जुल्म की एक दिशा होती है। ताकतवर ही कमजोर पर जुल्म करता है। यह कभी नहीं होता है कि कमजोर ताकतवर पर जुल्म करे। बाजदफा जब कमजोर संगठित हो जाते हैं और सामूहिक रूप से पलटवार करते हैं तब वे भी जुल्म करते हैं। लेकिन इस जुल्म की समाजशास्त्रीय परिभाषा दूसरी है। लेकिन होता तो वह भी जुल्म ही है।
मैं अपने बारे में कह सकता हूं कि मैंने कभी बलात्कार नहीं किया है। और मुझे अपने इस आचरण से खुशी मिलती है। बहरहाल, आज जुल्म और डर की चर्चा करने की खास वजह है। यह वजह है केरल हाई कोर्ट के द्वारा कल सुनाया गया एक फैसला। न्यायमूर्ति आर नारायण पिशारदी ने अपने फैसले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि “अपरिहार्य मजबूरी के सामने बेबसी को सहमति नहीं माना जा सकता है।”

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