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लोकतंत्र ही नहीं देश का भविष्य भी खतरे में है

मुंबई की एक सोसाइटी में बकरीद के मौके पर एक मुस्लिम परिवार द्वारा कुर्बानी के लिए लाए गए बकरे को लेकर इतना बवाल हुआ कि वहाँ पुलिस को आना पड़ा। कॉलोनी के हिन्दू निवासी जय श्रीराम के नारे लगाने लगे। जबकि बकरे लाने वाले व्यक्ति ने कहा कि इस कॉलोनी में दो सौ मुस्लिम परिवार […]

मुंबई की एक सोसाइटी में बकरीद के मौके पर एक मुस्लिम परिवार द्वारा कुर्बानी के लिए लाए गए बकरे को लेकर इतना बवाल हुआ कि वहाँ पुलिस को आना पड़ा। कॉलोनी के हिन्दू निवासी जय श्रीराम के नारे लगाने लगे। जबकि बकरे लाने वाले व्यक्ति ने कहा कि इस कॉलोनी में दो सौ मुस्लिम परिवार रहते हैं। हर साल ईद और बकरीद आती है लेकिन आज से पहले कभी भी किसी ने ऐतराज नहीं किया। दूसरी बात उन्होंने यह कही कि हमलोग घर में कुर्बानी नहीं करते बल्कि जो जगह सरकार ने तय की है वहाँ करते हैं। बकरों को किसी और जगह रखना संभव नहीं है इसलिए अपने घर में रखते हैं।

इसी तरह लखनऊ में कल बकरीद के मौके पर एक व्यक्ति द्वारा अपनी छत पर मांस धो रहा था तभी एक चुटियाधारी पत्रकार द्वारा उसका वीडियो बनाकर यूपी पुलिस को ट्विटर पर टैग कर उसे धार्मिक एंगल देने की कोशिश की गई। लोगों की प्रतिक्रिया आती इसके पहले ही पुलिस ने वहाँ जाकर पता किया और वह व्यक्ति सुनील नाम का हिन्दू निकला। लेकिन इसके बाद भी वह वीडियो वायरल हो रहा है।

इसी तरह महाराष्ट्र के शोलापुर में मुसलमानों को बदनाम करने और नफरत फैलाने के लिए बकरीद के दिन एक गुब्बारे वाले को ईदगाह पर लव पाकिस्तान लिखा हुआ गुब्बारा बेचते पुलिस ने पकड़ लिया, जिसका नाम अजय निकला। वह बकरीद के दिन इस तरह के पाकिस्तान प्रेम वाले गुब्बारे बेचकर लोगों के बीच विद्वेष पैदा कर शांतिपूर्ण माहौल में खलल पैदा करना चाह रहा था।

यह सब देखकर अब यह स्पष्ट हो चुका है कि सांप्रदायिकता से लबरेज घटनाएँ जिस तरह से बढ़ रही हैं वे केवल अनायास ही नहीं हैं बल्कि इनके पीछे एक गहरी साजिश है और इस साजिश को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हैं। हिंदुओं के त्योहार आते हैं और चले जाते हैं। दूसरे दिन खबरों में आता है कि अमुक त्योहार शांतिपूर्ण तरीके से मनाया गया, लेकिन जैसे ही मुसलमानों का त्योहार ईद, बकरीद और मुहर्रम आता है, वैसे ही 15 दिन पहले से सोशल मीडिया के साथ हिंदुत्ववादी संगठन यह बताने लगते हैं कि उन्हें त्योहार कैसे मनाना है? कहाँ नमाज़ पढ़ना है? कहाँ नमाज़ नहीं पढ़ना है? बकरे काटना चाहिए या नहीं काटना चाहिए।

पूरे देश के मुसलमानों को जिस तरह से निशाने पर रखकर ट्रोल किया जा रहा है, उसे पूरी दुनिया देख रही है। और तो और इस बार के अमेरिका दौरे में वहाँ की मीडिया और प्रेस ने हमारे प्रधानमंत्री मोदी से अमेरिका में मुसलमानों के ऊपर सुनियोजित हमलों, मोब लिंचिंग और असुरक्षा से जुड़े जो सवाल किए उनका जवाब उन्हें नहीं मिला। प्रधानमंत्री बगले झाँकते रहे और कहा कि भारत में किसी भी धार्मिक समुदाय के साथ कोई भेदभाव नहीं होता। इसके दूसरे ही दिन नाशिक में दो लोग मोब लिंचिंग के शिकार बनाए गए। तथाकथित विश्व गुरु बनने के लिए जाति और धर्म की नफरत के माध्यम से युवाओं को जिस तरह तैयार किया जा रहा है, उससे लोकतंत्र नहीं बल्कि भीडतंत्र का समाज तैयार हो रहा है।

मुसलमानों के लिए लोगों के मन में नफरती भावना पैदा करने की साजिश इधर बहुत बढ़ गई है। किसी न किसी बहाने उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। कभी गोमांस की तस्करी के मामले में, कभी गोमांस खाने को लेकर, कभी सार्वजनिक जगहों पर नमाज़ पढ़ने को लेकर और कभी हिजाब पहनने को लेकर। इधर तो उनके त्योहारों ईद, बकरीद या मोहर्रम आदि पर हिंदुवादी संगठनों ने जैसे पहरा लगा दिया हो। नफरत और सांप्रदायिक नफरत फैलाने के लिए हिंदुवादी संगठनों के अंधभक्त इस तरह के कामों को अंजाम दे रहे हैं। जबकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। 2014 के बाद धर्मनिरपेक्षता खतरे में हो गई है, न कि हिन्दू। लेकिन हिन्दू को खतरे में बताना राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की गारंटी हो गई है। आये दिन अंधभक्त इस बात को कहते हुए दिख जाते हैं।

झारखंड में तबरेज अंसारी के साथ मोब लिंचिंग में मारे गए तबरेज अंसारी की हत्या करने वालों को उम्र कैद की सजा हुई। सजा पाए ये लोग तबरेज अंसारी से जय श्री राम के नारे लगवाना चाह रहे थे और उसके नहीं कहने पर मार डाला। यह केवल झारखंड की एकमात्र घटना नहीं है बल्कि पिछले दिनों श्रीनगर की एक मस्जिद में सेना के एक अधिकारी ने लोगों से जय श्री राम का नारा लगाने को कहा और इंकार करने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी। ये घटनाएँ यह बताने के लिए काफी हैं कि भारत में किस तरह की ताकतों को बढ़ावा दिया जा रहा है। हिन्दुत्व का उन्माद अपराधियों का एक ऐसा समूह पैदा कर चुका है जो लोकतन्त्र ही नहीं देश के भविष्य के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है।

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