दलित उत्पीड़न की एक के बाद एक ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो दिल को झकझोर रही हैं, आंखों में आंसू ला रही हैं। और ये सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि इंसानियत कहीं बची है या नहीं? ज़मीर कहीं बचा है या नहीं? कुंभ मेले में कितनी लाशें छिपाई जा रही हैं। जब हंगामा हुआ तो पता नहीं कितने लोग बिछड़ गए। पता नहीं कितने परिवार अलग हो गए। कोई मर गया क्या? ऊपर से फूल भी पानी से सराबोर हो रहे हैं। कहा गया है कि वीवीआईपी की एंट्री नहीं है। लेकिन फिर हम देखते हैं कि उत्तर प्रदेश के नेताओं को परेशान किया जा रहा है। वे हंस रहे हैं। कुंभ मेले के इस दर्दनाक दृश्य में कोई कैसे हंस सकता है? कोई कैसे हंस सकता है? जब सैकड़ों लोग अपने परिवारों के बारे में चिंतित हैं, तो वे कहां चले गए? जब प्रयागराज के लोग अपने पूर्वजों के जीवित होने या न होने पर संदेह व्यक्त कर रहे हैं।
इसी बीच एक बहुत ही पवित्र स्थान अयोध्या में एक घटना घटती है। कुंभ के लोग कुंभ के बाद अयोध्या जा रहे हैं। वहां बहुत भीड़ है। जब मैं मिल्कीपुर में चुनाव कवरेज करने गया था तो गाड़ी बहुत दूर रोक दी गई थी। क्योंकि बताया गया है कि अयोध्या के चारों ओर पांच किलोमीटर लंबा जाम है। जो भी देश से आ रहा है और कुंभ में जा रहा है, वो एक बार अयोध्या जाना चाहता है। इसलिए अयोध्या में बहुत फोर्स लगाई गई है। लेकिन तभी अयोध्या में एक घटना हो जाती है। अयोध्या के सांसद प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाते हैं फूट-फूट कर रोते हैं। और वे कहते हैं, अगर न्याय नहीं मिला तो मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने मुद्दा उठाऊंगा। और अगर न्याय नहीं मिला तो मैं सदस्यता से इस्तीफा दे दूंगा। मैं कहता हूं कि एक राजनेता का जनता के साथ ऐसा ही सहमति वाला रिश्ता होना चाहिए।
क्या आपने देखा कि सांसद कैसे रो रहे हैं? अयोध्या में एक 22 साल की लड़की घर से निकली और वापस नहीं आई। सांसदों को डर है कि लड़की गायब हो गई है। वे पुलिस के पास गए और कहा कि लड़की गायब है उम्मीद थी कि पुलिस तुरंत कार्रवाई करेगी। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। तीन दिन बाद लड़की की आंखें फोड़ दी गईं। क्या भगवान भगवान राम से यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि तथाकथित पवित्र नगरी अयोध्या में इस प्रकार का जधन्य अपराध कैसे संभव हुआ? भगवान राम कहाँ थे? भगवान राम की पूजा करने वाले हरेक शख्स का यह सवाल पूछने का अधिकार है।
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ज्ञात हो कि अयोध्या में मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव से कुछ दिन पहले यह खौफनाक अपराध हुआ। श्री प्रसाद ने लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद यह सीट खाली कर दी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव क्रमशः भाजपा और सपा के प्रचार अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं और बलात्कार-हत्या निश्चित रूप से 5 फरवरी को होने वाले चुनाव में चर्चा का मुख्य विषय बनेगी। 22 वर्षीय युवती का शव कल अयोध्या जिले में नहर में मिला। वह गुरुवार रात एक धार्मिक आयोजन में गई थी, लेकिन घर वापस नहीं लौटी। परिजनों का आरोप है कि जब उन्होंने पुलिस से संपर्क किया तो उन्हें खुद ही युवती की तलाश करने को कहा गया। परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि शव पर कपड़े नहीं थे और पीड़िता की आंखें गायब थीं। उन्होंने कहा कि शव पर गंभीर चोटों के निशान थे और हाथ-पैर रस्सी से बंधे हुए थे। उन्होंने कहा कि उन्हें संदेह है कि उसके साथ बलात्कार किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई। पुलिस ने कहा है कि वे मामले की जांच कर रहे हैं। सर्किल ऑफिसर आशुतोष तिवारी ने कहा कि शुक्रवार को परिवार द्वारा शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद पुलिस ने गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कर ली है। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है और उसके बाद ही आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।
खेद की बात तो ये कि अवधेश प्रसाद-सांसद के वायरल वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि समाजवादी पार्टी के सांसद ने रोना-धोना करके ‘ड्रामा’ किया है। उन्होंने कोई ठोस आशवासन न देकर महज यह कहकर कि हम इस मामले में कानून के अनुसार सख्त कार्रवाई करेंगे। अपने कर्त्तव्य की इतिश्री करली।
ऐसे समय में गोदी मीडिया का चैनल कहां है? जब कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के साथ भी ऐसा ही अत्याचार हुआ था तो गोदी मीडिया ने आसमान सिर पर उठा लिया था और एक महीने तक देश में कोई ऐसा टीवी चैनल नहीं था जो ममता सरकार को बर्खास्त करने के नारे नहीं लगा रहा था। गोदी मीडिया ममता सरकार के पीछे पड़ा हुआ था। उस महिला डॉक्टर और इस लड़की में क्या फर्क है? क्या ये लड़की गरीब परिवार से है? क्या ये लड़की आपकी टीआरपी बटोरने में असमर्थ है? सरकार में दलित लड़की के साथ हुए बलात्कार की खबर प्रसारित करने की हिम्मत मीडिया के पास नहीं है? क्या मीडिया को डर लगता है कि उनको सरकार से मिलने वाला करोड़ों रुपए का फंड बंद हो जाएगा।
वरिष्ठ पत्रकार सुशील दुबे ने दुख जाहिर किया कि किसी की बेटी गायब है। दो दिन से नहीं मिली। और जब मिली तो उसकी आंखें निकाल ली गई थीं। उसका शरीर सदमे में है। गांव वालों का कहना है कि उसके साथ बेरहमी से बलात्कार किया गया और उसे मार दिया गया। उनके परिवार ने लगातार कहा कि हमारी बेटी गायब है। लेकिन पुलिस उनकी बात नहीं सुन रही थी। क्या उत्तर प्रदेश के अधिकारी सिर्फ कानून का पालन करने वालों पर फूल बरसाने और कुंभ में आए लोगों पर फूल बरसाने तक ही सीमित हैं? पुलिस इतनी निर्दयी क्यों हो जाती है? अगर पुलिस ने समय पर जाँच की गई होती तो तब शायद आज यह लड़की जिंदा होती।
अखिलेश यादव ने इस बारे में ट्वीट किया है – ‘बहुत दुखद खबर है कि सरदार पाटिलवाड़ में एक दलित परिवार की बेटी मृत पाई गई है। उसकी आंखें फोड़ दी गई हैं। उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया है। अगर प्रशासन ने तीन दिन पहले परिवार की सूचना पर ध्यान दिया होता तो लड़की को बचाया जा सकता था। हम उत्तर प्रदेश सरकार से अपील करते हैं कि इस मामले में दोषियों और लापरवाही बरतने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और पीड़ित परिवार को तुरंत 1 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया जाए।‘
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उत्तर प्रदेश में दलित महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं
अयोध्या से यह पहली खबर नहीं आई है। पहले भी कई दावे किए गए थे कि अयोध्या में सुरक्षा व्यवस्था बहुत बेहतर हुई है। राम जन्मभूमि के बाद वहां पहले से ज़्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं। लेकिन यह सुरक्षा तब कहां थी जब एक महिला कांस्टेबल को एक दलित युवक ने परेशान किया? जब एक दलित युवक को एक दलित युवक ने परेशान किया? इस मामले में कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या अपने आप में ये कोई बहुत बड़ी घटना नहीं है? अभी तक ऐसे सारे प्रश्न निरुत्तर हैं। ….क्यों?
अभिषेक प्रसाद भी अभी सवाल उठाते हुए नजर आ रहे हैं। ये पारसी समुदाय से आते हैं। उनके बेटे वहां से चुनाव लड़ रहे हैं। मिल्कीपुर का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। विदित है कि मिल्कीपुर में दलित और पारसी वोट जिधर भी जाएंगे, 100% चुनाव वही जीतेंगे। अब भारतीय जनता पार्टी ने पारसी समुदाय को टिकट दिया है। लेकिन दलित लड़की की हत्या, यह पहली बार नहीं है जब दलितों की हत्या हुई हो। क्या आपको लगता है कि इस घटना का, जिस तरह अभिषेक प्रसाद रो रहे हैं, मिल्कीपुर में कोई असर पड़ेगा? और क्या दलित लड़की की हत्या से मिल्कीपुर की स्थिति पर कोई असर पड़ेगा? हां, पड़ सकता है। अगर सिर्फ मंदिर बनाकर किसी को वोट चाहिए तो लोकसभा जैसा ही परिणाम दिखेगा। जिस तरह से आपने वहां से वोट लिए हैं और जिस तरह से आपने खूब नारे लगाए थे कि हम जो राम लाए हैं, उसे हम लाएंगे। आखिर वहां से जो धक्का मिला है, उससे भारतीय जनता पार्टी को सीखने की जरूरत है और सबसे बड़ी बात ये है कि अगर मिल्कीपुर की बात करें तो मिल्कीपुर में उन्हें पहले से ही काफी वोट मिले हैं और जो मामला इस समय सामने आया है, अगर वो इस मामले को दबाने की कोशिश करने की भी सोच रहे हैं और जितना वो इसे दबाने की कोशिश करेंगे, उतना ही वहां की जनता इस मुद्दे को उठाएगी।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 से 2020 तक दलित महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामलों में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके अलावा, आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में दलित महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ बलात्कार की 10 घटनाएं प्रतिदिन रिपोर्ट की जाती हैं। इस प्रकार, संवैधानिक सुरक्षा उपायों के बावजूद गहरी जड़ें जमाए हुए भेदभाव और हिंसा जारी है।
मीडिया में आने वाली हिंसा की घटनाओं से यह बात स्पष्ट होती है। जबकि ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार , ये मामले वास्तव में होने वाली घटनाओं का केवल एक अंश मात्र हैं। मामले तो बहुत ज्यादा होते है किंतु पुलिस द्वारा आनाकानी करके रिपोर्ट ही नहीं लिखी जाती।
यूपी में दलितों के खिलाफ हिंसा जारी
सबरंग इंडिया में आई एक खबर के अनुसार 2 अप्रैल को शिक्षक रविशंकर पांडे ने सम्मान स्वरूप पैर नहीं छूने पर एक दलित छात्र की पिटाई कर दी थी। द मूकनायक की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में, मुरारपुर प्राइमरी स्कूल में शिक्षक ने छठी कक्षा के एक दलित छात्र की पैर न छूने पर पिटाई कर दी। आरोप था कि शिक्षक ने नाबालिग बच्चे की पिटाई करते हुए जातिसूचक अपशब्दों का भी इस्तेमाल किया। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में हाशिए पर रहने वाले लोगों के खिलाफ अपराध को रोकने का रिकॉर्ड खराब है। इनमें से दो घटनाओं में दलित छात्र पीड़ित थे, जबकि तीसरी घटना में, एक बुजुर्ग दलित महिला को क्रूर शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ा, क्योंकि उसकी बकरियाँ दूसरे के खेत में चली गईं थी। हिंसा की ये जाति-आधारित घटनाएं उत्तर प्रदेश राज्य में दलितों के साथ लगातार हो रहे भेदभाव और हिंसा को रेखांकित करती हैं, जहां वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी सरकार का शासन है। यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उत्तर प्रदेश राज्य लगातार उन राज्यों की एनसीआरबी सूची में शीर्ष पर है जहां दलित विरोधी घटनाएं प्रचलित हैं। इन तीन घटनाओं के बाद, हमने चालू वर्ष की शुरुआत से राज्य में सामने आई दलित विरोधी घटनाओं का एक ओवरव्यू भी प्रदान किया है।
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31 दिसंबर 2023 को यूपी के बागपत में 18 साल की दलित लड़की ने छेड़छाड़ का विरोध किया तो उसे 3 जातिवादियों ने गरम कड़ाही में फेंक दिया। पीड़िता के मुताबिक वो गांव के कोल्हू पर काम कर रही थी। उसकी चोटें बहुत गंभीर थीं, इसलिए उसे तुरंत नई दिल्ली के एक अस्पताल में ले जाया गया। पुलिस ने अब तक तीन संदिग्धों को गिरफ्तार किया था जिनपर भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की अन्य धाराओं के तहत आरोप लगाए हैं।
गाजियाबाद की ट्रॉनिका सिटी
हिन्दुस्तान, गाजियाबाद Tue, 28 Jan 2025 को सुबह साढ़े सात बजे गाजियाबाद की ट्रॉनिका सिटी में लड़की से सात साल तक दुष्कर्म का मामला सामने आया है। आरोपी ने 16 साल की उम्र में दुष्कर्म किया। इस दौरान अश्लील वीडियो भी बना लिया। पुलिस ने केस दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है।
कौशांबी में दलित महिला से डॉक्टर और उसके साथियों ने किया गैंगरेप
उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में एक दलित महिला के साथ गैंगरेप का मामला सामने आया है। पीड़ित महिला का आरोप है कि एक डॉक्टर उसे एक गाड़ी में लेकर गया। जहां दलित महिला से डॉक्टर और उसके साथियों ने किया गैंगरेप किया गया। महिला ने पुलिस में दर्ज कराई शिकायत
संत कबीर नगर में सामूहिक दुष्कर्म
संत कबीर नगर में 01 Feb 2025 ((संवाद न्यूज एजेंसी) को न्यायालय ने पुलिस की सशक्त व प्रभावी पैरवी पर सामूहिक दुष्कर्म के मामले में दो दोषियों को आजीवन कारावास व 2.2 लाख रुपये अर्थदंड से दंडित किया है।
आगरा में दलित किशोरी से दुष्कर्म
24 Aug 2024 के आगरा क्राइम न्यूज में उत्तर प्रदेश आगरा के थाना सदर क्षेत्र की रहने वाली दलित किशोरी के साथ हुई दरिंदगी के मामले में बीजेपी नेता प्रेमचंद कुशवाह को जेल भेजा गया है। बच्ची के साथ 21 अगस्त को दरिंदगी हुई थी। इस मामले में मुख्य आरोपी भीमा उर्फ भीमसेन को पुलिस पूर्व में ही जेल भेज चुकी है। मामले में मायावती के हस्तक्षेप के बाद जाटव समाज के लोगों में आक्रोश था। आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की चेतावनी देने के बाद पुलिस ने बीजेपी नेता को शुक्रवार रात गिरफ्तार कर लिया। हालांकि उस पर शांतिभंग का आरोप लगा है।
प्रतापगढ़ में एक दलित महिला से बलात्कार
अक्टूबर 28, 2024 by Dalit Times : उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में दो दलित महिलाओं पर घोर अत्याचार की खबरें सामने आईं, जिसमें एक ओर 25 वर्षीय दलित महिला पर हुए अत्याचार हुआ, तो दूसरी ओर एक नाबालिग दलित लड़की के साथ हुई बर्बरता ने सभी को स्तब्ध कर दिया है। दलित परिवार के घर बर्थडे पार्टी के दौरान जातीय हिंसा, महिलाओं से अभद्रता और पथराव, चार आरोपियों पर FIR दर्ज। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर लिया और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता एवं अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया।
इस महीने प्रतापगढ़ के लीलापुर थाना क्षेत्र में एक 16 वर्षीय दलित किशोरी के साथ घोर बर्बरता की घटना सामने आई। पीड़िता को आरोपी ने घसीटते हुए बाजरे के खेत में ले जाकर बलात्कार किया, फिर गला दबाकर जान से मारने का प्रयास किया। जब लड़की काफी देर तक घर नहीं लौटी तो परिजनों ने उसकी खोजबीन शुरू की। इस दौरान खेत में उसके लहूलुहान शरीर को देखकर सभी हैरान रह गए। उसे गंभीर अवस्था में अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया।
लखनऊ में नशीला पदार्थ खिलाकर दलित महिला से रेप
राजधानी के सैरपुर थाना अंतर्गत निवासी एक दलित महिला के साथ नशीली मिठाई खिलाकर रेप किया गया. इसके साथ ही उसका अश्लील वीडियो बना लिया गया. आरोप है कि महिला को ब्लैकमेल करते हुए उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया गया। ( ETV Bharat Uttar Pradesh Team- Published – Sep 18, 2024)
दलित महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर समाज को आगे आने की जरूरत
यथोक्त के आलोक में यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि इस प्रकार की जघन्य गठनाओं के चलते उत्तर प्रदेश को ही नहीं बल्कि पूरे देश की आपराधिक तस्वीर को उजागर कर दिया है। क्या दलित समाज की महिलाओं को सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार नहीं है? क्यों उन्हें बार-बार समाज की रूढ़ियों और उच्च वर्गों के अत्याचारों का शिकार बनना पड़ता है? इस प्रकार की घटनाएं समाज की गहरी खामियों को उजागर करती हैं। इन जैसी अनेक घटनाओं के बाद दलित समाज के लोगों में गहरा आक्रोश है। वे मांग कर रहे हैं कि इस तरह के अपराधियों को कड़ी सजा मिले, ताकि भविष्य में कोई इस तरह की घटना करने से पहले सौ बार सोचे। दलित संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सिर्फ आरोपी की गिरफ्तारी से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि आवश्यक है कि समाज में ऐसे सोच और व्यवहार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो।
दलित जागरुकता और शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी
दलित महिलाओं पर अत्याचार के ऐसे मामले बताते हैं कि केवल कानून बनाकर इन समस्याओं को हल नहीं किया जा सकता। जरूरी है कि पुलिस और प्रशासन सख्ती से कार्रवाई करे और समाज में ऐसा माहौल बनाए कि कोई भी महिला खुद को असुरक्षित महसूस न करे। खेद की बात तो यह है कि दलित वर्ग में जन्में सामाजिक और राजनीतिक संगठन अक्सर दलित उत्पीड़न के मामलों पर अक्सर शांत रहते हैं या एक दो दिन गलाफाड़ आक्रोश जताकर शांत हो जाते हैं। विधान सभाओं और लोकसभा में बहुजन वर्ग के तथाकथित प्रतिनिधि भी अपनी-अपनी पार्टियों के दवाब में बग़लें झाँकते रहते हैं। दलित राजनीति की भी जैसे हाशिए पर खिसक गई है।बहुजन समाज में बसपा के अतिरिक्त अनेक राजनीतिक दल भी मैदान उतरने का दम भर रहे हैं। विदित हो कि रिपब्लिकन पार्टी के बाद बसपा ने बहुजनों के लिए जो काम किया, वैसा अन्य कोई अन्य बहुजन समाज को एक करने के बजाय अन्यं राजनीतिक दल बनाकर बहुजनों के वोटों को छितराने का काम कर रहे हैं। और यही कांग्रेस और भाजपा चाहती भी है। यह भी कि बहुत से बहुजनों को कुछ न कुछ लोभ देकर बहुत सी जेबी राजनीतिक पार्टियों का सृजन कराने का काम करती हैं ताकी बहुजनों और ओबीसी के वोट बैंक कहीं एकजुट न हो जाएं। कमाल की बात तो ये है कि बहुजनों के राजनीतिक दल आपस में ही एक दूसरे की टाँग खिचने में लगे रहते है। या यूं कहे कि बहुजन समाज के जेबी राजनीतिक दल ही बहुजनों को बाँटने पर तुले हैं।
इस आधार पर में मेरे लिए तो यह कहना अति कठिन कार्य है कि मौजूदा कालखण्ड की राजनीतिक/सामाजिक गतिविधियों में समाहित जातिगत उटा-पटक से भारतीय समाज में जातियां कमजोर हो रही हैं अपितु उल्टे और मजबूत हो रही हैं। कारण है कि मौजूदा राजनीति केवल और केवल धर्म और जातियों की गुटबन्दी/जुगलबन्दी पर आधारित है। यह भी कि दलित उत्पीड़न के मामलों पर बहुजनों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी खामोश नजर आता है। इस प्रकार ब्राह्मणवाद का उद्देश आज भी स्थाई बना हुआ है। केवल उसका वर्चस्व और उसकी रणनीति समय के साथ बदलती रहती है।