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किशोरियों के भविष्य का केंद्र बनी लाइब्रेरी

डिजिटल टेक्नोलॉजी की धमक के बावजूद कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका महत्व कभी ख़त्म नहीं होगा। इन्हीं में एक लाइब्रेरी यानि पुस्तकालय भी हैं। जिनका हमारे जीवन में बहुत ही महत्व है और सदैव रहेगा। दरअसल इसके पीछे सबसे बड़ी वजह वहां सभी प्रकार की पुस्तकों का उपलब्ध होना है। कई बार जो पुस्तकें हमें […]

डिजिटल टेक्नोलॉजी की धमक के बावजूद कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका महत्व कभी ख़त्म नहीं होगा। इन्हीं में एक लाइब्रेरी यानि पुस्तकालय भी हैं। जिनका हमारे जीवन में बहुत ही महत्व है और सदैव रहेगा। दरअसल इसके पीछे सबसे बड़ी वजह वहां सभी प्रकार की पुस्तकों का उपलब्ध होना है। कई बार जो पुस्तकें हमें पुस्तकालय से प्राप्त होती हैं वह हमें कहीं और नहीं मिल पाती हैं। पुस्तकों से हमें अनेक प्रकार की जानकारियां मिलती हैं। जिससे हमारे ज्ञान और सोचने की क्षमता में वृद्धि होती हैं। जिन परिवारों के पास पैसे की कमी होती है और जो बच्चे नई किताबें नहीं खरीद पाते हैं, वह पुस्तकालय के जरिए अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं। हालांकि डिजिटल लाइब्रेरी उपलब्ध होने के कारण शहरी क्षेत्रों में लाइब्रेरी सीमित होती जा रही है, वहीं देश के दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इसका महत्व और क्रेज़ बरक़रार है। विशेषकर जब वह लाइब्रेरी किशोरियों को केंद्रबिंदु बनाकर स्थापित की गई है।

ऐसी ही एक लाइब्रेरी राजस्थान के जिला बीकानेर स्थित लूनकरणसर ब्लॉक से करीब 35 किमी दूर बींझरवाड़ी गांव में स्थापित की गई है। यह लाइब्रेरी उरमुल संस्था द्वारा पिछले वर्ष 22 जून को खोला गया है। विशेष रूप से किशोरियों के हितों को ध्यान में रखते हुए खोले गए इस लाइब्रेरी का नाम द सेंटर फॉर फ्यूचर डेवलपमेंट ऑफ ग्रर्ल्स रखा गया है। इस लाइब्रेरी में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारियों के मद्देनज़र किताबें रखी गई हैं। इस प्रकार की लाइब्रेरी बींझरवाड़ी के अतिरिक्त बीकानेर के दो ब्लॉकों लूनकरणसर और पूगल स्थित सात गांवों कालू, राघासर भाटियान, मकड़ासर, रामबाग, 507 हैड और 465 आर. डी. में स्थापित की गई है।

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बींझरवाड़ी गांव की जनसंख्या लगभग 2060 है। इस गांव के पुस्तकालय में अभी करीब 22 बालिकाएं पढ़ने आती हैं। इनमें से 13 किशोरियों ने इसी लाइब्रेरी से लाभ उठाते हुए राज्य स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षाओं के फार्म भरे थे, जिसमें से दो लड़कियों को सफलता भी प्राप्त हुई है। यह पुस्तकालय लड़कियों के लिए खोला गया है ताकि उन्हें गांव में ही रहकर न केवल पढ़ने का उचित वातावरण मिले बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए पुस्तकें भी प्राप्त हो सके। जो लड़कियां घर पर रह कर पढ़ाई नहीं कर पाती थी, अब वह यहां पर आकर पढ़ाई करती हैं। जिन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी के लिए फॉर्म भरे होते हैं, वह भी यहीं आकर तैयारी करती हैं। यहां उन्हें पेपर की तैयारी करने के लिए सभी प्रकार की किताबों की सुविधा मिल जाती है। किशोरियां इस पुस्तकालय में आकर अधिक से अधिक समय व्यतीत करने लगी हैं, क्योंकि उन्हें केंद्र या राज्य सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों की तैयारी के लिए न केवल उचित वातावरण मिल जाता है बल्कि उनकी ज़रूरतों के अनुसार प्रतियोगिता से संबंधित किताबें भी आसानी से उपलब्ध हो जा रही हैं।

इस संबंध में बींझरवाड़ी गांव की किशोरी कोमल का कहना है कि यह हमारे लिए बहुत खुशी की बात है कि हमारे गांव में पुस्तकालय उपलब्ध है। यह मेरे घर से मात्र 50 मीटर की दूरी पर स्थित है। जिससे मैं यहां आराम से आकर पढ़ती हूँ। गांव की अन्य लड़कियां भी इस पुस्तकालय में पढ़ने हैं। जो गांव के स्कूल में पढ़ाई कर रही हैं, वह भी समय निकाल कर इस पुस्तकालय में पढ़ने आती हैं क्योंकि घर में पढ़ाई का उचित माहौल नहीं मिल पाता है। जो बालिकाएं कॉलेज की पढ़ाई कर रही हैं या जो नौकरी के लिए एग्जाम की तैयारी कर रही हैं उनके लिए यह लाइब्रेरी किसी वरदान से कम नहीं है। इस लाइब्रेरी की स्थापना के बाद से अब हर लड़की सरकारी नौकरी का ख्वाब देखने लगी है क्योंकि उनकी तैयारी में यह लाइब्रेरी सबसे बड़ा मददगार साबित हो रहा है।

[bs-quote quote=”किशोरियां बहुत खुश हैं क्योंकि उन्हें ग्रामीण स्तर पर ही इस पुस्तकालय के माध्यम से अपनी पढ़ाई करने और अपने एग्जाम की तैयारी करने का पूरा अवसर मिल रहा है। इस तरह से सभी लड़कियों के इकठ्ठा होकर पढ़ने से शैक्षणिक वातावरण भी तैयार होता है। जिससे अन्य बालिकाओं में पढ़ने की रुचि बढ़ती है। यह पुस्तकालय सबसे अधिक आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार की उन लड़कियों को हो रहा है जिनके पिता दैनिक मज़दूर हैं और वह उनकी पढ़ाई या प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

गांव के एक अभिभावक मुनीराम का कहना है कि हमारे गांव में जो पुस्तकालय बना है वह गांव की लड़कियों के लिए बहुत ही जरूरी था। जो गरीब परिवार से लड़कियां हैं और किसी कारणवश स्कूल नहीं जा पाती हैं या फिर जो स्कूल पूरा करने के बाद आर्थिक कारणों से नौकरी की तैयारी के लिए गांव से बाहर पढ़ने नहीं जा सकती हैं उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए यह पुस्तकालय बहुत कीमती साबित हो रहा है। यहां पर गांव की बहुत सारी लड़कियां पढ़ने आती हैं। इसके अलावा कई लड़कियां अलग अलग फील्ड की तैयारी के लिए भी इस पुस्तकालय का लाभ उठा कर सफलता प्राप्त कर रही हैं। इनमें REET, B.E.D, SSC जैसी प्रतियोगिता परीक्षा प्रमुख है जिसमें कुछ लड़कियों को सफलता भी मिली है। इस पुस्तकालय में कभी भी कोई भी लड़की किसी भी समय आसानी से पढ़ने के लिए आ सके इसके लिए इसकी चाबी पुस्तकालय के बाहर ही रखी जाती है। जब भी किसी लड़की को पढ़ना हो तो वह बिना समय व्यर्थ किये वहां जाकर अपनी पढ़ाई या तैयारी कर सकती है।

इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता हीरा का कहना है कि इस पुस्तकालय के माध्यम से गांव की किशोरियों को एक व्यवस्थित स्थान मिला है। जिसमें बैठने के लिए दरी की व्यवस्था की गई है ताकि किशोरियां आराम से अपनी पढ़ाई कर सकें। किशोरियां बहुत खुश हैं क्योंकि उन्हें ग्रामीण स्तर पर ही इस पुस्तकालय के माध्यम से अपनी पढ़ाई करने और अपने एग्जाम की तैयारी करने का पूरा अवसर मिल रहा है। इस तरह से सभी लड़कियों के इकठ्ठा होकर पढ़ने से शैक्षणिक वातावरण भी तैयार होता है। जिससे अन्य बालिकाओं में पढ़ने की रुचि बढ़ती है। यह पुस्तकालय सबसे अधिक आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार की उन लड़कियों को हो रहा है जिनके पिता दैनिक मज़दूर हैं और वह उनकी पढ़ाई या प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं।

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गांव के कुछ अभिभावक इस लाइब्रेरी के खुलने से बहुत खुश हैं। कुछ अभिभावक बताते हैं कि गांव में ही पुस्तकालय होने से लड़कियों को सुरक्षित माहौल मिलता है। सभी किशोरियों का परिवार आर्थिक रूप से इतना सक्षम नहीं है कि वह गांव से बाहर भेज कर उन्हें प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करवाने का खर्च वहां कर सके। इसके अलावा कुछ माता पिता अपनी बेटी को पढ़ाना तो चाहते हैं लेकिन उसे बाहर पढ़ने नही भेज पाते हैं। वास्तव में यह पुस्तकालय देश के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक मिसाल है। इससे आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार को भी अपनी लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलाने या उन्हें प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने का अवसर मिलेगा। उरमुल संस्था की या पहल जहां ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों के लिए अवसर के दरवाज़े खोल रहा है वहीं यह समाज के लिए एक उदाहरण भी बन रहा है कि यदि समाज का साथ हो तो गांव की किशोरियों का भविष्य भी बदल सकता है। (साभार – चरखा फीचर)

भारती सुथार, बीकानेर (राजस्थान) युवा सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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