वाराणसी। अस्सी घाट बनारस में 09 जुलाई को मानवता, प्रेम, सहिष्णुता का सन्देश देते हुए वैश्विक अभियान फ्री हग डे (सार्वजनिक गले मिलन) कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अस्सी घाट पर आयोजित इस कार्यक्रम के माध्यम से, बनारस क्वियर प्राइड समूह द्वारा बनारस प्राइड के अंतर्गत होने वाले 6 कार्यक्रमों में से पहले कार्यक्रम की शुरुवात की गई। छात्रों युवाओं से भरे अस्सी घाट पर बड़े से पोस्टर पर फ्री हग लिखे हुए पोस्टर लिए लोग कौतुहल और आकर्षण का केंद्र बन गए। बनारस क्वियर प्राइड आयोजन से जुड़े एलजीबीटी समुदाय के लोग अस्सी घाट पर हुए इस अनूठे आयोजन में, मैं गे हूं, मैं लैसबियन हूं मैं बाईसेक्सुअल हूं लिखें प्ले कार्ड अपने गले में लटकाए हुए थे। फ्री हग के लिए अपील करते हुए ये लोग एक सर्किल में अस्सी घाट पर खड़े थे और जो लोग इन संदेशों को पढ़ते हुए और उत्सुकता दिखाते हुए पास आ रहे थे उनसे गले लग कर प्रेम और भाईचारे के भाव को बढ़ावा दे रहे थे। आयोजकों का मानना है कि इस तरह के कार्यक्रम से एलजीबीटी समुदाय के प्रति समाज में बहिष्करण और अपराध बोध कम होगा । असमानता, हिंसा, और गैरबराबरी को समाप्त करने के लिए ऐसे आयोजन बनारस में हमेशा होते रहना चाहिए ।
बनारस क्वियर प्राइड की संयोजक नीति ने बनारस प्राइड माह आयोजन के विषय में बताया। 09 जुलाई से शुरू होने वाला आयोजन माह भर चलेगा और अगस्त प्रथम सप्ताह में एक प्राइड वॉक/मार्च के साथ हम इसका भव्य गौरवपूर्ण समापन करेंगे। इस आयोजन की पूरी बागडोर क्वियर समुदाय के साथियों ने ले रखी है।
एलजीबीटी समुदाय से होना अब अपराधबोध नहीं रह गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर दिए कई आदेशों में समुदाय के नागरिकों को संरक्षण दिए जाने और उन्हें उनकी मर्जी से जीवन जीने के संवैधानिक अधिकार मुहैया कराए जाने के आदेश पारित किए गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) कई वर्षों के अध्ययनों के बाद इस निर्णय पर पंहुचा है कि क्वियर समुदाय किसी भी तरह के मानसिक या शारीरिक अक्षमता में नही हैं। फिजियोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल दोनो तरह के अध्ययनों में पता चला कि क्वियर समुदाय के लोग शिक्षा ग्रहण करने में, व्यवसाय करने में, रिश्ते बनाने में, सामाजिक व्यवहार करने में, नौकरी करने आदि हर तरह के क्षेत्र में किसी भी अन्य मनुष्य की भांति ही समान क्षमता रखते हैं। इन अध्ययनों की लम्बी फेहरिस्त और अनुशंसाओं के बाद WHO ने क्वियर समुदाय को स्वीकार्यता दी है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाइ गयी नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भी लैंगिक विषयो पर संवेदनशील समाज बनाने के लक्ष्य को देखते हुए लैंगिक समझदारी और संवेदनशीलता बढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम बनाने पर जोर दिया है।
फ्री हग कार्यक्रम ‘क्यों?’ का जवाब देते हुए आयोजक रणधीर ने बताया की एक अध्ययन से पता चला है की फ्री हग यानी की गले मिलने का क्या शारीरिक मानसिक असर होता है। उन्होंने कहा कि, गले लगाने से कोर्टिसोल का स्तर कम हो जाता है, जो बदले में तनावपूर्ण स्थितियों में ब्लड प्रेशर को कम करता है। गले लगाने से भी रात को अच्छी नींद आती है। गले लगाने से दिमाग में ऑक्सीटोसिन या फील-गुड केमिकल का स्तर बढ़ जाता है जो हमें खुश, एक्टिव और शांत बनाता है। गले लगाने से दूसरे व्यक्ति से जुड़ना आसान हो जाता है। गले लगाने से पता चलता है कि हम सुरक्षित हैं, प्यार करते हैं, और अकेले नहीं हैं। गले लगाने से दर्द का मुकाबला करके शरीर में तनाव कम होता है और ब्लड फ्लो में सुधार होता है जिससे तनावग्रस्त मांसपेशियों को आराम मिलता है। गले लगाने से नेचुरल किलर सेल्स, लिम्फोसाइट्स और दूसरे इम्यून बूस्टिंग सेल्स का स्तर बढ़ता है जो इम्यून सिस्टम को मजबूत रखते हैं।
अबीर ने बताया कि फ्री हग्स अभियान एक सामाजिक आंदोलन है जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर अजनबियों को गले लगाते हैं। अपने वर्तमान स्वरूप में यह अभियान 2004 में एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति द्वारा शुरू किया गया था। ऐसे ही अभियानों से प्रेरित होकर बनारस में भी इसका आयोजन बनारस प्राइड कार्यक्रम के अंतर्गत किया जा रहा है ।
आयोजन में प्रमुख रूप से शिवांगी, अनुज, रूद्र, शिवांग, दिव्यांक, परीक्षित, दिक्षा, उत्कर्ष, रोज़ी, इंदु, राजीव, सलमा, निहारिका, कार्तिक, मिलिंद, प्रियेश, शांतनु, नीरज, विवेक आदि मौजूद रहे।