‘गांधी : एक असंभव संभावना’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान
नई दिल्ली। ‘आज के दौर में गांधी असंभव लगे यह आश्चर्य की बात नहीं है। आज ऐसी विपरीत परिस्थितियां हैं, जिससे यह प्रश्न उठना स्वाभाविक हो जाता है कि क्या सच में गांधी जैसा कोई व्यक्तित्व था या उन्हें बड़ा बना दिया गया।’ सुप्रसिद्ध चिंतक, लेखक एवं समाजकर्मी तुषार गांधी ने उक्त विचार हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज द्वारा आयोजित ऑनलाइन व्याख्यान में ‘गांधी : एक असंभव संभावना’ विषय पर व्यक्त किए।
तुषार गांधी ने कहा कि गांधी संभव लग रहे थे क्योंकि उनके जीवनकाल में उनका प्रत्यक्ष दर्शन था और उसके बाद कहीं दशकों तक हम गांधी के सहयोगियों को देखते रहे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देखेंगे कि समाज में गांधी जैसे अनुकरणीय लोग बहुत कम शेष हैं। तुषार जी ने बताया कि महात्मा गांधी के बारे में ऐल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा है कि ‘ऐसा वक़्त आएगा जब यह मानना भी कठीन हो जायेगा कि कभी ऐसे हाड़-मास के व्यक्ति भी हमारे बीच इस धरती पर चला होगा।’ उन्होंने कहा कि गांधी अनुकरणीय लगते थे क्योंकि वह जब कुछ कहते तो जनता को उनका दर्शन उनके जीवन में दिखता था। इसलिए लोगों के बीच उनके रस्ते पर चलने के लिए प्रतियोगिता शुरू हो गई थी। तुषार जी ने कहा कि लोकशाही में सबसे बड़ी जिम्मेदारी नागरिक की है। आज ऐसा प्रजातंत्र है जहां नागरिक की भागीदारी नहीं है। जिससे प्रजातंत्र असंभव लगने लगा है तथा गांधी भी असंभव लगने लगे हैं। गांधी के बाद की व्यवस्थाओं ने गांधी को असंभव बना दिया है।
[bs-quote quote=”अपने वक्तव्य का समापन करते हुए उन्होंने कहा कि गांधी का संदेश था कि अगर मेरा कोई संदेश है तो मेरा जीवन ही मेरा संदेश है, यानी मेरे जीवन को समझो और अपनाओ। गांधी के जीवन से ही गांधी की समझ प्राप्त होती है। गांधी की शिक्षा किसी से न लें, गांधी सीखे जा सकते हैं पर सिखाए नहीं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
तुषार गांधी ने बापू को संभव बताते हुए कहा कि समाज में जो समस्याएं आती रही हैं, उनका निराकरण करने के लिए गांधी के जीवन से समाधान मिलते रहे हैं। इस सर्वनाश की घड़ी को टालने का उपाय गांधी जी की संभावना ही है। उनके अनुसार वर्तमान में गांधी स्वेच्छा से स्वीकृत करने वाली चीज़ नहीं हैं, अब हम मजबूर हैं कि हम गांधी को किसी न किसी रूप में अपनाएं। आज युवाओं ने गांधी को गांधीगिरी के रूप में अपनाया है। वर्तमान समाज की संकीर्ण समझ पर वार करते हुए उन्होंने कहा कि आज हमने सत्य को अपनी सुविधा से व्याख्यायित करना शुरू कर दिया है। आज सत्य की ठोकशाही का दौर चल रहा है अर्थात् ‘जिसकी लाठी उसका सत्य’। हम गांधी जी के वह बंदर हो गए हैं जिसने अपने कान ठूंस लिए हैं सत्य से बचने के लिए।
अपने वक्तव्य का समापन करते हुए उन्होंने कहा कि गांधी का संदेश था कि अगर मेरा कोई संदेश है तो मेरा जीवन ही मेरा संदेश है, यानी मेरे जीवन को समझो और अपनाओ। गांधी के जीवन से ही गांधी की समझ प्राप्त होती है। गांधी की शिक्षा किसी से न लें, गांधी सीखे जा सकते हैं पर सिखाए नहीं।
वक्तव्य के पश्चात् तृतीय वर्ष के छात्र श्रेयस द्वारा प्रश्नोत्तर सत्र का संयोजन किया गया। तुषार गांधी ने सभी रोचक सवालों का विस्तारता से ज़वाब दिया। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि गांधी को समझने और जानने का सबसे सही रास्ता उनकी लिखी पुस्तकों से जाता है। इसके लिए उन्होंने गांधी जी की आत्मकथा और हिन्द स्वराज का विशेष उल्लेख किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में विभाग के प्रभारी डॉ. रामेश्वर राय ने स्वागत करते हुए विषय की प्रस्तावना रखी। हिंदी साहित्य सभा की संयोजक दिशा ग्रोवर ने साहित्य सभा का परिचय दिया। द्वितीय वर्ष की छात्रा जूही शर्मा ने तुषार गांधी का औपचारिक परिचय दिया । आयोजन में विभाग के वरिष्ठ प्रध्यापक डॉ. रचना सिंह, डॉ. हरीन्द्र कुमार, डॉ. पल्लव के साथ-साथ बड़ी संख्या में विद्यार्थी, शोधार्थी और अन्य महाविद्यालय के प्राध्यापक भी उपस्थित रहे। अंत में द्वितीय वर्ष के छात्र कमल नारायण ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
हिरेन कलाल हिंदू कॉलेज में हिंदी साहित्य सभा के कोषाध्यक्ष हैं।
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