भारत देश में लोग दीर्घायु शतायु होने का आशीर्वाद देते हैं। दिलीप कुमार आज 98 साल की उम्र दुनिया को अलविदा कह गये। उन्होंने जीवन को भरपूर जिया। वे उन चंद भाग्यशाली लोगों में रहे जिन्हें इज्जत, दौलत, शोहरत सब कुछ नसीब हुआ। जहाँ एक तरफ उनकी फ़िल्में जबर्दस्त हिट हुईं वहीं दूसरी तरफ उन्हें सर्वाधिक फिल्म फेयर एवार्ड मिले। भारत सरकार ने सिनेमा में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें पद्मविभूषण और दादा साहब फाल्के जैसे उच्च सम्मानों से नवाजा। पाकिस्तान सरकार ने भी उन्हें सन 1998 में अपने देश के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-इम्तियाज़ से नवाजा। दिलीप कुमार और राजकपूर के घरों को वहां संरक्षित कर हेरिटेज बिल्डिंग घोषित किया गया है। कलाकार तो सबके प्यारे होते हैं। दुनिया भर में उनके प्रशंसक उन्हें सम्मान और प्यार देते हैं। रूस में राजकपूर साहब तो अभी हाल में दंगल फिल्म के माध्यम से आमिर खान चीन में बहुत लोकप्रिय हो गए। प्रवासी भारतीयों में शाहरुख़ खान और ऐश्वर्या राय बहुत पसंद किये गये।
बचपन में सन 1989 के आसपास दूरदर्शन पर उनकी फिल्म गंगा जमुना देखा जो भोजपुरी भाषा में होने के कारण तथा अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाले एक विद्रोही नायक की उनकी भूमिका के कारण मुझे बेहद पसंद आई। सौदागर फिल्म में दिलीप और राजकुमार साहब की दोस्ती, दुश्मनी और डायलाग कई सालों तक हम लोग बोलते-सुनते रहे और इलू-इलू गाते रहे। मुगल-ए-आजम भारतीय सिनेमा इतिहास की सफलतम फिल्म है जिसे दिलीप कुमार साहब के बहनोई के. आसिफ साहब ने बनाया था।
2018 में इटावा में पोस्टिंग के दौरान मैंने आसिफ साहब के मोहल्ले को देखा और उनके बारे लोगों से खूब बाते की। अभी हम अलीगढ में है आगरा के पड़ोस में, अकबर और सलीम की कहानी और इस फिल्म का बनना सब इसी ब्रज क्षेत्र में हुआ। उनके निजी जीवन की प्रेमिका मधुबाला इस फिल्म में भी उनकी प्रेमिका थीं लेकिन सभी जानते हैं कि जालिम दुनिया ने उन्हें एक न होने दिया, हमेशा के लिए जुदा कर दिया । न परदे पर अनारकली सलीम को मिल सकी ना ही वास्तविक जिन्दगी में। रील लाइफ और रियल लाइफ दोनों की दास्ताँ यहाँ एक-सी हो गयी। यह ट्रेजडी उनके फिल्मों के साथ इस कदर जुडी कि दर्शकों ने उन्हें ‘ट्रेजिडी किंग’ की उपाधि ही दे दी। प्रख्यात पत्रकार और लेखक राजकुमार केसवानी ने तो मुग़ल-ए-आज़म फिल्म के बनने के किस्सों के उपर इसी नाम से किताब ही लिख दी। नया दौर फिल्म को हमने जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में देखा था। मशीनें आदमी के हाथ से रोजगार और उसके मुंह का निवाला न छीन लें इस बारे में यह फिल्म हमें सदैव जागरूक करती रहेगी। दिलीप कुमार ने मजदूरों और किसान वर्ग को उनके हक के लिए जगाने वाली फिल्मों में काम किया। गंगा-जमना, नया दौर ऐसी ही श्रेणी की फ़िल्में हैं। इस फिल्म का साथी हाथ बढ़ाना गीत तो हमेशा गरीबों मजदूरों और किसानों को एक साथ मिलजुल कर मुश्किलों का सामना करने की प्रेरणा देता रहेगा।
दिलीप कुमार साहब की अनगिनत फिल्मों में से कुछ मेरे सोच और दिल के बेहद करीब हैं जैसे कि मशाल फिल्म के सख्त और ईमानदार पत्रकार, कानून अपना-अपना के कानून पसंद और कर्तव्यनिष्ठ कलेक्टर, कर्मा फिल्म के कड़क जेलर। इन सब फिल्मों में वे बुराई और बुरे लोगों के खिलाफ न केवल लड़ते हुए दीखते हैं बल्कि हमें भी लड़ने की प्रेरणा देते हैं। फिल्म देवदास और सगीना महतो में भी अपने बेहतरीन अभिनय के कारण वे फिल्मी दुनिया के बेहतरीन सितारा थे और अब एक पूरी सदी का जीवन जीकर उपर सितारों में बसने के लिए दुनिया-ए-फानी को छोड़ गए। सायरा बानो ने एक अच्छे जीवनसाथी के रूप में दिलीप साहब का खूब साथ दिया। वे इस जुदाई के ग़म को कैसे बर्दाश्त कर पाएंगी उनके लिए दुआएं और दिलीप साहब को आखिरी सलाम। इमली का बूटा, बेरी का पेड़, इमली खट्टी मीठे बेर, इस जंगल में हम दो शेर, चल घर जल्दी हो गयी देर गाने वाला शेर, अजीज दोस्त चला गया। दिलीप साहब को अंतिम नमस्कार।
राकेश कबीर जाने-माने कवि-कथाकार और सिनेमा के गंभीर अध्येता हैं।
बहुत बढ़िया समीक्षा सर…उनके फ़िल्मो के माध्यम से हम उनके अभिनय को और बेहतर जान पाए। कोशिस रहेगी जिन फिल्मों का आपने जिक्र किया उसे देख सकूँ…
दिलीप सर को भावभीनी श्रद्धांजलि… वे हमेशा हमारे बीच इन फिल्मों के माध्यम से जिंदा रहेंगे
बहुत ही अच्छा लेख
[…] हरदिल अजीज दिलीप कुमार बहुत याद आएंगे … […]
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