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भोपाल गैस त्रासदी के चार दशक बाद भी नहीं भूलती वह भयानक रात

भोपाल (भाषा)। विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक हादसों में से एक की त्रासदी भोपाल शहर में 1984 में 2-3 दिसंबर की मध्य रात्रि में झेली थी। भोपाल गैस कांड एक ऐसा औद्योगिक हादसा था, जिसकी पीड़ा लाखों लोगों ने झेली। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 2 और 3 दिसंबर की रात यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड […]

भोपाल (भाषा)। विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक हादसों में से एक की त्रासदी भोपाल शहर में 1984 में 2-3 दिसंबर की मध्य रात्रि में झेली थी। भोपाल गैस कांड एक ऐसा औद्योगिक हादसा था, जिसकी पीड़ा लाखों लोगों ने झेली। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 2 और 3 दिसंबर की रात यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के कीटनाशक संयंत्र में मिथाइल आइसोसाइनेट यानी एमआईसी गैस लीक हो गई थी। इस जहरीली गैस के संपर्क में आने से लाखों लोग प्रभावित हुए थे। करीब 3 हजार 787 लोगों की तत्काल मौत हो गई थी।

मध्यप्रदेश की राजधानी में दो दिसंबर 1984 की सर्द रात को यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस के रिसाव ने न केवल यहाँ हजारों लोगों की जान ले ली थी, बल्कि त्रासदी के 39 साल बाद भी यह जीवित बचे लोगों को एक भयंकर सपने की तरह याद है। इस हादसे के बाद यह कारखाना बंद किया जा चुका है।

दो और तीन दिसंबर, 1984 की मध्यरात्रि को कीटनाशक कारखाने से जहरीली गैस के रिसाव के बाद कम से कम पांच लाख से अधिक लोग शारीरिक रूप से प्रभावित हुए। गैस पीड़ित और रेलवे के सेवानिवृत्त मुख्य आरक्षण अधीक्षक महेंद्रजीत सिंह (79) ने शनिवार को पीटीआई-भाषा को बताया कि हादसे वाली दो दिसंबर की रात को मैं डर से कांप उठा। मैंने उस ठंडी रात में लोगों को मरते हुए देखा था। उस रात लगभग दो बजे मेरा परिवार सो रहा था, जब यूनियन कार्बाइड कारखाने से कुछ ही दूरी पर स्थित रेलवे कॉलोनी में लोगों की चीख-पुकार ने हमें जगाया। हम घर से बाहर भागे और कारखाने से निकलने वाली गैस से बचने के लिए स्कूटर से और पैदल भागे।

ऑल इंडिया रिटायर रेलवेमेन फेडरेशन वेस्टर्न ज़ोन के अध्यक्ष सिंह ने कहा, उनके परिवार ने उनके घर से चार किमी दूर एक होटल में रात बिताई। कुछ साल बाद, सिंह ने अपनी मां और छोटे भाई को खो दिया जो जहरीली गैस के संपर्क में आए थे। गैस रिसाव के तीन दिन बाद, मैंने देखा कि हमारे घर के पास एक पीपल के पेड़ की पत्तियां गिर गई थीं और वह मृत और बेजान दिखाई दे रहा था।

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उन्होंने कहा कि शहर के अन्य हिस्सों में भी पेड़-पौधों पर जहरीली गैस का असर देखा गया। त्रासदी के बाद, ऐसी अफवाहें थीं कि फैक्ट्री से बची हुई जहरीली गैस निकलेगी। ऐसी अपुष्ट खबरों को देखते हुए हमने पड़ोसी होशंगाबाद जिले में शरण ली। पूर्व रेलकर्मी ने कहा कि उन्होंने इस त्रासदी में अपने कई सहयोगियों को खो दिया है और जो बच गए, वे बीमारियों, विशेषकर सांस लेने की समस्याओं के साथ जी रहे हैं।

सेवानिवृत्त सहायक स्टेशन मास्टर रामबली प्रसाद वर्मा (83) ने कहा कि वह भाग्यशाली थे कि आपदा से बच गये। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री की चारदीवारी के पास स्थित रेलवे केबिन में मेरी ड्यूटी 2 दिसंबर की रात 10 बजे खत्म हो गई। आधी रात के आसपास, जब फैक्ट्री से गैस लीक हुई, तब वर्मा रेलवे स्टेशन के पास रेलवे कॉलोनी में अपने घर पर थे। जहरीली गैस से बचने के लिए हम इधर-उधर भागे और हमें कुछ दूर स्थित सेना के वाहन में शरण मिली।

वर्मा और उनका परिवार दिन निकलने पर घर लौट आए, लेकिन कुछ घंटों बाद फिर से अपना घर छोड़ना पड़ा क्योंकि ऐसी अफवाहें थीं कि बची हुई जहरीली गैस तीन दिसंबर को सुबह 11 बजे के आसपास फिर निकाली जायेगी। इसके बाद वर्मा का परिवार इंदौर चला गया और चीजें ठीक होने पर वापस लौटा था। बुजुर्ग ने कहा कि जब मैं उस ठंडी रात के बारे में सोचता हूं, तो मैं कांपने लगता हूं। गैस के संपर्क में आने के कारण मुझे सांस लेने में दिक्कत आती है और दमा हो गया है।

NDTV के अनुसार, इस आपदा की 39वीं बरसी से एक दिन पहले गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन (NGO) ने दावा किया कि सन 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के दौरान गैस रिसाव के संपर्क में आने वाले लोगों में मधुमेह, हृदय रोग, न्यूरोपैथी और गठिया जैसी बीमारियों की आशंका गैर गैस पीड़ितों की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा है।

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