ओबीसी सिर्फ इसी बात से खुश हो जाता है कि ब्राह्मण महोदय ने उन्हें अपने सामने जमीन पर ही सही, बैठने तो दिया। फिर उसके द्वारा उपजाए गए अनाज को ग्रहण तो किया। गोया ब्राह्मणों का पेट भर जाने से ओबीसी की तमाम पीढ़ियां सीधे स्वर्ग में चली जाएंगीं। दलितों को इस बात का मलाल है कि ब्राह्मण उनके साथ वही व्यवहार क्यों नहीं करते, जो वे ओबीसी के साथ करते हैं।
मैं तो डॉ. कुमार विमल की बात कर रहा हूं जो हिंदी साहित्य समालोचना के क्षेत्र में एक नया आयाम लेकर आए। यह आयाम था– सौंदर्यशास्त्रीय आलोचना। उनकी दृष्टि मार्क्सवादी दृष्टि से अधिक विस्तृत थी, क्योंकि वह पेरियारवादी दृष्टि भी रखते थे और आंबेडकरवादी दृष्टि भी। वह पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर आलोचना नहीं किया करते थे। एक उदाहरण उनके द्वारा रामधारी सिंह दिनकर की रचनाओं की समालोचनाएं हैं, जिनमें वह वैरिएबुल्स के रूप में पेरियारवाद और आंबेडकरवाद भी रखते हैं।
द्रौपदी मुर्मू का नाम द्रौपदी किसने रखा होगा? (डायरी, 26 जुलाई, 2022)
नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।