सुबह के सात बजे हैं। यह समय भगत जी के पूजा करने का है। सो वो कर रहे हैं। हनुमान चालीसा का सस्वर पाठ।
और यह समय उनकी धर्मपत्नी का अखबार पढ़ने का होता है, सो वो पढ़ रहीं हैं। पढ़ते-पढ़ते वे बोलीं, ‘सिलेंडर के दाम पचास रुपये बढ़े!’
भगत जी की धर्मपत्नी ने महसूस किया कि भगत जी का स्वर कुछ ऊँचा हो गया।
पूजा से उठने के बाद भगत जी अपनी धर्म पत्नी से दो टूक बोले, ‘कल से अख़बार बंद कर दो!’
अब सुबह के नौ बज चुके हैं। यह समय भगत जी के नाश्ते का होता है। सामने पराठा और आलू-परवल की रसीली सब्जी है।
उन्होंने अभी पहला निवाला ही डाला था कि वे चीखे, ‘तेल कितना डालती है! रेट पता है!’
वह बिना खाये ही उठ गए।
पत्नी डर के मारे मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़ने लगी।
भगत जी का यह समय घर से बाहर होने का होता है। सो वे बाहर ही हैं। पान के ठीहे पर। भगत जी सात्विक प्रवृत्ति के हैं। पान, गुटका, सिगरेट,बीड़ी कुछ नहीं… उनके यहाँ आने का अभीष्ट अभी पता चल जाएगा आपको…उनके कुछ मित्र भी इसी समय वहीं पर होते हैं। हाल ही के दिनों में छटनी के चलते जो बेरोजगार हो गए थे। उसके नये नवेले सदस्य अपने भगत जी भी बने थे। यहाँ बात-चीत, कुछ इधर-उधर की करके, समय कट जाता है। कौन कहाँ अप्लाई कर रहा है! किसका कहाँ सोर्स है! क्या नई संभावना बन रही है! किसकी रिश्तेदारी कहाँ है! इन सब बातों का भी पता लगाया जाता था। दबे स्वर में सरकार के काम-काज की समीक्षा की जाती। साथ में राज-काज की व्याख्या भी।
[bs-quote quote=”ठीक उसी प्रकार आज यदि वास्तविकता में देश की जनता को निजी हित निजी स्वार्थ पूरे करने और राष्ट्रीय सुरक्षा में से किसी एक का विकल्प चयन करने का कहें तो वो निजी स्वार्थ ही चयन करेंगे। क्योंकि वो नहीं समझ पा रहे हैं कि राष्ट्र सुरक्षित नहीं रहा तो फिर निजी हितों की गठरी बाँध के कहाँ ले जाओगे?” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
”जो कामचोर हैं, उन्हीं को नौकरी नहीं मिलती…’ अचानक पानवाले ने कहा।
‘हम तुम्हें कामचोर दिखते हैं!’ भगत जी का एक मित्र भड़का।
‘भैया! आप ही लोग तो कहते थे…’ पान वाले ने सफाई दी।
उसकी सफाई मगर किसी ने ली नहीं।
‘बताओ हर चीज का निजीकरण कर देंगे तो मालिक जब चाहेगा तब कर्मचारी को लात मार देगा!’ भगत जी का दूसरा मित्र बोला।
‘कर्मचारी नहीं…नौकर बोलो…’ भगत जी के तीसरे मित्र ने कहा।
‘निजीकरण का विरोध भइया इसलिए है कि सब हरामखोरी करना चाहते हैं!’ बीच में पान वाला बोला।
‘तो हमलोग हरामखोर हैं!’ भगत जी का चौथा मित्र भड़का।
‘नहीं भइया… आप ही कहते थे…’ पानवाले ने सफाई दी।
उसकी सफाई किसी ने मगर ली नहीं।
‘पकौड़े का ठेला लगाने की नौबत आ गई है!’ भगत जी के पांचवे मित्र ने कहा।
‘भइया तेल भी बहुत महंगा हो गया,मार्जिन कम मिलेगा…कोई और बिजेनस सोचिए!’ पान वाला फिर बोल पड़ा।
अब भगत जी बोले ,’भाई तुम भी पान खाया करो!’
‘काहे भइया!’ पान वाले ने पूछा।
‘यार कम से कम मुँह बंद तो रहेगा तुम्हारा!’
‘मुँह बंद रखे हैं, तभी तो यह हाल हुआ है!’ पान वाला पान पर पानी छिड़कते हुए बोला।
भगत जी को इसकी आशा नहीं थी। उनका मन हुआ कि पान वाले को अपशब्द कहें। लेकिन उन्होंने मन ही मन खुद को कोसा। ये पानवाला हम सब की बातें सुन-सुन कर ही बोलना सीख गया है। अब यहाँ रुकना ठीक नहीं।
भगत जी अपने मित्र की मोटरसाइकिल में तीन सवारी बैठ कर घर आ गए। इस प्रकार पेट्रोल के बढ़े दामों को निस्तेज कर दिया उन्होंने।
अब रात के नौ बज रहे हैं। यह भगत जी के खाना खाने का समय है। मगर भगत जी नहीं खा रहे। वे सोने चले गए हैं।
भगत जी सोने की चेष्ठा कर रहे हैं। रह-रह कर वर्तमान उनको झकझोर दे रहा था। बच्चे के स्कूल की फीस बढ़ गई है। यही नहीं कॉपी किताब भी महंगी हो गईं हैं। ऐसे कैसे चलेगा!!! जिसकी उम्मीद थी, ये वो सुबह तो नहीं है!!! वो सो नहीं पा रहे थे। लगता था कि वह अब आजीवन जगते रहेंगे!!!
अचानक उनके मोबाइल की स्क्रीन चमकी। वह अंधेरे में ही आये हुए संदेश को पढ़ने लगे…
‘Afghanistan में तो पेट्रोल भी सस्ता था। खाना भी सस्ता था। लोगों के पास पैसा, जायदाद भी बहुत थी। एक झटके में सब छीन के मार मार के भगा दिया। पहले रास्ट्र बचे। रास्ट्रविरोधी मौके की तलाश में हैं।’
(राष्ट्र की वर्तनी गलत ही आई थी)
एक संदेश और टपका:
‘चीन के सबसे अमीर व्यक्ति जैक मा कहते है (हैं नहीं) यदि आप बंदर के सामने केले और बहुत सारे पैसे रखेंगे तो बंदर केले उठाएगा पैसे नहीं। क्योंकि वह नहीं जानता है कि पैसों से बहुत सारे केले खरीदे जा सकते हैं।
ठीक उसी प्रकार आज यदि वास्तविकता में देश की जनता को निजी हित निजी स्वार्थ पूरे करने और राष्ट्रीय सुरक्षा में से किसी एक का विकल्प चयन करने का कहें तो वो निजी स्वार्थ ही चयन करेंगे। क्योंकि वो नहीं समझ पा रहे हैं कि राष्ट्र सुरक्षित नहीं रहा तो फिर निजी हितों की गठरी बाँध के कहाँ ले जाओगे?’
तभी एक संदेश तड़ से और पड़ा। यह वीडियो था। महंगाई सब झेल लेंगे मगर यह नहीं…
वीडियो में जूस के गिलास में कुछ लोगों को थूकते हुए दिखाया जा रहा था…
आजीवन जगने वाले भगत जी इन संदेशों को देखते-पढ़ते कब गहरी नींद में चले गए उन्हें पता ही नहीं चला…
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अनूप मणि त्रिपाठी युवा व्यंग्यकार हैं और लखनऊ में रहते हैं।
[…] भगत जी की किरान्ती […]