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ग्राउंड रिपोर्ट

मीरजापुर : PMSGY योजना के इंतज़ार में है मनऊर गाँव के ग्रामीण

उत्तर प्रदेश के वाराणसी, चंदौली जनपद से लगा हुआ मिर्ज़ापुर जिले का जमालपुर विकास खंड के मनऊर गाँव के सड़क की हालत इतनी खराब है कि स्कूल पहुँचने के बाद बच्चे कीचड़ से लथपथ हो जाते हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत आज तक इस गाँव में सड़क बनने की कोई योजना नहीं पहुँच पाई है। विकास की बात करने वाली सरकार अपने किए काम का बहुत ज़ोर-शोर से प्रचार करती है। जैसे 2014 के बाद ही वाराणसी को क्योटो बनाने और 100 स्मार्ट सिटी बनाने की योजना थी। लेकिन 10 वर्ष बाद भी बनारस क्योटो नहीं बन सका बल्कि 1 घंटे की बारिश में रास्ते जलमग्न हो जाते हैं।

मीरजापुर जिले के मनऊर गांव के ग्रामीण अपने गाँव की सड़कों की तरफ देखते हुए कहते हैं कि प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (PMGSY) कब आएगी? क्योंकि यहाँ सात बरस की सुमन और इसके जैसे दूसरे बच्चों का पीठ पर बैग टांगे स्कूल पहुँचने की हड़बड़ी में कीचड़ से बचते हुए, तेजी से स्कूल जाने का दृश्य रोज का है। हल्की-हल्की बारिश के बीच वे किसी तरह  स्कूल तो पहुंच जाते हैं, लेकिन उनके पांव कीचड़ से सनकर लथपथ हो जाते हैं और कपड़ों पर भी कीचड़ के दाग दिखाई देते हैं। हर बच्चे की स्थिति यही है।

गांव में मुराहु सिंह इंटर कालेज मनऊर एवं प्राथमिक विद्यालय मनऊर स्थित है। प्राथमिक शिक्षा से इंटरमीडिएट तक की बच्चे कीचड़ भरे रास्ते से स्कूल जाते हैं, मात्र दो मिनट की बरसात में ही कमल खिलाने के लिए कीचड़ तैयार हो जाता है।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी, चंदौली जनपद से लगा हुआ मिर्ज़ापुर जिले का जमालपुर विकास खंड का यह इलाक़ा काफी समृद्धशाली माना जाता है क्योंकि यहाँ की जमीनें धान की खेती के लिए बहुत उपजाऊ हैं। लेकिन इसके बाद भी इस विकासखंड में बुनियादी जरूरतों का पर्याप्त अभाव है। इसी विकास खंड क्षेत्र अंतर्गत मनऊर गांव है।

यह जमालपुर विकासखंड मुख्यालय से 12 किमी दूर, जिला मुख्यालय से 75 तथा वाराणसी से 35 किमी दूर जबकि  चंदौली जिले के चकिया तहसील की सीमा से ढ़ाई किमी दूर यह गांव स्थित है।

1800 आबादी वाले इस गाँव में पटेल और बियार समाज के लोगों की अधिकता है। गाँव के रास्ता कच्चा होने की वजह से बरसात के दिनों में यहाँ आने-जाने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है।

मनऊर गाँव के ग्रामीण क्या कहते हैं

मनऊर गाँव में जलभराव के लिए कई बार आवाजें उठाई जा चुकी है लेकिन डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी सांसद-विधायक दोनों ही यहाँ की समस्या को लेकर उदासीन हैं।

मनऊर गांव निवासी रमेश चौधरी गांव की बदहाली पर चर्चा करते हुए आवागमन होने वाली कठिनाई पर नाराजगी जाहिर करते हैं कि ‘गांव की कच्ची सड़क पर कीचड़ से सने हुए रास्ते से गुजरते हुए बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं- यदि यहाँ से कांवर यात्रा गुजरती तो रास्ता भी दुरुस्त हो गया होता, कांवरियों पर फूल भी बरसते लेकिन यहाँ तो गाँव के पिछड़े-दलित समाज के गरीब बच्चे स्कूल जाते हैं। उनके लिए सरकार कोई व्यवस्था नहीं करती है। बजट में तो सड़क, पानी और बिजली को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएँ होती है, करोड़ों का पैसा आबंटित होता है लेकिन कहाँ जाता है? किस जगह का विकास होता है? नहीं पता। सब विकास कागजों पर होता है।’

उन्होंने बताया कि घर से तैयार होकर निकलने वाले बच्चे स्कूल पहुँचते तक कपड़े से लेकर शरीर पर बरसाती पानी व कीचड़ के छींटों से बदरंग हो जाते हैं।

ग्रामीण बोलते हैं कीचड़ और जलजमाव का दृश्य प्राथमिक विद्यालय मनऊर गेट से लेकर इंटर कालेज के गेट तक देखने को मिलता है। बच्चों को थोड़ी ही बरसात में भी दीवार पकड़ कर स्कूल जाना पड़ता है। यदि यह ऐसा न करें तो कब और कहां फिसलकर गिर जाए, कहा नहीं जा सकता है।

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मनऊर गांव निवासी रमेश चौधरी

जमालपुर विकास खंड क्षेत्र निवासी पत्रकार आजाद सिंह कहते हैं, ‘सरकार गांवों के विकास की बात तो करती है, उसके लिए बजट भी आता है। कितना काम हुआ यह कभी जानने के कोशिश नहीं करती। कारण विकासपरक योजनाएं बंदरबांट की भेंट चढ़ कर रह जाती है।

बच्चों के अभिभावक का कहना है कि बच्चों को स्कूल जाने से रोका नहीं जा सकता, इस क्षेत्र में यही एक स्कूल है, जहां भेजना मजबूरी है। नहीं भेजने पर बच्चे की पढ़ाई पर असर पड़ता है। यही लाचारी है कि जोखिम लेकर भी बच्चों को भेजने के लिए विवश है।

देश के बड़े शहरों में जलजमाव आम समस्या है तब मनऊर तो गाँव है  

मनऊर गाँव में सड़क तो है ही नहीं लेकिन जो गड्ढे हैं, वही सड़क बने हुए हैं। जल निकासी के लिए नाली का बंदोबस्त न होने से कीचड़ और जलजमाव होता है।

जलजमाव की समस्या पूरे देश में है चाहे वह मेट्रो शहर हो या फिर कोई शहर स्मार्ट सिटी की श्रेणी में ही क्यों न आ गए हों। इसके लिए हमारा सिस्टम जिम्मेदार है। ठेका मिलने के बाद ठेकेदार को सबको तय कमीशन देना होता है और इस वजह से निर्माण कार्य की गुणवत्ता प्रभावित होती है। उसके बाद खानपूर्ति के लिए सड़क के नाम पर लीपा-पोती करने के अलावा कोई काम नहीं करते।

देश की आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने पर चल रहे यह अमृत महोत्सव काल का है। जब प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में गांवों के चहुंमुखी विकास की बात कही। जिन्होंने गांव की सड़कों को मुख्य मार्गों से जोड़ने की वकालत की है।

गाँव वालों का कहना है कि कांवड़ियों के लिए सड़कें तुरंत बनती हैं 

देश में विकास केवल धर्म के नाम पर हो रहा है। मंदिरों के कॉरीडोर बन रहे हैं, जीर्णोद्धार कर देश के मुखिया उसका भव्य उदघाटन कर रहे हैं। सावन के महीने में कांवरियों को विशेष सुविधा देकर उत्पात मचाने की शह दी जा रही है। लेकिन आम जनता बरसों से अभाव में रहने को मजबूर है। उसे आधारभूत सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ता है।

द सनडे गार्जियन में 21 जुलाई को आई एक खबर के मुताबिक- नोएडा प्राधिकरण के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पीडब्ल्यूडी ने जिले में दो कांवड़ मार्गों पर 37 किलोमीटर लंबी सड़क को गड्ढा मुक्त कर दिया है। इसके अलावा, 519 अस्थायी स्ट्रीट लाइटें लगा दी गईं। अधिकारियों ने मार्गों पर 101 हैंडपंप, 14 पेयजल टैंकर, 17 अस्थायी शौचालय और 12 बाथरूम भी स्थापित किए हैं। सफाई बनाए रखने के लिए तीन शिफ्टों में कुल 144 सफाई कर्मचारी तैनात किए जाएंगे।

दूसरी खबर 13 जुलाई, 24 के जागरण के अनुसार कांवड़ियों के पैदल चलने की सुविधा के लिए वेस्ट यूपी में 1068 किलोमीटर की सड़कों के मरम्मत का काम 15 जुलाई तक पूरा होना था लेकिन 992 किमी तक ही सुधार हुआ। लोकनिर्माण विभाग द्वारा हुई लापरवाही को प्राथमिकता से अखबार में जगह दी गई।

इस काम के लिए बाकायदा दो महीने पहले से योजनाएँ बनाई जाती हैं लेकिन आम जनता के लिए जो योजनाए बरसों पहले बनाई जाती हैं, उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है।

ये मात्र दो खबरें हैं लेकिन सरकार ने लिखित आदेश निकालकर कांवड़ियों के लिए सड़क, सुरक्षा, मुफ्त रहने-खाने की विशेष व्यवस्था के लिए प्रशासन को आदेश दिया था। लेकिन गाँव-गाँव में सड़कों का हाल बेहाल है।

गाँव वालों का कहना है कि यदि इस रास्ते पर कांवाड़ियों को जाना होता तो सड़कें भी बन गई होती और उनपर फूल भी बरसाए जाते लेकिन यहाँ गरीबों के बच्चे सरकारी स्कूल में जाते हैं इसलिए इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता ।

मनऊर गाँव में कब पहुंचेगी PMSGY

प्रधानमंत्री सड़क योजना का चौथा चरण शुरू हो चुका है, जिसमें अलग-अलग परियोजनाओं में 26 हजार करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। और इस परियोजना में 25 हजार किलोमीटर सड़क बनेगी।

इन सड़कों को बनाने में केंद्र और राज्य सरकार दोनों का सहयोग होता है। प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत आने वाले शहरी इलाकों के गाँव के लिए 500 से ज्यादा आबादी वाले और पहाड़ी इलाकों में 250 से अधिक आबादी वाले गांवों में   प्राथमिकता के साथ किया जाएगा।

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दीवार का सहारा लेकर कीचड़ से बचते हुए मनऊर प्राथमिक विद्यालय जाते हुए बच्चे

विकास की बात करने वाली सरकार अपने किए काम का बहुत ज़ोर-शोर से प्रचार करती है। जैसे 2014 के बाद ही वाराणसी को क्योटो बनाने और 100 स्मार्ट सिटी बनाने की योजना थी। लेकिन 10 वर्ष बाद भी बनारस क्योटो नहीं बन सका बल्कि 1 घंटे की बारिश में रास्ते जलमग्न हो जाते हैं।

कहने को तो सरकार गांवों के विकास के लिए (केवल कागज पर) पानी की तरह पैसा बहा रही है, लेकिन बरसात होने के बाद गांवों में सड़क मार्ग की बदहाली विकास की सारी कहानी सामने ले आता है। मीरजपुर जिले के चुनार तहसील के जमालपुर विकास खंड का मुख्यालय का करीबी गांव होने के बाद भी विकास से महरूम दिखाई देता है। ग्रामीणों को इंतज़ार है सड़कों का।

उनका कहना है काश! मनऊर गांव की सड़कें भी कांवड़ियों के चलने वाले रास्ते में आती ।

संतोष देव गिरि
संतोष देव गिरि
स्वतंत्र पत्रकार हैं और मीरजापुर में रहते हैं।

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