Friday, June 28, 2024
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बलिया : ऑनलाइन खरीद के बढ़ते चलन से दुकानदारों के सामने संकट बढ़ रहा है

केवल पच्चीस वर्ष पहले जब कुछ कंपनियाँ इस क्षेत्र में सक्रिय थीं तब भी यह क्षेत्र काफी संभावनाशील था लेकिन एण्ड्राएड फोन आने के बाद तो इसमें सुनामी आ गई। बढ़ते उपभोक्ताओं की संख्या ने जहां नए-नए ब्रांड के लिए रास्ता खोला वहीं कंपनियों और डीलरों ने ग्राहकों की आर्थिक सीमाओं को देखते हुये शून्य ब्याज दर पर किश्तों पर मोबाइल उपलब्ध कराया। लेकिन अब बढ़ते ऑनलाइन बाज़ार से खुदरा व्यवसायी संकट में पड़ रहे हैं।

बलिया जिले के मनियर कस्बे के मोबाइल के दुकानदार अर्जुन गुप्ता कई दिनों से देख रहे हैं कि उनके मन में ग्राहकों को लेकर कोई खास उत्साह नहीं रह गया है। अब वे ग्राहकों को शंकित नज़रों से देखते हैं कि पता नहीं वह क्यों अपना और उनका समय खराब कर रहा है। इसलिए वह थोड़े रूखे भी हो गए हैं और इस बात पर उन्हें भी आश्चर्य होता है। उन्हें यह मालूम है कि दुकानदारी धैर्य का धंधा है लेकिन अपने नए व्यवहार को वह समझ नहीं पा रहे हैं।

असल में इधर के दिनों में उन्होंने ध्यान दिया कि ज़्यादातर ग्राहक आकर मोबाइल देखते तो जरूर हैं लेकिन खरीदते नहीं हैं बल्कि महंगे होने की बात करते हुये एकमुश्त तीन-चार हज़ार कम करने कि बात करते हैं और जब अर्जुन गुप्ता इतना डिस्काउंट करने में असमर्थता जताते हैं तो ग्राहक झटके से बाहर निकल जाते हैं।

ऐसा कई बार होता है। कई बार वे हज़ार-दो हज़ार तक कम करने को तैयार भी हो जाते हैं लेकिन तब भी बात नहीं बनती। जब अपने कमीशन में कमी की बात हो तो थोड़ी-बहुत गुंजाइश निकालने में वह पीछे नहीं रहना चाहते लेकिन जब घर की पूँजी में कमी होने की बात हो तो कौन उसे कम करना चाहेगा।

अर्जुन गुप्ता ध्यान देते हैं तो पाते हैं कि अब उनकी बिक्री पहले के मुक़ाबले घट गई है। जहां पहले वे प्रतिदिन पाँच से आठ मोबाइल बेचा करते थे अब उनकी संख्या आधे से भी कम हो गई है। अब ज़्यादातर ग्राहक चार्जर, बैटरी अथवा ईयरफोन आदि ही लेने आते हैं। हर दो-चार महीने में मोबाइलों के बदलते मॉडल को पूछते हुये आनेवाले ग्राहक जब उनकी दुकान पर पुराने जेनरेशन के मोबाइल पाते हैं तो वापस चले जाते हैं।

इसके उलट अर्जुन गुप्ता दुकान के मेंटेनेंस और बाकी खर्चों की ओर ध्यान देते हैं तो उनमें कोई कमी नहीं दिखती। संयोग से यह दुकान उनकी अपनी है जिसके कारण उन्हें किराया नहीं देना पड़ता। इसके बावजूद दुकान का रखरखाव हमेशा अपटुडेट रखना पड़ता है क्योंकि किसी भी किस्म की लापरवाही दुकान के लुक पर बुरा असर डालती है।

इस बाज़ार में केवल अर्जुन गुप्ता का ही यह हाल नहीं है। कपड़े-बर्तन और दूसरी चीजों के दुकानदार भी इसी तरह की ‘मंदी’ की मार झेल रहे हैं। वास्तविकता तो यह है कि देश भर के खुदरा व्यवसाय के सामने यह संकट धीरे-धीरे बढ़ रहा है। केवल बड़े शहरों ही नहीं बल्कि छोटे शहरों और कस्बों तक के बाज़ार इससे प्रभावित हैं और यह संकट है ऑनलाइन ख़रीदारी। इसके बढ़ते चलन से दुकानदारों की बिक्री में लगातार कमी आ रही है।

अपने कारोबार के सवाल पर अर्जुन गुप्ता कहते हैं, ‘मेरा ही नहीं, यहां जितने भी दुकानदार हैं उन सबका कारोबार बंद होने की कगार पर है।’ इसके पीछे के कारण पर बात करते हुये अर्जुन गुप्ता आगे बोले, ‘इसके लिए सरकार का नियम कानून जिम्मदार है। पहले क्या था कि सरकार की ओर से 25 प्रतिशत सामान ऑनलाइन खरीद की सीमा और 75 प्रतिशत ऑफ़लाइन खरीद की सुविधा दी गई थी, लेकिन इस सरकार ने सौ प्रतिशत ऑनलाइन की सुविधा दे दी है। ऑनलाइन सुविधा होने के कारण लोग डायरेक्ट कंपनी से ही मॉल खरीद ले रहे हैं। कंपनी को भी फायदा है और ग्राहक को भी लेकिन व्यापारियों के कमाने खाने के रास्ते बंद होते जा रहे हैं।’

बहुत निराश मन से अर्जुन गुप्ता कहते हैं कि ‘स्थिति यही रही तो आने वाले कुछ ही समय में हमारा सब कुछ खत्म हो जाएगा। आज हम लोगों से सिर्फ वही 10 प्रतिशत लोग ही सामान खरीद रहे हैं जो ऑनलाइन के विषय में नहीं जानते हैं।’

अर्जुन अपनी बात को समझाते हुए बोले, ‘जब हम कोई चीज कंपनी से खरीद कर लाते हैं तो वह हमें महंगी पड़ती है। जैसे दिल्ली से चला सामान वाराणसी होते हुए बलिया आया तो भाड़ा जोड़कर वह महंगा पड़ेगा। अब उसे हम मार्केट में 105 में बेच रहे हैं लेकिन कंपनी ऑनलाइन उसे 90-95 में बेच दे रही है तो ग्राहक को ऑनलाइन फायदा हो रहा है इसलिए वह ऑनलाइन की ओर भाग रहा है।’

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अर्जुन गुप्ता बताते हैं कि मोदी सरकार ने मुद्रा लोन का बहुत प्रचार किया है। लेकिन मुद्रा लोन के तहत जिन लोगों ने पैसा लिया है उसका ब्याज भी आज लोग नहीं भर पा रहे हैं। खाने भर का तो कमा ही नहीं पा रहे हैं लोग, तो ब्याज कहां से भरेंगे। मोदी जी कहते हैं हम व्यापारी हैं लेकिन मैं मोदीजी से ही पूछता हूं कि आप कैसे व्यापारी हैं कि दूसरे सारे व्यापारियों को खत्म करते जा रहे हैं? यहां तो बड़े व्यापारी और बड़े होते जा रहे रहे हैं और छोटे व्यापारी खत्म होते जा रहे हैं।’

बलिया के व्यस्त चौक बाज़ार के बर्तन व्यवसायी शिवजी गुप्ता कहते हैं कि ‘ऑनलाइन की वजह से हमारा अस्सी फीसदी व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। आनेवाले समय में अगर यही स्थिति रही तो पचास फीसदी से ज्यादा दुकानों पर ताला लग जाएगा। ऑनलाइन की व्यवस्था दुकानदार दे नहीं पाएगा।’

यह पूछने पर कि क्या आप स्वयं अपने कारोबार को ऑनलाइन नहीं कर सकते? शिवजी गुप्ता कहते हैं कि ‘यह व्यवस्था हमलोगों के बस के बाहर है। जो बड़े-बड़े लोग हैं वे ही इस व्यवस्था में सफल हो सकते हैं। कहा जाता है कि बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा जाती हैं। तो वही हाल इस समय हमारा होने जा रहा है क्योंकि हम तो फुटकर विक्रेता हैं। हमारे पास बड़ी पूँजी नहीं है। अगर हम ऑनलाइन में लगेंगे तो हमारे पास केवल व्यवस्था करने में ही नाकों चने चबाने पड़ेंगे। सबसे बड़ी बात कि ऑनलाइन खरीद जिस तरह का ऑप्शन ग्राहक को देता है उस तरह से देने के लिए नए स्तर पर पूँजी निवेश हमारे लिए फिलहाल संभव ही नहीं है।’

शिवजी इस मामले में सरकार की नीतियों को दोषी ठहराते हैं। वह कहते हैं कि सरकार की नीतियों की वजह से ही ऑन लाइन कारोबार फल-फूल रहा है। पहले यह सब बड़े-बड़े देशों में हुआ करता था लेकिन अब छोटे-छोटे कस्बों तक पहुँच गया है। इसकी वजह से छोटे-छोटे व्यवसायी मारे जा रहे हैं।’

लगातार बदल रहा है व्यवसाय का स्वरूप

पूरी दुनिया के लिए भारत बहुत बड़ा बाज़ार है। केवल विदेशी मोबाइल कंपनियाँ ही यहाँ अपने उत्पाद बेचकर खरबों डालर कमा चुकी है। केवल पच्चीस वर्ष पहले जब कुछ कंपनियाँ इस क्षेत्र में सक्रिय थीं तब भी यह क्षेत्र काफी संभावनाशील था लेकिन एण्ड्राएड फोन आने के बाद तो इसमें सुनामी आ गई। बढ़ते उपभोक्ताओं की संख्या ने जहां नए-नए ब्रांड के लिए रास्ता खोला वहीं कंपनियों और डीलरों ने ग्राहकों की आर्थिक सीमाओं को देखते हुये शून्य ब्याज दर पर किश्तों पर मोबाइल उपलब्ध कराया।

एक समय था जब बड़ी कंपनियों ने अपने स्टोर बनाने शुरू कर दिये जिसमें हर तरह की खुदरा वस्तुएं किफ़ायती दामों पर उपलब्ध थीं। इसके साथ ही ऑनलाइन मार्केटिंग का दौर आया। फ्लिपकार्ट, अमेज़ोन, मंत्रा जैसी दर्जनों कंपनियों ने बड़े पैमाने पर ग्राहकों को आकर्षित किया और दामों में ख़ासी कमी ने उनकी पैठ को मजबूत किया। देश के हर हिस्से में इंटरनेट की उपलब्धता ने ऑनलाइन मार्केटिंग को बहुत तेजी से सुलभ कर दिया।

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बेन एंड कंपनी के अनुसार भारतीयों ने वर्ष 2021 में 40 अरब डॉलर की ऑनलाइन खरीदारी की थी। अनुमान लगाया जा रहा है कि आगामी पाँच-छः वर्षों तक यानि वर्ष 2030 तक ऑनलाइन शॉपिंग का बाजार 350 अरब डॉलर पार हो जाएगा। केंद्रीय रिजर्व बैंक के अनुसार वर्ष 2017-18 में 2326.02 करोड़ रुपये का ऑनलाइन भुगतान हुआ था जो 2021 में बढ़कर 3200 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। 2023-24 में इसमें 5000 करोड़ की वृद्धि हुई है।

भारत सरकार की ऑनलाइन व्यवसाय नीति और उसका संभावित प्रभाव

भारत सरकार का केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ऑनलाइन बिक्री को नियंत्रित करता है। सरकार ने 2019 में ई-कॉमर्स नीति का मसौदा जारी किया। ‘यह नीति ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र के छह व्यापक क्षेत्रों को संबोधित करती है जैसे डेटा, बुनियादी ढांचे का विकास, ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस, विनियामक मुद्दे, घरेलू डिजिटल अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना और ई-कॉमर्स के माध्यम से निर्यात को बढ़ावा देना। नीति में निवेशकों, निर्माताओं, एमएसएमई, व्यापारियों, खुदरा विक्रेताओं, स्टार्टअप और उपभोक्ताओं जैसे सभी हितधारकों के हितों को ध्यान में रखा गया है।’

उपरोक्त नीति का महत्व इस बात में है कि भविष्य में ऑनलाइन व्यवसाय बहुत ज्यादा बढ़ेगा। अभी तक चल कारोबारों में क्रमशः अनेक बदलाव आने शुरू हो चुके हैं। ऑनलाइन व्यवसाय बढ़ने के साथ ही इसके क़ानूनों का दायरा भी लगातार बढ़ रहा है और उनकी जटिलता भी।

गौरतलब यह है कि भारतीय बाज़ार में सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को कानूनी रूप दिये जाने के बाद ऑनलाइन व्यवसाय का विशिष्टीकरण कर पाना अब लगभग असंभव है तथा इसका सबसे बुरा प्रभाव भारतीय खुदरा व्यवसायियों पर पड़ेगा। बड़े पैमाने खुदरा व्यवसायी असहायता और कर्ज़ के फंदे में फँसेंगे तथा उनके सामने व्यवसाय छोड़कर मजदूरी करने अथवा आत्महत्या करने के अलावा दूसरे विकल्प शायद ही बचें।

विगत वर्षों में अनेक खुदरा व्यवसायियों ने कर्ज़ और दबाव में पड़कर सपरिवार आत्महत्या कर ली। अभी यह बहुत बाद मुद्दा नहीं बना है लेकिन इसके पीछे के कारणों का विश्लेषण किया जाना और सरकार की नयी व्यावसायिक नीतियों की समीक्षा करना जरूरी है।

छोटे व्यवसायी यूं ही बढ़ते ऑनलाइन व्यवसाय के प्रति शंकालु नहीं हैं।

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।

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