योगेंद्र यादव ने कहा कि 2024 का लोकसभा चुनाव अगले 50 वर्षों के लिए देश की दिशा तय करेगा, इसलिए अगले साल होने वाले चुनाव देश के लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने दावा किया कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की ताकत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और भाजपा इससे चिंतित है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मुद्दे अलग-अलग होते हैं और जब वे विधानसभा चुनावों के दौरान मतदाताओं के पास जाते हैं तो वे स्थानीय मुद्दों के लिए जवाबदेह होते हैं, जो उनके (भाजपा) लिए बहुत मुश्किल होगा।
उन्होंने कहा, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का चुनाव सुधारों से कोई लेना-देना नहीं है और इसका मूल उद्देश्य अलग है।’ भाजपा जातिगत जनगणना नहीं चाहती क्योंकि उसे डर है कि इसके परिणाम से विभिन्न जातियों की वास्तविक आर्थिक और शैक्षिक स्थिति सामने आ जाएगी और फिर पार्टी के लिए इसे संभालना मुश्किल हो जाएगा जातिगत जनगणना देश में सामाजिक व्यवस्था का ‘एक्स-रे’ है।’ भाजपा पर निशाना साधते हुए बताया कि देश में मौजूदा स्थिति असीमित अवधि के लिए ‘अघोषित आपातकाल’ जैसी है।
"Challenges of 2024" Sanjeev Sane First Memorial Day Live From Thane, Maharashtra https://t.co/6C0kqmjilU
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) October 28, 2023
स्वराज इंडिया के नेता ने कहा, ‘भाजपा को संघ परिवार का बाहरी संरक्षण प्राप्त है’, जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन को ऐसा संरक्षण प्राप्त नहीं है। उन्होंने कहा कि देश के लोगों को ‘इंडिया’ गठबंधन को समर्थन और ताकत देने की जरूरत है क्योंकि इससे आशा की किरण दिखाई दी है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए कई राज्यों में भाजपा की लोकप्रियता कम हो रही है। ऐसे में उसे 2024 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ सकता है। देश के लोगों के बीच अपनी जगह बनाने के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन को बेरोजगारी, महंगाई, सांप्रदायिक वैमनस्य जैसे मुद्दों से निपटने और महिलाओं एवं किसानों के कल्याण के लिए कदम उठाने की ठोस योजना के साथ उनके पास जाना चाहिए।
देश को एक ‘नए सपने’ की जरूरत है और यह विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ही दे सकता है। उन्होंने कहा कि अगर वे एक भी मुद्दे के साथ सड़कों पर उतरते हैं, तो इससे देश का माहौल बदल जाएगा, केवल संसदीय गठबंधन पर्याप्त नहीं होगा।
उन्होंने लोगों से चुनाव विश्लेषण बंद करने और देश में बदलाव लाने की दिशा में काम करने को कहा। यादव ने दावा किया, 21वीं सदी में लोकतंत्र की ‘हत्या नए स्मार्ट तरीके से की जा रही है।’ मुस्लिमों पर अत्याचार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘लगातार इस तरह का उत्पीड़न बेहद खतरनाक है।’ वर्तमान में जिन अन्य चुनौतियों का सामना किया जा रहा है, उनमें धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और सामाजिक न्याय से संबंधित चुनौतियां शामिल हैं। वर्तमान में हम जो देख रहे हैं वह कॉर्पोरेट और राजनीतिक नेतृत्व संबंधों का नया मॉडल है। कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को इंजन बनाया गया है और बाकी देश उससे जुड़ी बोगियां हैं। उन्होंने बताया कि ऐसा देश में पहली बार हो रहा है।
पिछले 70 वर्षों से बनी सामाजिक न्याय की नींव को तोड़ने का काम अब शुरू हो गया है और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण इस दिशा में पहला कदम है। आज भारत के गणतंत्र को बचाने की भी सख्त जरूरत है। हमारी यह गलती रही कि हमने राष्ट्रवाद, सभ्यता की विरासत और हिंदू धर्म के मुद्दे को ज्यादा तवज्जो देना बंद कर दिया, जिसे भाजपा ने उठाया और इसका इस्तेमाल किया। अब इन मुद्दों पर वापस आने का समय आ गया है।’
एक राष्ट्र-एक चुनाव की चुनौतियाँ
एक राष्ट्र-एक चुनाव के लिए राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के साथ जोड़ने के लिए संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। इसके अलावा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के साथ-साथ अन्य संसदीय प्रक्रियाओं में भी संशोधन करने की आवश्यकता होगी। एक साथ चुनाव कराने को लेकर क्षेत्रीय दलों का प्रमुख डर यह है कि वे अपने स्थानीय मुद्दों को मजबूती से नहीं उठा पाएंगे क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे केंद्र में हैं। इसके साथ ही वे चुनाव खर्च और चुनाव रणनीति के मामले में राष्ट्रीय दलों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में भी असमर्थ होंगे। साल 2015 में आईडीएफसी संस्थान की तरफ से की गई स्टडी में पाया गया कि यदि लोकसभा और राज्यों के चुनाव एक साथ होते हैं तो 77 प्रतिशत संभावना है कि मतदाता एक ही राजनीतिक दल या गठबंधन को चुनेंगे। हालांकि, अगर चुनाव छह महीने के अंतराल पर होते हैं, तो केवल 61 प्रतिशत मतदाता एक ही पार्टी को चुनेंगे। देश में संघवाद के लिए एक साथ चुनावों से उत्पन्न चुनौतियों की भी आशंका है।
ठाणे (भाषा)। भाजपा एक राष्ट्र-एक चुनाव की अवधारणा को इसीलिए बढ़ाना चाहती है, क्योंकि वह राज्य विधानसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन से डरी हुई है। यह आरोप स्वराज इंडिया के नेता योगेन्द्र यादव ने लगाए। महाराष्ट्र के ठाणे में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि यह अवधारणा एक राष्ट्र-एक चुनाव-एक पार्टी और एक नेता को बढ़ावा देने के अलावा और कुछ नहीं है। अगले माह पांच राज्यों- मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं।