आदमी को शब्दों का उपयोग करने से पहले सोचना चाहिए। इस संबंध में दारोगा प्रसाद राय हाईस्कूल, सरिस्ताबाद (चितकोहरा), पटना के मेरे सबसे प्रिय शिक्षक शशिभूषण राय ने एक सीख दी थी। उनकी सीख में हालांकि हिंदुत्व का अवगुण था, लेकिन वह सीख महत्वपूर्ण थी। उन्होंने कहा था कि हर वाक्य को बोलने के बाद दूसरा वाक्य बोलने के पहले रुकना चाहिए। इसके लिए उन्होंने कहा था कि हर वाक्य को बोलने के बाद तीन बार राम का नाम ले लो। बस इतने से काम चल जाएगा। दरअसल, उन दिनों मैं बहुत तेज गति से बोलता था। तो होता यह था कि सामनेवाले लोग समझ ही नहीं पाते थे कि मैंने क्या कहा। और उन दिनों मैं आज की तरह नास्तिक नहीं था। मैं हिंदू धर्म के पाखंड को ही धर्म मानता था। लिहाजा हर वाक्य के बाद तीन बार राम का उच्चारण करने में कोई खास परेशानी नहीं थी। शशिभूषण सर की सीख को अपनाने से मेरे बोलने में बहुत सुधार हुआ।
खैर, राम शब्द के उच्चारण से याद आया कि इस शब्द को ओबीसी समाज के दिमाग में एकदम से बिठा दिया गया है। ओबीसी की संस्कृति में इसको शामिल कर लिया गया है। जैसे कि मेरे गांव के दक्षिण में पुनपुन नदी बहती है और नदी के उस पार एक गांव है– पमार। इस गांव के थे महेंद्र साव। बनिया जाति के थे और बेहद गरीब थे। उनका काम किसानों से चावल-गेहूं-दाल आदि खरीदकर चितकोहरा बाजार में बेचना था। मेरे गांव से उनके गांव की दूरी करीब 14 किलोमीटर तो होगी ही और बीच में नदी भी थी। तो नदी पारकर इतनी दूरी तय करने के बाद पहुंचते महेंद्र चाचा। उन दिनों पापा ने खेती करना लगभग बंद ही कर दिया था। इसलिए खाद्यान्नों के लिए हम महेंद्र चाचा पर आश्रित थे। वही हमारे घर दाल-चावल-गेहूं आदि ले आते थे। तब पापा चावल एक क्विंटल, गेहूं डेढ़ मन और दाल चार पसेरी से कम नहीं खरीदते थे। स्कूल में मुझे क्विंटल के बारे में पता था कि सौ किलो के बराबर एक क्विंटल होता है। वह तो महेंद्र चाचा के कारण मैंने जाना कि एक क्विटल में ढाई मन होता है और बीस पसेरी तथा आठ पसेरी का मतलब एक मन।
[bs-quote quote=”दरअसल कल किसानों ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में किसान महापंचायत का आयोजन किया। खूब भीड़ जुटी। इस मौके पर किसान नेताओं ने कहा कि माफी मांगते समय भी नरेंद्र मोदी ईमानदार नहीं रहे। उन्होंने माफीनामे में भी किसानों को बांटने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि वे कुछ लोगों को समझाने में नाकाम रहे।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
तो महेंद्र चाचा राम शब्द का उच्चारण करते थे हर बार तौलने की शुरुआत करते समय। वह एक का उच्चारण नहीं करते। एक के बदले कहते– रामे जी राम। इसके बाद ही वह संख्याओं का उच्चारण करते थे।
महेंद्र चाचा अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके बारे में आधी-अधूरी जानकारी है कि उन्होंने खुदकुशी कर ली या फिर उनके बेटे ने उनकी हत्या कर दी। ऐसा क्यों हुआ, इसकी जानकारी भी नहीं है।
खैर, मैं बात कर रहा था कि आदमी को हर वाक्य को बोलने के बाद कुछ देर रुकना चाहिए। इससे आदमी के पास सोचने का समय होता है कि उसने क्या कहा और अगले वाक्य के बारे मे भी जो वह बोलने जा रहा है। आज भी मैं शशिभूषण सर की सीख का उपयोग करने की कोशिश करता हूं। अंतर यह कि अब मेरे मन में राम के बदले अपनी प्रेमिका का नाम होता है।
दरअसल, ऐसा मैं इसलिए करता हूं ताकि बोलते समय इसका ध्यान रखूं कि मेरे मुंह से कोई ऐसा शब्द न निकले जो कि मेरे कथ्य की स्पष्टता में बाधक हो। इसका एक फायदा मुझे यह भी होता है कि मैं अपने शब्दों को बोलते समय ही जांच-परख लेता हूं। फिर भी आदमी ही हूं और इस कारण त्रुटियां होती रहती हैं।
लेकिन मुझ जैसे लिखने वाले पत्रकार और भारत सरकार में अंतर है। सरकार के पास एक पूरा तंत्र होता है। कई स्तर के पदाधिकारी होते हैं जो सरकार को बताते हैं कि शब्द कौन से उपयोग करने हैं। इसे बावजूद यदि सरकार उपयुक्त शब्दों का उपयोग न करे तो उसे भूल नहीं कहा जा सकता। मैं बात कर रहा हूं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बीते 19 नवंबर को सुबह नौ बजे देश के नाम संबोधन का। मोदी ने अपने संबोधन में कृषि कानूनों के संबंध में देश से माफी मांगी और कहा कि वे ‘कुछ’ लोगों को समझा नहीं पाए कि ये कानून किसानों के लिए किस तरह लाभदायक हैं।
[bs-quote quote=”बहरहाल, किसानों ने साफ कर दिया है कि जब तक संसद में कृषि कानूनों की वापसी नहीं होगी, एमएसपी पर कानून नहीं बनेगा और बिजली की दरों को लेकर कानून नहीं बनेगा तबतक वे आंदोलन खत्म नहीं करनेवाले। शायद इसे ही कहते हैं– हुक्मरान को घुटने पर बैठने को मजबूर करना।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
जब वे कुछ शब्द का उपयोग कर रहे थे तब मेरी जेहन में एक कहानी का स्मरण हुआ था। यह कहानी ‘कुछ’ की परिभाषा को लेकर था। कहानीकार थे नक्षत्र मालाकार हाईस्कूल, बेऊर, पटना के प्रिंसिपल अरविंद प्रसाद मालाकार सर। वे हर शनिवार को कहानियां सुनाते थे। एक शनिवार उन्होंने यह कहानी सुनायी कि एक कंजूस आदमी ट्रेन से उतरा। उसके पास चार-पांच झोले थे जो कि बहुत भारी थे। तो उसने एक कुली की सहायता लेनी चाही। कुली ने मजदूरी के रूप में सौ रुपए मांगे तब उस व्यक्ति ने कहा कि यह ते बहुत ज्यादा है, लेकिन चलो, मैं तुम्हें कुछ दे दूंगा और तुम्हें परेशानी नहीं होगी। कुली उस आदमी की कंजूसी को भांप गया। उसने उसे सबक सीखने की सोची।
कुली ने उस व्यक्ति का सामान स्टेशन के बाहर कर दिया और अपनी मजदूरी मांगी। उस कंजूस व्यक्ति ने उसे दस रुपए का नोट थमा दिया। इस पर कुली ने कहा– साहब, हमें यह नोट मत दें। मुझे कुछ दे दें। उस कंजूस आदमी को लगा कि कुली को और अधिक पैसे चाहिए ते उसने बीस रुपए का नोट बढ़ा दिया। कुली ने फिर कुछ देने की बात कही। इस तरह वह कंजूस आदमी एक हजार रुपए तक देने को तैयार हो गया, लेकिन कुली कुछ पर अड़ा था। अब उस कंजूस आदमी को समझ में आ गया कि उसने कुछ देने की बात कही थी और यह कुली बहुत चालाक है, इसलिए मुझे सबक सिखा रहा है। फिर उसने माफी मांगते हुए कहा कि हे बुद्धिमान कुली, आपने मेरी आंखें खोल दिये हैं। यह दो हजार रुपए लें और कृपया मुझे कुछ की परिभाषा बता दें।
कुली ने उसके हाथ अपनी मेहनत के पचास रुपए लिये और कहा कि आपको कुछ की परिभाषा मुफ्त में बताता हूं। चलिए चाय पीते हैं। स्टेशन पर ही चाय की एक दुकान (नरेंद्र मोदी के पिता वाली दुकान नहीं) पर उसने दुकानदार को दो कप चाय देने को कहा और उसे इशारे से एक कप में राख का एक छोटा सा टुकड़ा डाल देने को कहा। राख वाली चाय उसने उस व्यक्ति को पीने को दी, चाय हाथ में लेते ही वह व्यक्ति दुकानदार पर चीख पड़ा– कैसी चाय पिलाते हो तुम। देखो तो इसमें कुछ पड़ा है। दूसरी चाय दो।
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कुली ने मुस्कुराते हुए कहा– साहब, इसमें से जो कुछ है, उसे निकालकर अपने पास रख लें। यही वह कुछ है, जिसके बारे में आप जानना चाहते थे। वह राख ही है। कोई जहरीला पदार्थ नहीं।
दरअसल कल किसानों ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में किसान महापंचायत का आयोजन किया। खूब भीड़ जुटी। इस मौके पर किसान नेताओं ने कहा कि माफी मांगते समय भी नरेंद्र मोदी ईमानदार नहीं रहे। उन्होंने माफीनामे में भी किसानों को बांटने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि वे कुछ लोगों को समझाने में नाकाम रहे।
[bs-quote quote=”मुझ जैसे लिखने वाले पत्रकार और भारत सरकार में अंतर है। सरकार के पास एक पूरा तंत्र होता है। कई स्तर के पदाधिकारी होते हैं जो सरकार को बताते हैं कि शब्द कौन से उपयोग करने हैं। इसे बावजूद यदि सरकार उपयुक्त शब्दों का उपयोग न करे तो उसे भूल नहीं कहा जा सकता।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
मैं नरेंद्र मोदी के बारे में सोच रहा हूं। मुझे वह जाहिल नहीं लगते। वह अपने हर शब्द का मतलब जानते हैं। केवल मोदी ही क्यों, दुनिया के हर देश का शासक यह जानता है कि वह क्या कह रहा है, उसके कहने का तात्पर्य क्या है। निस्संदेह नरेंद्र मोदी ने ‘कुछ’ शब्द का उपयोग कर किसानों को बांटने की साजिश की। ऐसे में किसानों द्वारा इसका उद्धरण वाजिब ही है।
बहरहाल, किसानों ने साफ कर दिया है कि जब तक संसद में कृषि कानूनों की वापसी नहीं होगी, एमएसपी पर कानून नहीं बनेगा और बिजली की दरों को लेकर कानून नहीं बनेगा तबतक वे आंदोलन खत्म नहीं करनेवाले।
शायद इसे ही कहते हैं– हुक्मरान को घुटने पर बैठने को मजबूर करना।
नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
बढ़िया। दिलचस्प और पठनीय।
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