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लव जिहाद : कट्टरपंथी राजनीति के दौर में न्याय प्रणाली पर खड़े होते सवाल

हिन्दुत्ववादी संगठन, किसी न किसी बहाने मुसलमानों को टार्गेट करता ही रहता है, चाहे वह लव जिहाद के नाम पर हो, धर्म के नाम पर हो या गौ रक्षा के नाम पर। जब ऐसी कोई घटना होती है, उसमें मुसलमानों को खोजा जाता है, जैसे देश में सबसे बड़े अपराधी मुसलमान हैं। इस तरह की घटना वर्ष 2014 के बाद बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं। इसमें देश की कार्यपालिका, विधायिका के साथ न्यायपालिका भी शामिल है। जब न्यायपालिका भी इस तरह के अंजाम को बढ़ावा दे रही हो, तब इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होना वाजिब है.

मुसलमानों को आरक्षण का हकमार बताने का भाजपाई अभियान मुंह के बल गिरेगा

भाजपा मुसलमानों को आरक्षण का हकमार बताए जा रही है, उसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि वह आरक्षण के असल हकमार वर्ग से राष्ट्र का ध्यान भटकाए रखना चाहती है। चूँकि वह चुनाव में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाकर ही कामयाबी हासिल करती रही जिसे वह आगे भी जारी रखना चाहती है।

बनारस : क्या मुस्लिम पक्ष को ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने पर जाने से रोका जाएगा?

ज्ञानवापी विवाद मामले पर वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने के ऊपर मुस्लिम श्रद्धालुओं को जाने से रोकने के अनुरोध वाली हिंदू पक्ष की याचिका पर सुनवाई के लिए 11 अप्रैल की तारीख तय की है।

लोकसभा चुनाव : हिन्दुत्व के नाम पर एकतरफा जीत के लिए भाजपा मुस्लिमों को टिकट ही नहीं देती

भाजपा की ओर से मुसलमानों को नहीं के बराबर टिकट देना, उसकी चुनावी रणनीति का एक खास अंग रहा है, जिसका उसे भारी लाभ मिलता है। भाजपा की चुनावी सफलता में मुस्लिम उम्मीदवारों की अनदेखी उसकी सफलता संभवतः सबसे बड़ा कारण बनती है।

आम चुनाव के बीच क्या है भारतीय मुसलमानों के समक्ष विकल्प

जैसे-जैसे 2024 के आमचुनाव नजदीक आ रहे हैं, कुलीन वर्ग के कुछ मुसलमान अपने समुदाय से अपील कर रहे हैं कि भाजपा के बारे...

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के गांव में मुस्लिमों की सार्वजनिक पिटाई पर पुलिस से नाखुशी जताई

नई दिल्ली (भाषा)। उच्चतम न्यायालय ने 2022 में खेड़ा जिले के एक गांव में मुस्लिम समुदाय के पांच लोगों की सार्वजनिक रूप से पिटाई...

मुस्लिम शासकों की देन नहीं है हिन्दू पितृसत्ता और हिन्दू स्त्रियों की गुलामी

आरएसएस का जन्म स्वाधीनता आन्दोलन से उपजे जातिगत और लैंगिक समानता की स्थापना के अभियान की खिलाफ हुआ था। उस समय भारत एक राष्ट्र...

पटकथा के एक पात्र भर हैं सीधी के शुकुल, पिक्चर अभी बाकी है

सीधी के पेशाब-काण्ड पर अनेक प्रतिक्रियाएं आ चुकी हैं। शब्दों में, भावनाओं में, प्रदर्शनों में, आलोचनाओं में, निंदाओं में, भर्त्सनाओं में, कुछ ने खूब...

लोकतंत्र ही नहीं देश का भविष्य भी खतरे में है

मुंबई की एक सोसाइटी में बकरीद के मौके पर एक मुस्लिम परिवार द्वारा कुर्बानी के लिए लाए गए बकरे को लेकर इतना बवाल हुआ...

मोदी सरकार को सत्ता से हटाना हर अंबेडकरवादी का लक्ष्य होना चाहिए: शाहनवाज़ आलम

अल्पस्यंखक कांग्रेस द्वारा आयोजित दलित-मुस्लिम संवाद में बोले कांग्रेस नेता हापुड़। भाजपा दलितों और कमज़ोर तबकों को मिले संवैधानिक अधिकारों को छीनकर फिर से मनुवादी...

हिन्दू राष्ट्रवाद की खंडित आस्था से उपजे उन्माद का स्वप्न है अखंड भारत

क्या देशों के बीच की सीमाएं हमेशा एक-सी बनी रहती हैं? या फिर समय के साथ बदलती रहती हैं? कई मौकों पर साम्राज्यों-सम्राटों और आधुनिक...

क्या मुसलमानों को सपा से दूर करने में कामयाब हो रही है भाजपा

लखनऊ। निकाय चुनाव को सत्ता साम्राज्य की सीढ़ियाँ बनाने में लगी भाजपा क्या उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुसलमानों की एकता को चकनाचूर करके...

कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण खत्म करने का भाजपा का नया खेल

इस समय पूरे देश की निगाहें कनार्टक विधानसभा चुनाव प्रचार पर लगी हैं, जहाँ 10  मई को 224 सीटों के लिए वोट पड़ने हैं।वोटों...

बहुरूपिया कला जवानी में तो ज़िंदा है लेकिन बुढ़ापे में मर जाती है

उन्होंने बताया कि दस वर्ष की उम्र में चेहरा कच्चा था। इस वजह से वे पिता के साथ लुहारिन, सब्जी वाली और अन्य स्त्री पात्र के लिए तैयार होते थे। वह कहते हैं - ‘आज चालीस वर्ष का हो चुका हूँ। तब से लेकर आज तक सैकड़ों किरदार के लिए बहुरूपिया बन चुका है। वह समय दूसरा था और आज का समय एकदम बदल चुका है। पहले धार्मिक किरदार में शिव, हनुमान, राम जैसे पात्र बनता था, लोग खुश होते थे और सम्मान देते थे लेकिन इधर 8-9 वर्षों से हम धार्मिक किरदारों से बचते हैं।

नई बोतल में पुरानी शराब… है जाति पर भागवत का सिद्धांत

अछूत व्यवस्था लगभग पहली सदी ईस्वी में जाति व्यवस्था का अंग बनी। मनुस्मृति, जो दूसरी या तीसरी सदी में लिखी गई थी, में तत्कालीन लोक व्यवहार को संहिताबद्ध किया गया है और इससे पता चलता है कि उत्पीड़क वर्गों द्वारा पीड़ितों पर कितने घृणित प्रतिबंध और नियम लादे जाते थे।

बहुसंख्यकवादी राजनीति के उभार से असमंजस में भारतीय मुसलमान

सच्चर समिति की रपट प्रस्तुत होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक सामान्य-सी टिप्पणी की कि वंचित वर्गों, (जिनमें  मुसलमान भी शामिल हैं) का देश के संसाधनों पर पहला हक है।

अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में राज्य की भूमिका

गत 26 फरवरी, 2023 को वाशी (नवी मुंबई) में एक विशाल हिन्दू जन आक्रोश रैली निकाली गई जिसमें लव जिहाद और लैंड जिहाद करने के लिए मुसलमानों के खिलाफ अभद्र नारे लगाए गए। गोदी मीडिया के एक जाने-माने एंकर ने एक चार्ट के जरिए यह समझाया कि भारत में कितने प्रकार के जिहाद हो रहे हैं।

कट्टरता विनाश की जननी है

प्रजातंत्र उन्हीं देशों में मजबूत रहता है जिनमें सभी धर्मों के अनुयायियों को बराबरी के अधिकार प्राप्त रहते हैं। हमारे देश के शासकों को सबक लेना चाहिए और ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे धर्मनिरपेक्षता की जड़ें कमजोर हों और पाकिस्तान की एक शायरा (फहमीदा रियाज) का भारत के बारे में लिखी गई कविता गलत साबित हो कि तुम बिलकुल हम जैसे निकले।

पूर्वान्चल में बुनकरों को सरकारी राहत योजनाओं के लाभ की वास्तविकता

एक लोकतान्त्रिक देश में वोट बहुत महत्वपूर्ण है और इसे नागरिक को जन्म से मिलने वाला बुनियादी अधिकार समझा जाता है। आंकड़ों के अनुसार 184 (90 प्रतिशत) लोगों के पास वोटर पहचान पत्र था। 20 लोगों (10 प्रतिशत) के पास वोटर कार्ड नहीं था। इनसे जब वोटर पहचान पत्र नहीं रहने के कारण के बारे में पूछा गया तो  कुछ लोगों ने फॉर्म भरने के बारे में कहा तो कुछ लोगों ने बताया कि कुछ तकनीकी कारणों से उनका आवेदन नहीं पूरा हुआ तो कुछ ने बताया कि कुछ गलतियों या उपयुक्त दस्तावेज नहीं रहने के कारण आवेदन खारिज कर दिया गया है।

आखिर मोदी को पसमांदा मुसलमानों की क्या जरूरत पड़ गई है?

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कई अलग-अलग तरीकों से अपनी चुनावी ताकत बढ़ाती रही है। पार्टी को मिलने वाले वोटों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा...

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