Friday, January 31, 2025
Friday, January 31, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराष्ट्रीयमहात्मा गाँधी की हत्या में ग्वालियर के लोगों की क्या भूमिका थी

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

महात्मा गाँधी की हत्या में ग्वालियर के लोगों की क्या भूमिका थी

महात्मा गांधी को लेकर आरएसएस लगातार दोहरा व्यवहार करता है। एक तरफ उनकी मूर्तियों का अपमान करता है, दूसरी तरफ जरूरत पड़ने पर उनकी पूजा करने से पीछे नहीं रहता। आरएसएस भले ही नाथूराम गोडसे से अपने संबंधों को नकारता रहे लेकिन महात्मा गांधी की हत्या से संबंधित बातों में उसकी भूमिका के नए-नए राज खुल रहे हैं। हाल ही में अंग्रेजी भाषा की पत्रिका 'ओपन' में रवि विश्वेश्वरैया शारदा प्रसाद के लेख और मनोहर मालगांवकर की पुस्तक 'द मैन हू किल्ड गांधी' में 30 जनवरी की घटना की पृष्ठभूमि और उसके अनेक पात्रों की कहानी बहुत विस्तार के साथ लिखी गई।आज महात्मा गांधी की हत्या को 77 साल हो गए हैं। इसके बावजूद महात्मा गांधी की हत्या की पहेलियाँ अभी भी उलझी हुई हैं, इस पर पढ़िए डॉ सुरेश खैरनार का लेख।

महात्मा गांधी की हत्या में तत्कालीन कांग्रेस नेताओं की गैरजिम्मेदार भूमिका के कारण हमें 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी को खोना पड़ा। यह बात अंग्रेजी भाषा की पत्रिका ‘ओपन’ में रवि विश्वेश्वरैया शारदा प्रसाद के लेख और मनोहर मालगांवकर की पुस्तक ‘द मैन हू किल्ड गांधी’ से और अधिक स्पष्ट हो जाती है।

तत्कालीन मुंबई राज्य और केंद्र सरकारों ने महात्मा गांधी की हत्या को समय रहते रोकने के लिए हिंदू महासभा और मुंबई, पुणे, ग्वालियर और अहमदनगर में उनकी हत्या के मामले में चल रही तैयारियों की जांच करने में जानबूझकर लापरवाही दिखाई।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि तत्कालीन उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने जानबूझकर विनायक दामोदर सावरकर और ग्वालियर के हिंदू महासभा के नेताओं को महात्मा गांधी की हत्या की जांच से दूर रखने का विशेष ध्यान रखा। जबकि गांधी की हत्या में नाथूराम गोडसे द्वारा इस्तेमाल किया गया हथियार एक बहुत ही आधुनिक इटालियन बेरेटा पिस्तौल थी जो ग्वालियर के महाराजा के सैन्य सचिव का था।
नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे तक यह पिस्तौल पहुंचाने में ग्वालियर के पांच लोगों की भूमिका थी। ग्वालियर में सबसे बड़ी हथियार बेचने वाली एजेंसी के मालिक जगदीश प्रसाद गोयल थे। लेकिन हैरानी की बात यह है कि महात्मा गांधी की हत्या के मामले की चार्जशीट में इस आदमी का नाम तक नहीं है!

इस प्रकरण में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने वाले व्यक्ति थे डॉ. दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे, जो ग्वालियर राज्य हिन्दू महासभा के अध्यक्ष तथा ग्वालियर राजघराने के चिकित्सक थे, उन्हें निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। लेकिन शिमला की अदालत ने तकनीकी आधार पर उन्हें बरी कर दिया, बाकी तीन ग्वालियर हिंदू महासभा के सबसे बड़े नेता थे। ट्रायल कोर्ट के जस्टिस आत्माराम ने चार्जशीट में इन्हें गुमशुदा लोगों की सूची में डाल दिया था और ये तीनों ग्वालियर में आराम से घूम रहे थे।

यह भी पढ़िए –चुनार पॉटरी उद्योग : कभी चमचमाता कारोबार अब एक भट्ठी की आस लिए बरबादी के कगार पर  

रवि विश्वेश्वरैया शारदा प्रसाद की दिवंगत माँ कमलाम्मा मदिकेरा, 1948 में महात्मा गांधी हत्याकांड के ट्रायल कोर्ट में अभियोजन टीम का हिस्सा थीं, जिसे लाल किला कोर्ट में जस्टिस आत्माराम चला रहे थे। वह मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर और स्वतंत्रता सेनानी थीं, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार हुई थीं और एक प्रसिद्ध लॉ फर्म के लिए काम कर रही थीं। इसके साथ गृह मंत्रालय मुंबई राज्य और अन्य सरकारी विभागों के लिए भी काम किया। वह शंकर किश्तैया से पूछताछ करने और उससे कुछ जानकारी प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार थीं, जो पुणे के दिगंबर बडगे का नौकर था, वह एक हथियार डीलर और हिंदू महासभा का सदस्य था, जो बाद में सरकारी गवाह बन गया, क्योंकि शंकर को केवल तेलुगु और थोड़ी मराठी आती थी।

उन्होंने कहा कि ऑस्कर हेनरी ब्राउन चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट मुंबई की भूमिका संदिग्ध थी। उन्होंने इसे पहले ही पकड़ लिया था।  ब्राउन स्कॉटिश थे और भारत की आज़ादी के बाद भी भारत में रह रहे थे।  शारदा प्रसाद ने लिखा है कि मेरी माँ के पास मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री थी और उनकी मातृभाषा तेलुगु थीं। शंकर किश्तैया पूरी तरह से अनपढ़ थे और वे सिर्फ़ तेलुगु ही बोल पाते थे। थोड़ी-बहुत टूटी-फूटी मराठी भी। इस वजह से मेरी माँ शंकर किश्तैया से काफ़ी जानकारी हासिल करने में सक्षम थीं।

अपनी मां के बताने से मुझे पता चला कि इस मामले में दर्जनों महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों को देखते हुए सरदार पटेल के निर्देश थे कि ‘हिंदू महासभा के बारे में कुछ भी जांच नहीं की जानी चाहिए क्योंकि हिंदू महासभा हैदराबाद के निजाम के खिलाफ चल रहे युद्ध में कट्टर रजाकारों से हिंदुओं को बचाने की कोशिश में लगी हुई है।’

इसी तरह, दादर में सावरकर के घर पर नज़र रखने वाले मुंबई के पुलिस उपायुक्त जमशेद दोराब नागरवाला भी इस नतीजे पर पहुँचे थे कि गांधी की हत्या की साजिश के मास्टरमाइंडों में से एक सावरकर थे। इसीलिए, 30 जनवरी से बाद, उन्होंने मुंबई के तत्कालीन गृहमंत्री मोरारजी भाई देसाई से बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर को गिरफ़्तार करने की अनुमति माँगी थी, जिस पर मोरारजी भाई देसाई ने कहा था, ‘ख़बरदार जो सावरकर को गिरफ़्तार किया।’ नागरवाला बाद में मुंबई पुलिस के आईजीपी के पद से सेवानिवृत्त हो गए और सावरकर को गांधी हत्या मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। लेकिन सावरकर पर नज़र रखने वाले पुलिस अधिकारी नागरवाला ने ‘द मेन हू किल्ड गांधी’ पुस्तक के लेखक मनोहर मलगांवकर को बताया कि गांधी की हत्या की साजिश रचने में सावरकर की प्रमुख भूमिका थी।

यह भी पढ़िए- साहब, बीवी और गुलाम : ढहते हुए सामन्तवाद की दास्तान

गांधीजी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद सावरकर ने अदालत में कहा था कि ‘मैं नाथूराम गोडसे को नहीं जानता।’  नाथूराम ने यह भी कहा कि ‘उसका सावरकर से कोई संबंध नहीं है।’ हालाँकि, मैट्रिक की परीक्षा में फेल होने के बाद, नाथूराम अपने पिता के डाकघर में तबादले के कारण रत्नागिरी आ गया। जहां उसे पता चला कि सावरकर यहाँ नजरबंदी की सजा काट रहा है। इसलिए वह सुबह सावरकर के घर जाता था, और रात को सोने से पहले अपने घर लौट आता था। बाद में सावरकर ने उसे अखबार निकालने के लिए कुछ पैसे भी दिए। उसने एक अनुबंध भी बनवाया और उसे अपने पास रख लिया। सावरकर ने भी उस पैसे का एक समझौता किया और उसे अपने पास रख लिया। नाथूराम सावरकर के रत्नागिरी में नजरबंदी के दिनों में, जब वह पंद्रह-सोलह साल का था, वह सुबह से शाम तक उसके साथ रहता था और नाथूराम भी उसे बचाने के लिए यही कहता है। लेकिन सरकारी वकील का क्या हुआ? उसने इस झूठ को उजागर क्यों नहीं किया? यह देखकर आश्चर्य होता है कि सावरकर को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।

आज लगभग सभी हिंदुत्ववादी नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करने में लगे हुए हैं। क्या यह पर्याप्त सबूत नहीं है? उसे हीरो बनाने के लिए नाटक और फिल्में बनाने की होड़ लगी हुई है। कहीं-कहीं तो उसकी मूर्तियाँ भी बनाई जा रही हैं। नाथूराम बचपन से ही RSS की शाखाओं में जाता था। बाद में वह हिंदू महासभा में जाता और अदालत ने बिना क्रॉस चेक किए ‘मैं उसे नहीं पहचानता’ के झूठ को कैसे स्वीकार कर लिया? क्योंकि इस बात के पर्याप्त सबूत थे कि नाथूराम ने सावरकर के जीवन में अंग्रेजों के खिलाफ मदनलाल ढींगरा और अन्य आतंकवादियों को तैयार किया था।

क्या आपने कभी विषकन्याओं के बारे में पढ़ा है कि वे दुश्मनों को मारने के लिए तैयार थीं? इसी तरह सावरकर ने अपने जीवन में कुछ युवाओं को तैयार किया था। उस श्रृंखला का अंतिम युवा नाथूराम था। आज के दिन 77 साल पहले उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या की योजना को अमल में लाया। इस योजना के पीछे के मास्टरमाइंड बैरिस्टर सावरकर थे।

मुंबई पुलिस के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जमशेद दोराब नागरवाला ने ‘द मेन हू किल्ड गांधी’ पुस्तक के लेखक मनोहर मालगांवकर से कहा कि सावरकर को साजिश में किसी भी तरह की संलिप्तता से मुक्त किए जाने के काफी दिन बाद और नागरवाला के सेवानिवृत्त होने के कम से कम दो साल बाद, पुलिस महानिरीक्षक के रूप में कार्य कर चुके थे, नागरवाला अभी भी दूसरे से आग्रह कर रहे थे कि मैं मरते दम तक यह विश्वास करूंगा कि सावरकर ही वह व्यक्ति था जिसने गांधी की हत्या की योजना बनाई थी।

डॉ. सुरेश खैरनार
डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here