Thursday, November 21, 2024
Thursday, November 21, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमसामाजिक न्यायबहुजनजब राष्ट्रपति को जगन्नाथ मंदिर में जाने से रोका तब कहाँ था...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

जब राष्ट्रपति को जगन्नाथ मंदिर में जाने से रोका तब कहाँ था सनातन धर्म?

प्रो.चंद्रशेखर पर अँगुली उठाने वाले सनातनियों से खुली बहस की चुनौती लखनऊ में भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद तुलसीदास की रामचरितमानस, मनुस्मृति, बंच ऑफ थॉट्स आदि को जातिवादी, संविधान और मानवता विरोधी ग्रंथ बताया है। उन्होंने कहा, उसे जब्त कर असंवैधानिक और मानवद्रोही घोषित कर प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। उन्होंने बिहार के […]

प्रो.चंद्रशेखर पर अँगुली उठाने वाले सनातनियों से खुली बहस की चुनौती
लखनऊ में भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद तुलसीदास की रामचरितमानस, मनुस्मृति, बंच ऑफ थॉट्स आदि को जातिवादी, संविधान और मानवता विरोधी ग्रंथ बताया है। उन्होंने कहा, उसे जब्त कर असंवैधानिक और मानवद्रोही घोषित कर प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। उन्होंने बिहार के शिक्षामंत्री प्रो.चंद्रशेखर सिंह के कथन का पूरी तरह समर्थन करते हुए तथाकथित सनातनियों,आलोचकों से रामचरितमानस, मनुस्मृति आदि के मुद्दे पर मेरी खुली बहस की चुनौती है। उन्होंने सनातनियों, भाजपा प्रवक्ताओं व रुबिका लियाकत, प्रज्ञा मिश्रा आदि एंकरों ने पूछा है कि- स्त्री शूद्रो नाधियतां का मतलब बताओ और इस पर डिबेट कराओ।
    निषाद ने बताया कि  संविधान के अनुच्छेद 45 में 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य और मुफ्त करने की बात लिखी गयी है लेकिन तुलसी की रामायण इसका विरोध करने की वकालत करती है।अधम जाति में विद्या पाए,भयहु यथाअहि दूध पिलाए, इसका उदाहरण है। जिस प्रकार से सांप को दूध पिलाने से वह और विषैला (जहरीला) हो जाता है, वैसे ही शूद्रों (नीच जाति ) को शिक्षा देने से वे और खतरनाक हो जाते हैं। यह पूरी तरह जातिवादी व बहुजन विरोधी है।संविधान जाति और लिंग के आधार पर भेद करने की मनाही करता है तथा दंड का प्रावधान देता है लेकिन तुलसी का रामायण (राम चरित मानस) जाति के आधार पर ऊंच-नीच मानने की वकालत करती है। जे वर्णाधम तेली कुम्हारा,स्वपच किरात कौल कलवारा इसका प्रमाण है।
 यह संविधान की धारा-14-15 का उल्लंघन है। संविधान सबकी बराबरी की बात करता है। जबकि तुलसी की रामायण जाति के आधार पर ऊंच-नीच की बात करती है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है। आभीर (अहीर) यवन किरात खल,स्वपचादि अति अधरूप जे अर्थात अहीर (यादव), यवन (बाहर से आये हुए लोग जैसे इसाई और मुसलमान आदि), आदिवासी, दुष्ट, सफाई कर्मचारी आदि अत्यंत पापी हैं, नीच हैं। तुलसी दास कृत रामचरितमानस में तुलसी ने छुआछूत की वकालत की है, जबकि यह कानूनन अपराध है। यह संविधान के अनुच्छेद-17 के अनुसार संज्ञेय अपराध है।

सरकार ने गांव और जिंदगी पर हमला किया है

   निषाद ने कहा कि वनवास काल में पौराणिक राम की मदद निषाद व उसकी केवट, वानर, ऋक्ष, कोल, भील, शबर, किरात जातियों ने ही किया, किसी ब्राह्मण व सवर्ण ने नहीं। तुलसीदास ने निषाद के बारे में अत्यंत ही नीचता की पराकाष्ठा पार करते हुए लिखा है- कपटी कायर कुमति कुजाती, लोक, वेद बाहर सब भांति, लोक वेद सब भाँतिहि नीचा,जासु छांह छुई लेईह सींचा, जिसका मतलब है- केवट (निषाद, मल्लाह) समाज, वेद शास्त्र दोनों से नीच है। अगर उसकी छाया भी छू जाए तो नहाना चाहिए। तुलसी ने निषाद को कुजात, कायर, कपटी, कुमति लिखा है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है। तुलसीदास ने निषाद के मुँह से कहलवाया है- हम जड़जीव जीवजन घाती,कुटिल कुचाली कुमति कुजाती, यह हमरि अति बड़ सेवकाई,लेही न बासन बसन चोराई अर्थात हमारी तो यही बड़ी सेवा है कि हम आपके कपड़े और बर्तन नहीं चुरा लेते यानि हम तथा हमारी पूरी जाति चोर हैं। हम लोग जड़जीव हैं। जीवों की हिंसा करने वाले हैं। जब संविधान सबको बराबर का हक देता है तो रामायण को गैर-बराबरी एवं जाति के आधार पर ऊंच-नीच फैलाने वाली व्यवस्था की वकालत करती है। तुलसीदास ने निषाद की बजाय किसी ब्राह्मण के मुख यह नीच बातें क्यों नहीं कहलवाया। निषाद ने हिन्दू धर्म शास्त्रों को पिछड़ी,वंचित,दलित आदिवासी जातियों का विरोधी बताते हुए व्यासस्मृति के 1/11-12 श्लोक
वर्द्धकी नापितो गोपः आशापः कुंभकारकः वाणिक्कित कायस्थ मालाकार कुटुंबिना वरहो मेद चंडालः दासो श्वपचकोलका एषां सम्भाषणात्स्नानं दर्शनादक वीक्षणम् को पूरी तरह जातिवाद का जहर घोलने वाला बताया।इस श्लोक का अर्थ है कि बढई, नाई, ग्वाला, कुम्हार, बनिया, किरात, कायस्थ, भंगी, कोल, चंडाल, ये सब शूद्र, अन्त्यज कहलाते हैं, इनसे बात करने पर स्नान और इनको देख भर लेने पर सूर्य के दर्शन से शुद्धि होती हैं। निषाद जाति की उपजातियों के बारे तुलसीदास दुबे ने लिखा है- स्वपच सबर खस जमन जड़ पामर कोल किरात, राम कहत पावन परम होत भुवन विख्यात  यानी चंडाल, भंगी, शबर, खस, यवन, मूर्ख, नीच, कोल, भील, किरात इत्यादि सभी राम नाम लेने से परम पवित्र हो जाते हैं, यह बात सारे संसार में प्रसिद्ध हैं।

सरकार ने गांव और जिंदगी पर हमला किया है

मनुस्मृति के श्लोक-4-195 में लिखा है- आधिक कुल मित्रं च गोपाले दास नापितौ,एते शूद्रेषु भोज्यान्ना पश्चात्वानं निवेदयेत् अर्थात आधे के हिस्सेदार खेत जोतने वाली कृषक जातियाँ कुर्मी, काछी, कोइरी, जाट, गूजर,लोधी आदि यादव (अहीर), दास, नाई कुल का मित्र से सब शूद्र हैं, फिर भी इनका अत्र खाने योग्य हैं, उनकी पका भोजन खाने योग्य नहीं होता हैं।
दश सूना समंचक्रिन दसचक्रसमो ध्वजःध्वजसमो वेशो दशवेशसमो नृपः
मनुस्मृति गृहस्थाश्रम में उक्त श्लोक लिखा है जिसका अर्थ- 10 हत्यारे =1 तेली या 100 हत्यारे = 1 कलवार, 10 कलवार या 1000 हत्यारे = 1 पेशोपजीवी, 10 पेशोपजीवी अथवा 10,000 हत्यारे = 1 अक्षत्रिय राजा होता है। उन्होंने कहा कि मनुस्मृति आदि हिन्दू धर्मग्रंथों में जिन्हें नीच, पापी,शूद्र आदि लिखा है वही शुद्ध,सृजनहार, पालक व अन्नदाता हैं और दूसरे की मेहनत का खाने, पहनने वाला परजीवी महानीच, महाशूद्र, महापापी, हरामखोर व देशद्रोही है।

चौ.लौटनराम निषाद लेखक सामाजिक न्याय चिन्तक व भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।
1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here