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पंजाब के किसानों ने किया अनोखा काम, अब नहीं होगा पराली से वायु प्रदूषण

बायोमास संयंत्रों, पेपर मिलों और बॉयलर द्वारा पराली की बढ़ती मांग के कारण राज्य में कई किसान ‘बेलर’ खरीद रहे हैं। अक्टूबर और नवंबर महीने में पंजाब एवं हरियाणा में पराली जलाये जाने की वजह से राष्ट्रीय राजधानी में हाल के वर्षों में वायु प्रदुषण में काफी वृद्धि देखने को मिली है।

चंडीगढ़ (भाषा)। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदुषण के लिए जिम्मेदार ठहराये जाने वाली ‘पराली’ अब पंजाब के किसानों के लिए फायदे का सौदा बन गई है। राज्य के कई किसान इसे खेतों में जलाने के बजाय ‘बायोमास’ संयंत्रों और ‘बॉयलर’ को बेचकर लाखों रुपये कमा रहे हैं। इस कार्य के लिए किसानों की काफी सराहना हो रही है।

खेतों में पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण के लिए अक्सर पंजाब के किसानों को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। गुरदासपुर के रहने वाले पलविंदर सिंह उन किसानों में शामिल हैं, जिन्होंने पिछले साल एक ‘बेलर’ खरीदा और फिर उसके जरिये पराली के गट्ठर बनाकर उन्हें कारोबारियों को बेचना शुरू किया। वह बताते हैं कि बेलर, कृषि क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली एक मशीन है, जो ट्रैक्टर से जुड़ी होती है और खेतों में पराली समेट कर उसके गठ्ठर बना देती है।

पलविंदर ने कहा, ‘पिछले साल हमने 1,400 टन पराली बेची थी और इस साल हम 3,000 टन पराली बेचने की उम्मीद कर रहे हैं। मैं आस-पास के गांवों से पराली इकट्ठा करता हूँ और फिर पठानकोट में एक बिजली उत्पादन कंपनी को उसकी आपूर्ति कर देता हूँ। वह बताते हैं कि उन्होंने और उनके सहयोगियों ने एक साल के भीतर अपने निवेश की सारी रकम प्राप्त कर ली है और इस साल 15 लाख रुपये का कारोबार होने की उम्मीद है। वह 180 रुपये प्रति क्विंटल की दर से पराली बेचते हैं।

मलेरकोटला के किसान गुरप्रीत सिंह बेलर की मदद से धान की पराली से कमाई कर रहे हैं। वह बताते हैं कि पिछले साल मैंने 20 लाख रुपये की पराली बेची और सभी तरह के खर्चों को घटाने के बाद सात-आठ लाख रुपये बचाए। पिछले साल 1,200 टन पराली बेची थी और इस साल उनका लक्ष्य 5,000 टन पराली बेचने है।

मालेरकोटला के फिरोजपुर कुथला गांव में 10 एकड़ कृषि भूमि के मालिक गुरप्रीत ने कहा कि इस साल, हमारी योजना जनवरी और मार्च के बीच बेचने के लिए कुछ पराली का भंडारण करने की है। साल के उन शुरूआती महीनों में इसकी कीमत 280-300 रुपये प्रति क्विंटल तक हो जाती है। अभी पराली की कीमत 170 रुपये प्रति क्विंटल है। उन्होंने पिछले साल 600 एकड़ भूमि पर किसानों को पराली जलाने से रोका। इस साल, हम 2,000 एकड़ से अधिक भूमि पर इसे जलाने से रोकेंगे।

बेलर मशीन की बढ़ी डिमांड 

बायोमास संयंत्रों, पेपर मिलों और बॉयलर द्वारा पराली की बढ़ती मांग के कारण राज्य में कई किसान ‘बेलर’ खरीद रहे हैं। अक्टूबर और नवंबर महीने में पंजाब एवं हरियाणा में पराली जलाये जाने की वजह से राष्ट्रीय राजधानी में हाल के वर्षों में वायु प्रदुषण में काफी वृद्धि देखने को मिली है।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि वित्त वर्ष 2020-21 तक, केवल 8 बिजली संयंत्रों में बायोमास पेलेट का सह-दहन हो रहा था, अब इनकी संख्या बढ़कर 39 हो गई है। एनसीआर क्षेत्र में 10 टीपीपी ने सह-दहन शुरू कर दिया है। अब तक देश भर के 39 ताप विद्युत संयंत्रों में कुल 55390 मेगावाट क्षमता के 83066 मीट्रिक टन बायोमास का सह-दहन किया जा चुका है। एनसीआर क्षेत्र में, 22,696 मीट्रिक टन बायोमास का सह-दहन दिया गया है, जिसमें से 95% एनटीपीसी द्वारा किया गया है। इसके अलावा, 99% पीओ का योगदान एनटीपीसी लिमिटेड द्वारा किया गया है। यह सुझाव दिया गया था कि अन्य बिजली उत्पादन कंपनियों को देश में जैव ईंधन सह-दहन के सफल कार्यान्वयन के लिए एनटीपीसी के कदमों पर चलना चाहिए।

बायोमास पैलेट खरीद की बात करें तो कई बिजली संयंत्रों द्वारा बड़ी संख्या में निविदाएं भी मंगाई गई थी। लगभग 106 एमएमटी बायोमास निविदाएं, प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में हैं। इनमें से 35 बिजली संयंत्रों द्वारा 43.47 लाख मीट्रिक टन बायोमास निविदाओं के लिए ऑर्डर दिए जा चुके हैं। इस क्षेत्र में किसानों, पेलेट निर्माताओं और बिजली संयंत्र के अधिकारियों सहित विभिन्न हितधारकों के लिए 25 ऑफलाइन और ऑनलाइन प्रशिक्षण सह जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। वित्त वर्ष 2021-22 में जहां छह महीने की अवधि में 10 ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए गए, वहीं इस वित्तीय वर्ष में छह महीने की अवधि में 15 कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं।

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