दोपहर का वक्त है। दरवाजे के बाहर दशमी तिड़ू, कलेवा में भात और बिलौती (देहाती टमाटर) का झोल खा रहीं थीं। बेटे सब दिहाड़ी खटने घर से बाहर निकले हैं। सरकारी बाबू ने उन्हें बताया है कि उनका नाम अबुआ आवास योजना के लाभुकों की सूची में चढ़ गया है। विधवा आदिवासी महिला दशमी तिड़ू का, मिट्टी का घर बेहद जीर्ण-शीर्ण हालत में है, जिसे दिखाते हुए वे उदास हो जाती हैं। स्थानीय भाषा में वे बताती हैं कि सरकारी बाबू टूटे हुए घर का फोटो खींच कर ले गया है। गांव के लोग कहते हैं कि अबुआ आवास आने वाला है।
झारखंड में आदिवासी बहुल जिले खूंटी के एक गांव बगड़ू की रहने वाली गरीब विधवा दशमी तिड़ू की तरह लाखों गरीबों और जरूरतमंदों की निगाहें राज्य सरकार की अबुआ आवास योजना पर है।
दशमी अपने घर का एक हिस्सा दिखाते हुए बताती हैं, ‘बहुत तकलीफ में इस बरसात गुजारी है। एक तरफ की दीवार ढह गई है। बेटा लोग प्लास्टिक लाकर छत पर लगा दिया है। हमलोग के पास इतने पैसे नहीं कि पक्का घर बनवा सकें।’
सरकार से पैसे मिलने पर वे लोग खाने-पीने या दूसरे काम में खर्च तो नहीं कर देंगे, इस सवाल पर दशमी वार्ड सदस्य सरोज तिड़ू (पंचायत प्रतिनिधि) की ओर देखते हुए कहती हैं कि इधर-उधर खर्चा नहीं करेंगे। घर बनाने के लिए ईंट, बालू, सीमेंट खरीदेंगे।
वार्ड सदस्य सरोज तिड़ू का कहना था कि सरकारी जनसेवक ने बताया है कि अबुआ आवास के लाभुकों की प्राथमिकता सूची में दशमी का नाम है।
क्यों हैं अबुआ आवास के चर्चे
‘अबुआ’ का मतलब- ‘अपना अथवा हमारा’, यह मुंडा जनजातियों द्वारा बोली जानी वाली भाषा है। बिरसा मुंडा के उलगुलान से निकला नारा- ‘अबुआ दिसुम अबुआ राज’ (अपना देश अपना राइज) झारखंड आंदोलन के दौरान खूब सुना जाता रहा है।
अलग राज्य गठन के बाद भी शोषितों, वंचितों के हक और अधिकार के सवाल पर पूछा जाता है कि अबुआ दिसुम अबुआ राज कब आयेगा। जाहिर है यह लोगों की भावना से जुड़ा एक शब्द है।
झारखंड के गांवों-कस्बों और पठारों में इन दिनों अगर आप राज्य सरकार की किसी योजना को लेकर जानना-समझना चाहें तो बात निकलेगी ‘अबुआ आवास’ की। पंयायतों के प्रतिनिधियों, ग्राम प्रधानों से लेकर सियासत के गलियारों में भी अबुआ आवास योजना सबकी जुबान पर है। जबकि छह सालों में झारखंड में प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत 15 लाख 58 हजार आवास का निर्माण हुआ है।
अबुआ आवास योजना के तहत प्रधानमंत्री आवास से वंचित गरीब परिवारों के अलावा बेघर और मिट्टी के घरों में रहने वाले ग्रामीणों को तीन कमरों का पक्का आवास दिया जाना है।
सरकार ने बीस लाख लोगों को चरणबद्ध तरीके से तीन सालों में अबुआ आवास देने की घोषणा की है। इसके लिए राज्य सरकार अपनी तरफ से एक लाभुक को चार किस्तों में दो लाख रुपये मुहैया करायेगी।
पिछले महीने 23 जनवरी को हेमंत सोरेन (मुख्यमंत्री के तौर पर) ने राज्य में अबुआ आवास योजना की शुरुआत आदिवासी बहुल जिले खूंटी और सिमडेगा से की थी। यह समारोह खूंटी के तोरपा में हुआ था। पहले चरण में खूंटी जिले में 3887 और सिमडेगा जिले में चार हजार लाभुकों को इस योजना का लाभ मिलना है। आगे जाकर यह संख्या 75 हजार तक होगी।

31 जनवरी को हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और इस्तीफे के बाद नये मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन अबुआ आवास योजना को तेजी से आगे बढ़ाने में जुटे हैं। इस योजना को लेकर प्रमंडलीय स्तर पर बड़े-बड़े सरकारी कार्यक्रम किये जा रहे हैं। मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में गांवों से लोगों को ले जाया जा रहा है।
गांवों में लोग बताते हैं कि इन दिनों पीएम आवास योजना से ज्यादा चर्चा अबुआ आवास की है। ग्रामीणों से बातचीत में यह भी मालूम हुआ कि अबुआ आवास के चर्चे की एक बड़ी वजह यह भी है कि पीएम आवास से वंचित ग्रामीणों की उम्मीदें राज्य सरकार की इस योजना से लगी है। दूसरा- यह तीन कमरों वाला घर होगा और लाभुकों को स्वीकृति पत्र दिये जाने के लिए जिला मुख्यालयों में आयोजित कार्यक्रमों में खुद मुख्यमंत्री और मंत्री पहुंच रहे हैं।
जाहिर है दशमी तिड़ू की तरह उम्मीदों की गठरी बांधे राज्य के लाखों ग्रामीणों की निगाहें इस योजना पर जा टिकी हैं। गांव-गांव में बैठकें और लाभुक सूची को लेकर बहस-बतरस जारी हैं। सवाल भी उठाए जा रहे हैं। लोगों को पंचायत और प्रखंड कार्यालय आते-जाते देखा जा रहा है। गांवों में किसी सरकारी मुलाजिम को देखते ही लाभुक उनसे दरियाफ्त करने में जुट जाते हैं।
क्या चुनावी साल में हेमंत सोरेन ने चला बड़ा कार्ड
23 जनवरी को खूंटी जिले के तोरपा में हेमंत सोरेन ने इस योजना की शुरुआत के साथ लाभुकों के बीच स्वीकृति प्रत्र का वितरण करते हुए कहा था, ‘यह पहला ऐसा ऐतिहासिक अवसर है, जब झारखण्ड सरकार अपने दम पर अपने राज्य के बीस लाख लोगों को सम्मानजनक जिंदगी जीने के लिए तीन कमरों का आवास देने जा रही है। हमलोगों के सामने कई चुनौतियां आयीं पर हमने हार नहीं मानी। जो वादा किया है उसे पूरा करते जा रहे हैं।’
गौरतलब है कि अगले कुछ दिनो में लोकसभा का चुनाव है। और नवंबर-दिसंबर में झारखंड विधानसभा का चुनाव होना है। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई में सरकार चल रही है।
जाहिर है चुनावी साल होने के चलते इस योजना के राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं। माना यह भी जा रहा है कि हेमंत सोरेन ने पीएम आवास के बदले बीस लाख लोगों को तीन कमरों वाला पक्का घर देने की घोषणा के साथ बड़ा कार्ड चल दिया है।
फूलमनी और मंगरा मुंडा की भी उम्मीदें टिकी हैं
बगड़ू गांव की ही रहने वाली फूलमनी तुड़ू की उम्मीदें बिरसा आवास योजना पर टिकी हैं। वे बताती हैं कि 23 जनवरी को खूंटी के तोरपा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस योजना की शुरुआत करने आये थे। तब खूंटी और सिमडेगा जिले के अलग- अलग गांवों से लाभुकों को वहां ले जाया गया था। वे भी इस कार्यक्रम में शामिल थीं। उन्हें योजना की पहली किस्त की राशि मिलने का इंतजार है।

फूलमनी के पति बालेश्वर मुंडा चक्रधरपुर में मजदूरी करते हैं। उनके पास थोड़ी सी जमीन है, जिस पर फूलमनी खेती करती है। फूलमनी बताती हैं कि उनके नैहर में भी मिट्टी का घर था। 2009 में शादी के बाद यहां आये तब भी मिट्टी का घर मिला। पास में इतने पैसे नहीं होते कि पक्का घर बनवा सकें। पहले कई दफा सरकारी योजना लेने की कोशिशें की, लेकिन लाभ नहीं मिला। अब अबुआ आवास हो जायेगा, तो बच्चों को मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा। अबुआ का मतलब पूछे जाने पर वे मुस्करा कर कहती हैं- यह मुंडारी शब्द है।
इसी गांव के आदिवासी बुजुर्ग मंगरा मुंडा का कच्चा घर बुरी तरह धंस गया है। सरकारी जनसेवक और पंचायत प्रतिनिधि से उनके सवाल हैं कि सरकार का घर कब तक पहुंचेगा। पड़ताल में पता चला कि मंगरा का नाम भी अबुआ आवास के लिए प्राथमिकता सूची में है।
एक नजर में अबुआ आवास योजना
- इस योजना के तहत तीन कमरों का पक्का मकान होगा
- न्यूनतम 31 वर्गमीटर में बनने वाले आवास में रसोई घर भी होगा
- राज्य सरकार अपनी तरफ से चार किस्तों में दो लाख रुपये मुहैया करायेगी
- पहली किस्त में लाभुकों को तीस हजार रुपये डीबीटी से भेजे जा रहे
- लाभार्थी को मनरेगा के तहत अपने घर निर्माण के लिए मनरेगा के तहत 95 अकुशल मानव दिवस के बराबर अधिकतम लाभ प्राप्त होगा
- महिलाओं के नाम पर आवास का पंजीकरण होगा
- लाभुक को एक साल में घर बनाने का काम पूरा करना है
- स्वच्छ भारत मिशन या अन्य किसी स्त्रोत से शौचालय दिये जाने का प्रावधान है
झारखंड में किस मुकाम पर पीएम आवास योजना
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण के तहत लाभुक को केंद्र सरकार से डेढ़ लाख रुपए मिलते हैं। इसमें दो कमरे का पक्का मकान होता है। साथ ही शौचालय, उज्जवला और पीएम सहाय बिजली हर घर योजना से भी जोड़ा जाता है।
झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास सचिव चंद्रशेखर बताते हैं कि 2022 के बाद राज्य को प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण का लक्ष्य नहीं मिला है।
इस योजना के तहत अभी लगभग 34 हजार आवास निर्माण के काम बाकी हैं। जबकि 2016 से 2022 तक 15 लाख 58 हजार पीएम आवास निर्माण के काम पूरे हो गये हैं। इस योजना में राज्य का परफॉर्मेंस अच्छा रहा है।
राज्य सरकार का आरोप
हालांकि झारखंड सरकार कई मौके पर आरोप लगाती रही है कि प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण अंतर्गत आवास प्लस में निबंधित 8 लाख 37 हजार 222 परिवारों को आवास उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया, लेकिन केंद्र सरकार से ये स्वीकृति नहीं मिली।
गौरतलब है कि छह फरवरी 2023 को राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह से मिलकर इस बाबत चर्चा की थी और निबंधित परिवारों को योजना का लाभ देने के लिए स्वीकृति देने का अनुरोध किया था।
इससे पहले जनवरी 2023 में झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखकर पीएम आवास योजना- ग्रामीण अंतर्गत आवास प्लस में निबंधित परिवारों को घर उपलब्ध कराने का आग्रह किया था।
अब मौके ताड़कर अबुआ आवास योजना से जुड़े कार्यक्रमों में केंद्र सरकार के खिलाफ राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्री तल्खियां व्यक्त कर रहे हैं।
हाल ही में दुमका में लाभुकों के बीच स्वीकृति पत्र वितरण करते हुए मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने भी कहा, ‘केंद्र सरकार ने कहा था कि 2022 तक सबका घर पक्का का होगा, लेकिन झारखंड को धोखा दिया गया।’
दूसरी तरफ, राज्य में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा यह आरोप लगाती रही है कि पीएम आवास योजना का काम समय पर पूरे करने और उपयोगिता प्रमाण पत्र केंद्र को भेजने में राज्य सरकार विफल होती रही है। केंद्र सरकार ने भी कई बार इस बाबत राज्य को आगाह कराया है। बड़े पैमाने पर पीएम आवास के निर्माण से राज्य में हालात बदले हैं। पीएम आवास पर लोगों का भरोसा कहीं ज्यादा है।
जब अपने ही वादे पर घिरने लगी थी सरकार
यहां इस बात का उल्लेख भी महत्वपूर्ण है कि 2019 में विधानसभा चुनाव से पहले हेमंत सोरेन ने चुनावी भाषणों में वादे किये थे कि उनकी सरकार बनी, तो वे गरीबों को इज्जत से जीने के लिए पीएम आवास से बड़ा तीन कमरों वाला घर देंगे।
सरकार चलाते जब साढ़े तीन साल बीते और इस वादे पर वे घिरने लगे, तो पिछले साल अक्तूबर महीने की 18 तारीख को हेमंत सोरेन की कैबिनेट ने 16 हजार करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली अबुआ आवास योजना के प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिसके तहत अगले तीन वर्षों में 8 लाख जरूरतमंदों को तीन कमरों वाला घर उपलब्ध कराया जायेगा।
चालू वित्तीय वर्ष (2023-24) में दो लाख आवास देने का लक्ष्य निर्धारित है। अभी जिलों को साढ़े पांच सौ करोड़ की राशि आवंटित की गई है।
सवाल- तब बीस लाख कैसे देंगे
गौरतलब है कि पिछले साल 24 नवंबर से सरकार ने एक अभियान- आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वार शुरू किया था।
इस अभियान को लेकर हेमंत सोरेन खुद सभी जिलों में गए थे। तब सरकारी शिविरों में ग्रामीणों से अबुआ आवास के आवेदन लिए गए।
आला अधिकारियों के मुताबिक, ‘सरकार आपके द्वार कार्यक्रम’ में 29.97 लाख लोगों ने अबुआ आवास के लिए आवेदन दिए हैं, जिन्हें अबुआ आवास पोर्टल पर अपलोड कर दिये गये हैं। अधिकारियों का दावा है कि ग्राम सभा से सभी आवेदन का सत्यापित कराया गया है।

पहले हेमंत सोरेन और अब बतौर मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन लोगों को यह बता रहे हैं कि सरकार 2027 तक राज्य के 20 लाख जरूरतमंद लोगों को अबुआ आवास देगी।
कैबिनेट से तीन सालों के दौरान आठ लाख आवास निर्माण के प्रस्ताव पर स्वीकृति दी गई है, जबकि मुख्यमंत्री अपने भाषणों में बीस लाख लोगों को आवास देने की बात कह रहे हैं, इस सवाल पर विभागीय सचिव का कहना है कि बड़े पैमाने पर आवेदन मिलने के बाद बीस लाख आवेदन सत्यापित किये गये हैं। बदली परिस्थितियों में इतने लोगों को आवास मिले, इस पर सैद्धांतिक सहमति प्राप्त है। आगे कैबिनेट में एक और प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है।
योजना को लेकर संभाली कमान
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और इस्तीफे के बाद राज्य की बागडोर संभालते ही चंपाई सोरेन ने इस योजना के तहत लाभुकों को स्वीकृति पत्र देने के लिए दस दिनों के दौरान तीन जगहों पर जा चुके हैं।
इसी सिलसिले में 9 फरवरी को उन्होंने कोल्हान प्रमंडल के तीन जिलों के 24,827 लाभुकों को, इसके बाद गढ़वा में पलामू प्रमंडल के तीन जिलों के 28,903 और दुमका में तीन जिलों के 25, 385 लाभुकों को स्वीकृति पत्र सौंपे जाने और पहली किस्त की राशि डीबीटी के मार्फत ट्रांसफर करने का दावा किया।
हालांकि अलग-अलग जगहों के लाभुकों से बातचीत करने और योजना की जमीनी पड़ताल में पता चला कि जिनके नाम सूची में दर्ज हो गए हैं उनमें से अधिकतर लाभुकों के खाते में अभी पहली किस्त की राशि नहीं पहुंची है। फिलहाल सबकुछ प्रक्रियाधीन है।
उधर, राज्य सरकार के बजट और वित्तीय प्रबंधन पर नजर रखने वाले जानकारों का मानना है कि सरकार इस योजना पर तेजी तो दिखा रही है, पर अपने बूते इतनी बड़ी राशि का इंतजाम के साथ इस योजना को तीन साल में अमलीजामा पहनाया जाना कठिन हो सकता है।
हालांकि, सरकारी कार्यालयों में जाने से मालूम हुआ कि इस योजना को लेकर सरकार ने अधिकारियों और कर्मचारियों की अलग-अलग जिम्मेदारी तय की है और ऊपर से नीचे तक बारीकी से स्क्रीनिंग और रिव्यू की जा रही है। लाभुकों की प्राथमिकता सूची तय करने के लिए सरकार ने कुछ मानदंड तय किये हैं। इसके आधार पर नंबर भी दिये जा रहे हैं।
इन सरकारी तैयारियों का जायजा लेने जब खूंटी सदर ब्लॉक भी पहुंचे, तो देखा कि प्रखंड विकास अधिकारी (बीडीओ) ज्योति कुमारी अपने कर्मचारियों के साथ लाभुकों के आवेदन व जियो टैग की समीक्षा करने में जुटी हैं। वे बताती हैं कि पूरी पारदर्शिता के साथ आला अधिकारियों से प्राप्त निर्देश का हर हाल में सुनिश्चित कराना है।
लाभुकों के चयन पर उठते सवाल
इन सबके बीच लाभुकों के चयन में गैर पारदर्शिता को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं। साथ ही ग्रामीणों के बीच यह चर्चा भी है कि जिन्हें पक्का आवास की निहायत जरूरत है, उनके नाम पीछे छोड़े जा रहे हैं।
यहां इसकी चर्चा भी जरूरी है कि हम जिस बगड़ू गांव में गये थे, वहां के बधना मुंडा गुस्से में दिखे। उनका कहना था, ‘पिछले दस सालों में चार-पांच बार कागज भरे हैं, पर पता नहीं वह कागज कहां जाकर लटक जाता है।’
हालांकि, मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने लोगों को भरोसा दिलाया है, ‘अहर्ता पूरी करने वाले किसी का नाम सूची में नहीं मिले, तो बहुत चिंता करने की जरूरत नहीं। अभी योजना का फेज वन चल रहा है। इसके बाद कई फेज में बीस लाख परिवारों को आवास मिलेगा। साल 2027 तक कोई भी आवास विहीन नहीं रहेगा।’
निहायत गरीब और आवासविहीन लोगों के नाम लाभुकों की सूची में नहीं रहने के बाबत गांवों से कथित तौर पर वायरल एक वीडियो को पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने अपने एक्स हैंडल पर साझा करते हुए सख्त टिप्पणी की थी।
इन सबके मद्देनजर राज्य मुख्यालय से सभी जिलों के उपायुक्तों को इस तरह की किसी भी शिकायत पर सख्ती बरतने को कहा गया है। खुद मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने पांच दिनों पहले मीडिया से बातचीत में कहा है कि गड़बड़ी पकड़े जाने पर सख्त कार्रवाई होगी।
सरकार ने तय किए हैं मानदंड और नंबर
इसी सिलसिले में हमने कई पंचायत के प्रतिनिधियों से बात कर यह समझने की कोशिशें की, आखिर किन वजहों से सवाल खड़े किये जा रहे हैं।
खूंटी जिला मुखिया संघ के अध्यक्ष सुरजू हस्सा ने इस बाबत अधिकारियों को एक ज्ञापन भा दिया है। इसमें इन्होंने कहा है कि अबुआ आवास के लाभुकों की सूची ग्राम सभा द्वारा पारित नामों के अनुसार निर्गत किए जाएं।
इधर रांची जिले के इचापीढ़ी पंचायत के मुखिया समेत अन्य पंचायत प्रतिनिधिय़ों ने जिले के उपायुक्त को एक पत्र दिया है, जिसमें कहा है कि ग्राम सभा के द्वारा जिन योग्य लाभुकों का चयन किया गया था, उनके नाम अंतिम सूची में शामिल नहीं है।
कई ग्राम प्रधानों ने भी बातचीत में कमोबेश इस किस्म की शिकायतें की। राज्य में विपक्षी दलों ने भी लाभुकों के नाम चयन की प्रकिया पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
हालांकि इन शिकायतों पर पड़ताल से पता चला कि सरकार ने लाभुकों की सूची तय करने के लिए कुछ मानदंड तय किए हैं। प्रत्येक मानदंड के लिए नंबर दिए जा रहे हैं। उसके आधार पर प्राथमिकता सूची तैयार की जा रही है।

जो मानक हैं, उनमें वैसे लोगों को अबुआ आवास का लाभ दिया जाना है, जिन्हें राज्य और केंद्र सरकार द्वारा संचालित किसी आवास योजना का लाभ नहीं मिला है। इनके अलावा कच्चे घरों में रहने वाले परिवार, बेघर और निराश्रित लोग, पीवीटीजी परिवार, कानूनी तौर पर बचाये गए बंधुआ मजदूरक और वे परिवार जिन्होंने प्राकृतिक आपदा में अपना घर खो दिया है, के अलावा शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग सदस्यों वाले और महिलाओं की अध्यक्षता वाले परिवारों को योजना के तहत घरों के आवंटन में प्राथमिकता दी जाएगी।
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