Monday, June 9, 2025
Monday, June 9, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराजनीतिनफरत की राजनीति के घातक नशे से कैसे बचे वंचित समाज

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

नफरत की राजनीति के घातक नशे से कैसे बचे वंचित समाज

तीन दिन पूर्व व्हाट्सप पर कोलकाता के एक घनिष्ठ मित्र द्वारा एक ऐसी सामग्री मिली, जिसकी अनदेखी न कर सका और यह आलेख लिखने बैठ गया। जिस मित्र के द्वारा यह सामग्री भेजी गयी थी, वे एक ऐसे शख्स रहे जिनसे मैंने सामाजिक न्याय का प्राथमिक पाठ पढ़ा। हमारी घनिष्ठता का खास कारण यह रहा […]

तीन दिन पूर्व व्हाट्सप पर कोलकाता के एक घनिष्ठ मित्र द्वारा एक ऐसी सामग्री मिली, जिसकी अनदेखी न कर सका और यह आलेख लिखने बैठ गया। जिस मित्र के द्वारा यह सामग्री भेजी गयी थी, वे एक ऐसे शख्स रहे जिनसे मैंने सामाजिक न्याय का प्राथमिक पाठ पढ़ा। हमारी घनिष्ठता का खास कारण यह रहा कि हम दोनों एक दिन एक्साइड फैक्ट्री में ज्वाइन किए थे। परवर्तीकाल में हममें गहरी वैचारिक साम्यता भी जगह बना ली। जिन दिनों नौकरी के बाद मेरा सारा ज्ञान-ध्यान फिल्म और क्रिकेट हुआ करता था, हमारे मित्र नौकरी और घर-गृहस्थी सँभालने के बाद का समय वंचित जातियों के जागरूक लोगों को संगठित करने में लगाते रहे। इस क्रम में वे ट्रेड यूनियन की राजनीति में जगह बनाने में कामयाब हो गए। तेली जाति के मेरे वह मित्र रिटायर होने के बाद भी लोकल स्तर पर तृणमूल कांग्रेस से जुड़े रहे। किन्तु उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन तब आया, जब केंद्र की सत्ता पर नरेंद्र मोदी काबिज हुए। उसके बाद तो सामाजिक न्याय और कांग्रेस-वाम की राजनीति भूलकर वह मोदी और उनकी भाजपा के पक्के भक्त हो गए एवं अपनी बौद्धिक ऊर्जा संघ के विचार के प्रचार-प्रसार में लगाने लगे। कोलकाता के मेरे उसी मित्र ने बहुत पुराने अख़बार की एक कतरन मुझे व्हाट्सप की। इसके पहले भी वह इससे मिलती-जुलती सामग्री भेजते रहे। पर, ताजी सामग्री ऐसी रही है, जिसको नजरंदाज़ करना कठिन रहा।

3 x 6” के साइज़ की अखबारी कतरन में फिगर भी हिंदी में लिखे हुए हैं। इसके टॉप पर लिखा हुआ है ‘देश में मुस्लिम और क्रिश्चियन का कार्ड खेलने वाली कांग्रेस ने देश में क्या-क्या गुल खिलाये हैं, जानना हर भारतवासी का हक़ है। 2008 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद सोनिया गांधी और राहुल के काले कारनामे… मुस्लिम-क्रिश्चियन आरक्षण का कहर।’

[bs-quote quote=”बहुजन इसलिए नफरती राजनीति के नशे में मतवाले हो गए, क्योंकि जिस सामाजिक न्याय की राजनीति के ज़रिये अप्रतिरोध्य भाजपा को लाचार और कमजोर किया जा सकता है, उस सामाजिक न्याय की राजनीति को हवा देने का काम पिछले एक दशक से ‘न’ के बराबर हुआ। ऐसे में बहुजनों का यह घातक नशा सिर्फ उग्र सामाजिक न्याय की राजनीति के जोर से ही उतारा जा सकता है, ऐसा हमारा मानना है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

इसके बाद पांच कॉलम- क्रम, विभाग, कुल पद, मुस्लिम-क्रिश्चियन, हिन्दू, बनाकर विभिन्न सरकारी विभागों में मुस्लिम-ईसाईयों और हिन्दुओं की स्थिति दर्शायी गयी है। हिन्दू वाले कॉलम में दलित, आदिवासी, पिछड़े, सवर्ण इत्यादि का उल्लेख न कर, सिर्फ ‘हिन्दू’ लिखा गया है। क्रम संख्या 1 में ‘राष्ट्रपति सचिवालय’ में 49 पद दिखाया गया है, जिनमें 45 पद मुस्लिम-ईसाई और 4 पदों पर हिन्दू हैं। क्रम संख्या 2 में ‘उप राष्ट्रपति’ सचिवालय विभाग है, जिसमें सात पद दिखाए गए हैं और सातों के सात मुस्लिम-ईसाई के कब्जे में। एक भी पद पर हिन्दू नहीं। तीसरे में ‘मंत्रियों के कैबिनेट सचिव विभाग’ हैं, जिसमें 20 पद दिखाए गए हैं। इन बीस में 19 पद मुस्लिम-ईसाईयों के हिस्से में दिखाया गया है। हिन्दू कॉलम के सामने सिर्फ एक है। क्रम संख्या 4 में ‘प्रधानमंत्री कार्यालय’ दिखाया गया है, जिसमें 35 पद हैं। इन 35 में से 33 मुस्लिम-ईसाईयों और 2 हिन्दुओं के हिस्से में दिखाया गया है। पांचवें में ‘कृषि-सिचाई’ विभाग है, जिसके सामने 274 पद दिखाए गए हैं। इनमें 259 पद मुस्लिम-ईसाइयों और 15 हिन्दुओं के हिस्से में दिखाया गया है। छठवें में ‘रक्षा मंत्रालय’ है, जिसमें 1379 पद दिखाए गए हैं। इनमें सिर्फ 48 पर हिन्दू है, जबकि मुस्लिम-ईसाई 1331 पदों पर काबिज दिखाए गए हैं। क्रम संख्या 7 में ‘समाज- हेल्थ मंत्रालय’ है, जिसमें 209 पड़ दिखाए गए हैं, जिनमें 192 पर मुस्लिम-ईसाई और हिन्दू सिर्फ 17 पर। आठवें में ‘वित्त मत्रालय’ है, जिसके सामने 1008 पर दिखाए गए हैं। इनमें महज 56 पर हिन्दू, जबकि 952 पद मुस्लिम-ईसाईयों के हिस्से में दिखाया गया है। नौवें में ‘ग्रह (गृह) मंत्रालय’ है, जिसमें 409 पद दिखाए गए हैं। इनमें 377 पर मुस्लिम ईसाईयों, जबकि 32 पर हिन्दुओं की उपस्थिति दिखाई गयी है। क्रम संख्या दस पर है ‘श्रम मंत्रालय’, जिसके 74 में से 70 पदों में मुस्लिम-ईसाई और 4 पर हिन्दुओं का कब्ज़ा दिखाया गया है। ग्यारहवें पर ‘रसायन- पेट्रो मंत्रालय’ है, जिसमें 121 पद हैं। इनमें 112 पर मुस्लिम-ईसाई, जबकि सिर्फ 9 पर हिन्दुओं की उपस्थिति दिखाई गयी है।

12वे नंबर पर ‘राज्यपाल-उपराज्यपाल’ का विभाग है, जिसके 27 में से सिर्फ 7 पर हिन्दुओं और शेष 20 पदों पर मुस्लिम-ईसाईयों का कब्ज़ा दिखाया गया है। 13वें पर विभाग के कॉलम में ‘विदेश में राजदूत’ लिखा हुआ है, जिसमें 140 पद हैं। इनमें 130 पर मुस्लिम-ईसाई, जबकि महज 10 पर हिन्दू दिखाए गए हैं। 14वें क्रम में ‘विश्वविद्यालय कुलपति’ का विभाग है, जिसके 108 में से 88 पदों पर मुस्लिम-ईसाई और 20 पर हिन्दू काबिज दिखाए गए हैं। 15वें पर ‘प्रधान सचिव’ का पद है, जिसके 26 में से 20 पर मुस्लिम-ईसाई और 6 पर हिन्दुओं का कब्ज़ा दिखाया गया है। 16वें में हाईकोर्ट के न्यायाधीश हैं, जिनके 330 में से सिर्फ 4 पर हिन्दू, जबकि 326 पद मुस्लिम ईसाईयों के कब्जे में दिखाया गया है। क्रम संख्या 17वें में ‘सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश’ के पद है, जिनकी संख्या 23 दिखाई गयी है। इन 23 में से 20 पर मुस्लिम-ईसाई, जबकि सिर्फ 3 पर हिन्दू दिखाए गए हैं। 18वें नंबर पर ‘आईएएस अधिकारी’ के पद हैं, जिनकी दिखाई गयी संख्या 3600 में 3000 मुस्लिम-ईसाईयों और सिर्फ 600 पर हिन्दुओं को काबिज दिखाया गया है। क्रम संख्या 19 पर है ‘पीटीआई’, जिसके कुल 2700 पदों में मुस्लिम-ईसाईयों को 2400 पर और 300 पदों पर हिन्दुओं को काबिज दिखाया गया है। इसके बाद नीचे लिखा गया है- 1947 से अब तक किसी सरकार ने इस तरह से संविधान को अनदेखा और इसका उल्लंघन नहीं किया, सरकार की नज़रों तो जैसे मुस्लीम से श्रेष्ठ, ईमानदार, योग्य, अनुभवी और मेहनती कोई दूसरी जातियां हैं ही नहीं…।

यह भी पढ़ें…

क्या उत्तर प्रदेश में सिर्फ जाति के सवाल पर होगा आगामी लोकसभा का चुनाव

क्या ये सब कानून का उलंघन और संविधान के खिलाफ नहीं था? इसके नीचे लिखा गया है- ‘आपको यह संदेश 3 लोगों को भेजना है। बस आपको तो एक कड़ी जोड़नी है। देखते ही देखते पूरा देश जुड़ जायेगा।’

वैसे तो गलतियों और झूठी सूचनाओं से भरे उपरोक्त अखबारी कतरन में संघ या उसके किसी आनुषांगिक संगठन का उल्लेख नहीं है, किन्तु जिस तरह इसमें भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल करते हुए सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर सवाल उठाए गए हैं, जिस तरह इसे तीन लोगों तक फॉरवर्ड करने का आह्वान किया गया है, उससे कोई भी इस नतीजे पर पहुंच सकता है कि यह संघ या उसके किसी आनुषांगिक संगठन की कारसाजी है, जिसके जरिये अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के खिलाफ नफरत फ़ैलाने का बलिष्ठ प्रयास हुआ है। इसमें जिस तरह शासन-प्रशासन से जुड़े बेहद महत्त्वपूर्ण पदों पर मुस्लिम-ईसाईयों के एकाधिकार को दर्शाया गया है, उससे किसी भी हिन्दू का खून खौल जायेगा। लेकिन सच्ची बात तो यह है कि आजाद भारत में उपरोक्त पदों पर सवर्णों, खासकर ब्राह्मणों की भरमार रही है जैसा कि कतरन में मुस्लिम-ईसाईयों का दिखाया गया है।

सवर्णों के विपरीत अल्पसंख्यकों की उपस्थिति इस कतरन में दिखाए गए हिन्दुओं के आंकड़े से कभी बेहतर नहीं रही। अगर अतीत में रही भी तो आज की तारीख में वह अत्यंत शोचनीय हो गयी है। सच्ची बात तो यह है कि आज की तारीख में कतरन में दर्शाए गए पदों सहित शक्ति के समस्त स्रोतों- आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक- पर जैसा एकाधिकार भारत के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग – ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों- का कब्ज़ा है, वैसा कब्ज़ा पूरे विश्व के किसी भी अंचल में, किसी भी जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग का नहीं है। तमाम आधिकारिक आंकड़े गवाही देते हैं कि आजाद भारत के डेमोक्रेटिक व्यवस्था में भी सवर्ण ही देश के मालिक है। गैर-सवर्ण जिनमें दलित, आदिवासी, पिछड़े और इनसे धर्मान्तरित तबके, जिनकी आबादी 85 प्रतिशत से अधिक है, प्रायः गुलामों की स्थिति में आ गए हैं। इनके विपरीत जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के पुरुष वर्ग, जिनकी आबादी साढ़े सात-आठ प्रतिशत से ज्यादा नहीं है, का समस्त क्षेत्रों में औसतन 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा है। किन्तु वंचित वर्गों के नेताओं की अज्ञानता व सवर्णपरस्ती तथा बुद्धिजीवी वर्ग की मीडिया पर अत्यंत सीमित पकड़ के कारण सुविधाभोगी वर्ग के दहला देने वाले आंकड़े आम वंचितों तक नहीं पहुंच पाते। अगर पहुंच जाते तो क्रांति का सैलाब आ जाता, लेकिन वंचितों के विपरीत जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हितों की पोषक भाजपा और उसके पितृ संगठन संघ की पहुंच बहुत ज्यादे है, पूरा मीडिया आज मोदीमय हो चुकी है। ऐसे में जो मुस्लिम विद्वेष संघ की प्राणशक्ति है, उसे वह बड़ी आसानी प्रसारित कर लेता है, जैसे इस कतरन के जरिये किया गया है।

यह भी पढ़ें…

आये दिन पेपर होते हैं लीक, तो फिर सरकार किन लाखों लोगों को दे रही है नौकरियाँ

दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए भाजपा अभी से ही संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार के द्वारा इजाद उस ‘हेट पॉलिटिक्स’ को तुंग पर पहुंचाने में जुट गयी है, जिसके सहारे ही कभी वह दो सीटों पर सिमटने के बावजूद नयी सदी में अप्रतिरोध्य बन गयी।मंडल उत्तरकाल में जब-जब महत्वपूर्ण चुनाव आते रहे भाजपा इस हेट पॉलिटिक्स को हवा देने का तरह-तरह से उपक्रम चलाती रही है। चूँकि 2024 का लोकसभा चुनाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, इसलिए भाजपा द्वारा नफरत की राजनीति की सारी हदें पार करने का कयास लगाया जा सकता है। ऐसे में अख़बार की उपरोक्त कतरन को भाजपा के मिशन-2024 का हिस्सा मानकर चलना ही देश व बहुजन हित में बेहतर होगा। बहरहाल, 2024 को ध्यान में रखकर भाजपा और संघ ऐसे ढेरों उपक्रम चलाएंगे, जिससे नफरत की राजनीति तुंग पर पहुंचे। ऐसे में सवाल पैदा होता है, ऐसा क्या किया जाए, जिससे वंचित बहुजन भाजपा द्वारा पैदा किए जाने वाले नफ़रत के सैलाब में न बहे। इस दिशा में 27 अगस्त को दिल्ली में आयोजित 17वें डाइवर्सिटी डे से एक महत्वपूर्ण सुझाव आया है।

बहुजन डाइवर्सिटी मिशन और संविधान बचाओं संगर्ष समिति द्वारा 17वें डाइवर्सिटी डे पर ‘इंडिया के समक्ष हमारी अपील’ शीर्षक से एक दस सूत्रीय पत्रक जारी हुआ। इसके अपील नंबर तीन में कहा गया है- ‘हम मानते हैं कि भाजपा ने दलित, आदिवासी, पिछड़ों को अपने नफरती राजनीति के नशे में इस क़दर मतवाला बना दिया है कि वे आरक्षण सहित अपने ढेरों अधिकार खोने तथा गुलामों की स्थिति में पहुँचने से भी निर्लिप्त हो गए हैं। कश्मीर फाइल्स, द केरला स्टोरी तथा ग़दर 2 जैसी साधारण प्रोपेगेंडा फिल्मों की असाधारण सफलता मोदी राज में विकसित हुई नफरती मानसिकता का ही परिणाम है, जिसे बहुत ही सुनियोजित तरीके से विकसित किया गया है। बहुजन इसलिए नफरती राजनीति के नशे में मतवाले हो गए, क्योंकि जिस सामाजिक न्याय की राजनीति के ज़रिये अप्रतिरोध्य भाजपा को लाचार और कमजोर किया जा सकता है, उस सामाजिक न्याय की राजनीति को हवा देने का काम पिछले एक दशक से ‘न’ के बराबर हुआ। ऐसे में बहुजनों का यह घातक नशा सिर्फ उग्र सामाजिक न्याय की राजनीति के जोर से ही उतारा जा सकता है, ऐसा हमारा मानना है।’

यह भी पढ़ें…

मोदी सरकार की कारगुजारियों को देखकर कैसे उम्मीद हो कि भारत भेदभाव दूर करेगा

ऐसे में अगर इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस) नफरत की राजनीति पर निर्भर भाजपा से पार पाना चाहती है तो उसे अपने प्रचार को मुख्यतः भाजपा के आरक्षण विरोधी इतिहास से आरक्षित वर्गों को अवगत कराने पर केन्द्रित करने के साथ अपने चुनावी एजेंडे को नौकरियों में आरक्षण से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी, मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति, आउट सोर्सिंग जॉब इत्यादि में संख्यानुपात में आरक्षण को जगह देनी होगी। कारण, एकमात्र सर्वव्यापी आरक्षण का एजेंडा ही वंचित बहुजनों को नफ़रत की राजनीति के घातक नशे से निजात दिला सकता है।

लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment