Saturday, October 5, 2024
Saturday, October 5, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविचारहिंदू धर्म का पाखंड केवल दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के लिए है...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

हिंदू धर्म का पाखंड केवल दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के लिए है डायरी (7 सितम्बर, 2021)

ब्राह्मणवाद का मूल आधार ही पाखंड है। मुट्ठी भर लोगों का समाज के हर क्षेत्र में वर्चस्व बनाए रखना इसका मुख्य उद्देश्य। पाखंड किस तरह से इस समाज को विवेकहीन बनाता है, इसके उदाहरण आए दिन देखने को मिल जाते हैं। एक उदाहरण है मध्य प्रदेश के दमोह जिले के जबेरा थाना के बनिया नामक […]

ब्राह्मणवाद का मूल आधार ही पाखंड है। मुट्ठी भर लोगों का समाज के हर क्षेत्र में वर्चस्व बनाए रखना इसका मुख्य उद्देश्य। पाखंड किस तरह से इस समाज को विवेकहीन बनाता है, इसके उदाहरण आए दिन देखने को मिल जाते हैं। एक उदाहरण है मध्य प्रदेश के दमोह जिले के जबेरा थाना के बनिया नामक एक गांव की घटना। यह घटना ऐसी है जो भारतीय सभ्यता की पोल खोलती है।

दरअसल, बीते रविवार को उपरोक्त बनिया गांव में छह किशोर बच्चियों को निर्वस्त्र घुमाया गया। ऐसा इसलिए नहीं किया गया कि इन बच्चियों ने कोई अपराध किया था या फिर इनके उपर डायन का कोई आरोप था। डायन कहकर महिलाओं को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाने, उनका सिर मुंडने और मल-मूत्र जबरदस्ती मुंह में डालने की घटनाएं पूरे हिंदी प्रदेशाों में आम बात है। कई बार ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग होती है और मामला थाना तक पहुंचता है। लेकिन उसके बाद होता यह है कि किसी को कोई सजा नहीं होती। कई मामले में तो पीड़ित ही मुकदमे वापस ले लेता है। इसकी वजह यह होती है कि पीड़ित सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। फिर उन्हें डराया-धमकाया भी जाता है। इन सबसे होता यह है कि डायन के आरोप लगाकर महिलाओं के साथ क्रूरतापूर्ण अमानवीय व्यवहार करनेवालों को कोई सजा नहीं होती है और इससे अन्य का हौसला बढ़ता है। जबकि इस देश में इसके लिए डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम, 1999 के तहत विशेष प्रावधान हैं।

खैर, काेई भी कानून तभी महत्वपूर्ण होता है जब उसे अमल में लानेवाला तंत्र संवेदनशील हो। जब सत्ता के शीर्ष पर आसीन व्यक्ति ही पाखंडपूर्ण आचरण करे तो कहने को कुछ शेष नहीं रह जाता।

[bs-quote quote=”ब्रह्मा जितना चरित्रहीन था, विष्णु और महेश की चरित्रहीनता कम नहीं थी। इंद्र तो खैर भले ही देवताओं का राजा था लेकिन औकात के मामले में वह इन तीनों देवों से बहुत नीचे था। मध्य प्रदेश के दमोह जिले के बनिया गांव के लोगों ने किशोर बच्चियों को निर्वस्त्र कर इसलिए घुमाया ताकि उनके अंग देख इंद्र की कामुकता जगे और वह लोभवश आए और आसमान से बारिश करवाए।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

मैं मध्य प्रदेश के दमोह जिले की घटना की बात कर रहा था। वहां हुआ यह कि छह बच्चियों को निर्वस्त्र कर घुमाया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि बरसात हो। जब बच्चियों को घुमाया जा रहा था तब उनके पीछे पूरा गांव था। उनमें महिलाएं भी थीं और उन बच्चियों के अपने माता-पिता और भाई सब थे।

दरअसल, हिंदू धर्म ग्रंथों में इंद्र को देवताओं का राजा माना गया है। उसके चरित्र की चर्चा भी कई रूपों में की गयी है। एक तो यह कि वह बड़ा कामुक स्वभाव का देवता है। ऐसी बातें ऋग्वेद में है। कई किस्से-कहानियां भी हैं पुराणों में जब इंद्र का कामुक चरित्र सामने आता है। इंद्र ब्राह्मण ऋषि-मुनियों की पत्नियों को भी नहीं छोड़ता था। उसने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का शील भंग किया था। सबसे दिलचस्प यह कि गौतम ऋषि ने इंद्र को सजा देने के बजाय अपनी पत्नी को ही पत्थर बन जाने का शाप दिया।

खैर, ब्रह्म ही सत्य है का जाप करनेवाले भी जानते हैं कि ब्रह्मा की पूजा क्यों नहीं की जाती है। उसे जोतीराव फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगीरी में “बेटीचोद” की संज्ञा दी है। उसके बारे में ग्रंथों में वर्णित है कि उसने अपनी ही पुत्री सरस्वती के साथ व्याभिचार किया। हालांकि अब तो अधिकांश यह मानते हैं कि सरस्वती उसकी पत्नी है। जैसे विष्णु की पत्नी लक्ष्मी, शंकर की पत्नी पार्वती ओर ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती जो कि उसकी बेटी भी है। ग्रंथों के मुताबिक उसकी पहली पत्नी का नाम सावित्री था। ब्रह्मा को ब्राह्मण ग्रंथ सृष्टि का रचयिता बताते हैं। उसके बारे में  नारद पंचरात्र नामक एक पुस्तक में एक घटना का वर्णन है, जो उसके चरित्र को सत्यापित करता है। एक श्लोक है इसमें –

गृहीत्वा मदनाग्निं च मैथुने सुखदायकम्।

विश्चे च योषित: सर्वा: शश्वतकामा भवंतु च।। 46

इसके मुताबिक ब्रह्मा ने अपने संसद में उन्होंने सुव्रता और पतिव्रता महिलाओं को बुलाया और उनसे कहा अपने अंदर इतना कामाग्नि भर लेने को कहा ताकि पुरुषों को मैथुन करने में अधिकाधिक आनंद की प्राप्ति हो।

[bs-quote quote=”काेई भी कानून तभी महत्वपूर्ण होता है जब उसे अमल में लानेवाला तंत्र संवेदनशील हो। जब सत्ता के शीर्ष पर आसीन व्यक्ति ही पाखंडपूर्ण आचरण करे तो कहने को कुछ शेष नहीं रह जाता।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

ब्रह्मा जितना चरित्रहीन था, विष्णु और महेश की चरित्रहीनता कम नहीं थी। इंद्र तो खैर भले ही देवताओं का राजा था लेकिन औकात के मामले में वह इन तीनों देवों से बहुत नीचे था। मध्य प्रदेश के दमोह जिले के बनिया गांव के लोगों ने किशोर बच्चियों को निर्वस्त्र कर इसलिए घुमाया ताकि उनके अंग देख इंद्र की कामुकता जगे और वह लोभवश आए और आसमान से बारिश करवाए।

कितनी लज्जा की बात है यह। ब्राह्मणवाद ने इस देश का क्या हश्र कर दिया है, इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है।

ब्राह्मणवाद को चुनौतियां भी मिलती रही हैं। लेकिन जितनी मिलनी चाहिए उतनी नहीं मिलीं। मेरी जेहन में इसी वर्ष जनवरी की एक खबर है। तब झारखंड के सरायकेला की एक महिला छुटनी महतो को पद्मश्री का सम्मान दिया गया था। वह सरायकेला के बीरवांस की रहनेवाली थी। करीब 25 साल पहले उस पर डायन होने का आरोप लगाकर गांव के लोगों (जिसमें उसके अपने परिजन भी शामिल थे) ने निर्वस्त्र कर घुमाया था, उसके साथ मारपीट की गयी थी और मल-मूत्र भी पिलाया गया था। यह घटना 1996 में घटित हुई थी। तब झारखंड बिहार का हिस्सा था। इस घटना के बाद छुटनी महतो ने अपना ससुराल छोड़ दिया। तब वह केवल तीसरी कक्षा तक पढ़ी थी। एक सामाजिक संगठन से जुड़कर उसने न केवल अपनी पढ़ाई पूरी की बल्कि डायन प्रथा के खिलाफ जंग छेड़ दिया। आज वह छुटनी महतो कानूनी लड़ाइयां लड़ती है और उसके अदम्य साहस को देखते हुए झारखंड सरकार की अनुशंसा पर भारत सरकार ने पद्मश्री का सम्मान दिया।

बहरहाल, छुटनी महतो एक उदाहरण हैं। डायन प्रथा से संबंधित खबरों को लेकर 2008 से लिखता-पढ़ता रहा हूं। कई बार पहल भी किया ताकि पीड़िता को इंसाफ मिल सके। परंतु, जितने मामले मेरे संज्ञान में अबतक आए हैं, उनमें पीड़ित दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग की रही हैं। मैंने आजतक किसी द्विज महिला को डायन प्रथा का शिकार होते नहीं देखा है। इसकी वजह केवल यही कि सारे पाखंड और अंधविश्वास ब्राह्मणों ने कमजोर वर्गों के लिए ही गढ़े हैं।

नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।
1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here