जिस देश में हजारों साल से जाति भेदभाव होता आ रहा है, जिसकी वजह से ही लोग आर्थिक विषमता झेल रहे हैं। ऐसे में वर्तमान सत्ताधारी दल और सौ साल पुराना उनका मातृसंगठन इस विषमता का बेशर्मी से समर्थन कर रहा है, यह समर्थन पाखंड के अलावा और क्या माना जाए?
एक सप्ताह पहले दक्षिण भारत के डीएमके के एक नेता ने जब इसी भेदभाव के ऊपर टिप्पणी की, तो सत्ताधारियों के बीच हलचल मच गई और उसका सिर काटकर लाने की घोषणा हो गई। इसी हो-हल्ले पर सत्ताधारी दल के मुखिया, जिसके ऊपर देश ने कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी सौंपी है, वह भी माफी मांगने की मांग कर रहा है।
26 नवंबर, 1949 के दिन संविधान सभा के ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन डॉ. भीमराव आंबेडकर ने जब संविधान सभा में देश के संविधान की विधिवत घोषणा की, तो इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर के 30 नवंबर, 1949 के संपादकीय में लिखा – But in our constitution there is no mention of the unique constitutional development in ancient Bharat. Manu’s laws were written long before lycurgus of Sparta or Solon of Persia. To this day his laws as enunciated in the Manusmriti excite the administration of the World and elicit spontaneous obedience and conformity. But to our Constitutional Pundits that means nothing. (लेकिन हमारे संविधान में प्राचीन भारत के अद्वितीय संवैधानिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है। मनु के नियम स्पार्टा के लाइकर्गस या फारस के सुलेमान से बहुत पहले लिखे गए थे। आज तक मनुस्मृति में प्रतिपादित कानून विश्व के प्रशासन को प्रेरित करते हैं और सहज वफादारी और समरूपता पैदा करते हैं। लेकिन हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए इसका कोई मतलब नहीं है।)
इस तरह भारतीय संविधान की घोषणा के दूसरे ही दिन अपने मुखपत्र में लिखकर संविधान को नकारने वाले संगठन ने अपनी स्थापित की हुई राजनीतिक इकाई भारत में अब तक पंद्रह साल शासन कर चुकी है। आज यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि संघ और भाजपा आज सामाजिक और आर्थिक गैरबरबारी के सबसे बड़े वकील हैं।
दिल्ली के जी- 20 के मंच से भारत दूर करेगा भेदभाव जैसे घोषणापत्र पर पचास वर्षों से हर तरह की गैरबराबरी खत्म करने के लिए अपना जीवन खपा देने वाले हमारे जैसे लोगों को इस घोषणा पत्र पर कैसे विश्वास हो सकता है ? क्योंकि वर्तमान जी-20 की अध्यक्षता कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज यहां तक की यात्रा, भारत की एकता और अखंडता को दांव पर लगाकर ही की है।
नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ सन 2001 के अक्तूबर माह ली थी और 125 दिनों के भीतर, 27 फरवरी, 2002 के दिन गोधरा नाम के एक रेलवे स्टेशन पर एक रेलगाड़ी में आग लगने से, लगभग नब्बे लोग ट्रेन की बोगी में ही जलकर मर गए या कहे मार दिए गए। इनकी अमानवीयता देखिए, इन्होंने विश्व हिंदू परिषद (आरएसएस का एक संगठन, जिसकी स्थापना 1960 में हुई थी) को तुरंत ही उन शवों को कब्जे में लेकर उन्हें खुले ट्रकों पर लादकर राज्य की राजधानी अहमदाबाद में जुलूस निकालने का काम सौंपा और उसके बाद संपूर्ण राज्य में दंगे शुरू हो गए। उन दंगों को रोकने के लिए तत्कालीन भारत सरकार की ओर से सेना भेजी गई थी। लेकिन उस सेना को इसी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद हवाई अड्डे से तीन दिन तक बाहर नहीं आने दिया। पूरा राज्य दंगों की आग में जल रहा था। हजारों की संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और उनकी आजीविका के साधनों को राख में तब्दील कर दिया गया। उनके परिवार की महिलाओं पर बर्बर तरीके से अत्याचार हुए, यहाँ तक की उनके मासूम बच्चों तक को नहीं बख्शा गया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया।
इसके बाद इन्होंने अपनी छाती का नाप 44 इंच से बढाकर 56 इंच कर लिया और ‘छप्पन इंच की छाती’ तथा ‘हिंदू हृदय सम्राट’ जैसी उपाधियों से खुद को नवाजा। इस प्रकार इन्होंने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करते हुए, संपूर्ण देश में नफरत फैलाकर, 2014 के चुनावों में भारत की संसद तक पहुंचने का रास्ता तय किया।
मोदी ने गुजरात के दंगों को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया। इनके इस कृत्य को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था ‘आपने राजधर्म का पालन नहीं किया’ और इसी कारण यूरोपीय देशों से लेकर अमेरिका तक ने इन्हें अपने देशों में आने पर पाबंदी लगा दी थी। लेकिन विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश का प्रधानमंत्री बनने की वजह से ये शपथ ग्रहण के तुरंत बाद विदेश यात्रा करने लगे और आज जी- 20 के अध्यक्ष तक का सफर तय करने में कामयाब हुए हैं।
लेकिन भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मंदिर-मस्जिद की घृणित राजनीतिक गतिविधियों से लेकर, मुसलमान, दलितों पर विशेष रूप से महिलाओं तथा आदिवासियो के प्रति लगातार जुल्म ढाने का काम कर रहे हैं। गुजरात दंगों को तो 21 साल हो चुके हैं, लेकिन भारत के सूदूर उत्तर पूर्व के मणिपुर में तो पिछले चार महीने से भी अधिक समय से आदिवासियों पर लगातार हिंसा जारी है और सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं और उन्हें तरह-तरह से अपमानित किया जा रहा है। लाखों लोगों को अपने घरों को छोड़कर भागने के लिए मजबूर किया गया है।
देखा जाय तो आये दिन सिर्फ दलितों के साथ ही नहीं बल्कि महिलाओं के साथ भी कोई न कोई हिंसा, हत्या, बलात्कार या फिर लूट जैसी घटनाएँ जारी हैं। वहीं दूसरी तरफ देश की राजधानी दिल्ली में जी- 20 की अध्यक्षता करते हुए भारत दूर करेगा भेदभाव जैसे घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने की बात परस्पर विरोधी लगती है।
गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने एक साधारण व्यक्ति गौतम अडानी को इतना फायदा पहुंचाया और इतनी छूट दी कि साइकिल पर कपड़े लादकर बेचने वाला व्यक्ति आज की तारीख में व्यावसायिक दुनिया का तीसरा और भारत का एक सबसे अमीर व्यक्ति बन गया है। उसे भारत में एक नंबर का अमीर बनाने के लिए, भारत के सभी कानूनों की अनदेखी करते हुए सरकारी बैंकों द्वारा इसे कर्जे देने के लिए, और बाद में उन्हीं कर्जों को माफ करने के लिए, कानून को ताक पर रख दिया गया।
भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक घोटाला होने के बावजूद इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई बल्कि छोटे-मोटे लोगों के ऊपर ईडी, आईबी तथा सीबीआई के छापेमारी करके लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश लगातार चल रही है। यह पंड़वा बचाने का ढोंग करते हुए समूची भैंस को गायब करने की ऐसी शातिर चाल है कि इससे एक दिन पूरा देश अदानी की मुट्ठी में होगा और कोई कुछ भी नहीं कर पाएगा। अडानी उद्योग समूह को इस प्रकार की मदद करने की वजह से आज उसकी संपत्ति की वृद्धि भारत की जीडीपी की तथाकथित वृद्धि दिखाई दे रही है, लेकिन आम आदमी महंगाई, बेरोजगारी तथा स्वास्थ्य-शिक्षा जैसी प्राथमिक बातों से प्रभावित होकर गुरबत की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो गया है।
यह सब कुछ होने के बावजूद तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया केवल मोदी का ही गुणगान कर रहा है क्योंकि इस पर अदानी-अंबानी जैसे लोगों का पूरी तरह कब्जा हो चुका है।भारत का मीडिया सिर्फ समस्याओं की अनदेखी कराणे और सत्ता का नैरेटिव सेट करने का एक हथियार मात्र रह गया है। इससे अधिक उससे उम्मीद करना बेमानी है।
आज से 48 साल पहले 26 जून, 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी थी, जिसके विरोध में हम लोग जेल भी गए हैं। लेकिन मई 2014 से इस देश में अघोषित आपातकाल और प्रेस सेंसरशिप जारी है। यहां तक कि नाटक और सिनेमा जैसे मनोरंजन के क्षेत्र में भी अभिव्यक्ति का हनन हो रहा है।
सैकड़ों वर्षों की लड़ाई को लड़कर मजदूरों ने अपने शोषण के खिलाफ चल रही मुहिम में सफलता प्राप्त की और शोषण के खिलाफ कानूनों को बनवाने में कामयाबी हासिल की थी। लेकिन नरेंद्र मोदी ने सत्ताधारी बनने के बाद सभी कानून पूँजीपतियों के हित में बदलकर रख दिए हैं। जी- 20 के मंच से दिल्ली घोषणा पत्र में भारत दूर करेगा भेदभाव देखकर हैरानी हो रही है।
भारत की आधी आबादी खेती के ऊपर निर्भर है। लेकिन खेती के क्षेत्र में पूंजीपतियों के हित में कानून बदलने वाले लोगों से भारत की जनता कैसा बर्ताव करती है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। भारत भेदभाव दूर करेगा की घोषणा सुनकर मन में चिंता और गहरी हो जाती है कि जी- 20 के मंच से दिल्ली घोषणापत्र भारत दूर करेगा भेदभाव का आशय कहीं उन मजदूरों, किसानों, दलितों और आदिवासियों तथा अल्पसंख्यक समुदायों की ओर संकेत मात्र तो नहीं है, क्योंकि पिछले नौ सालों में गरीब, किसानों, दलित, मजदूरों तथा आदिवासियों को जल-जंगल-जमीन से बेदखल करने के अलावा इस सरकार ने किया क्या है। सबसे भयानक बात यह कि उन्हें एक रुपये का भी मुआवजा नहीं दिया गया। और तो और जबरदस्ती बुलडोजर चलाते हुए कब्जा करने की नई पद्धति भी अब इन्होंने शुरू कर दी है, जिसमें सिर्फ दलित , आदिवासी और अल्पसंख्यक ही व्यक्ति मारा जा रहा है।