एक और वर्ष अब इतिहास में तब्दील होने की अंतिम पायदान पर खड़ा है। इस वर्ष में बहुत कुछ ऐसा भी विघटित हुआ है जिसने लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की चेष्टा की है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अभिव्यक्ति के मुख्य प्रहरी और सजग सूत्रधार की भूमिका की साझी जिम्मेदारी निभाने की जवाबदेही मीडिया पर होती है, पर हमारे देश में मीडिया के मूल्यों का लगातार ह्रास होता दिख रहा है। आज मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सत्ता की पताका को अपना परचम बना चुका है। इसके बावजूद मीडिया के कुछ ऐसे स्तम्भ रहे, जिन्होंने सत्ता को आईना दिखाने की कोशिश की और सत्ता सापेक्ष ताकतों ने उन आवाजों पर चाबुक चलाने की भरपूर कोशिश की। मीडिया की आवाज पर अंकुश लगाने की इस वर्ष की कुछ स्याह कार्रवाहियों पर अमन विश्वकर्मा की रिपोर्ट –
साल 2023 में भारत में पत्रकारों और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर काफी हमले हुए हैं। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग 161वें स्थान पर खिसक गई। यह रिपोर्ट वैश्विक मीडिया निगरानी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने मई (2023) में जारी की है जिसमें 180 देशों का सर्वे किया गया है।
आरएसएफ के अनुसार, भारत में मेन स्ट्रीम की सभी मीडिया अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी और अमीर व्यापारियों के स्वामित्व में हैं।
साल 2023 में भारत में पत्रकारों और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर यूँ तो काफी हमले हुए हैं, लेकिन न्यूज़क्लिक के खिलाफ की गई कार्रवाई मीडिया की स्वतंत्रता की स्थिति को गम्भीर बनाता है।
वर्ष 2023 में पत्रकारों पर हमले
न्यूज़क्लिक पर चीन से फंडिंग और 2019 के लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया बाधित करने का आरोप है। इस पर कार्रवाई करते हुए दिल्ली के 88 और विभिन्न राज्यों में न्यूज़क्लिक के सात स्थानों पर छापे मार गए थे।
हालिया रिपोर्ट के अनुसार, न्यूज़क्लिक के एचआर हेड अमित चक्रवर्ती ने यूएपीए मामले में सरकारी गवाह बनने के लिए दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में अर्जी दाख़िल की है।
माह अक्टूबर में देवी दुर्गा पर एक टिप्पणी करने के मामले में वाराणसी में साप्ताहिक समाचार पत्र के संपादक अमित मौर्या ‘निर्भीक’ के साथ सत्ता समर्थित गुंडों ने न सिर्फ गाली-गलौच की बल्कि उनके साथ मारपीट कर शिवपुर थाने में एफआईआर तक करा दिया। थाने में पुलिस के सामने भी उन लोगों द्वारा अमित को पीटा गया, गलियाँ दी गईं, बावजूद इसके मौके पर मौजूद पुलिस ने उन दबंगों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया। शिवपुर थाने में दबंगों द्वारा तहरीर दी गई थी, जिसको संज्ञान में लेकर पुलिस ने उन्हें जेल भेज दिया था। इस मामले में छह लोगों ने पत्रकार अमित मौर्या ‘निर्भीक’ के खिलाफ तहरीर दी थी। पत्रकार अमित मौर्य आज भी जेल में बंद हैं, उनका परिवार कचहरी के चक्कर काट रहा है।
वाराणसी में सितम्बर 2023 में भी बीएचयू में खबर कवर कर रहे पत्रकार ओमकार विश्वकर्मा के साथ वहाँ के सुरक्षाकर्मियों द्वारा मारपीट का मामला सामने आया था। समाचार संकलन के दौरान हुए इस वारदात पर BHU प्रशासन के PRO का बयान आया था कि मामले की जाँच चल रही है। साथ ही यह भी कहा था कि परिसर में अगर न्यूज़ कवरेज के लिए आना है तो पत्रकार को एक बार परमिशन ले लेना चाहिए था। फ़िलहाल इस मामले में पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की।
जून माह में केंद्रीय मंत्री स्मृति जुबीन ईरानी द्वारा भी एक पत्रकार को धमकाने का मामला सामने आया था। वायरल वीडियो के अनुसार वह पत्रकार से कहती हैं कि ‘अगर आप मेरे क्षेत्र का अपमान करेंगे तो मैं आपके मालिक को फोन करके कहूँगी। आइंदा मेरे क्षेत्र की जनता का अपमान मत करिए, बहुत प्यार से निवेदन कर रही हूँ।’ इसके बाद पत्रकार विपिन यादव और राशिद हुसैन रातों-रात बेरोजगार हो गए। दूसरे दिन दोनों पत्रकारों का संयुक्त बयान आया, “हम साधारण आदमी हैं और केंद्रीय मंत्री के सामने हमारी कोई हैसियत नहीं है।’
भारतीय प्रेस क्लब (PCI) ने इस मामले को दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय बताया था। PCI के अनुसार, ‘पत्रकारों को अपने कर्तव्य का निर्वहन करते समय उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, ऐसे में राजनेताओं द्वारा इस तरह के कृत्य प्रेस की स्वतंत्रता को कम करने के बराबर है। नेताओं से सवाल पूछकर पत्रकार अपना कर्तव्य निभा रहा है। उन्हें किसी पार्टी या पदाधिकारी द्वारा धमकी या उत्पीड़न का सामना नहीं करना चाहिए। यह घटनाएं लोकतांत्रिक सिद्धांतों के मूल्यों के खिलाफ हैं।’
दूसरी तरफ, इस मामले में दैनिक भास्कर ने ट्वीट पर लिखा था कि ‘अमेठी में हम अपने स्ट्रिंगर नेटवर्क से खबरें देता है। लेकिन विपिन भास्कर के स्ट्रिंगर नहीं है।’
ऐसा ही एक मामला बिहार के वरिष्ठ पत्रकार नदीम काजमी के साथ भी हुआ था। बीते 22 दिसम्बर को स्थानीय भूमाफियाओं ने उन पर जानलेवा हमला करने की कोशिश की। इस संदर्भ में PCI ने बिहार के मुख्य सचिव को पत्र और फ़ोन के माध्यम से मामले की विस्तृत जानकारी दी। तब जाकर पुलिस ने कार्रवाई की।
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ऐसे हमले और पत्रकारों के खिलाफ ऐसी कार्रवाइयाँ यह साबित करती हैं कि सरकार संवैधानिक एवं नैतिक रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि उसके कार्यों और तथाकथित एजेंडे में भय का कोई माहौल न बनाया जाए।
पत्रकारों के पास नहीं है सुरक्षा
इस बाबत इंडिया टुडे चैनल पर एक चर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई का कहना है कि पत्रकार सॉफ्ट टारगेट (जिन पर निशाना लगाना आसान हो) बन गए हैं। खासतौर पर वह जो छोटे न्यूज पोर्टल्स या चैनल (यू-ट्यूब) से आते हैं। इन पत्रकारों के पास वह सुरक्षा नहीं है जो बड़े संगठनों में मौजूद लोगों के पास होते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में ‘न्यूज़क्लिक’ के साथ ‘दैनिक भास्कर’, ‘न्यूजलांड्री’, ‘द कश्मीर वाला’, ‘द वायर’ सहित छोटे चैनलों के पत्रकारों के खिलाफ भी कार्रवाईयाँ की गई हैं। मीडिया संगठनों पर सरकारी एजेंसियों की छापेमारी के बाद यह सवाल बार-बार सामने आता है कि क्या भारत में लोकतंत्र का दमन हो रहा है?
इस साल सबसे ज़्यादा हुई हैं पत्रकारों की मौतें
हमास और इस्राएल के बीच तीन दशक से जारी युद्ध के दौरान इस साल सबसे ज़्यादा पत्रकारों की मौतें हुई हैं, जिनकी संख्या 30 है। इतनीं मौतें अब तक किसी साल में नहीं गई। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) की ताजा रिपोर्ट में पत्रकारों के लिए गम्भीर होती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है।
बीते 8 दिसम्बर को आईएफजे ने अपनी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि 2023 में काम करते हुए अब तक 94 पत्रकारों की जान जा चुकी है। अपनी सालाना रिपोर्ट में आईएफजे ने यह भी बताया कि इस साल दुनियाभर में 400 से ज्यादा पत्रकारों को जेल में डाला गया है। संगठन ने पत्रकारों के लिए ज्यादा सुरक्षा और उनपर हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग भी की थी।
आईएफजे अध्यक्ष डॉमिनिक पराडेली कहते हैं, ‘पत्रकारों की सुरक्षा के लिए नए वैश्विक मानकों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा प्रभावशाली उपायों की इतनी जरूरत कभी नहीं रही, जितनी अब है।’
पत्रकारों पर हो रहे सरकारी और प्रशासनिक हमलों को लेकर श्रमजीवी पत्रकार यूनियन उत्तर प्रदेश के प्रदेश महामंत्री शिवप्रकाश गौड़ का कहना है कि वर्तमान सरकार का अघोषित आपातकाल पहले से ही अपने नौवें वर्ष में है और लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता के खिलाफ अपने हमले को बढ़ाने के हर संकेत दिखा रहा है। प्रेस और पत्रकार असुरक्षा के घेरे में है, लेकिन उसे अपनी बात पर कायम रहने के तरीके खोजने होंगे, जो कुछ भी सामने आ रहा है उसे दर्ज करना होगा। फायरिंग लाइन में मौजूद हर पत्रकार और मीडिया हाउस को एकजुट होकर अपनी आवाज उठानी होगी।
पत्रकारों और मीडिया की स्वतंत्रता के प्रमुख पहलू
- संपादकीय की स्वतंत्रता : यह सुनिश्चित करती है कि समाचार तथ्यों पर आधारित हों और बाहरी हितों से प्रभावित न हो।
- बहुलवाद और विविधता : एक स्वतंत्र प्रेस को विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण और मतों को शामिल करना चाहिये, जिससे समाज में खुली बहस एवं चर्चा की अनुमति मिल सके।
- सूचना तक पहुँच : एक स्वतंत्र प्रेस की सार्वजनिक हित से जुड़े मामलों की जाँच और रिपोर्ट करने के लिए सूचना वं स्रोतों तक पहुँच होनी चाहिए।
- सेंसरशिप से स्वतंत्रता : पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स को सरकार द्वारा अधिरोपित किसी सेंसरशिप के बिना समाचार और सूचना प्रकाशन या प्रसारण में सक्षम होना चाहिए।
- स्रोतों की सुरक्षा : पत्रकारों को अपने स्रोतों की सुरक्षा करने में सक्षम होना चाहिये ताकि किसी मामले को उजागर करने वालों (whistleblowers) और सूत्रों (Informars) को जोखिम या प्रतिशोध के भय के बिना सूचना के साथ आगे आने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
- जवाबदेही : मीडिया को सत्ता में बैठे लोगों के कार्यों एवं निर्णयों की जाँच और रिपोर्टिंग करने के माध्यम से उन्हें जवाबदेह बनाना चाहिए।
भारत में भ्रष्टाचार, संगठित अपराध या साम्प्रदायिक तनाव, ग्राउंड रिपोर्ट जैसे संवेदनशील मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने में पत्रकारों को धमकी और हिंसा का सामना करना पड़ता है। कुछ पत्रकारों पर समाचार संकलन के दौरान हमला किए जाने या उनकी हत्या कर दिए जाने जैसे मामले भी सामने आते रहे हैं।
ऐसे मामलों को देखते हुए भारत में प्रेस, पत्रकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे को संबोधित करने के लिए विभिन्न हितधारकों, संगठनों की ओर से ठोस प्रयास की आवश्यकता हैं, जहाँ एक लोकतांत्रिक समाज में स्वतंत्र प्रेस के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये साझा प्रतिबद्धता के लिए काम करना होगा। यह एक जटिल चुनौती भी है जिस पर निरंतर ध्यान देने के साथ ही ठोस कार्रवाई करने की आवश्यकता है, ताकि देश में एक जीवंत एवं स्वतंत्र मीडिया वातावरण सुनिश्चित की जा सके।