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मणिपुर : बुझने लगी है जातीय हिंसा की आग, सात महीने के बाद स्थिति हो रही है सामान्य

इंफाल (भाषा)। कुकी और मेइती समुदायों के बीच भीषण जातीय संघर्षों के कारण मणिपुर इस साल मई से सुर्खियों में बना रहा।  इस जातीय संघर्ष में 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई और करीब 60,000 लोग बेघर हो गए। मणिपुर में हिंसा 3 मई को भड़की थी, लेकिन आरक्षित वन क्षेत्रों से अतिक्रमणकारियों […]

इंफाल (भाषा)। कुकी और मेइती समुदायों के बीच भीषण जातीय संघर्षों के कारण मणिपुर इस साल मई से सुर्खियों में बना रहा।  इस जातीय संघर्ष में 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई और करीब 60,000 लोग बेघर हो गए।

मणिपुर में हिंसा 3 मई को भड़की थी, लेकिन आरक्षित वन क्षेत्रों से अतिक्रमणकारियों को हटाने के राज्य सरकार के प्रयासों के कारण चुराचांदपुर और कांगपोकपी के पहाड़ी जिलों में तनाव फरवरी से ही पैदा हो गया था।

राज्य सरकार ने फरवरी के अंत में आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण करने की वजह से चुराचांदपुर जिले में कुकी समुदाय के कुछ घरों को ध्वस्त कर दिया था, जिसकी कुकी समुदाय के सदस्यों ने निंदा की थी। कांगपोकपी जिले में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच मार्च में उस समय झड़पें हो गईं जब प्रदर्शनकारियों ने ‘आरक्षित वनों, संरक्षित वनों और वन्यजीव अभयारण्य के नाम पर आदिवासी समुदाय की भूमि के अतिक्रमण’ के खिलाफ एक रैली आयोजित करने की कोशिश की।

इसके बाद राज्य कैबिनेट ने दो कुकी-आधारित संगठनों – कुकी नेशनल आर्मी और जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी के साथ त्रिपक्षीय ‘संचालन निलंबन’ (एसओओ) वार्ता से यह कहते हुए हाथ खींच लिया कि ‘राज्य सरकार वन संसाधनों की रक्षा और अफीम की खेती को खत्म करने के लिए उठाए गए कदमों को लेकर कोई समझौता नहीं करेगी।’

एसओओ केंद्र, राज्य सरकार और कुकी उग्रवादी संगठनों के बीच 2008 से प्रभावी था। राज्य सरकार के इस समझौते से पीछे हटने के फैसले से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार और कुकी समुदायों के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंध और खराब हो गए। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के खिलाफ विशेष रूप से चुराचांदपुर जिले में सार्वजनिक अशांति अप्रैल में हिंसक विरोध प्रदर्शन का कारण बनी।


मई में शुरू हुई थी मणिपुर में जातीय हिंसा


नवगठित चुराचांदपुर जिला स्थित ‘इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम’ (आईटीएलएफ) ने ग्रामीणों को जंगलों से बेदखल करने के विरोध में 28 अप्रैल को आठ घंटे के बंद का आह्वान किया था। तनाव व्याप्त होने के बीच मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए ‘ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर’ (एटीएसयूएम) ने तीन मई को पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजन किया था।

रैली नगा-बहुल पहाड़ी जिलों में शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गई लेकिन चुराचांदपुर जिला मुख्यालय शहर में एक गैर-आदिवासी वाहन चालक के साथ मारपीट के बाद स्थिति ने खराब मोड़ ले लिया। चुराचांदपुर में 15,000 से अधिक प्रदर्शनकारी एक सार्वजनिक मैदान में एकत्र हुए थे। बाद में करीब 1,000 लोगों की भीड़ ने चुराचांदपुर और बिष्णुपुर जिलों के तोरबुंग और कांगवई के गैर-आदिवासी गांवों पर हमला किया। उसी रात तेंगनौपाल जिले के सीमावर्ती शहर मोरेह में भी आगजनी की ऐसी ही घटनाएं हुईं। राज्य सरकार ने ‘शांति और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए’ मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को तुरंत निलंबित कर दिया और व्यापक हिंसा की तस्वीरों के कारण सांप्रदायिक तनाव पैदा होने के बीच पांच मई से ब्रॉडबैंड सेवाएं भी बंद कर दी गईं।

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इंफाल घाटी में कुकी बहुल इलाकों और संपत्तियों पर जवाबी हमले किए गए जो उतने ही क्रूर थे। भीड़ ने इम्फाल ईस्ट जिले के खाबेइसोई में सेवंथ मणिपुर राइफल्स परिसर को निशाना बनाया और लोग सैकड़ों हथियार लेकर भाग गए। भीड़ में शामिल लोगों ने कहा कि यह ‘आक्रमणकारियों से अपने घरों की रक्षा करने के लिए आवश्यक था क्योंकि सुरक्षा बल लोगों के जीवन और संपत्तियों की रक्षा करने में विफल रहे।’

चुराचांदपुर और मोरेह सीमावर्ती शहर में तीन मई की रात को मेइती समुदाय को निशाना बनाया गया। सैकड़ों घर जमींदोज कर दिए गए। अधिकारियों ने कुछ घंटों बाद सभी नौ प्रभावित जिलों में पूर्ण कर्फ्यू लगा दिया। इसके बाद हिंसा और आगजनी की छिटपुट घटनाएं हुईं। इंफाल पश्चिम जिले के नागमपाल इलाके में भीड़ ने भाजपा विधायक वुंगजागिन वाल्टे और उनके वाहन चालक पर हमला कर दिया। हमले में घायल हुए वाहन चालक ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। गंभीर रूप से घायल वाल्टे को इलाज के लिए दिल्ली ले जाया गया।

 

कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य के संघर्ष करने के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शीर्ष केंद्रीय अधिकारियों के साथ शांति बहाल करने में मदद करने के लिए 29 मई को चार दिवसीय दौरे पर यहां पहुंचे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी जून के आखिरी हफ्ते में राज्य का दौरा किया था।

अगस्त के पहले सप्ताह में आईटीएलएफ द्वारा कुकी-जो समुदाय के 35 सदस्यों के शवों को दफनाने के फैसले की घोषणा करने के बाद तनाव फिर से भड़क गया। इस घोषणा के बाद इंफाल घाटी में हजारों लोग एकत्र होने लगे, लेकिन सेना के जवानों ने उन्हें रोक दिया। प्राधिकारियों ने कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार से संतुष्ट होकर पूर्वोत्तर राज्य के अधिकतर हिस्सों में तीन दिसंबर को मोबाइल इंटरनेट सेवा बहाल कर दी।

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सरकार ने उच्चतम न्यायालय के दबाव में लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के लिए इंफाल में ‘जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज’ और ‘रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज’ के मुर्दाघरों में रखे 64 शवों को दिसंबर के तीसरे सप्ताह में अंतिम संस्कार के लिए चुराचांदपुर और कांगपोकपी जिलों में स्थानांतरित कर दिया।

मणिपुर में जातीय हिंसा में मारे गए कुकी समुदाय के 19 व्यक्तियों को मृत्यु के आठ महीने बाद 15 दिसंबर को राज्य के कांगपोकपी जिले में दफनाया गया। जनजातीय समुदाय के 87 अन्य सदस्यों के शव 20 दिसंबर को चुराचांदपुर जिले में दफनाए गए। सात महीनों से अधिक समय तक चली हिंसा ने परिवहन और संचार नेटवर्क को बाधित करने के अलावा व्यवसायों, विद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य संस्थानों को बुरी तरह प्रभावित किया। इसका असर राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार माने जाने वाले कृषि क्षेत्र पर भी पड़ा।

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