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वाराणसी: बेमौसम बारिश ने किसानों की उम्मीद पर पानी फेरा

बीते दो-तीन दिनों से बनारस सहित आसपास के जिलों में बेमौसम बारिश हो रही है, जिसकी वजह से खेतों में काटकर रखा हुए धान भीग गए हैं। इस कारण धान के खराब होने की आशंका बढ़ गई है। धान की फसल को काटकर धूप से सुखाने के लिए खेतों में रखा गया था। दो-चार दिनों […]

बीते दो-तीन दिनों से बनारस सहित आसपास के जिलों में बेमौसम बारिश हो रही है, जिसकी वजह से खेतों में काटकर रखा हुए धान भीग गए हैं। इस कारण धान के खराब होने की आशंका बढ़ गई है।

धान की फसल को काटकर धूप से सुखाने के लिए खेतों में रखा गया था। दो-चार दिनों में घर ले जाने की तैयारी थी, बेमौसम बरसात से भीग गई और कहीं-कहीं फसल बर्बाद भी हुई है। किसानों को डर है कि इस बार भी उनकी मेहनत कहीं ‘घाटे का सौदा’ न बन जाए।

बीते फरवरी माह में अत्यधिक बारिश और ओलावृष्टि से हुए नुकसान की भरपाई अब तक नहीं हो पाई थी कि इधर रुक-रुक कर हो रही बारिश से किसानों की चिंता एक बार फिर बढ़ गई है। आने वाले दिनों में लगातार बारिश से किसानों को धान बेचकर होने वाले फायदे से वंचित होना पड़ेगा।

कृषि वैज्ञानिकों की माने तो सरसों, चना, मटर और फूलों के लिए भी यह बरसात ठीक नहीं है। साथ ही अगली खेती यानी गेहूँ बोने के लिए खेतों को सूखने का इंतज़ार करना पड़ सकता है। इससे किसानों की आय भी प्रभावित हो सकती है।

बुधवार और बृहस्पतिवार को हुई बारिश से खेतों में पानी भरने से जमीन पर रखी गई धान की फसल पानी में डूब गई, जिसे देख किसानों का कलेजा बैठ गया। उनके सामने ही उनकी होने वाली कमाई पर पानी फिर गया।

चिरईगाँव विकास खंड अंतर्गत जाल्हूपुर लूंठाकलां, गौराकलां, झाँझूपुर, पूरनपट्टी सहित दर्जनों गाँवों के किसानों को इस बारिश से नुकसान हुआ है। वही हाल आराजीलाइन, बड़ागाँव, चोलापुर, हरहुआ, काशी विद्यापीठ, पिंडरा और सेवापुरी विकास खंड के किसानों का है। खेतों में जीतोड़ मेहनत का फल किसानों को इस बार भी नहीं मिल पाएगा।

गौराकलां के किसान कृष्ण नारायण शर्मा, जाल्हूपुर के रामनिवास बंगा, लूंठाखुर्द के किसान देवी शंकर पांडेय के खेत में धान की काटकर रखी गई फसल को काफी नुकसान पहुँचा है। वह बताते हैं कि बारिश अचानक हुई। जब तक हम गठरियों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाते तब तक एक चौथाई फसल भीग गई थी। वह फसल अगले दिन पशुओं का चारा बन गए।

चिरईगाँव के किसान लल्लन मौर्या के अनुसार, मौसम के बदलते मिजाज़ ने एक बार फिर हमारी कमाई पर कहर बरपा दिया है। धान की तैयार फसल खेतों में काटकर सूखने के लिए छोड़े गए थे। सूख चुकी फसलों को खलिहान में पहले ही रख दिया गया था। धान की लहनी बरसात के कारण भीग गए।

धान भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है, जो कि जोताई योग्य क्षेत्र के लगभग एक चौथाई हिस्से में उगाई जाती है। भारत की लगभग आधी आबादी इसे मुख्य भोजन के रूप में प्रयोग करती है। बनारस में भी कृषि योग्य भूमि पर धान की खेती होती है। बीते फरवरी माह में भी मौसम ने किसानों का साथ नहीं दिया और ओलावृष्टि से गेहूँ की फसल बर्बाद हो गई।

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क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक

कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र ने बताया कि इस बरसात से आलू, गेहूँ, जौ, मसूर, चना, मटर और सरसों की फसल को कुछ लाभ अवश्य होगा। रबी फसलों की तैयारी में जुटे किसानों के खेत में भरपूर नमी मिल सकेगी। फिलहाल, इस बरसात से लाभ कम और नुकसान अधिक होने की बात सामने आ रही है।

जिला कृषि अधिकारी संग्राम सिंह मौर्य ने गाँव के लोग डॉट कॉम को बताया कि धान की जो फसलें काटकर रखी गई हैं, उनको इस बारिश से नुकसान होगा। चूँकि कटाई, छंटाई के बाद धान को सुखाने के लिए किसान उन्हें खेतों में रखते हैं। उसके बाद गोदाम में रखकर उसके आगे की प्रक्रिया की जाती है। जैसे उसकी सफाई करना, चावल से भूसी अलग करना इत्यादि। उन्होंने कहा कि बारिश का अनुमान होते ही धान के बनाए गए बंडल को किसान खेतों से हटा देते हैं। अचानक हुई बारिश से धान के जो बंडल भीग गए। नुकसान उन्हीं का हुआ होगा। एक सवाल के जवाब में जिला कृषि अधिकारी ने कहा कि किसानों को धान की छंटाई के लिए सरकारी स्तर पर मशीनें नहीं दी जाती हैं।

जनपद के जिला कृषि रक्षा अधिकारी बृजेश विश्वकर्मा का भी यही मानना है कि इस बरसात से लाभ कम नुकसान अधिक होगा। धान की तैयारी फसल को क्षति होने के साथ ही सब्जी की कद्दूवर्गीय फसलों को काफी क्षति पहुँचेगी। सब्जी की फसल में फफूंदजनित रोगों के साथ ही फली छेदक कीटों का प्रकोप बढ़ेगा। उन्होंने किसानों से मौसम साफ होते ही सब्जियों की फसलों पर आवश्यकतानुसार फफूंदनाशी दवा का सुरक्षात्मक छिड़काव अवश्य करें, जिससे फसलों की सुरक्षा की जा सके।

बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि का असर केवल कृषि क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों तक भी विस्तृत हो गया है। इस समस्या के समाधान के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक उपाय शामिल हों। कृषि क्षेत्र की प्रत्यास्थता को सुनिश्चित करने के लिए जलवायु परिवर्तन का शमन महत्वपूर्ण है। वर्तमान सरकार ने किसानों की चिंताओं को दूर करने के लिए भले ही कई योजनाएँ शुरू की हैं, लेकिन इस क्रम में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वृहत समन्वयन की आवश्यकता है।

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