संविधान निर्माताओं ने सोचा था कि कुछ दशकों में स्थिति बदल जाएगी, चुनाव इसका माध्यम होगा, लेकिन परिणाम हम सबके सामने है। आज भी यह निर्विवाद सत्य है कि लोग डॉ. अंबेडकर के विचारों का पालन करें या न करें लेकिन आज अंबेडकर के नाम पर राजनीति सबसे ऊपर है। ऊपरी तौर पर ही सही सभी राजनेता आज मानने को बाध्य है कि डॉ. भीम राव अंबेडकर ने हमें दुनिया का सबसे अच्छा संविधान दिया है। लेकिन इसके बाद भी ब्राह्मणवादी सोच ने पूरे देश में दलित,पिछड़े और अल्पसंख्यकों पर हावी हैं। सवाल यह भी होगा कि क्या संविधान बनने के 75 साल बाद भी बाबा साहब डॉ. भीम राव अंबेडकर असफल रहे? क्या उनका सपना बस सपना ही रह गया और अगर ऐसा है तो क्या इसके लिए हम सब जिम्मेदार नहीं हैं?
वर्ष 2014 के बाद भारत की धर्ननिरपेक्षता पर लगातार हमला हुआ है। देश में हिंदुत्ववादी विचारधारा ने लगातार सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश की है। रोजाना एक-दो खबरें सुनाई दे रही हैं। केवल पुलिस-प्रशासन ही नहीं बल्कि जनप्रतिनिधि भी गैर जिम्मेदाराना बयान दे आग भड़का रहे हैं।
संविधान ने दलितों और आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को मान्यता दी और उन्हें आरक्षण दिया जिसने समुदायों को किसी तरह से बनाए रखा। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी को 1990 में 27% आरक्षण मिला, कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर इसे पहले भी लागू किया था। मोटे तौर पर इन ओबीसी आरक्षणों का 'यूथ फ़ॉर इक्वालिटी' जैसे संगठनों द्वारा कड़ा विरोध किया गया था। यहाँ तक कि दलितों और अन्य वर्गों के लिए आरक्षण का भी बड़े पैमाने पर विरोध होने लगा, जैसे 1980 के दशक में दलित विरोधी और जाति विरोधी हिंसा और फिर 1985 के मध्य में गुजरात में। इस बीच, चूंकि संविधान ने धर्म के आधार पर आरक्षण को मान्यता नहीं दी, इसलिए अल्पसंख्यक आर्थिक रूप से पिछड़ेपन में डूबे रहे।
हिन्दुत्ववादी संगठन, किसी न किसी बहाने मुसलमानों को टार्गेट करता ही रहता है, चाहे वह लव जिहाद के नाम पर हो, धर्म के नाम पर हो या गौ रक्षा के नाम पर। जब ऐसी कोई घटना होती है, उसमें मुसलमानों को खोजा जाता है, जैसे देश में सबसे बड़े अपराधी मुसलमान हैं। इस तरह की घटना वर्ष 2014 के बाद बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं। इसमें देश की कार्यपालिका, विधायिका के साथ न्यायपालिका भी शामिल है। जब न्यायपालिका भी इस तरह के अंजाम को बढ़ावा दे रही हो, तब इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होना वाजिब है.
भाजपा मुसलमानों को आरक्षण का हकमार बताए जा रही है, उसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि वह आरक्षण के असल हकमार वर्ग से राष्ट्र का ध्यान भटकाए रखना चाहती है। चूँकि वह चुनाव में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाकर ही कामयाबी हासिल करती रही जिसे वह आगे भी जारी रखना चाहती है।
ज्ञानवापी विवाद मामले पर वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने के ऊपर मुस्लिम श्रद्धालुओं को जाने से रोकने के अनुरोध वाली हिंदू पक्ष की याचिका पर सुनवाई के लिए 11 अप्रैल की तारीख तय की है।
भाजपा की ओर से मुसलमानों को नहीं के बराबर टिकट देना, उसकी चुनावी रणनीति का एक खास अंग रहा है, जिसका उसे भारी लाभ मिलता है। भाजपा की चुनावी सफलता में मुस्लिम उम्मीदवारों की अनदेखी उसकी सफलता संभवतः सबसे बड़ा कारण बनती है।
सीधी के पेशाब-काण्ड पर अनेक प्रतिक्रियाएं आ चुकी हैं। शब्दों में, भावनाओं में, प्रदर्शनों में, आलोचनाओं में, निंदाओं में, भर्त्सनाओं में, कुछ ने खूब...
अल्पस्यंखक कांग्रेस द्वारा आयोजित दलित-मुस्लिम संवाद में बोले कांग्रेस नेता
हापुड़। भाजपा दलितों और कमज़ोर तबकों को मिले संवैधानिक अधिकारों को छीनकर फिर से मनुवादी...
उन्होंने बताया कि दस वर्ष की उम्र में चेहरा कच्चा था। इस वजह से वे पिता के साथ लुहारिन, सब्जी वाली और अन्य स्त्री पात्र के लिए तैयार होते थे। वह कहते हैं - ‘आज चालीस वर्ष का हो चुका हूँ। तब से लेकर आज तक सैकड़ों किरदार के लिए बहुरूपिया बन चुका है। वह समय दूसरा था और आज का समय एकदम बदल चुका है। पहले धार्मिक किरदार में शिव, हनुमान, राम जैसे पात्र बनता था, लोग खुश होते थे और सम्मान देते थे लेकिन इधर 8-9 वर्षों से हम धार्मिक किरदारों से बचते हैं।
अछूत व्यवस्था लगभग पहली सदी ईस्वी में जाति व्यवस्था का अंग बनी। मनुस्मृति, जो दूसरी या तीसरी सदी में लिखी गई थी, में तत्कालीन लोक व्यवहार को संहिताबद्ध किया गया है और इससे पता चलता है कि उत्पीड़क वर्गों द्वारा पीड़ितों पर कितने घृणित प्रतिबंध और नियम लादे जाते थे।
सच्चर समिति की रपट प्रस्तुत होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक सामान्य-सी टिप्पणी की कि वंचित वर्गों, (जिनमें मुसलमान भी शामिल हैं) का देश के संसाधनों पर पहला हक है।
गत 26 फरवरी, 2023 को वाशी (नवी मुंबई) में एक विशाल हिन्दू जन आक्रोश रैली निकाली गई जिसमें लव जिहाद और लैंड जिहाद करने के लिए मुसलमानों के खिलाफ अभद्र नारे लगाए गए। गोदी मीडिया के एक जाने-माने एंकर ने एक चार्ट के जरिए यह समझाया कि भारत में कितने प्रकार के जिहाद हो रहे हैं।