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महात्मा गांधी …जै राम जी!
मनरेगा मांग-आधारित योजना है, लेकिन नए विधेयक में इससे राम-राम कर लिया गया है। 125 दिनों के रोजगार की उपलब्धता उन क्षेत्रों के लिए होगी, जिसका चयन केंद्र सरकार करेगी। इस चयन के मापदंड का उल्लेख विधेयक में नहीं मिलता और हम आसानी से अनुमान लगा सकते है कि यह चयन भाजपा की राजनैतिक जरूरतों को पूरा करने का माध्यम बनेगा। इसके साथ ही, ग्रामीण विकास योजनाओं को तैयार करने में ग्राम पंचायतों की स्वायत्तता भी खत्म हो जाएगी और उन्हें केंद्र की बनी-बनाई लीक पर काम करना होगा। इस प्रकार, राज्यों और केंद्र के बीच संविधान में उल्लेखित सहकारी संघवाद की अवधारणा को भी दफनाया जाएगा।
महात्मा अब बापू बने, जिनके रूप अनेक!
गोडसे के जन्म दिन पर महात्मा गांधी की मूर्तियों पर गोलियां दागने से इनका मन नहीं भरा है, तो गांधीजी की हत्या का यह एक और तरीका ढूंढ निकाला गया है। मनरेगा अब पूबारेगा हो गया है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का नाम संघी गिरोह ने अब बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना कर दिया है। धीरे से योजना के बोर्डों से महात्मा गांधी की तस्वीर कब उतर जाएगी और कब आसाराम या मोरारी बापू चढ़ जाएंगे, पता भी नहीं चलेगा। नामों को बदलना और काम की गुणवत्ता को गिराना, इस धर्मनिरपेक्ष देश को हिंदू राज में बदलने की पहली निशानी है।
टैगोर के राष्ट्रगान : दक्षिण एशिया के बेशकीमती रत्न
पूर्वी पाकिस्तान को अलग देश बनाने के लिए चले आंदोलन का नेतृत्व मुजीबुर्रहमान ने किया। इन बंगालियों का थीम सांग था 'आमार सोनार'। हाल में असम में कांग्रेस की एक बैठक में एक कांग्रेसी ने 'आमार सोनार बांग्ला' गीत गाया।असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अपनी पुलिस को बांग्लादेश का राष्ट्रगान गाने के लिए उस व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा। मुख्यमंत्री आक्रामक दक्षिणपंथी हैं। वे समय समय पर मुस्लिम समुदाय को अपमानित करने वाले वक्तव्य देते रहते हैं। यह समुदाय असम में जबरदस्त उपेक्षा झेल रहा है।
दिल्ली : दो दिवसीय युवा समाजवादी सम्मेलन संपन्न
भारत के समाजवादी आंदोलन की 90वीं वर्षगांठ के ऐतिहासिक अवसर पर युवा सोशलिस्ट पहल (YSI) के तत्वावधान में, 31 अक्टूबर से 1 नवंबर, 2025 तक दिल्ली के राजेंद्र भवन में दो दिवसीय युवा समाजवादी सम्मेलन का आयोजन किया गया। युवा सोशलिस्ट पहल के तहत भारतीय समाजवादी आंदोलन की 100वीं वर्षगांठ तक अगले दस वर्षों में विभिन्न सम्मेलनों, चर्चाओं, कार्यशालाओं और संगोष्ठियों के आयोजन और एक्शन कार्यकर्मों के माध्यम से युवाओं को समाजवादी विचारों और संवैधानिक मूल्यों के बारे में शिक्षित करने पर केन्द्रित किया जायेगा। युवा सोशलिस्ट पहल (यूथ सोशलिस्ट इनिशिएटिव) युवाओं का एक मंच सरोकरधर्मी शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, विद्वानों, छात्रों, ट्रेड यूनियन नेताओं, किसान नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं का साझा मंच है।
बौद्धिक गुलामी को रेखांकित करने वाले विचारक थे किशन पटनायक
किशन पटनायक का निधन 27 सितम्बर, 2004 को हुआ था। आज उनकी बीसवीं स्मृति-तिथि है। इस आलेख में बौद्धिक गुलामी की स्वीकार्यता, नौजवान की मानसिकता, राजनीति और बुद्धिजीवियों की भूमिका पर किशन पटनायक के हवाले से विचार किया गया है।
क्या धर्मनिरपेक्षता पश्चिम का थोपा हुआ विचार है?
भारत में हिन्दू धर्म के बारे में कहा जाता है कि वह पारंपरिक अर्थ में धर्म नहीं है। यह केवल लोगों को भ्रमित करने का तरीका है। जो लोग धर्म का रक्षक होने का दावा करते हैं वे दरअसल जाति और लिंग पर आधारित प्राचीन ऊंच-नीच को बनाए रखना चाहते है। ये ताकतें प्रजातंत्र के आगाज़ से पहले की दुनिया वापस लाना चाहती हैं। वे नहीं चाहतीं कि हर व्यक्ति का एक वोट हो। वे चाहतीं हैं कि राजा को ईश्वर से जोड़ा जाए और पुरोहित वर्ग उसे सहारा दे।
क्या पूना पैक्ट में गाँधी को जबरन खलनायक बनाया गया है?
आज से 92 साल पहले 26 सितंबर, 1932 के दिन ऐतिहासिक पूना समझौते पर यरवदा जेल के अंदर हस्ताक्षर हुए थे। हमेशा की तरह, इस समय भी उस पैक्ट को लेकर कुछ लोग गलतबयानी करते थे। बाद में गलतबयानी भी तथ्य की तरह स्थापित हो गई। अस्सी के बाद के दशकों में तो यह प्रवृत्ति इतनी परवान चढ़ी कि गांधी इसके एकतरफा खलनायक बना दिये गए। फिर भी आज पूना पैक्ट की 92वीं सालगिरह पर कुछ बात करना जरूरी है।
हैदराबाद का विलय : लोकतांत्रिक सफर की शुरुआत
भारत में हैदराबाद के विलय के पीछे इस्लामोफोबिया नहीं था। इसकी मुख्य वजहों में से एक थी भौगोलिक और दूसरी थी राजशाही से लोकतंत्र की ओर यात्रा। हैदराबाद रियासत की भौगोलिक स्थिति, जो भारत के लगभग मध्य में था, चारों ओर से भारत से घिरा एक स्वतंत्र देश या एक ऐसा राज्य जो पाकिस्तान का हिस्सा होता, एक स्थायी समस्या बन जाता। नेहरू-पटेल की नजरों में भी यही बात सबसे महत्वपूर्ण थी। हैदराबाद के विलय को रेखांकित करता राम पुनियानी का लेख ।
अन्ना की मौत : कॉर्पोरेट का क्रूर चेहरा
अन्ना की मौत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या यह तथाकथित 'विकास' और 'प्रगति' वाकई में लोगों के लिए है? पूंजीपतियों की लालच और सरकार की पूंजीवाद-समर्थक नीतियाँ न केवल लोगों की आजीविका छीन रही हैं, बल्कि उनकी जान भी ले रही हैं। असली विकास का मतलब केवल आर्थिक मुनाफा नहीं है। असली विकास तब होगा जब लोग शोषण-मुक्त जीवन जी सकें और उन्हें काम का आनंद मिले।
क्यों नहीं कम हो रहे हैं दलितों पर अत्याचार
बिहार के नवादा में घटी घटना आज भी जातीय भेदभाव को प्रदर्शित करती है। जब बीजेपी और आरएसएस जैसे संगठन हिन्दू एकता का नारा लगाते है तो वे इस तरह दलित उत्पीड़न पर मौन क्यों है? जातिगत उत्पीड़न और पूंजीवादी शोषण आपस में गहरे जुड़े हुए हैं। जब तक ऐसी जातिगत व्यवस्था को चुनौती नहीं दी जाएगी तब तक शोषण जारी रहेगा ।
बुद्धदेव भट्टाचार्य : हाशिए के समाजों का भरोसेमंद नेता
कॉमरेड बुद्धदेव भट्टाचार्य ग्यारह वर्ष तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने को एक मेहनतकश मजदूर से ज्यादा कुछ नही समझा। अपने जीवन को मेहनतकशों के जीवन का ही हिस्सा मानते थे, मेहनतकशों की जीवन संस्कृति ही उनकी संस्कृति थी।

