हमारे यहां के राष्ट्रपति ऐसे ही होते हैं। फिर इसका मतलब यह नहीं है कि उनके पास उनका अपना विवेक नहीं होता। लेकिन हमारे यहां का ढांचा ही ऐसा है कि राष्ट्रपति के पद पर बैठा बेचारा आदमी महज बेचारा ही बना रहता है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा कल किए गए देश के नाम संबोधन को दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता जैसे अखबार ने भी पहले स्थान पर जगह नहीं दिया है। जबकि इसी पन्ने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित ऐरे--गैरे--नत्थू--खैरे सभी का बयान प्रकाशित है। राष्ट्रपति के संबोधन को इस अखबार ने आठवें पन्ने पर जगह दिया है।

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।
मै कई बार सोचता हूँ कि तमाम निगम स्वार्थो की कमजोरी के बावजूद सर्वोच्च पद पर पहुच कर भी अब इन्हें और क्या पद चाहिये, कम से कम अब तो इन्हें अपने समाज के हित के लिये assert करना ही चाहिये। अगर अब नही तो कब। शायद समझौते की आदत यहा तक पपहुँचते पहुचते उनकी मानसिकता ही दब्बू बन गयी हैं ।
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