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आजमगढ़ : भरूआ लाल मिर्च का उचित मूल्य न मिलने से किसानों में हताशा

आजमगढ़। आज किसान अपनी खेती को लेकर किस प्रकार से परेशान रहता है इसकी एक बानगी देखने को मिलती है आजमगढ़ जिले के फूलपुर तहसील में। यहां के किसानों द्वारा पैदा की गई लाल भरूआ मिर्च मंडी के अभाव और उचित मूल्य न मिल पाने के कारण काफी निराश हैं। कुछ किसानों ने तो भरूआ […]

आजमगढ़। आज किसान अपनी खेती को लेकर किस प्रकार से परेशान रहता है इसकी एक बानगी देखने को मिलती है आजमगढ़ जिले के फूलपुर तहसील में। यहां के किसानों द्वारा पैदा की गई लाल भरूआ मिर्च मंडी के अभाव और उचित मूल्य न मिल पाने के कारण काफी निराश हैं। कुछ किसानों ने तो भरूआ मिर्च की खेती से अब नहीं  करने की सोच लिया है।

फूलपुर और उससे सटे सीमावर्ती इलाकों के किसान पचासों साल से लाल भरूआ मिर्च की खेती करते आ रहे हैं। आसपास कोई बड़ी मंड़ी न होने से किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य नहीं पा रहा है। किसी प्रकार से किसान मिर्च पैदा तो कर लेता है लेकिन मंडी न होने से 8-10 किलोमीटर की दूरी तय कर फूलपुर मंडी में जाना पड़ता है। फूलपुर के किसान नदीम अहमद बताते हैं हर जगह पर एक पसेरी में पांच किलो होता है लेकिन इस मंडी में सात किलो की एक पसेरी मानी जाती है । ऐसे में जब एक किसान अपना माल लेकर बेचने आता है तो और जगहों के मुकाबले दो किलो की वसूली उससे ज्यादा होती है। और जगह की तुलना में यहां की मंडी में मिर्ची मन में बिकती है। दूसरी मंडियों में 40 किलो का एक मन होता है और यहां की मंडी में 56 किलो का एक मन होता है। पैसा तो उतना ही मिलेगा माल का लेकिन आपका माल व्यापारी ज्यादा ले लेता है।

फूलपुर तहसील के डढ़िया गाँव निवासी  किसान अखिलेश  यादव बताते हैं कि एक बीघा लाल मिर्च की खेती करने में तीस से पैतीस हजार रूपया खर्च हो जाता है तक जाकर फसल तैयार होती है। परन्तु हमें फसल को उचित लाभ नहीं मिल पाता है। विनोद आगे बताते हैं कि अगस्त माह में ही इसकी नर्सरी डाली जाती है जबकि सितम्बर महीने में खाद डालकर खेतों में रोपाई की जाती है। तीन से चार बार मिर्च की गोड़ाई की जाती है और तीन से चार बार दवा का छिड़काव किया जाता है। अमूमन नवम्बर तक फल आना शुरू हो जाता है और जनवरी तक ये फल पकने शुरू हो जाते हैं। बाजार में इस समय 800-900 रूपए मन यानी 56 किलो का भाव है। यह भाव इतना कम है कि लागत मूल्य भी निकाल पाना मुश्किल हो जाएगा।

फूलपुर तहसील के डढ़िया गाँव निवासी  किसान राजपति यादव की मानें तो पहले 30 से 40 हेक्टेयर में भरुवा मिर्चा की खेती होती थी प्रोत्साहन न मिलने के कारण लाल मिर्चा की खेती 1200 हेक्टेयर में सिमट कर रह गई है वर्तमान में दो हजार किसान लाल मिर्चा की खेती से जुड़े हैं, कारण कि इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए सबसे बड़ी जरूरत बाजार की है जो यहां उपलब्ध नहीं है, क्षेत्र में एक ही मंडी होने के कारण किसानों का शोषण होता है जिससे उनकी रूचि घटी है।

किसानों की मांग
किसानों की मांग की बाबत विनोद यादव कहते हैं कि किसानों के लिए स्थानीय स्तर पर मंडी की व्यवस्था सरकार करे जिससे किसानों को अपने उत्पाद को बेचने के लिए 10-15 किलोमीटर की दूरी तय न करनी पडे। साथ ही हर एक माल का एक निश्चित मूल्य सरकार की तरह से निर्धारित किया जाय। यहां तो सब किसान कर रहा है लेकिन मलाई तो व्यापारी ही काट रहा है। एक किसान के हिस्से में लागत मूल्य का पैसा भी नहीं आ पाता और बिचैलियों और व्यापारियों भरती ही जाती हैं।

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