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डॉ मनमोहन सिंह : भूमंडलीकरण के भारतीय सूत्रधार का जाना

देश के जाने-माने अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का 92वें वर्ष की उम्र में निधन हो गया। डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे एक अर्थशास्त्री, शिक्षाविद्, नौकरशाह और राजनीतिज्ञ रहे, जिन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में दो बार कार्य किया। उनका जन्म 26 सितंबर, 1932 को हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 1982 से 1985 तक वे भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर रहे और पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री का दायित्व भी संभाला। 1991 में भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। उन्होंने 2004 से 2014 तक अपने प्रधानमंत्री काल के दौरान कई महत्वपूर्ण नीतियों और कार्यक्रमों को लागू किया था।

तालिबान, धार्मिक कट्टरता और महिलाओं के मानवाधिकार

किसी भी देश में धार्मिक कट्टरता का पहला निशाना वहां की महिलायें होती हैं। अफगानिस्तान हो या ईरान या भारत ही क्यों न हो। आज के समय में धार्मिक परम्पराओं का राजनैतिक उपयोग कर राज्य सत्ता समाज पर लादती है और यह सभी परम्पराएं समाज को 100 साल पीछे ले जाती हैं क्योंकि ये सभी परम्पराएँ घीसी-पिटी, दमनकारी व मानसिक गुलामी का झंडा उठाये रहती हैं। हिन्दू राष्ट्रवादियों और तालिबान की नीतियां और कार्यक्रमों में परिमाण या स्तर का फर्क हो सकता है मगर दोनों में मूलभूत समानताएं हैं।

भोपाल गैस त्रासदी : विकास के नाम पर खोले गए कारखाने हमेशा पर्यावरण और जनसाधारण को खत्म करते हैं

भोपाल गैस त्रासदी में मौत के खौफनाक मंजर के बाद आज भी उस त्रासदी से गुजरे हुए लोग जब अपने अनुभव साझा करते हैं, तो उनके चेहरे पर वही डर और दुःख के साथ आवाज़ में वही दर्द मिलता है, जिस मंज़र से आज से 40 वर्ष पहले गुजरे थे। तब से लेकर आज तक वह कारखाना बंद है, लेकिन हर रोज ज़िंदा बचे लोग उस रात हुए हादसे को याद कर तकलीफ से भर जाते हैं। सवाल यह उठता है कि कारखाना बंद हो चुका है लेकिन त्रासदी से पीड़ित लोग आज भी न्याय की उम्मीद में कब तक भटकते रहेंगे?

भोपाल गैस कांड : मानवीयता कभी खत्म नहीं हुई, पीड़ित लोगों के संघर्ष के साथ हैं ये लोग

भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर 1984 को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण लगभग दस हजार लोगों की मौत हो गई थी। इस हादसे को आज 40 वर्ष हो जाने के बाद भी बचे हुए लोगों के स्वास्थ्य पर इसका असर देखा जा रहा है। हादसे के बाद भोपाल की जो स्थिति थी, उसे संभालने के लिए अनेक संस्थाओं और व्यक्तियों ने लगातार गैस पीड़ितों के लिए काम किया।

75 की दहलीज पर हमारा संविधान

भारत एक अभूतपूर्व स्थिति का सामना कर रहा है, जहां संविधान के नाम पर सत्ता में चुने गए और पद ग्रहण करने वाले लोग ऐसी नीतियों का पालन कर रहे हैं, जिससे धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और संघवाद के स्तंभों पर टिका संविधान का बुनियादी ढांचा धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है।

वर्धा यूनिवर्सिटी में लड़की से छेड़खानी, प्रबंधन बना लापरवाह

प्रशासन ने मानहानि और सुसाइड की धमकी देकर पीड़िता से ही लिखवाया माफ़ीनामा लड़कियों और स्त्रियों पर होने वाले यौन हिंसा जैसे जघन्य अपराध को...