौलाचक गाव के निवासी हैं। परिवार बिलकुल भूमिहीन है और बच्चे खाने-खाने को मोहताज हैं। कमलावती कहती है कि उसके पति की किसी से दुश्मनी नहीं थी। उनके पास न जमीन थी न सम्पत्ति। वह आगे कहती है कि हम परिवार की तरह साथ रह रहे थे इसलिए वो क्यों ऐसा काम करेंगे? वह कहती है कि रामप्रीत को तो बनारसी के साथ रहने की सजा मिली है। शायद बनारसी के दुश्मन जब उन्हें मार रहे होंगे, तब साथ देखकर रामप्रीत पर भी हमला किया गया ताकि सभी सबूत मिट जाएँ।
बनारसी मुसहर और रामप्रीत नट के परिवार साथ-साथ है और न्याय की गुहार लगा रहे हैं। दोनों का दर्द बहुत बड़ा है। मुसहर और नट दोनों ही हाशिये का समाज हैं। दोनों सामंतवादी, जातिवादी शक्तियों का शिकार बने हैं। इस घटना पर मैंने दोनों परिवारों और मुसहर समाज के लोगों के साथ बातचीत के आधार पर एक फिल्म बनाई है – बनारसी मुसहर के हत्यारे कौन?
रामप्रीत नट की जिंदगी तब तक आधार में लटकी रहेगी जब तक इसका जवाब नहीं मिलता !
ये कानून ही इस बात को साबित कर देता है की सरकारी स्कूल के पुर्निर्माण की कोई जरूरत नहीं है अन्यथा शिक्षा तो मौलिक अधिकार पहले से ही है जरूरत इस बात की थी कि सरकारी स्कूलों को इतना दुरुस्त कर दिया जाता की कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रह जाता दूसरी बात 6 साल से कम उम्र के लाखों बच्चों को वैसे ही भगवान भरोसे छोड़ दिया है बड़ी योजना के साथ।