Saturday, April 20, 2024
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क्या आप होलिका को भारतीय नारी नहीं मानते?

ब्राह्मणवाद की सबसे भयानक करतूत यह है वह हजारों मूर्खतापूर्ण कहानियों को धर्म की चाशनी में लपेटकर लोगों के दिमाग तक उतारने में सफल रहा है। इन कहानियों का कितना संक्रामक असर हुआ है इसे हिन्दू धर्म के उन व्यवहारों में देखा जा सकता है जो, क्रूरता, अश्लीलता और वीभत्सता के बावजूद लोगों के धार्मिक […]

ब्राह्मणवाद की सबसे भयानक करतूत यह है वह हजारों मूर्खतापूर्ण कहानियों को धर्म की चाशनी में लपेटकर लोगों के दिमाग तक उतारने में सफल रहा है। इन कहानियों का कितना संक्रामक असर हुआ है इसे हिन्दू धर्म के उन व्यवहारों में देखा जा सकता है जो, क्रूरता, अश्लीलता और वीभत्सता के बावजूद लोगों के धार्मिक व्यवहार में शामिल हो चुका है। हर कृत्य के पीछे एक कहानी है और विडम्बना यह है कि जिस कथा में जितनी अधिक क्रूरता और वीभत्सता है उसके पीछे की कहानी भी उतनी ही चतुराई से बुनी गई है। ऐसी ही एक कहानी होली की भी प्रचलित है जो हिन्दुओं में त्योहार के रूप में ढोल-नगाड़ों के साथ मनाई जाती है।

नास्तिक महाबली अनार्य राजा हिरण्यकश्यप का नालायक पुत्र प्रह्लाद नशेड़ी, गँजेड़ी और मानसिक गुलाम भगवान का भक्त था। स्वाभाविक है, राजा के साथ षड्यंत्र कर, बाप-बेटे में दुश्मनी पैदा कर दी गई होगी, जो आजकल भी कुछ परिवारों में देखने को मिल जाया करती है।

बड़ी धोखेबाज़ी से कपोल-कल्पित कथा बुनी गई कि होलिका को वरदान था कि वह आग से नहीं जलेगी और यदि प्रह्लाद भगवान का सच्चा भक्त होगा तो उसे भी कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, (आज के वैज्ञानिक युग में सच्चा भगवान-भक्त और वरदान जैसी दोनों बातें पूर्णतया धूर्ततापूर्ण और मनगढ़ंत साबित हो गई हैं। यदि कोई ऐसा नहीं मानता है, तो प्रह्लाद की तरह आज कोई सच्चा भगवान-भक्त यह साबित करके दिखाए)। कथा है कि वरदानी होलिका (बुआ) प्रह्लाद (भतीजा) को गोदी में लेकर आग में बैठ गई। आग लगाई गई तब 99% मूर्ख जनता तमाशबीन बनी देख रही थी। सबके सामने होलिका जल मरी और प्रह्लाद बिना किसी नुकसान के सकुशल हंसते-नांचते बाहर आ गया। होलिका के मरने और प्रह्लाद के बचने की सभी लोगों ने उस समय खुशियां मनाई। नांच गाने के साथ एक-दूसरे पर रंग और गुलाल लगाते हुए  मिठाइयों का खूब आनंद लिया था। सबसे बड़ी बात कि पता नहीं क्यों, आजतक उसी आनंद में सभी मस्त हैं। लेकिन वरदान तो फेल हो गया? इस पर विचार कौन करेगा?

(आज यदि ऐसी घटना हो जाए तो सभी तमाशबीन मूर्ख जेल की सलाखों के अंदर चले जाएंगे।)

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यह मनगढ़ंत कहानी सिर्फ और सिर्फ भगवान के अस्तित्व को सही साबित करने के लिए रची गई थी। इस तरह की मनगढ़ंत कहानियां आज भी कई रूपों में देखने-सुनने को मिल रही हैं, जैसे अभी कोरोना लाकडाउन समय में, सोशल मीडिया में औरतों द्वारा कोरोना माई की पूजा करते देखने को मिली। सुनने को भी मिला कि इस कोरोना माई (देवी) को गाय माता ने कोरोना रोग को ठीक करने के लिए पैदा किया है।

क्या हम लोग इस वैज्ञानिक युग में इतने मूर्ख हैं कि इस तरह की काल्पनिक कहानियों को सत्य मान बैठे हैं? और एक मां, बहन, बेटी को जिंदा जलाने का जश्न, त्योहार के रूप में मनाते हैं? आप पता लगाइए, पूरे विश्व में कहीं भी, किसी भी संप्रदाय में, किसी भी तरह की मौत का जश्न नहीं मनाया जाता है? यहां तक कि खूंखार आतंकियों के मारे जाने का भी नहीं। क्या ओसामा बिन लादेन के भी मरने का कोई जश्न मनाता है?

कम से कम उन परिवारों के लोगों को होलिका बहन के जिन्दा दहन के दर्द का एहसास तो होना चाहिए, जिन परिवारों की बहन-बेटियों को दहेज लोभियों ने जिन्दा जलाकर मार डाला है। अभी दो साल पहले मैंने अपने एक धार्मिक दोस्त को होलिका मनाने की तैयारी करते समय मजाक में ही कह दिया था कि एक औरत को जिंदा जलाने में तुम्हें कुछ अपराधबोध नहीं होता है? उसने हंसते हुए कहा, अरे पहले से परम्परा चली आ रही है। चार महीने बाद ही उसकी पत्नी को कैंसर हो गया और उसके दिमाग में बैठ गया कि यह होलिका दहन के कारण हुआ है।

सिर्फ अपराध करना ही पाप नहीं है, वैसी गलत सोच रखना भी अपराध है। इंसान अपराध से भोगता है, लेकिन शायद पहले सोचता नहीं, सिर्फ नसीब को कोसता है।

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ठीक है, चलो, होलिका दहन के बहाने ही कुछ पागलों की बात मान लेते हैं। यह आज भी देखने को मिल रहा है। बलात्कार या बलात्कार के बाद सबूत मिटाने के लिए लड़की को जिंदा जला दिया जाता है। कभी-कभी सुनने को मिलता है कि आपसी कलह के कारण, पति ने पत्नी को भी जलाकर मार डाला आदि कई तरह की घटनाएं और उस अपराध को छिपाने के लिए मनगढ़ंत दुर्घटनाओं का अंजाम दे दिया जाता है। अभी हाल ही की बात है, हाथरस की पुलिस ने मनीषा के साथ ऐसा ही बर्ताव किया था।

थोड़े समय के लिए मानता हूं कि पागलपन में जलाकर मारने वाला खुशियां मनाएगा। लेकिन क्या पूरा समाज भी यह करेगा? अरे लानत है ऐसे खुशी मनाने वाले समाज पर! क्या आज भी यदि आपकी मां, बहन, बेटी जलाई जाती है तो आप खुशियां मनाते हैं? क्या होलिका किसी की मां, बहन, बेटी थी कि नहीं। यदि थी, जिसकी थी, तो वह बेशर्म, बेवकूफ क्यों खुशियां मनाता है? होलिका दहन के समय हमने किसी एक को भी, कहीं रोते-बिलखते नहीं देखा है।

यदि आप थोड़ी भी समझ रखते हैं तो आप यह बताइए कि क्या सचमुच में होलिका भारतीय हिंदू नारी थी? या कोई और थी? यदि भारतीय नारी थी, तो क्या हम इतने पागल लोग हैं कि हमें अपनी मूर्खता का एहसास तक नहीं होता है?

यदि आप में भारतीय नारी के प्रति सम्मान की भावना है तो आज से प्रतीज्ञा करें कि हम होलिका के दहन जैसे जघन्य अपराध के त्योहार को नहीं मनाएंगे और दूसरे मनाने वालों का विरोध भी करेंगे।

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4 COMMENTS

  1. Haramkhor pilla hai tu. Apne apko accha batane ke liye kisi ko nicha nahi dikhana padta. Tu nali ka kida hai tabhi ye sab karna pad raha.

  2. Jis bhi vardan ka durupyog hua wo vardan viphal hua, vardan isliye nahi diya jata tha ki apne svrth ki poorti Karo ya dosro ka nuksan Karo.
    Galat koi bhi kare mard ya aurat, parinam to bhugtana padta hain. Aurat agar paap kare to saza milini hain. Aaj Jo bhi ho raha hain ,is kalyug main aisa hi hona tha. Adhram par chalne walo ka vinash hi hona chiye. Sanatan dhram main bina karan kutch nahi hota. Pahale poora aache se padho, samjho aur phir bolo.
    Har Har Mahadev🙏🙏

  3. Yadav ji, aap kab se sudra ho gaye ?? Bhai sahab sabse jyada cases sc community par aapke hi bande karte hain. Khair rajnaitik fayde or foot paida karne ke liye aap jaise log kitna bhi neeche gir sakte hain. Par asal moorkh wo hai jo aapki baato par kuch bhi yakeen kare.

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