Wednesday, January 29, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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ग्राउंड रिपोर्ट

चुनार पॉटरी उद्योग : कभी चमचमाता कारोबार अब एक भट्ठी की आस लिए बरबादी के कगार पर  

किसी ज़माने में चुनार के चीनी मिट्टी के बर्तनों की धाक बहुत दूर-दूर तक थी लेकिन आज वह अंतिम साँस ले रहा है। यहाँ के ज़्यादातर व्यवसायी खुर्जा से माल मंगाकर कर बेचते हैं। चुनार पॉटरी उद्योग के खत्म होने के पीछे एक अदद आधुनिक भट्ठी है जो बरसों की मांग के बावजूद नहीं लगाई जा सकी। नौकरशाही की अपनी अलबेली चाल है और व्यवसायियों की अपनी आर्थिक सीमाएं हैं। इन्हीं स्थितियों के कारण महज़ तीन-चार करोड़ की लागत वाली भट्ठी नहीं बन पाई जबकि भारत सरकार पूर्वांचल के विकास के लिए हजारों करोड़ की योजनाएँ घोषित कर चुकी है। एक भट्ठी के अभाव ने एक शहर की कारोबारी पहचान और हजारों लोगों की आजीविका छीन ली है। चुनार से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट

वाराणसी में नट समुदाय : अभी भी दूर है साफ पानी का सपना

सरकार योजनाएँ लाती है और इसके लिए करोड़ों रुपए का बजट पास करती है। योजना की घोषणा के बाद लगता है कि अब सारी दिक्कतें दूर हो जाएंगी लेकिन तंत्र में बैठे लोग योजनाओं से ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की जुगत लगाते हैं। ऊपर तो भ्रष्टाचार है ही नीचे वाले जो सीधे जनता से जुड़े होते हैं, वे भी गरीब मजदूर जनता को साफ-साफ ठगने का काम करते हैं। योगी सरकार का दावा है कि हर रोज 40 हजार नए नल में पानी की आपूर्ति हो रही है, गाँव में नल तो लगे हुए हैं लेकिन अधिकाशत: नलों में पानी की जगह हवा निकल रही और जो दावे की पोल खोल रही है। वाराणसी के नहवानीपुर नट बस्ती से अपर्णा की ग्राउंड रिपोर्ट

जौनपुर : ऐतिहासिक धरोहरों का शहर, लेकिन पर्यटन के नक्शे पर नहीं

जौनपुर की धरोहरें केवल इतिहास का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे एक जीवंत संस्कृति का प्रतीक भी हैं। अगर इन स्थलों को सहेजने और प्रचारित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं, तो यह शहर न केवल अपनी पहचान बचा सकता है, बल्कि पर्यटन के माध्यम से विकास की नई कहानी भी लिख सकता है। जौनपुर शहर की पहचान जिन ऐतिहासिक धरोहरों से होती है, वे देखरेख के अभाव में लगातार खंडहर में तब्दील हो रही हैं। लगभग 600 साल पुरानी इस विरासत होने के बावजूद यह स्थान पर्यटन स्थल के रूप में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया है। पढ़िए आनंद देव की ग्राउंड रिपोर्ट

नट समुदाय : पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के दावे के बीच पूरा समुदाय आदतन अपराधी के तौर पर उत्पीड़न झेलने को अभिशप्त

जैसे ही नट समुदाय की बात होती है, वैसे ही सभी के जेहन में या जुबान पर उनके चोर होने व उनसे सतर्क रहने का भाव या बात सामने आती है। यह बात आज नहीं बल्कि 150 वर्ष पहले लागू की गई थी, जब ब्रिटिश सरकार ने 1871 से 1952 के बीच, वीजेएनटी जनजातियों पर 'जन्मजात अपराधी' माना, लेकिन स्वतंत्रता के बाद, विभिन्न जनजातियों में पुनर्वर्गीकरण होने के बाद, उनके सामाजिक बहिष्कार व बुनियादी सुविधाओं से वंचित होने के साथ 'आदतन अपराधी' के कलंक का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उसके बाद भारतीय संविधान में 1952 में संशोधन कर इसे 'आदतन अपराधी' माना गया। पुलिस-प्रशासन कैसे इसे उपयोग में लाते हुए नट बस्तियों में रहने वाले लोगों को प्रताड़ित करते हैं, पढ़िये प्रेम नट की ग्राउंड रिपोर्ट 

तमनार : बेकाबू कॉर्पोरेट ताकतों ने आदिवासी समुदाय को जरूरी संसाधनों से किया बेदखल

भूमि अधिग्रहण अधिनियम कहता है कि बिना उचित सहमति और उचित मुआवज़े के सार्वजनिक या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि नहीं ली जा सकती, लेकिन गारे के ग्रामीणों को अपनी भूमि और संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए शक्तिशाली कंपनियों के खिलाफ लड़ाई में अकेला छोड़ दिया गया है। पढ़िए राजेश त्रिपाठी की तमनार से ग्राउंड रिपोर्ट

जौनपुर : क्या तबाही का सबब बनने वाला है गोमती रिवर फ्रंट

पुराने शहरों के नए विकास ने अनेक पुराने और हेरिटेज शहरों के स्वरूप को तहस-नहस कर दिया है। इसका एक बड़ा उदहारण बनारस है जो लगातार अपना पुराना स्वरूप खो रहा है। इसी तरह रिवरफ्रंट्स ने भी नदियों के स्वरूप और बहाव को कई विपरीतताओं से जोड़ दिया है। जौनपुर में गोमती रिवर फ्रंट के निर्माण से भी कई सवाल उठने लगे हैं कि क्या इससे शहर का पर्यावरण सुरक्षित रह पायेगा? जौनपुर से वरिष्ठ पत्रकार आनंद देव गोमती रिवर फ्रंट को लेकर खतरे की उठती आशंकाओं की रिपोर्ट कर रहे हैं।

मनरेगा की अकथकथा : गाँवों में मशीनों से काम और भ्रष्ट स्थानीय तंत्र ने रोज़गार गारंटी का बंटाढार किया

मनरेगा की शुरुआत सौ दिन की मजदूरी के गारंटी के साथ हुई थी लेकिन बीस वर्ष भी नहीं बीते कि अब यह योजना मजदूर विरोधी गतिविधियों में तब्दील हो गई। गाँव में ज्यादातर काम मशीनों से कराया जा रहा है, जिसके बाद मस्टर रोल में नाम मजदूरों के चढ़ाए जा रहे हैं और उनसे अंगूठा लगवाकर मजदूरी प्रधान और रोजगार सेवक हड़प रहे हैं। इस तरह मजदूरों को काम से वंचित किया जा रहा है। हमने वाराणसी के कपसेठी ब्लाक के नवादा नट बस्ती में पता किया, जिसमें यह बात सामने आई कि वर्ष भर में मुश्किल से उन्हें 10 दिन ही काम मिलता है और मजदूरी आने में महीनों लग जाते हैं। इस तरह देखा जाए तो मजदूरों के लिए मनरेगा दु:स्वप्न बनकर रह गया है। नवादा नट बस्ती से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट

रोज़गार और निवाले के संकट से जूझता वाराणसी का मुसहर समुदाय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण वाराणसी हमेशा चर्चा में रहता है क्योंकि अक्सर यहाँ से हजारों करोड़ की विकास परियोजनाएं लांच की जाती हैं लेकिन ये योजनाएं भरे पेट वालों का राजनीतिक गान भर हैं। वास्तविकता यह है कि हाशिये पर रहनेवाले समाजों के लिए इनका अर्थ एक जुमला भर है। वाराणसी समेत पूर्वांचल की बहुत बड़ी आबादी अपने रोजगार से हाथ धोती जा रही है। आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले सवा चार करोड़ लोग हैं। अर्थात उत्तर प्रदेश का हर पाँचवाँ व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है। न उसके पास रोजगार है, न जमीन है, न शिक्षा और न ही अच्छा स्वास्थ्य है। वह आजीविका कमाना चाहता है लेकिन गांवों तक मशीनों से काम होने लगा है और इस प्रकार उनका रोजगार हमेशा के लिए छिन गया है। वाराणसी जिले के हरहुआ ब्लॉक के चक्का गाँव में रहनेवाले मुसहर समुदाय के सामने आज रोजगार और निवाले की गंभीर समस्या खड़ी है। उनकी ज़मीनों पर दबंगों का कब्ज़ा है। उनकी अनेक बुनियादी समस्याएं हैं। चक्का गाँव से अपर्णा की यह रिपोर्ट।

मिर्ज़ापुर : ढोलक बनानेवाले परिवार अच्छे दिनों के इंतज़ार में हैं

मिर्ज़ापुर के चुनार कस्बे में ढोलक बनानेवाले तीन परिवार बताते हैं कि हमारी दाल-रोटी चल जाती है लेकिन पहले वाली बात इसमें नहीं रही। इसलिए नई पीढ़ी के बच्चे अब इस काम में कोई दिलचस्पी नहीं रखते और दूसरे काम करते हैं। सामान्य आमदनी के चलते इनमें शिक्षा के प्रति ललक भी नहीं पैदा हुई इसलिए ज़्यादातर कारीगरी से विमुख हो मजदूरी की ओर जा रहे हैं।

मिर्ज़ापुर में सिलकोसिस : लाखों लोग शिकार लेकिन इलाज की कोई पॉलिसी नहीं

मिर्ज़ापुर जिले में बड़ी संख्या में लोग पत्थर खदानों में काम करते हैं और अनेक लोग कई साल तक सिलिका धूल के संपर्क में रहने के कारण सिलकोसिस के शिकार हैं। इनमें से कइयों का इलाज टीबी की दवाओं द्वारा होता रहा है। जबकि सिलकोसिस एक असाध्य बीमारी है। इस पर कोई ठोस काम करने की बजाय स्वस्थ्य विभाग और सरकार लगातार चुप्पी बनाए हुये है।

मिर्जापुर : बाँध में पर्याप्त पानी होने के बाद भी सात किलोमीटर रैकल टेल सूखी, धान की फसल बर्बाद होने की कगार पर 

'किसान अन्नदाता हैं' सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है लेकिन किसान आज किस हाल में खेती कर पा रहे हैं, यह उनसे पूछने पर मालूम होगा। कहीं बीज नहीं मिल पा रहा है, तो कहीं खाद की समस्या है, कहीं बिजली नहीं तो कहीं सिंचाई के लिए पानी का अभाव है। किसानों के लिए अनेक योजनायें हैं लेकिन या तो कागज पर हैं या जो लागू हैं उनमें बहुत ही घालमेल है, जिसकी वजह से वह किसानों तक नहीं पहुँच पा रही हैं। मिर्जापुर जिले के अति पिछड़े इलाके मड़िहान तहसील में सिरसी पम्प कैनाल में पानी नहीं आ पाने के कारण किसानों की फसल सूखने की कगार पर है। पढ़िए संतोष देव गिरि की रिपोर्ट