Sunday, October 12, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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युवा रंगकर्मी मोहन सागर : हुनर और धैर्य के साथ बनती कहानी

मोहन सागर जिस पृष्ठभूमि से आते हैं, उन जैसे लोगों को कला के क्षेत्र में जगह बनाने के लिए प्रोत्साहन मिलना कठिन होता है, बल्कि यह कह सकते हैं कि पर्याप्त इग्नोरेंस मिलता है। मोहन सागर ने इन हालात में अपने को टिकाए रखा। रायगढ़, खैरागढ़ और फिर दिल्ली तक का सफर करते हुए वह मुंबई के फिल्मी माहौल में जा पहुँचे हैं। यहाँ अपने हुनर के कारण जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन इस संघर्ष ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है।  थिएटर में लगातार काम करते हुए कुछ फिल्मों व वेब सीरिज में भी काम कर रहे हैं। पढ़िये उनकी कला यात्रा का संघर्ष।

नन्द प्रसाद यादव : दृष्टिबाधित होने के बावजूद हार नहीं माना

राकेश सन 1996 में पढ़ने के लिए राजकीय जुबिली इन्टर कॉलेज में पढ़ने गए। वहाँ उन्हें दृष्टिबाधित अध्यापक नन्द प्रसाद यादव (एम. ए., एलएल.बी.) जी से मिलना हुआ। वे राजनीतिशास्त्र-नागरिकशास्त्र के प्रवक्ता थे और हाईस्कूल तक की कक्षाओं में हिन्दी साहित्य का काव्य संकलन पढ़ाते थे। उन्हें काव्य संकलन में संकलित सभी कवियों की कविताएं याद थीं और बड़े मनोयोग से वे अपने छात्रों को पढ़ाते थे।

लोकल हीरो : दो बच्चों को गोद लेने की इच्छा एक पूरे समुदाय के बच्चों का जीवन बदलने का अभियान कैसे बनी?

बनारस के कुख्यात रेडलाइट एरिया शिवदासपुर में बहुत कुछ बदल गया है। ऊपर से यह इलाका नयी इमारतों और बाज़ारों से जगमगा रहा है लेकिन असली बदलाव अंदर आ रहा है। शहर की एक महत्वपूर्ण संस्था गुड़िया ने रेडलाइट एरिया के बच्चों के जीवन में एक नयी रौशनी पैदा की है और वे पढ़ते-लिखते हुये अपने लिए एक बेहतर और सम्मानजनक जीवन जीने की तैयारी कर रहे हैं। गुड़िया संस्थान के कर्ता-धर्ता अजित सिंह और सांत्वना मंजू ने देह व्यापार के विरुद्ध भारत के सबसे बड़े अभियानों का नेतृत्व किया है। पढ़िये कैसे अनाथालय में पली-बढ़ी एक बच्ची ने अपना जीवन समाज से अपमानित और बहिष्कृत बच्चों की बेहतरी में लगा दिया।

प्रेम कुमार नट की कहानी : संविधान ने अधिकार दिया लेकिन समाज में अभी कई पहाड़ तोड़ने हैं

नट समुदाय का नाम आते ही जेहन में रस्सी पर चलने वाले छोटे बच्चों की याद आ जाती है क्योंकि बचपन से हमने नटों का वही तमाशा देखा था। लेकिन बड़े होते-होते अब तमाशा दिखाने वाले वे लोग फिर कभी गली-चौराहे-मोहल्ले में दिखाई नहीं दिए। आज इनकी बात इसलिए याद आ गई क्योंकि हमें बेलवाँ की नट बस्ती में इस समुदाय के बारे में जानने के लिए जाना था, लेकिन वहाँ पहुँचने पर ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया। आम लोगों जैसे ही वे अपनी  बस्ती में मगन थे। उनको लेकर प्रचलित मिथक अब अतीत की बात हो चली है।

लोकविद्या भाईचारा को समर्पित ‘चित्रा सहस्रबुद्धे’ का जीवन

लोगों की चेतना जिस तरफ खुलती है, वही उनका कर्म क्षेत्र बन जाता है और फिर लोग अपना जीवन उसी में लगा देते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं चित्रा सहस्त्रबुद्धे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन लोकविद्या जन आंदोलन के माध्यम से कारीगर समाज के पुनर्निर्माण के रास्ते बनाने के लिए लगा दिया। चित्रा जी लोकविद्या जन आंदोलन की राष्ट्रीय समन्वयक हैं। उनके अनुसार सामान्य लोगों (विशेषकर किसान, कारीगर, आदिवासी, स्त्रियाँ और छोटी पूंजी के उद्यमी आदि) के पास जो ज्ञान है, उसमें उनके और वृहत समाज के पुनर्निर्माण का आधार है। इसे ही लोकविद्या कहा जाता है और आज भी इसी में समाज के प्रत्येक व्यक्ति की सक्रियता, पहल और चेतना के पुनर्स्थापना की चाभी है।

बिरहा का मान बढ़ाने वाले गायक थे परशुराम यादव

बिरहा मूलत: मनोरंजन का एक साधन रहा है, लेकिन उसके ज़रिये दर्शकों को कोई न कोई सन्देश ज़रूर दिया जाता है। बिरहा के जानकर और उसके रसिक यह जानते हैं कि अधिकांश बिरहियों में मनोरंजन का तत्व अधिक रहता है। परशुराम यादव ने मनोरंजन और लालित्य तत्व में संतुलन स्थापित किया।

वाराणसी : संघर्ष के धागे से ज्ञान की कायनात बुनते शैक्षिक शिल्पकार हैं सुरेन्द्र प्रसाद सिंह

यही वह प्रस्थान बिंदु बना जिसने एक नए सुरेन्द्र प्रसाद सिंह को रचना, गढ़ना शुरू किया। जिले के अन्य शिक्षक जहां इस सर्वे का प्रारूप ही नहीं तैयार कर पा रहे थे वहीं सुरेन्द्र प्रसाद सिंह ने सर्वे का पूरा फार्मेट सेट कर दिया था। इनके  बनाये हुये सर्वे का फार्मेट ही सर्वे का माडल पत्र बन गया। उसी प्रारूप को प्रिंट कराकर पूरे जिले में वितरित किया गया। यह सर्वजनिक जीवन में पहला ऐसा बड़ा काम था जिसकी प्रसंशा की गई और सुरेन्द्र प्रसाद सिंह वाराणसी शिक्षा विभाग की एक नई उम्मीद भी बने।

जब भी मैं इस दुनिया से विदा लूं, पढ़ते हुए बच्चे मेरे आस-पास हों

हमारा राष्ट्र तभी खुशहाल होगा जब हर वर्ग के लोग तरक्की करेंगे। समाज में धन का समान वितरण बहुत आवश्यक है, इसके अभाव में राष्ट्र का विकास अधूरा ही रहेगा। बिना मुस्कुराए आप दूसरों के चेहरे पर मुस्कुराहट नहीं ला सकते। जब समाज के हर तबके का पेट भरने लगेगा और देश का हर बच्चा पढ़ने लगेगा तब आप मुस्कुरा सकते हैं और कह सकते है कि हमारा देश तरक्की कर रहा है।

स्वच्छकार समाज के पुनर्वास और उत्थान के नायक हैं धीरज वाल्मीकि

मैला ढोने की कुप्रथा पर रोक लगाने के क्रम में धीरज वाल्मीकि का ललौली गांव जाना हुआ। वहां धीरज और उनके साथियों ने मैला ढोने वाली महिलाओं की दिनचर्या की वीडियो फिल्म बनाई। उस वीडियो फिल्म को जिला प्रशासन और विद्याभूषण रावत को दे दिया गया। उस वीडियो में एक 14 साल की लड़की भी मानव मल ढोने का काम कर रही थी। इसी के आधार पर धीरज और उनके साथियों ने जिला प्रशासन पर दबाव बनाया। दिल्ली में विद्याभूषण रावत ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग, बाल आयोग सभी को कटघरे में खड़ा किया।

पीड़ा और संघर्ष की अथक दूरी पार कर स्त्री चेतना की नायिका बनीं देवरिया की संगीता कुशवाहा

संगीता कुशवाहा ने मलवाबर गाँव में बहुत से लोगों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने और उन्हें पाने के लिए प्रेरित किया है। आज सामाजिक कामों के कारण देवरिया जिले में उनकी एक अलग पहचान है। लेकिन संगीता को यह सब आसानी से हासिल नहीं हुआ। बेशक इसके लिए संगीता ने बहुत कुछ खोया और झेला है।

जनता की लड़ाई के सिवा मेरे पास कुछ भी नहीं है – सविता रथ

सविता रथ का परिवार काफी पढ़ा-लिखा और नौकरीपेशा रहा है लेकिन सविता सरकारी नौकरी छोड रायगढ़ जिले के आदिवासीबहुल इलाके में पूँजीपतियों के खिलाफ डटकर लड़ाई लड़ रही हैं।
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