Tuesday, April 16, 2024
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Banaras : कांशीराम आवास में रहने वाले सैकड़ों लोग क्यों नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर हैं?

कांशीराम आवास कम आमदनी वालों के लिए बनाया गया था लेकिन आज इन आवासों की स्थिति बहुत ही जर्जर हो चुकी है।

काशी : अंतिम संस्कार के लिए परिजन अपनों की लाशें लेकर इधर से उधर क्यों भटक रहे हैं?

भारत देश में काशी नगरी पर आस्था रखने वालों की यह दिली तमन्ना होती है कि मरने के बाद उनका अंतिम संस्कार इसी नगरी में किया जाये। यहाँ अंतिम संस्कार के लिए आसपास के लोग आते भी हैं। लेकिन इधर प्रशासन ने शव ले जाने वाले मणिकर्णिका रास्ते में बदलाव कर भैंसासुर घाट से ले जाने का आदेश जारी कर जनता के लिए परेशानी खड़ी कर दी है।

दख़ल ने सावित्रीबाई फुले को याद किया

वाराणसी। रुढ़िवादी समस्याओं से जूझते हुए माता सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला और खुद पहली महिला शिक्षिका बनीं। इस काम...

वाराणसी: बेमौसम बारिश ने किसानों की उम्मीद पर पानी फेरा

बीते दो-तीन दिनों से बनारस सहित आसपास के जिलों में बेमौसम बारिश हो रही है, जिसकी वजह से खेतों में काटकर रखा हुए धान...

बनारस के खिड़किया घाट पर मानवता, प्रेम और सहिष्णुता का सन्देश देते हुए मनाया फ्री हग डे

वाराणसी। खिड़किया घाट पर बनारस में मानवता प्रेम और सहिष्णुता का सन्देश देते हुए ' फ्री हग डे ' (सार्वजनिक गले मिलने के) कार्यक्रम...

नकदी खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है

वाराणसी। त्योहारों के चलते पूरे देश में उत्सव का माहौल है। एक के बाद एक त्योहार आ रहे हैं। नवरात्रि के बाद दशहरा और...

वाराणसी में जी20 के उत्साह के बीच दफ़न हो गए ठेले-खोमचों वालों के दर्द और आँसू

वाराणसी। जी20 शिखर सम्मेलन को लेकर इतना प्रचार है कि पिछले कई महीने से इस शहर का भाजपा समर्थक खेमा अतीव उत्साह में है...

बुनियादी सुविधाओं की उम्मीद में ढेलवरिया निवासी

वाराणसी। बनारस की अधिकतर आबादी का बोझ ढो रही गलियों का हाल, 'बेहाल' है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस को विकास के...

हर तरफ फैला सियासी तामझाम फिर भी नहीं मिटा बनारस का जाम

वाराणसी। सरकारी विभागों के फाइलों में स्मार्ट सिटी घोषित हो चुके वाराणसी शहर की यातायात व्यवस्था अनस्मार्ट हो गई है। रुका हुआ यातायात, कुछ...

एलजीबीटी समुदाय के लिए स्वास्थ्य शिविर का आयोजन

वाराणसी। करौंदी स्थित वल्लभ भाई पार्क में बृहस्पतिवार को बनारस  की ओर से एलजीबीटीक्यूआई प्लस समुदाय के लिए स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया।...

बेराह बनारस में बवाल उर्फ मोदी सरकार के नौ साल

मोदी सरकार अपने कार्यकाल के 9 साल बेमिसाल मना रही है। इस बेमिसाल की ओर बढ़ने से पहले मैं सभी संवैधानिक सस्थानों से क्षमा चाहता...

बनारस में ब्रश बनाने वाली कामगारों को न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं लेकिन कटौती अनिवार्य

सर्व सेवा संस्थान, राजघाट के ठीक सामने किला कोहना राजघाट नाम का एक मोहल्ला है। मोहल्ला क्या एक बड़ा-सा बाड़ा जैसा था, जैसे ही...

पेंटागन के बिल्ले यहीं शिवाले में बनते हैं

शिवाले की गली में घुसते ही एक पुरानी, सीलन भरी और पुराने सामानों से अंटी पड़ी कोठरी में दो कारचोब पर दो लोग झुके...

मेलजोल और आपस में सहयोग की परम्परा ही हमारी संस्कृति है

वाराणसी। सामाजिक सरोकारों के संयुक्त पहल साझा संस्कृति मंच एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय उत्तर प्रदेश  के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित प्रेम और भाईचारे...

अर्थव्यवस्था के कुठाराघात ने बनारस में खिलौना बनानेवालों को तबाही के कगार पर ला खड़ा किया है

बनारस अपनी अनेक चीजों के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। यहाँ की गलियाँ, गालियाँ, मिठाई, घाट, पंडे, पान, विश्वविद्यालय और भौकाल सबकुछ दूर-दूर...

खिलौना रंगने वाली औरत की साठ रुपये रोज पर कैसे गुजर होती होगी?

बनारस के मुहल्लों में काम कर रहे श्रमिकों का कठिन जीवन - पहली किश्त  एक  छत पर पहुँचते ही रंग की तेज गंध नाक में घुसी।...

मछुआरों की उपेक्षा भी है नदी प्रदूषण का एक बड़ा और गम्भीर कारण

नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा अब गाँव से शहर की तरफ बढ़ने लगी है। 31 जुलाई दिन रविवार को शास्त्री घाट से निषाद राज...

लोग भी चाहते हैं कि वरुणा फिर से लहलहाती हुई बहती रहे

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान मैं गंगा नदी के किनारे अक्सर घूमा करता था। कभी घाटों की सीढ़ियों पर, कभी नदी उस...

वाराणसी को पहचान देने वाली ‘वरुणा’ और ‘असि’ की उखड़ती साँसें क्यों नहीं सुन पा रहे मोदी

वरुणा कॉरिडोर बनवाकर सपा सुप्रीमो अखिलेश ने साल 2016 में खूब सुर्खियां बटोरी थी। उस समय इस नदी को बचाने के लिए मुहिम चला रहे जनसरोकारीय संगठनों और स्थानीय लोगों में उम्मीद जगी कि नदी साफ हो जाएगी। सत्ता बदली तो जैसे इस नदी के नसीब ही फूट गए। इसका भाग्य संवारने के लिए कोई दूसरा भगीरथ नहीं आया। अब जनवादी संगठन पदयात्रा निकाल रहे हैं और इस नदी के पुनरुद्धार के लिए मुहिम चला रहे हैं।

नदियों को लेकर जनता में जागृति फैलाएगी यह मुहिम

नदियों में पानी बहुत कम रह गया है और जो है वह बहुत ही दूषित है। यह बड़ी नदियों के लिए भी नुकसानदेह है। यह स्थिति पेड़, पहाड़ और जंगल के लिए भी खतरनाक है। अभी हाल ही में येल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल लॉ एंड पॉलिसी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इनफार्मेशन नेटवर्क द्वारा प्रकाशित 2022 पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) में भारत 180 देशों में सबसे निचले पायदान पर रहा, जो कि चिंताजनक है। इस सूचकांक में डेनमार्क प्रथम, ब्रिटिश द्वितीय और फिनलैंड तृतीय स्थान पर रहा। भारत की यह स्थिति पर्यावरण के संकट पर सोचने और उसे बचाने के लिए ध्यान आकर्षित करता है।

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