अप्रैल 2023 में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने एक सभा में कहा था कि राम कोई भगवान नहीं, बल्कि एक काल्पनिक व्यक्ति हैं। ये पहली बार नहीं था जब जीतन राम मांझी ने राम को लेकर टिप्पणी की हो, वो कई मौकों पर ऐसा करते रहे हैं।
लेकिन वह नेता ही क्या, जो अपनी बात से नहीं पलटे। जीतन राम मांझी को जब एनडीए ने गया लोकसभा चुनाव से अपना उम्मीदवार बनाया, तो जो पहला दरवाजा जीतन राम मांझी ने खटखटाया वो राम का ही था। बदले सुर के साथ जीतन राम मांझी परिवार सहित राम लला के दर्शन के लिए अयोध्या पहुंच गए।
सालों से राम, रामायण, रावण, सत्यनारायण की पूजा जैसे अलग-अलग जरियों से राष्ट्रवाद की आंच में पकी हिंदुत्व की जिस पॉलिटिक्स को जीतन राम मांझी वैचारिक तौर पर चुनौती दे रहे थे, वे उम्र के 80वें बसंत पर आते-आते फुस्स हो गई। इसकी दो वजहें साफ तौर पर समझ आती हैं, पहला तो हिंदुत्व पॉलिटिक्स का उभार जिसे वर्तमान राजनीति में जीत की गारंटी मान लिया गया है और दूसरा मांझी हार की अपनी तिकड़ी को दोहराना नहीं चाहते।
क्या मांझी जीतेंगें वाया राम?
फल्गु नदी के तट पर बसे गया को ज्ञान और मोक्ष की भूमि कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि फल्गु में अर्पण-तर्पण करने से पित्तरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं गया शहर से सटा बोधगया वो जगह है जो बौध्द धर्मावलंबियों के लिए बहुत पवित्र है। बोधगया में ही भगवान बुध्द को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
सुरक्षित सीट गया से जीतन राम मांझी चौथी बार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। उनका मुकाबला राजद उम्मीदवार कुमार सर्वजीत से है जो पासवान जाति से आते हैं। दोनों की ही उम्र में 30 साल का फासला है। जीतन राम मांझी इसे अपना विदाई चुनाव भी बता रहे हैं।
दरअसल जीतन राम मांझी का रिकार्ड संसदीय चुनावों में बहुत फिसड्डी रहा है। वो तीन बार गया सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन हर बार शिकस्त मिलती रही। जबकि इस सीट पर बीते 24 साल से मांझी समुदाय से आने वाले व्यक्ति का ही कब्जा रहा है। यही वजह है कि इस बार जीत के लिए जीतन राम मांझी हिंदुत्व पॉलिटिक्स के केन्द्र बने राम की शरण में हैं।
33 साल पहले चुनाव बाप से हारे, अब बेटे से मुकाबला
जीतन राम मांझी ने गया से अपना पहला लोकसभा चुनाव 1991 में कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था। उनका मुकाबला राजेश कुमार से था जो जनता दल से उम्मीदवार और कुमार सर्वजीत के पिता हैं। राजेश कुमार की हत्या जनवरी 2005 में विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान हुई थी।
1991 के बाद जीतन राम मांझी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाई थी, लेकिन उन्हें असफलता हाथ लगी। इसके बाद 2019 में भी उन्हें शिकस्त का ही सामना करना पड़ा। इस बार मांझी के लिए सुकून की बात यही है कि कुमार सर्वजीत मांझी जाति से नहीं आते हैं। कुमार सर्वजीत बोधगया से राजद के विधायक हैं और बिहार सरकार में मंत्री भी रहे हैं।
अगर गया लोकसभा का प्रोफाइल देखें तो इसमें 6 विधानसभा की सीट है जिसमें से तीन पर राजद का कब्जा है। शेरघाटी, बोधगया, बेलागंज विधानसभा की सीट राजद के पास तो वजीरगंज और गया टाउन भाजपा के पास है। एक विधानसभा सीट बाराचट्टी जीतन राम मांझी की पार्टी हम के खाते में है। इस लोकसभा सीट पर 14 उम्मीदवार खड़े हैं।
गया लोकसभा सीट पर सालों बाद दिलचस्प मुकाबला
गया जिले की इन गर्म दुपहरियों में चुनावी गर्मी सिर्फ पार्टी दफ्तरों में दिख रही है। शहर अपनी सुस्त रफ्तार से ही चल रहा है और सिर्फ दो जगहों पर ही भीड़ दिखाई देती है। गया का विष्णुपद मंदिर जहां देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग पहुंचे हैं और दूसरा बोधगया का महाबोधि मंदिर जहां विदेशी टूरिस्ट भी दिख जाते हैं।
नरेन्द्र गोस्वामी बोधगया के पछहरिया गांव के हैं। वो 30 साल से ऑरनामेंट्स की अपनी फुटपाथ पर दुकान चला रहे हैं। चुनाव के बारे में पूछने पर हाथ जोड़ लेते हैं और कहते हैं, ‘हम तो नरेन्द्र मोदी को देंगें। वही हमारे लिए सब जगह खड़े हैं।’
खीरा बेचकर अपना जीवन यापन करने वाली मस्तीपुर गांव की रीता देवी को उम्मीदवारों के बारे में अभी कुछ मालूम नहीं है। वो अपने लिए इंदिरा आवास चाहती हैं। उनकी बेटी पूनम कुमारी ने मैट्रिक की परीक्षा में ‘फर्स्ट मारा’ (फर्स्ट डिवीजन पास) है। वो कहती हैं, ‘अभी जब वोट का कार्ड मिलेगा, तब मालूम चलेगा कौन आदमी खड़ा है। हम लोग तो मांझी को ही वोट देते रहे हैं।’
दरअसल बीते कई चुनाव में गया लोकसभा चुनाव क्षेत्र में मुख्य मुकाबले में मांझी जाति के उम्मीदवार ही रहे हैं।
पाबन्दी के साथ दारू चालू करें नीतीश
पर्यटन के लिहाज से गया बहुत महत्वपूर्ण है। बिहार में पूर्ण शराबबंदी ने पर्यटकों की संख्या पर असर डाला है। यहां कॉरपोरेट मीटिंग्स लगभग खत्म सी हो गई है और पर्यटकों खासतौर पर विदेशी पर्यटकों का स्टे टाइम घट गया है।
रवि कुमार मानपुर पटवा टोली के हैं। पटवा टोली बुनकरों का इलाका है जो आईआईटी क्रैक करने वाले छात्रों के चलते आईआईटी फैक्ट्री के नाम से भी मशहूर है। रवि टूर एंड ट्रैवल्स की दुकान चलाते हैं। वो कहते हैं, ‘दारू बंद होने के बाद बहुत असर पड़ा है। सरकार को चाहिए कि कुछ पाबंदियों के साथ विदेशी पर्यटकों के लिए शराब चालू की जाए। वैसे भी घर-घर में दारू पहुंच ही रहा है। विदेशी पर्यटक जो यहां का लोकल नहीं है और उसका वैसा संपर्क नहीं है, उनको दारू नहीं मिल रहा है।’
रवि के बगल में ही खड़े विशाल कुमार बोधगया में फुटपाथी दुकानदार हैं। वो चुनाव के बारे में कहते हैं, ‘कुमार सर्वजीत बहुत अच्छा कैंडीडेट है, लेकिन यहां चलता बीजेपी का ही है। बाकी बोधगया विश्व पर्यटन के नक्शे पर है, लेकिन यहां आने पर आपको कोई सुविधा नहीं मिलेगी। नगर परिषद वाला साल भर का हमसे रसीद भी कटवाता है और हल्ला गाड़ी आकर दुकान भी हटवा देता है। कायदे से यहां वेंडिंग जोन बनना चाहिए।’
पानी है सबसे बड़ी समस्या
बिहार के गया, नवादा, नालंदा जिले गिरते भूजल स्तर से जूझ रहे हैं। इससे निपटने के लिए बिहार सरकार ने गंगा जल आपूर्ति योजना शुरू की थी। जिसके तहत गंगा नदी का पानी गया की फल्गु नदी में लाया जाना और हर घर गंगाजल देना था। लेकिन ना तो फल्गु नदी का पानी आचमन लायक हुआ और ना ही लोगों के घर पानी पहुंचा।
गीता देवी भुसंडा गांव की हैं जो विष्णुपद मंदिर के करीब है। भुसंडा मांझी जाति का बड़ा गांव है, लेकिन पानी की समस्या से जूझ रहा है। गीता फल्गु नदी के पास बने चबूतरे पर झाड़ू लगाकर यजमानों से दस-बीस रूपये लेती हैं। वो रोजाना 200 रूपये कमाती हैं यानी महीने के तकरीबन 6,000 रूपये। हर महीने गीता को 3,000 रूपये लीवर की गंभीर बीमारी से जूझ रहे अपने पति लखन मांझी पर खर्च करना पड़ता है।
चुनाव के बारे में पूछने पर वो कहती हैं, ‘सुनते हैं जीतन राम मांझी है और राहुल सोनिया गांधी का बेटा खड़ा है। हम वोट दे देंगें लेकिन हमारा जीवन तो नहीं बदलेगा। रोज दो घंटे लगाकर 10 बाल्टी पानी भरते हैं, हमारे गांव का सारा आदमी ऐसे करता है। नेता सब पानी तो दे नहीं पाया, और क्या देगा?’
पानी की ये समस्या सिर्फ मांझी जाति से आने वाली गीता की ही नहीं है बल्कि फल्गु के तट पर पवित्र समझे जाने वाले और कथित तौर पर ऊंची जाति से आने वाले पंडे भी इसके घेरे में हैं।
नीतीश खुद को शंकर समझते हैं
संदीप कुमार गयाजी के पंडा हैं और वो ओडिशा राज्य का रिकार्ड रखते हैं। गांव के लोग से बात-चीत में वो कहते हैं, ‘फल्गु में रबड़ डैम के जरिए गंगा जल लाकर सरकार ने कूड़ाखाना बना दिया है। अभी नदी के पास बदबू आती रहती है क्योंकि बोरिंग के जरिए गंगाजल लाकर सरकार फल्गु का पाट भरना चाहती है जबकि पानी जब ठहरा रहेगा तब वोबदबू देगा।’
दरअसल फल्गु अंत: सलिला नदी है। यानी नदी के अंदर जल प्रवाहित होता रहता है। इसमें पानी आपको ऊपर नहीं दिखाई देगा लेकिन जब आप नदी की रेत को थोड़ा हटाएगें तो पानी मिल जाएगा। पिंड दान करने आने वाले लोग ऐसे ही फल्गु से पानी लेते रहे हैं। वर्तमान में गंगा जल आपूर्ति योजना के चलते फल्गु नदी की ऊपरी सतह पर आपको पानी दिखाई देता है लेकिन ये गंदा और बदबूदार पानी है।
फल्गु के इस बदले चरित्र के चलते वो लोग खासे गुस्से में हैं जिनकी रोजी रोटी गयाजी (विष्णुधाम) से जुड़ी हुई है। संजय शर्मा जाति से नाई हैं। पुरखों के तर्पण में इस जाति की अहम भूमिका होती है। गुस्साए स्वर में वो कहते हैं, ‘हमारी नदी को नीतीश कुमार नाला बना दिए हैं। वो अपने को शंकर भगवान समझते हैं क्या कि जटा खोल दी और पूरी दुनिया में गंगा जी आ गई?’
चुनावी शोर में मांझी आगे दिखते हैं
लेकिन चुनावी मुद्दे क्या हैं? इसका कोई ठोस जवाब वोटरों से नहीं मिलता। गया के बेलागंज प्रखंड के मेंन गांव के किसान प्रमोद कुमार पेशे से किसान हैं। मेंन भूमिहार बहुल गांव है।
प्रमोद कुमार कहते हैं, ‘अभी तक तो कोई आया ही नहीं है मिलने। लेकिन हम लोग गांव में बैठकर तय करेंगें कि किसको वोट देना है। बाकी हमें खेती किसानी या जीवन यापन में कोई समस्या नहीं है।’
दरअसल, बदलते हालात में चुनावी परिदृश्य में वोटरों का यकीन लगातार घटता जा रहा है। इसलिए चुनाव को लेकर उत्साह भी चुनाव दर चुनाव घटता जा रहा है। जैसा कि सुरेश मालाकार ‘गांव के लोग’ से कहते हैं, ‘कोई नेता जीते, कोई कुछ नहीं करता। हम अपना काम करते हैं तब जीवन की नैय्या चलती है, बाकी वोट तो जीतन मांझी को ही देंगें।’
गया लोकसभा सीट से जीतन राम मांझी का ये शायद आखिरी चुनाव हो और फिलहाल गया लोकसभा के मुखर मतदाताओं से बात करके यही लगता है कि इस दफे मांझी जी का राम जी करेंगें बेड़ा पार!