Monday, April 28, 2025
Monday, April 28, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमअर्थव्यवस्थाउत्तराखंड : उपलब्ध नौकरियों की तुलना में अधिक लोग बन रहे...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

उत्तराखंड : उपलब्ध नौकरियों की तुलना में अधिक लोग बन रहे श्रम-बल का हिस्सा

राज्य के लिए बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। रोज़गार के सीमित अवसरों के कारण बेरोजगारों की संख्या में प्रतिदिन इजाफा हो रहा है, जिसके चलते युवाओं द्वारा परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के उद्देश्य से अन्य राज्यों का रुख किया जा रहा है। इससे राज्य में पलायन की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले दस सालों में भारत दुनिया की तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है। केवल आर्थिक मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी भारत दुनिया का सिरमौर बनता जा रहा है। आर्थिक क्षेत्र में मज़बूती के कारण भारत का सामाजिक क्षेत्र भी प्रगति कर रहा है। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि जिस तेज़ी से तरक्की हो रही है, उसकी अपेक्षा लोगों को रोज़गार नहीं मिल रहा है, जिसकी वजह से देश में बेरोज़गारी की दर भी बढ़ती जा रही है। देश का कोई राज्य ऐसा नहीं है, जहां बेरोज़गारों की फ़ौज नहीं खड़ी है। इसका सबसे बुरा प्रभाव देश के ग्रामीण क्षेत्रों को हो रहा है, जहां युवा टेक्निकल स्किल की कमी के कारण रोज़गार की दौर में पिछड़ रहे हैं।

पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड का ग्रामीण क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है, जहां बड़ी संख्या में युवा बेरोज़गार हैं। रोज़गार की तलाश में युवा बड़े शहरों और मैदानों की ओर पलायन को मजबूर हो गए हैं। दरअसल, इन बड़े शहरों और मैदानी इलाक़ों में काम के ऐसे अवसर मौजूद हैं कि वह कुछ न कुछ करके जीवन-यापन कर लेते हैं, परंतु पर्वतीय क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर बहुत सीमित हैं, जिससे उनका जीवन-यापन मुश्किल हो जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों के आजीविका संवर्धन के साधन मौसम, जंगली जानवर, बाजारीकरण व नवीन तकनीकि के अभाव पर निर्भर रहते हैं। जिस पर रोजगार की गारंटी न के बराबर होती है। राज्य के लिए बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। रोज़गार के सीमित अवसरों के कारण बेरोजगारों की संख्या में प्रतिदिन इजाफा हो रहा है, जिसके चलते युवाओं द्वारा परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के उद्देश्य से अन्य राज्यों का रुख किया जा रहा है। इससे राज्य में पलायन की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है।

यह भी पढ़ें…

देश का निर्यात सितंबर में 2.6 प्रतिशत घटकर हो गया 34.47 अरब डॉलर

इस संबंध में, हल्द्वानी, नैनीताल के युवा टेम्पो चालक पंकज सिंह बताते हैं कि वह एमएससी प्रथम श्रेणी से पास हैं। उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए कई परीक्षाएं दीं, लेकिन कभी पेपर लीक तो कभी धांधली के चलते परीक्षाएं निरस्त कर दी गईं, जिससे उन्हें हमेशा निराशा ही हाथ लगी। ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी के चलते उन्होंने निजी कम्पनी में कार्य भी किया, लेकिन कंपनी द्वारा अत्यधिक शोषण के कारण इन्होंने नौकरी छोड़ दी और टेम्पो चलाने का फैसला किया। वह बताते हैं कि कई युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद या तो नौकरी की तलाश में बेरोजगार घूम रहे हैं अथवा मामूली तनख्वाह पर शोषण सहने को मजबूर हैं। हालांकि, सरकार द्वारा बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं। आजीविका के साधन उपलब्ध कराने और लोगों की आय को बढ़ाने के उद्देश्य से स्वरोज़गार पर फोकस किया जा रहा है। इसमें पीएम-दक्ष, मनरेगा, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं को लागू किया गया है। इसके अतिरिक्त सब्सिडी द्वारा कई योजनाओं के माध्यम से ग्रामीणों को लाभ दिया जा रहा है। साथ ही युवाओं को विभिन्न कौशलों के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है। इसके लिए रोजगार मेलों का आयोजन किया जा रहा है। विगत डेढ़ वर्षों में राज्य में लगभग 257 रोज़गार मेलों का आयोजन किया गया है। जिसमें करीब 4429 युवाओं को रोजगार भी मिला है। इस दौरान इन मेलों में लाखों की संख्या में बेरोज़गार युवाओं ने भाग लिया था। इस वर्ष मई में इकोनॉमिक टाइम्स ने सेंटर फाॅर माॅनीटरिंग इंडियन इकोनाॅमी के 2023 के आंकड़ों के हवाले से बताया है कि इस वर्ष अप्रैल में भारत में बेरोजगारी दर बढ़कर 8.11 फीसदी पर पहुंच गयी है, जबकि मार्च में यह 7.8 फीसदी पर थी। पत्र के अनुसार, देश में उपलब्ध नौकरियों की तुलना में अधिक लोग श्रमबल का हिस्सा बन रहे हैं। इसमें एक बड़ी संख्या ग्रामीण युवाओं की है। देश में श्रमबल कामगारों की कुल संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों की संख्या 46.76 करोड़ है।

इस संबंध में, अल्मोड़ा के सिरौली गांव के युवा दीवान नेगी कहते हैं कि सरकारी योजनाओं के द्वारा मिलने वाले कार्यों में दाम बहुत कम होता है, जबकि मेहनत पूरी होती है। मनरेगा योजना पर अपने अनुभव को साझा करते हुए वह बताते हैं, ‘वर्ष 2020-21 में मनरेगा में रोजगार की मांग 2019-20 की तुलना में 43 प्रतिशत बढ़ी है। इसे कई लोगों को कुछ न कुछ काम तो मिला, लेकिन उचित मज़दूरी नहीं मिलती है। इसके अंतर्गत वर्ष में 100 दिवस कार्य का प्रावधान है। जिसके लिए मात्र 232 रुपये प्रति दिवस की दर से धनराशि मिलती है, जबकि वर्तमान समय में सामान्य मजदूरी ही रुपये 450-500 है। सरकारी योजनाओं में वर्तमान समय के अनुसार, बदलाव किए जाने की आवश्यकता है। साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में लघु उघोगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे ग्राम स्तर पर ही रोजगार मिल सके और स्थानीय समुदाय की आय में वुद्धि हो, जिससे पलायन की समस्या का स्थाई निदान हो सके।

उच्च शिक्षा प्राप्त नैनीताल स्थित ग्राम सेलालेख के युवा पंकज मेलकानी टैक्सी चालक हैं। उनका कहना है कि वर्तमान में हमारी शिक्षा प्रणाली इतनी कमज़ोर है कि वह शिक्षितों को शत प्रतिशत रोज़गार उपलब्ध नहीं करा सकती है। ऐसे में, सरकार को शिक्षा प्रणाली में में बदलाव करते हुए उसे रोजगारपरक कोर्स लागू करनी चाहिए, जिससे भविष्य में शिक्षा पूर्ण होने के बाद युवाओं को बेरोजगारी जैसी समस्या से ना जूझना पड़े। साथ ही नए उद्योगों को स्थापित करने के स्थान पर स्थानीय लघु उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिल सके, क्योंकि ग्रामीण इन कार्यों में पारंगत होते हैं। यह नीति स्थानीय स्तर पर न केवल युवाओं को रोज़गार उपलब्ध कराएगा, बल्कि इससे पलायन की समस्या भी हल हो सकती है। (सौजन्य से चरखा फीचर)

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here